Myths and Ethics of Cloning Techniques: क्लोन के जरिए बेहतरीन क्वॉलिटी के जानवर बनाए जा सकते हैं जिनसे उत्पादन में फायदा मिल सके। क्लोनिंग से खोए हुए पालतू जानवर वापस लाए जा रहे हैं। हालांकि, यह तकनीक कितनी सही है और इस पर कितना भरोसा किया जा सकता है, यह चर्चा में रहता है।
कुछ दिन पहले अमेरिका एक ब्लैक-फुटेज फेरेट (नेवले जैसे जीव) का क्लोन बनाया गया। उसे जिस मादा से बनाया गया, उसकी मौत 1988 में हो गई थी। साइबेरिया में भी विलुप्त हो चुके मैमथ का DNA मिला था। इसके बाद क्लोनिंग को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो चुकी है। उत्पादन बढ़ाने से लेकर खोए हुए करीबियों को वापस लाने तक, किसी जीव को क्लोन करना एक दिलचस्प कहानी रहा है, तकनीक के तौर पर भी और विज्ञान की असीमित क्षमताओं के एहसास के तौर पर भी। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के लिए शताक्षी अस्थाना ने बात की अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के ब्लूमबर्क स्कूल ऑफ हेल्थ के एविडेंस बेस्ट टॉक्सिकॉलजी के हेड और सेंटर फॉर ऑल्टर्नेटिव्स टू ऐनमिल टेस्टिंग के डायरेक्टर प्रफेसर थॉमस हार्टुंग से और जानने की कोशिश की क्लोनिंग कितना वरदान है और कितना अभिशाप।
कितनी भरोसेमंद तकनीक?
सवाल:
फेरेट को क्लोन करने से विलुप्तप्राय जीवों और विलुप्त जीवों की भी आबादी फिर से बढ़ाने की उम्मीद जगी है। इस तरीके को भविष्य में प्रचलित तौर पर देखने की कितनी उम्मीद है?
जवाब:
मैंने काफी उत्साह के साथ यह देखा है कि स्टोर किए हुए DNA से 30 साल बाद प्रजाति को फिर से बढ़ाया जा सकता है, जिससे विलुप्तप्राय प्रजातियों से ऐसे मटीरियल की बायोबैंकिंग करने की अहमियत को बल मिलता है। यह जानवरों से लेकर पौधों तक के लिए है जहां आधुनिक मोनोकल्चर जैव-विविधता को खतरे में डालता है और जहां हमें कभी कुछ वेरियंट्स को फिर से बढ़ाने का फायदा मिल सकता है या दवा के विकल्प खोजने में मदद मिल सकती है। विलुप्त जीवों को वापस लाना कई प्रॉजेक्ट्स का मकसद है, आमतौर पर विलुप्त प्रजातियों का पूरा DNA नहीं बल्कि अहम हिस्से आज मौजूद करीबी प्रजातियों (जैसे मैमथ और हाथी) में इंसर्ट किया जा सकता है।
आज की रफ्तार पकड़ सकेंगे क्लोन?
सवाल:
फेरेट के केस में 1988 का DNA इस्तेमाल किया गया। क्या पहले के जीव को क्लोन करते वक्त क्या उन्हें विकासक्रम (evolution) में पीछे ले जाने का खतरा नहीं होता, जब प्रजातियों के सामने अब जो परिस्थितियां हैं, उनके हिसाब से खुद को ढालने की जरूरत नहीं रही हो?
जवाब:
अगर सही से DNA स्टोर न किया गया हो तो उसकी क्वॉलिटी खराब होने का खतरा जरूर होता है लेकिन आदर्श रूप से DNA को काफी लंबे वक्त के लिए स्टोर किया जा सकता है, जैसा हमने कुछ हफ्ते पहले 20 हजार साल बाद मैमथ की DNA रिकवरी के मामले में देखा। दिक्कत यह है कि अगर सही से स्टोर न किया गया हो तो DNA टूटने लगता है। मैमथ DNA को सीधे मैमथ क्लोन करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वहीं, प्रजातियां वक्त के साथ बदल रही हैं लेकिन यहां हम दसियों-सैकड़ों साल की बात कर रहे हैं जब ढलने की नौबत आने लगे। विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने के लिए कुछ जानवरों की आबादी बढ़ाने में छोटा जीन पूल जरूर एक परेशानी की वजह है।
कितना विज्ञान, कितनी क्रूरता?
सवाल:
अभी इस टेक्नॉलजी पर काफी रिसर्च होनी है लेकिन क्लोन के किसी विकृति के साथ पैदा होने से जानवरों के प्रति क्रूरता और असम्मान की आलोचना होती है। इसके लिए भ्रूण (embryo) को मारना भी इंसान को मारने के बराबर समझा जाता है। आपका क्या कहना है?
जवाब:
DNA की सीमित क्वॉलिटी या प्रकिया के असर के तौर पर संभावित विकृति होना जरूर एक मुद्दा है। कई लोगों को याद होगी डॉली भेड़ जो क्लोन की जाने वाली पहली स्तनपायी जीव थी। उसे न्यूक्लियर ट्रांसफर की प्रक्रिया से वयस्क सोमैटिक सेल से क्लोन किया गया था। डॉली को 2003 में हमेशा के लिए सुलाना पड़ा (euthanize) क्योंकि उसके फेफड़ें में बीमारी हो गई थी और 6.5 साल की उम्र में अर्थराइटिस हो गया था। यह ब्रीड 12-13 साल रहती है। मेरी जानकारी में ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि यह क्लोनिंग प्रकिया की वजह से हुआ और न ही दूसरी भेड़ों में ऐसी समस्या देखी गई लेकिन इससे इस तरह की चर्चा की जरूरत मालूम पड़ी।
क्या हो सकती है इंसानों की क्लोनिंग?
सवाल:
इंसानों की क्लोनिंग में लोगों की काफी दिलचस्पी होती है और कई थिअरी भी होती हैं। यह रिसर्च कहां तक पहुंची है और क्या निकट भविष्य में इंसानों को क्लोन किया जाने लगेगा?
जवाब:
सबसे पहले साइंस-फिक्शन लिखने वाले लेखकों को प्रेरित करने के बाद से इंसानों की क्लोनिंग पर दशकों से बहस चल रही है। तकनीकी रूप से यह पूरी तरह से मुमकिन है और 2008 में भ्रूण के शुरुआती चरण क्लोन करने के बाद विकसित किए जा चुके हैं। रिसर्चर्स ने उन्हें किसी महिला में ट्रांसफर नहीं किया लेकिन संभावना है कि यह सफल हो जाए। साल 2018 में जब चीनी में ही जियानकुई की मदद से जीन-मॉडिफाइड इंसानी बच्चे पैदा हुए थे तो नैतिक आदर्श तोड़ने पर काफी विवाद हुआ था जो आज भी याद किया जाता है। यह जानने वाली बात है कि उन्हें नतीजतन तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया था। हालांकि, यह तकनीक अलग है लेकिन इससे पता चलता है कि ये जेनेटिक टेक्नॉलजी कितनी अडवांस्ड हैं और नैतिक और राजनीतिक चर्चा कर समय से सीमाएं लागू करना जरूरी है।
(तस्वीर में चीनी वैज्ञानिक ही जियानकुई )
खोए हुए अपने लौटने की उम्मीद कितनी सही?
सवाल:
पालतू जानवरों और भविष्य में इंसानों की क्लोनिंग पर कई सवाल उठते हैं। लोगों में यह उम्मीद जगाना कि जिन अपनों को वे खो चुके हैं, वे उन्हें वापस मिल सकते हैं, माना जाता है कि यह उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से रोकता है और इसलिए ठीक नहीं है। यह डर भी होता ही कि क्लोन से अंग निकालकर तस्करी की जा सकती है। ये डर आपको कितने सही लगते हैं?
जवाब:
जानवरों की क्लोनिंग काफी आम है जैसे मवेशियों में, इससे जेनेटिक रूप से बेहतर जानवर बनाए जाते हैं। कुत्तों की क्लोनिंग काफी दिलचस्प उदाहरण है, जैसा मैंने कुछ साल पहले साइंस में कुत्तों के इस्तेमाल पर आधारित दो वर्कशॉप्स में देखा था। कुछ स्टार्ट-अप कंपनियों ने इसे बिजनस बनाने की कोशिश की लेकिन दिक्कत यह है कि क्लोन कुत्ते पुराने कुत्ते जैसे नहीं दिखते थे। अपनी जेनेटिक संरचना के परिपेक्ष्य में कुत्ते हाइपरवेरियबल होते हैं- यही वजह होती है कि एक साथ पैदा हुए कुत्ते एक-दूसरे से कितने अलग लगते हैं और कम वक्त में कुत्तों की कई प्रजातियां पैदा होती हैं। और इससे हमें पता चलता है कि हम सिर्फ अपने जीन्स से कहीं ज्यादा हैं।
मेरा क्लोन मेरे जुड़वां की तुलना में मुझसे कम मिलता-जुलता होगा। हमें अपनी मां के अंडाणु (egg) से मटीरियल मिलता है, जेनेटिक मटीरियल की प्रोग्रामिंग, epigenetics, होती है जो हम प्राकृतिक प्रजनन और क्लोनिंग में अलग-अलग तरह से खो जेते हैं और सबसे बड़ी बात हमारा एन्वायरनमेंट हमें बनाता है। सबसे आखिरी और शायद सबसे जरूरी बात, अगर हम एक ही शरीर को फिर से बना भी सके, तो अनुभव, यादें और हर वह चीज जो हमें 'हम' बनाती है उसे शेयर नहीं किया जा सकता। वह एक करीबी होगा लेकिन उसकी खुद की एक सोच होगी।
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