Tuesday 31 August 2021

https://ift.tt/36CAGd7

इस्‍लामाबाद लश्‍कर और जैश-ए-मोहम्‍मद जैसे कश्‍मीरी आतंकियों और पाकिस्‍तानी सेना की मदद से अफगानिस्‍तान में सत्‍ता आए तालिबान ने अब इमरान खान की नींद उड़ा दी है। पाकिस्‍तानी अधिकारियों में अफगानिस्‍तान में सुरक्षा हालात को लेकर चिंता काफी बढ़ गई है। वह भी तब जब तालिबानी आतंकी अमेरिकी सेनाओं के वापस जाने के बाद देश‍ में स्थिरता लाने में जुटे हुए हैं। इस खतरे को देखते हुए पाकिस्‍तान अपने शीर्ष सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों को अफगानिस्‍तान भेजने जा रहा है ताकि तालिबानी सेना का फिर से निर्माण किया जा सके। पाकिस्‍तान को सबसे बड़ा खतरा आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्‍तान से नजर रहा है जो लगातार पाकिस्‍तानी सैनिकों की जान ले रहा है। टीटीपी के सदस्‍य अफगानिस्‍तान की सीमा पार करके पाकिस्‍तान में घुसते हैं और पाकिस्‍तानी सैनिकों पर हमले करके फरार हो जाते हैं। पिछले दो दशकों में हजारों की तादाद में पाकिस्‍तानी इन हमलों में मारे गए हैं। एक पाकिस्‍तानी अधिकारी ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, 'अगले दो से तीन महीने बहुत महत्‍वपूर्ण होने जा रहे हैं।' 'हम तालिबान को सेना को फिर से संगठित करने में मदद कर रहे' इमरान सरकार को डर सता रहा है कि अमेरिका के अत्‍याधुनिक हथियारों से लैस टीटीपी के लड़ाके अफगानिस्‍तान-पाकिस्‍तान की सीमा पर भीषण हमले कर सकते हैं। एक सूत्र ने कहा, 'हम तालिबान को उनकी सेना को फिर से संगठित करने में मदद कर रहे हैं ताकि वे अपने क्षेत्रों पर कंट्रोल स्‍थापित कर सकें।' अमेरिकी अधिकारी कई बार आरोप लगा चुके हैं कि पाकिस्‍तान अफगानिस्‍तान में सत्‍ता में आए तालिबान की मदद कर रहा है। उधर, पाकिस्‍तान का दावा है कि उसका अब तालिबान पर प्रभाव खत्‍म हो गया है लेकिन हकीकत यह है कि तालिबान की पूरी सरकार का फैसला क्‍वेटा शूरा से हो रहा है। अफगानिस्‍तान के कई नेता इन दिनों अफगान सरकार में जगह हासिल करने के लिए पाकिस्‍तान में डेरा डाले हुए हैं। पाकिस्‍तान के सुरक्षा फैसलों से सीधे तौर पर जुड़े अधिकारी ने कहा कि पाकिस्‍तान अपने शीर्ष सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों को अफगानिस्‍तान भेजने की योजना बना रहा है ताकि तालिबान की सेना को फिर से संगठित किया जा सके। अफगानिस्‍तान जा सकते हैं आईएसआई के प्रमुख पाकिस्‍तान की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख भी अफगानिस्‍तान जा सकते हैं। तालिबान ने इस खबर पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। तालिबान और पाकिस्‍तान की दोस्‍ती पर अफगानिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति अमरुल्‍ला सालेह भी लगातार हमला बोलते रहे हैं। उन्‍होंने पिछले दिनों कहा था कि तालिबान की मदद के लिए पाकिस्‍तान ने हजारों की तादाद में जिहादी अफगानिस्‍तान भेजे हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3yCM0Ay
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

वॉशिंगटन नासा की अंतरिक्ष यात्री Megan McArthur का 50वां जन्मदिन बेहद खास रहा। जिंदगी के 50 साल पूरे होने का जश्न उन्होंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर आइसक्रीम पार्टी कर मनाया, जो स्पेसएक्स के ड्रैगन कार्गो शिप ने पहुंचाई थी। यह स्पेसएक्स की अब तक की सबसे बड़ी कार्गो डिलीवरी थी। एलन मस्क की कंपनी ने एक दशक से भी कम समय में 23 बार अंतरिक्ष में जरूरी सामान और उपकरणों की डिलीवरी की है। 50 साल की उम्र लेकिन 'लकी गर्ल' जैसी फीलिंगडिलीवरी के बाद अपने 50वें जन्मदिन के मौके पर McArthur ने कहा कि इससे पहले किसी ने मेरे लिए मेरे जन्मदिन पर स्पेस शिप नहीं भेजी थी। अंतरिक्ष यात्री ने कहा कि Expedition 65 के चालक दल के साथियों के साथ बर्थडे डिनर शानदार था। उन्होंने कहा कि मैं दुनियाभर के परिवार, दोस्तों और स्पेस फैन्स से मिलने वाली शुभकामनाओं से बेहद खुश हूं। मैं 50 साल की हो गई हूं लेकिन फिलहाल एक भाग्यशाली लड़की की तरह महसूस कर रही हूं। अप्रैल में पहुंची थीं आईएसएसमैकआर्थर उन सात अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं जो फिलहाल पृथ्वी से 260 मील की दूरी पर आईएसएस में रह रही हैं। वह Expedition 65 के हिस्से के रूप में अप्रैल में स्टेशन पर पहुंची थीं। उन्होंने स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन एंडेवर पर आईएसएस के लिए उड़ान भरी थी। उनके साथ नासा के अंतरिक्ष यात्री शेन किम्ब्रू, ईएसए के टॉमस पेस्केट और जेएएक्सए के अकिहिको होशाइड भी आईएसएस के लिए रवाना हुए थे। आइसक्रीम और ताजा खाना लेकर रवाना हुआ रॉकेटSpaceX ने चींटियों, एवोकाडो और मानव आकार की रोबोटिक भुजा की एक खेप को रविवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर भेजी थी। फाल्कन रॉकेट ने नासा के केनेडी अंतरिक्ष केंद्र से तड़के उड़ान भरी। यह यान 4,800 पाउंड (2,170 किलोग्राम) से अधिक आपूर्ति एवं प्रयोग संबंधी सामग्रियों और अंतरिक्ष केंद्र के सात अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एवोकाडो, नींबू और यहां तक कि आइसक्रीम सहित ताजा भोजन लेकर रवाना हुआ था।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3zCvDFm
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

कराची पाकिस्‍तान ने अफगानिस्‍तान के काबुल एयरपोर्ट को दहलाने वाले आतंकी संगठन इस्‍लामिक स्‍टेट के खिलाफ जोरदार कार्रवाई का दावा किया है। पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि आईएसआईएस समूह के 11 आतंकवादी देश के अशांत प्रांत बलूचिस्तान में मारे गए हैं। बलूचिस्तान पुलिस के आतंकवाद रोधी विभाग के अनुसार एक गुप्त जानकारी मिलने के बाद यह कार्रवाई की गई। बलूचिस्‍तान प्रांत के मस्तुंग जिले में एक परिसर में हुई गोलीबारी में आईएसआईएस के ये आतंकवादी मारे गए। एक पाकिस्‍तानी अधिकारी ने बताया कि आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने छापेमारी दल पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी, जिसके बाद हुई गोलीबारी में 11 आतंकवादी मारे गए। उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान पर 15 अगस्त को तालिबान के नियंत्रण के बाद ये आतंकवादी चर्चा में आ गए। पाकिस्‍तानी पुलिस ने बताया कि इन आतंकियों ने हाल ही में दो पाकिस्‍तानी पुलिसकर्मियों की हत्‍या कर दी थी। पुलिस को छापेमारी के दौरान कथित रूप से आत्‍मघाती बेल्‍ट, ग्रेनेड और असॉल्‍ट राइफल मिली है। पाकिस्‍तान ने इस छापेमारी के बारे में ज्‍यादा जानकारी नहीं दी है। अभी मारे गए कथित आतंकियों की पहचान भी नहीं हो पाई है। बलूचिस्‍तान की राजधानी क्‍वेटा में अब तक हुए कई धमाकों की जिम्‍मेदारी आईएसआईएस ने ली है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3t2HGJV
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

अबू धाबीसंयुक्त अरब अमीरात के लिए अब सभी कैटेगरी के वीजा धारक उड़ान भर सकते हैं। इसका बड़ा फायदा उन भारतीय कामगारों और छात्रों को मिल रहा है जो यूएई में कार्यरत हैं या पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि यह सफर इतना भी आसान नहीं है। उड़ान प्रतिबंधों में ढील देने के साथ जैस-जैसे यात्रियों की संख्या बढ़ी हवाई किराया भी कम से कम 100 फीसदी तक बढ़ गया। नई घोषणाओं ने बढ़ाया 100 फीसदी किरायायूएई के अधिकारियों ने 30 अगस्त से सभी वैक्सीन लगवा चुके पर्यटकों को टूरिस्ट वीजा फिर से देने की घोषणा की थी, जिसके बाद यात्रा के लिए आवेदकों की संख्या और हवाई किराए में आश्चर्यजनक इजाफा हुआ। हालांकि एयरलाइंस के अनुसार दुबई की यात्रा करने वाले यात्रियों यूएई में प्रवेश करते समय वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट नहीं दिखाना होगा। ट्रैवल एजेंट्स और होटल मालिकों का कहना है कि ICA और NCEMA की हालिया घोषणाओं ने हवाई और होटल किराए में भारी वृद्धि की है, खासकर दुबई में। शारजाह की यात्रा से पहले वैक्सिनेशन जरूरीस्मार्ट टैवल्स के संचालन प्रबंधक मलिक बेडेकर ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल के हवाई किराए में कम से कम 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दूसरी ओर एयर अरबिया ने मंगलवार को कहा कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका से ई-वीजा पर यात्रा करने वाले यात्रियों को शारजाह और रास अल खैमाह के लिए उड़ान भरते समय कोविड-19 वैक्सिनेशन रिकॉर्ड दिखाना होगा। वैक्सीन लेने के 14 दिन बाद करें यात्राएयरलाइन ने कहा कि नए जारी किए गए ई-वीजा के साथ इन दोनों अमीरात में आने वाले सभी यात्रियों को उनके प्रस्थान से पहले आईसीए से मंजूरी लेनी होगी। इन देशों के पूरी तरह से वैक्सीन लगवा चुके निवासियों को प्रवेश की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते वे यूएई में कोविड-19 वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के 14 दिन बाद यात्रा कर रहे हों। यात्रियों को Al Hosn ऐप पर वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट दर्ज करना होगा और उनके पास ग्रीन स्टेटस होना चाहिए।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3kIzbzD
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान में विद्रोहियों के गढ़ पंजशीर घाटी को कई दिनों से घेरकर बैठे तालिबानी आतंकियों को लगातार हर हमले में मुंह की खानी पड़ रही है। ताजा हमलों में उनके 8 से ज्‍यादा लड़ाके मारे गए हैं। अपने लड़ाकुओं के मारे जाने से ताल‍िबान बौखला गया है और उसने नॉर्दन एलायंस के नेता अहमद मसूद को धमकी दे डाली है। तालिबान ने कहा है कि विद्रोहियों को अपने खून से इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। पंजशीर घाटी ही अब एकमात्र इलाका है जहां पर अभी तक तालिबान का कब्‍जा नहीं हो पाया है। पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के सैनिकों तालिबान को धूल चटाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। यही नहीं इन लड़ाकुओं को ट्रेनिंग का काम लगातार जारी है। अमेरिकी सेनाओं के वापस जाने के बाद तालिबान ने अपने आक्रामक अभियान को तेज कर दिया है। पंजशीर घाटी अफगानिस्‍तान की राजधानी काबुल से 150 किमी दूर है और यहां पर एक लाख लोग रहते हैं। 'मैं अपने पिता के नक्‍शे कदम पर चलने को तैयार हूं' इस इलाके के नेताओं को अब तालिबानी आतंकी धमकाने में जुट गए हैं। इन नेताओं का कहना है कि पंजशीर घाटी में हजारों की तादाद में लड़ाके मौजूद हैं। इसमें अफगानिस्‍तान की सेना से निकले कमांडर भी शामिल हैं। तालिबानी आतंकियों ने रविवार को पंजशीर घाटी की टेलिफोन लाइन और इंटरनेट को काट दिया था। पंजशीर के नेता और अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने वॉशिंगटन पोस्‍ट में लिखे अपने लेख में पिछले दिनों कहा था, 'मैं पंजशीर की घाटी से आज लिख रहा हूं और अपने पिता के नक्‍शे कदम पर चलने को तैयार हूं। मेरे साथ मुजाहिद्दीन लड़ाके हैं जो एक बार फिर से तालिबान के साथ संघर्ष के लिए तैयार हैं।' पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया है तालिबान अहमद मसूद ने लिखा, 'हमने विस्‍फोटक पदार्थ और हथियार अपने पिता के समय से ही इकट्ठा करके रखे हैं क्‍योंकि हम जानते थे कि यह दिन आ सकता है।' पंजशीर अफगानिस्तान का एकमात्र ऐसा प्रांत है, जिसपर आजतक तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। 1996 से 2001 के इस्लामिक अमीरात के शासन के दौरान भी पंजशीर तालिबान के लिए एक नासूर बना रहा। तालिबान ने कहा था कि पंजशीर के स्थानीय राज्य के अधिकारियों ने इसे शांतिपूर्वक सौंपने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से हमें अपने लड़ाके भेजने पड़े हैं। उपराष्ट्रपति सालेह इसी इलाके में छिपे अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह इसी इलाके में छिपे हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा भी था कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/38rpBvo
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान से पश्चिमी देशों के सभी सैनिकों की वापसी का जश्न तालिबान ने अपने ही तरीके से मनाया। आतिशबाजी और धमाके तो शायद आम होंगे, यहां तालिबानी लड़ाकों ने अमेरिकी, ब्रिटिश, फ्रेंच और NATO सेनाओं के नकली जनाजे निकाल डाले। हजारों की संख्या में ये लोग सड़कों पर निकले और 20 साल तक चली इस जंग की 'जीत' का जश्न मनाया। गलियों में उतरे इन लड़ाकों ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस के झंडे ताबूतों पर लपेट रखे थे। खोस्त प्रांत में ये भीड़ तालिबान का प्रतीक लहरा रही थी। कुछ दिन पहले ही यहां तालिबान के विरोध में भारी प्रदर्शन हो रहे थे। वहीं, कंधार में भी तालिबान के सफेद झंडे लेकर हजारों की भीड़ जश्न मनाने को निकली। इससे पहले अमेरिका के आखिरी सैनिकों ने देश छोड़ दिया था। फायरिंग की, झंडा फहराया लड़ाकों ने हवा में ताबड़तोड़ फायरिंग की, एयरपोर्ट पर तालिबानी झंडा फहराया और जीत के नारे लगाए। शीर्ष तालिबानी नेता अनस हक्कानी ने पुष्टि करते हुए कहा कि अमेरिका ने आधिकारिक रूप से 19 साल 8 महीने के बाद अफगानिस्तान छोड़ दिया है। एक दूसरे वीडियो में तालिबानी लड़ाकों को काबुल एयरपोर्ट के एक हैंगर के भीतर टहलतते और चिनूक हेलीकॉप्टर की जांच करते देखा जा सकता है। तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी को 'ऐतिहासिक क्षण' बताया और कहा कि अफगानिस्तान अब पूरी तरह से 'आजाद' हो चुका है। लौट गया अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान की डेडलाइन से पहले ही अमेरिका ने अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी है। अफगानिस्तान से अमेरिका के आखिरी विमान C-17 ने 30 अगस्त को रात 3.29 बजे काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अपने कमांडरों की खतरनाक वापसी के लिए धन्यवाद किया।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3DJteeK
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता के साथ मुलाकात की। विदेश मंत्रालय के मुताबिक तालिबान की ओर से मुलाकात की इच्छा जाहिर की गई थी और दोहा स्थित दूतावास में दोनों प्रतिनिधि मिले। इससे पहले लंबे वक्त तक भारत की नीति तालिबान के साथ बातचीत नहीं करने की रही थी लेकिन अफगानिस्तान में दिनोंदिन बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने अपने सभी विकल्प खुले रखे। एक ओर अमेरिकी सेना देश छोड़ रही थी तो वहीं भारत भी पर्दे के पीछे से यह सुनिश्चित कर रहा था कि इस सत्ता हस्तांतरण के बीच कहीं उसके हितों को नुकसान न पहुंचे। पर्दे के पीछे बातचीत की चर्चा इससे पहले जून में कतर के विशेष दूत मुतलाक बिन मजीद अल कहतानी ने दावा किया था कि भारतीय अधिकारियों ने तालिबान के नेताओं से मुलाकात के लिए दोहा का दौरा किया है। उन्होंने तब कहा था कि भविष्य में अफगानिस्तान में तालिबान की भूमिका को समझते हुए हर पक्ष बातचीत को तैयार था। रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भारतीय अधिकारियों की बातचीत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दिशानिर्देश में आगे बढ़ी। हालांकि, तब न भारत सरकार ने और न ही तालिबान ने इसकी पुष्टि की। अभी तक मानी जा रही थी जल्दबाजी वहीं, जब बीते शनिवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से इस बारे में सवाल किए गए थे कि क्या तालिबान के साथ भारत की बातचीत चल रही है तो उन्होंने कहा था कि भारत का ध्यान देश के नागरिकों को वापस लाने की है जो इस वक्त अफगानिस्तान में फंसे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत, अफगानिस्तान में तालिबान को मान्यता देगा, बागची ने कहा कि काबुल में किसी इकाई के सरकार बनाने को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है और अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। कुछ नेताओं से बातचीत को तैयार जून में ही हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत की ओर से मुल्लाह बरादर से बातचीत की जा रही है जिसके अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनने की सबसे ज्यादा अटकलें लगाई जा रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत ऐसे तालिबानी नेताओं से बातचीत का मन बना रहा है जिनपर पाकिस्तान या ईरान का ज्यादा असर नहीं है। बरादर के साथ बातचीत की पुष्टि नहीं की गई। भारत के लिए अहम हैं कुछ मुद्दे रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया था तालिबान से बातचीत न करने की नीति को बदला गया। हालांकि, इसमें हक्कानी नेटवर्क या क्वेटा शूरा के सदस्य शामिल नहीं थे जिनका संबंध पाकिस्तान और पाक सेना से है। माना जा रहा है कि भारत के लिए अफगानिस्तान में लोकतंत्र के सम्मान और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों जैसे मुद्दे अहम हैं जिनपर बातचीत जटिल रह सकती है क्योंकि तालिबान ने इस्लामिक शासन का ऐलान किया है। अफगानिस्तान से दोस्ताना संबंध जरूरी हालांकि, तालिबान यह भी चाहता है कि वह भारत के साथ पहले जैसे संबंध बनाकर रख सके। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ-साथ पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में उसके लिए आसानी हो सकती है अगर उसे भारत का साथ मिल गया। भारत के लिए भी चीन और पाकिस्तान की भूमिका को देखते हुए तालिबान के साथ बातचीत के रास्ते खुले रखना जरूरी है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3ywoiWG
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

दोहा अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के साथ ही भारत के साथ उसके संबंधों को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं। अब ताजा डिवेलपमेंट में कतर में भारतीय राजदूत ने तालिबानी नेता से मुलाकात की है। इस दौरान अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और देश वापसी को लेकर चर्चा की गई। इसके साथ-साथ अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ न किए जाने की बात भारतीय राजदूत ने की है। दोहा में तालिबान के राजनीतिक ऑफिस के हेड शेर मोहम्मद अब्बास से भारतीय राजदूत ने मुलाकात की। भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया है कि इसके लिए तालिबान की ओर से आग्रह किया गया था। दोनों प्रतिनिधि दोहा स्थित भारतीय दूतावास में मिले। इस दौरान अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और देश वापसी की चर्चा अहम रही। भारत के खिलाफ न पनपे आतंकवाद इसके अलावा ऐसे अफगान नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों के बारे में चर्चा की गई जो भारत आना चाहते हैं। मंत्रालय ने बताया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किसी भी तरह की आतंकवादी गतिविधि के लिए नहीं किए जाने का मुद्दा मित्तल ने उठाया है। वहीं, तालिबानी प्रतिनिधि ने इस बात का आश्वासन दिया है कि इन मुद्दों को सकारात्मक तरीके से सुलझाया जाएगा। 'भारत के साथ जारी रखना चाहते हैं संबंध' इससे पहले इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) में ट्रेनिंग लिए हुए तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्‍मद अब्‍बास स्टेनकजई ने भारत के साथ संबंधों पर बड़ा ऐलान किया था। स्टेनकजई ने कहा है कि तालिबान भारत के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को जारी रखना चाहता है। काबुल पर कब्जे के बाद पहली बार तालिबान के किसी शीर्ष स्तर के नेता ने भारत के साथ संबंधों पर अपने संगठन का विचार रखा है। इससे पहले तालिबान के प्रवक्ता ही इस मुद्दे पर बोला करते थे। 'अच्छे रिश्ते बनाने की इच्छा' वहीं, तालिबानी आतंकियों के प्रवक्‍ता जबीउल्‍ला मुजाहिद ने भारत को इलाके का एक अहम मुल्‍क करार देते हुए अच्‍छे रिश्‍ते बनाने की इच्‍छा जताई है। मुजाहिद ने कहा कि भारत और पाकिस्‍तान को एक साथ बैठकर सभी विवादित मुद्दों का समाधान करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि नई दिल्‍ली को भी कश्‍मीर पर सकारात्‍मक रुख अपनाना चाहिए। माना जा रहा है कि इस बयान के जरिए तालिबान ने भारत को बातचीत का संकेत दिया है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3mPo0bc
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल काबुल के हामिद करजई हवाईअड्डे पर पिछले हफ्ते हुए धमाके में देश की एक मशहूर यूट्यूबर की जान भी चली गई। हमले से पहले अपने आखिरी वीडियो में नजमा सादेकी ने तालिबान का खौफ जाहिर भी किया था। कभी काबुल की गलियों से दुनिया को रूबरू कराने वाली नजमा ने बताया था कि घर से निकले की अब इजाजत नहीं है और आने वाला कल बहुत मुश्किल होने वाला है। 'सड़कों पर निकलने में डर' अपने आखिरी वीडियो में 20 साल की नजमा ने कहा था, 'काश यह एक बुरा सपना हो, काश हम सब एक दिन जाग जाएं। हमें घर से बाहर निकलने और काम पर जाने की इजाजत नहीं है। इसलिए आखिरी वीडियो तो रिकॉर्ड करना ही था।' नजमा ने बताया था कि अब सड़कों पर निकलने में डर लगता है और लोगों ने उनके लिए प्रार्थना की अपील की थी। 'काबुल में जीवन मुश्किल' कभी नजमा के वीडियो मर लाखों व्यूज आते थे और अपने आखिरी वीडियो में उन्होंने कहा, 'काबुल में जीवन बहुत मुश्किल हो रहा है, खासकर उनके लिए जो आजाद और खुश रहना चाहते हैं।' काबुल के एक संस्थान में जर्नलिज्म कर रहीं नजमा ने हाल ही में अफगान इंसाइडर यूट्यूब चैनल जॉइन किया था। इसके जरिए बदलते की तस्वीर पेश की जाती थी। हालांकि, तालिबान के आने के बाद नजमा जैसे व्लॉगर्स पर खतरा मंडराने लगा था। कैसा होगा महिलाओं का कल? अफगानिस्तान में तालिबान राज में महिलाओं और खासकर मीडिया से जुड़ी महिलाओं का भविष्य कैसा होगा इसे लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। यहां तक कि शासन में आने के बाद तालिबान ने जिस महिला पत्रकार को इंटरव्यू देकर अपना नया रूप दुनिया के सामने पेश करने की कोशिश की थी, वह पत्रकार भी देश छोड़ चुकी हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3gOvqrh
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

दुबई सऊदी अरब में एक एयरपोर्ट पर ड्रोन हमले की घटना से सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हो गई हैं। सऊदी के सरकारी टेलिविजन के मुताबिक देश के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में एक हवाईअड्डे पर मंगलवार को हुए ड्रोन हमले में आठ लोग घायल हो गए और एक असैन्य विमान को नुकसान पहुंचा। यमन के साथ जारी युद्ध के बीच सऊदी अरब पर यह सबसे हालिया और पिछले 24 घंटे में अभा हवाईअड्डे पर हुआ दूसरा हमला है। अभी किसी ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। हवाईअड्डे पर हुए पहले हमले में कोई हताहत नहीं हुआ। सऊदी नीत सैन्य गठबंधन की 2015 से यमन में ईरान समर्थित शिया (हुती) विद्रोहियों से लड़ाई चल रही है जो सऊदी अरब के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों, सैन्य प्रतिष्ठानों और अन्य अवसंरचना को निशाना बनाते रहे हैं। चली आ रही है जंग यमन में सऊदी अरब के नेतृत्व में गठबंधन देशों की सेनाएं हूती विद्रोहियों के साथ जंग लड़ रही हैं। इस युद्ध के दौरान यमन में 130,000 लोगों की मौत हो चुकी है। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का आरोप है कि मरने वालों में अधिकतर बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। इस जंग ने यमन में दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकट को जन्म दिया है। ये विद्रोही यमन की सीमा से सऊदी अरब के तेल के डिपो और रिफाइनरियों पर आए दिन ड्रोन और मिसाइल हमले करते रहते हैं। हत्यारों को तालिबानी सजा जून में यमन की राजधानी सना में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने बच्चों के हत्यारों को तालिबानी सजा दी थी। राजधानी सना पर कब्जा कर चुके इन विद्रोहियों ने तीन आरोपियों को भीड़ भरे चौहारे पर ले जाकर गोलियों से भून दिया था। मरने के बाद इन लोगों की लाशों को कालीन में लपेटकर वहां से हटा दिया गया। इस दौरान तैनात सुरक्षा गार्ड उन आरोपियों पर हंस रहे थे।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BrQmMN
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान के पंजशीर पर तालिबान लगातार कब्जे की कोशिश कर रहा है। अहमद मसूद के नेतृत्व में नॉर्दर्न अलांयस की सेना तालिबान के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है। मंगलवार को खबर आई कि तालिबान ने पंजशीर में भीषण हमले को अंजाम दिया है। National Resistance Front of Afghanistan के विदेशी मामलों के प्रमुख Ali Maisam Nazary ने इस बारे में ताजा जानकारी देते हुए बताया कि पंजशीर में मौजूदा स्थिति स्थिर है और हमलावरों को पीछे धकेल दिया गया है। इस हमले में 8 तालिबानी मारे गए हैं। पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया तालिबाननाज़ारी ने कहा कि पंजशीर के दक्षिणी भागों में कल रात लड़ाई देखने को मिली। पंजशीर में इस मोर्चे का नेतृत्व अहमद मसूद कर रहे हैं। मसूद तालिबान के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई में शामिल हैं। उनके पिता अहमद शाह मसूद ने 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ नॉर्दर्न अलांयस का नेतृत्व किया था। काबुल पर कब्जे और सरकार गठन के प्रयासों के बाद भी तालिबान अभी तक पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया है। मसूद की सेना ने हमले को किया विफलपंजशीर घाटी में तालिबान के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने वाले ताजिक नेता अहमद मसूद के करीबी सूत्रों ने बताया कि तालिबान आतंकियों ने मंगलवार शाम को पंजशीर घाटी में उनकी एक चौकी पर बड़ा हमला किया है। मसूद के करीबी ने टोलो न्‍यूज को बताया कि उनके लड़ाकुओं ने इस तालिबानी हमले को विफल कर दिया है। दोनों पक्षों के बीच अभी छिटपुट जंग जारी है। तालिबान ने अभी तक इस हमले के बारे में कोई टिप्‍पणी नहीं किया है। बताया जा रहा है कि तालिबान ने यह हमला जाबुल सिराज इलाके में हुआ है जो परवान प्रांत का हिस्‍सा है। तालिबान ने पंजशीर घाटी को चारों ओर से घेर रखा है और इंटरनेट को बंद कर दिया है ताकि अहमद मसूद के समर्थक दुनिया से संपर्क न कर सकें। पंजशीर की घाटी में ही पूर्व उप राष्‍ट्रपति अमरुल्‍ला सालेह भी डटे हुए हैं और यही से उन्‍होंने तालिबान के खिलाफ जंग का ऐलान कर रखा है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3jt8T5d
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

क्‍योटो पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में आंखे दिखा रहे चीनी ड्रैगन से निपटने के लिए जापान ने जोरदार तैयारी शुरू कर दी है। जापान के रक्षा मंत्रालय ने रेकॉर्ड 50.1 अरब डॉलर के रक्षा बजट की मांग की है। अगर यह बजट पारित हो जाता है तो यह पिछले आठ साल में जापान की ओर से रक्षा बजट में सबसे बड़ी बढ़ोतरी होगी। जापान चीन के खतरे को देखते हुए लगातार अपनी तैयारियों को मजबूत करने में जुटा हुआ है। ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक जापान के रक्षा बजट में 2.6 की वृद्धि की जा रही है। इस वृद्धि के बाद जापान का रक्षा बजट 5.5 ट्रिल्‍यन येन या 50.1 अरब डॉलर हो जाएगा। यह वर्ष 2014 के बाद रक्षा बजट में सबसे बड़ी बढ़ोत्‍तरी होगी। अगर अमेरिकी सेना के साथ उसके गठजोड़ पर आने वाले खर्च को जोड़ दिया जाय तो यह पूरी धनराश‍ि जापान के कुल जीडीपी के एक प्रतिशत से भी ज्‍यादा हो जाएगी। अब तक जापान केवल एक फीसदी ही रक्षा क्षेत्र पर खर्च करता था। बड़े पैमाने पर हथियार खरीद रहा जापान सिप्री की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में जापान का खुल रक्षा खर्च चीन के रक्षा बजट का पांचवां हिस्‍सा ही था। इससे पहले जापान के रक्षा मंत्री नोबूओ किशी ने कहा था जितने पैसे की जरूरत होगी, हम खर्च करेंगे। इससे पहले जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सूगा ने संयुक्‍त बयान में कहा था कि उनका देश अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत करेगा। चीन से निपटने के लिए आइए जानते हैं जापान क्‍या-क्‍या खरीद रहा है... जापान अंतरिक्ष में निगरानी के लिए 85 अरब येन खर्च करेगा। जापान के साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए जापान 34.5 अरब येन का प्रावधान करेगा। जापान अपनी हवाई ताकत को मजबूत करने के लिए अमेरिका से पांचवीं पीढ़ी के एफ-35 विमान अपनी वायुसेना और नौसेना के लिए खरीद रहा है। जापान इन हथियारों की खरीद ऐसे समय पर कर रहा है जब चीन ने उसके विवादित द्वीपों की ओर गश्‍त बढ़ा दी है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BrfVgP
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

मॉस्को रूस के अंतरिक्ष यात्रियों ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के एक सेगमेंट में नए दरारों की खोज की है। चिंता की बात यह है कि एक वरिष्ठ अंतरिक्ष अधिकारी ने सोमवार को चेतावनी देते हुए बताया कि ये दरारें आने वाले समय में और चौड़ी हो सकती हैं। रॉकेट एंड स्पेस कॉर्पोरेशन Energia के चीफ इंजीनियर Vladimir Solovyov ने RIA न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कहा कि Zarya मॉड्यूल की कुछ जगहों पर सतही दरारें देखी गई हैं। आईएसएस के पास 2025 तक का समयक्या इन दरारों से हवा लीक हो सकती है? इसे लेकर अधिकारी ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। इससे पहले अंतरिक्ष अधिकारी ने कहा था कि आईएसएस के ज्यादातर उपकरण अब पुराने हो चुके हैं। उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि 2025 के बाद ये उपकरण टूट सकते हैं जो बेहद भयावह स्थिति होगी। स्पेस स्टेशन हाल ही में कई तरह की घटनाओं से गुजरा है। रूसी अधिकारियों ने पिछले महीने आईएसएस के नियंत्रण से बाहर होने के लिए सॉफ्टवेयर में गड़बड़ और 'मानवीय भूल' को जिम्मेदार ठहराया था। स्पेस स्टेशन पर 2024 तक रहेगा रूसरूस की स्पेस एजेंसी Roscosmos ने पिछले महीने Zvezda सर्विस मॉड्यूल में दबाव में गिरावट की सूचना दी थी। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि वह 2024 तक का हिस्सा बनी रहेगी। अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए बनाया गया अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पिछले महीने रूस की लापरवाही के चलते कुछ समय के लिए आउट ऑफ कंट्रोल हो गया था। जिसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने बड़ी मुश्किल से आईएसएस पर दोबारा नियंत्रण स्थापित किया। बाल-बाल बचा बड़ा हादसायह घटना तब हुई जब रूस की नउका लैब मॉड्यूल आईएसएस से कनेक्ट हो रही थी। इस दौरान मॉड्यूल के जेट थ्रस्टर्स को अनजाने में कुछ घंटों तक ऑन रखा गया। जिससे पूरा अंतरिक्ष स्टेशन ही अपने पथ से भटक गया। नासा ने बताया कि यह दुर्घटना रूस के नउका साइंस माड्यूल के अंतरिक्ष स्टेशन पर कनेक्ट होने के तीन घंटे बाद शुरू हुई। इस दौरान रूसी स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिक मॉड्यूल को डॉक किए जाने के बाद कुछ रिकनफिगरेशन का काम कर रहे थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के अधिकारियों ने कहा कि मॉड्यूल के जेट बेवजह फिर से शुरू हो गए, जिससे पूरा स्टेशन पृथ्वी से लगभग 250 मील ऊपर अपनी सामान्य उड़ान की स्थिति से बाहर निकल गया। इस घटना के कारण मिशन फ्लाइट डायरेक्टर को स्पेसक्राफ्ट इमरजेंसी तक का ऐलान करना पड़ा। नासा के अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रम के प्रबंधक जोएल मोंटालबानो के अनुसार,स्टेशन के इस अप्रत्याशित बहाव का पता स्वचालित ग्राउंड सेंसर के जरिए चला। जिसके बाद नासा के वैज्ञानिकों ने कई अन्य थ्रस्टर्स को शुरू कर आईएसएस को फिर से उसकी कक्षा पर लेकर आए।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3gNTrim
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

इस्‍लामाबाद पाकिस्‍तान के पूर्व गृहमंत्री रहमान मलिक पर रेप का आरोप लगाने वाली अमेरिकी ब्‍लॉगर सिंथिया डी रिची ने कथित रूप से पाकिस्‍तान के सरकारी टीवी चैनल पीटीवी को जॉइन कर लिया है। पीटीवी ने एक बयान जारी करके सिंथिया के जुड़ने की पुष्टि की। अमेरिकी पत्रकार सिंथिया पीटीवी वर्ल्‍ड पर कार्यक्रम को प्रसारित करेंगी। यह वही सिंथिया हैं जिनको लेकर पाकिस्‍तान में इमरान खान के साथ सेक्‍स का आरोप लगा था। अमेरिकी नागरिक के पाकिस्‍तान के सरकारी टीवी में नौकरी पाने के खबर फैलने के बाद पीटीवी और इमरान खान सरकार सोशल मीडिया पर बुरी तरह से घिर गई। इसके बाद पीटीवी ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। हालांकि सिंथिया ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि वह पीटीवी से जुड़ी हैं। सिंथ‍िया के इमरान सरकार के साथ बहुत करीबी संबंध हैं। कुछ दिन पहले सिंथिया अपने अपार्टमेंट में रहस्‍यमय तरीके से बेहोश पाई गई थीं। 'इमरान खान सिंथिया के साथ सेक्स करना चाहते थे' सिंथिया ने रहमान मलिक के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी पर भी गंभीर आरोप लगाए थे। पाकिस्‍तान पीपुल्‍स पार्टी ने सिंथिया के सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। वहीं पाकिस्तानी टीवी के होस्ट अली सलीम (बेगम नवाजिश) ने दावा किया था कि सिंथिया ने एक बार उनसे कहा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनके (सिंथिया) साथ सेक्स करना चाहते थे। यहां तक कि सलीम का दावा है कि कभी वह सिंथिया के काफी करीब थे और एक साथ एक कमरे में भी रह चुके हैं। इसी दौरान सिंथिया ने उन्हें इमरान खान की पेशकश के बारे में बताया था। इससे पहले सिंधिया ने पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता रहमान मलिक पर रेप का आरोप लगाया था। इसके बाद पाकिस्तान की राजनीति में भूचाल आ गया। सिंथिया ने भारत के खिलाफ भी आधारहीन आरोप लगाए हैं सिंथिया खुद को पाकिस्तान प्रेमी, एडवेंचरिस्ट, फिल्म निर्माता होने का दावा करती हैं। वह बहुत समय से इस्लामाबाद में ही रहती हैं। शुरुआत में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध थे लेकिन बाद में स्थिति बिगड़ती चली गई। वह अक्‍सर पीपीपी नेताओं को निशाना बनाती रहती हैं और इमरान सरकार के साथ उनके करीबी संबंध हैं। सिंथिया ने भारत के खिलाफ भी आधारहीन आरोप लगाए हैं। माना जा रहा है कि इसी के फलस्‍वरूप सिंथिया को इमरान खान सरकार ने पुरस्‍कार दिया है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BxbZvj
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

दुबई दुबई में छुट्टियां मनाने की प्लानिंग कर रहे भारतीयों के लिए एक अच्छी खबर है। दुबई ने यात्रियों के लिए रेजीडेंस वीजा की बाध्यता को खत्म कर दिया है। अमीरात एयरलाइन की कस्टमर सर्विस टीम ने एक ट्वीट में जानकारी देते हुए कहा कि वे यूएई निवासी जिनके पास किसी भी अमीरात की ओर से जारी किया गया वीजा है, दुबई में उतर सकते हैं। अमीरात ने ट्विटर पर दी जानकारीअभी तक दुबई में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों, जहां से यूएई की यात्रा प्रतिबंधित थी, के सिर्फ वही यात्री उतर सकते थे जिनके पास दुबई की ओर से जारी किया गया रेजीडेंस वीजा हो। ट्विटर वीजा संबंधी सवालों के जवाब में अमीरात के सपोर्ट स्टाफ ने कहा कि यूएई रेजीडेंस वीजा के साथ दुबई की यात्रा करने वाले यात्रियों को फेडरल अथॉरिटी फॉर आइडेंटिटी एंड सिटिजनशिप (आईसीए) से मंजूरी लेनी होगी। किसी भी वीजा के साथ करें सफरएयरलाइंस ने ट्वीट में कहा, 'मौजूदा अपडेट के अनुसार, दुबई की यात्रा के लिए यूएई के सभी निवासी नए जारी किए गए रेजीडेंस या रोजगार वीजा, शॉर्ट स्टे/लॉन्ग स्टे वीजा, विजिट वीजा, वीजा ऑन अराइवल से साथ यात्रा कर सकते हैं। यूएई रेजिडेंट वीजा के साथ यात्रा करने वाले यात्रियों के पास GDRFA या ICA की मंजूरी होनी चाहिए।' दुबई की ओर से यह राहत ऐसे समय पर दी गई है जब एक दिन पहले ही यूएई ने सभी देशों के पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। यूएई ने देना शुरू किया टूरिस्ट वीजासंयुक्त अरब अमीरात ने रविवार को भारतीय पर्यटकों के लिए एक अच्छी खबर की घोषणा करते हुए कहा कि देश 30 अगस्त से टूरिस्ट वीजा जारी करना शुरू करेगा। पर्यटकों के लिए दरवाजे खुलने की सिर्फ घोषणा के बाद ही सोमवार को टूरिस्ट वीजा और यूएई के लिए फ्लाइट टिकट्स की मांग चार गुनी बढ़ गई है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3zwXdUF
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल तालिबानी आतंकी का इंटरव्‍यू लेने वाले अफगानिस्‍तान के टीवी एंकर मीरवाइज हकदोस्‍त के सवालों से तालिबानी भड़क गए हैं और उन्‍होंने धमकी दी है। मीरवाइज हकदोस्‍त ने बताया कि जब इस इंटरव्‍यू को प्रसारित किया गया तो कुछ तालिबानियों ने मुझे धमकी दी और कहा कि तुमने मुजाहिद्दीनों का मजाक उड़ाया है। टीवी एंकर ने बताया कि दुनियाभर में वायरल हुए इस इंटरव्‍यू से पहले मैंने उन्‍हें सवाल भेजे थे और तालिबान ने इसके जवाब पेपर पर लिखे थे। मीरवाइज को घेरे हुए थे बंदूकधारी यह इंटरव्यू लेते वक्त मीरवाइज को बंदूकधारी तालिबानी घेरकर खड़े थे। मीरवाइज का यह इंटरव्‍यू दुनियाभर में तालिबानी आतंकियों के धमकी के रूप में देखा गया था। दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान राज लौटने के बाद चीजें काफी बदल चुकी हैं। तालिबान ने अफगान महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए हैं और देश में अब शरिया कानून के मुताबिक चीजें हो रही हैं। नए शासन का असर अफगान पत्रकारिता पर भी साफतौर पर देखा जा सकता है। टीवी पत्रकार के साथ हथियारबंद लड़ाके सोशल मीडिया पर एक अफगान न्यूज चैनल का वीडियो पिछले दिनों वायरल हो गया था। इस वीडियो में न्यूज एंकर मीरवाइज खबर पढ़ते हुए दिख रहे हैं। एंकर मीरवाइज अशरफ गनी सरकार के गिरने के बारे में बात करते हैं। मीरवाइज ने बताया कि इस्लामिक राज का कहना है कि अफगानों को उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। न्यूज एंकर जब ऐसा कह रहे थे, उनके पीछे दो हथियारबंद लड़ाकों को खड़े देखा जा सकता है जो उनके ऊपर नजर रखे हुए थे। इंटरव्यू में बंदूक के साथ शामिल हुए आतंकी यह तालिबान का 'नया अफगानिस्तान' है। यह वीडियो दरअसल एक इंटरव्यू का है जिसमें एंकर मीरवाइज के सवालों का जवाब देने वाले शख्स के साथ कई आतंकवादी मौजूद हैं। इन सभी के पास बंदूकें हैं जिनका निशाना एंकर की तरफ है। साफ है कि तालिबानी राज में अब पत्रकारों को कड़े सवाल पूछने की आजादी नहीं है। महिला एंकरों पर भी 'तालिबानी नियम' लागू हो चुके हैं और कई महिलाएं अपनी नौकरी गंवा चुकी हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3t2uvZ6
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

वॉशिंगटन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को कहा कि अमेरिका को तालिबान से अपने सभी उपकरण वापस मांगने चाहिए या वहां बम गिरा देने चाहिए। ने कहा कि इतिहास में किसी भी सैन्य वापसी अभियान को इतनी बुरी तरह अंजाम नहीं दिया गया जिस तरह बाइडन प्रशासन ने अफगानिस्तान में किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका को तालिबान से अपने 'सभी' हथियार और 85 मिलियन डॉलर का एक-एक पैसा तुरंत वापस मांग लेना चाहिए। सेना को गिराने चाहिए बमअफगानिस्ताान से करीब 20 साल बाद अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी के बाद ट्रंप ने कहा, 'इतिहास में कभी भी सेना की वापसी का अभियान इतनी बुरी तरह नहीं चलाया गया, जिस तरह से बाइडन प्रशासन ने अफगानिस्तान में चलाया।' ट्रंप ने कहा, 'इनके अलावा, सभी उपकरणों को तुरंत अमेरिका को वापस करने की मांग की जानी चाहिए क्योंकि उसके करीब 85 अरब डॉलर लगे हैं। अगर उन्हें वापस नहीं किया गया तो हमें जाहिर तौर पर सेना भेज उन्हें वापस लाना चाहिए या कम से कम उन पर बम गिराने चाहिए।' एक रात पहले लौटी अमेरिकी सेनाअमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों की वापसी की समय-सीमा तय की थी, लेकिन तालिबान ने इससे करीब दो सप्ताह पहले ही अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और इससे वहां स्थिति काफी खराब हो गई। हालांकि यह अभियान सोमवार देर रात सम्पन्न हो गया। अमेरिका पर 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजी थी। सैनिकों ने पीछे छोड़े खराब हथियारअमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व शीर्ष राजनयिक निक्की हेली सहित कई नेताओं ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर बाइडन प्रशासन की आलोचना की है। अफगानिस्तान छोड़ने से पहले अमेरिकी सैनिकों ने काबुल एयरपोर्ट के हैंगर में खड़े ढेरों हेलीकॉप्टर्स और बख्तरबंद गाड़ियों को खराब कर दिया। ट्विटर पर शेयर किए गए एक वीडियो में देखा जा सकता है कि अमेरिकी का आखिरी फ्लाइट के उड़ान भरने के कुछ देर बाद तालिबानी लड़ाके काबुल एयरपोर्ट के हैंगर में दाखिल हुए और वहां खड़े अमेरिकी सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर की जांच की। न्यूज एजेंसी एएफपी ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि अमेरिकी सेना ने कई एयरक्राफ्ट्स, बख्तरबंद गाड़ियों और हाई-टेक रॉकेट डिफेंस सिस्टम को खराब कर दिया है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3kGXvSr
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल काबुल एयरपोर्ट से आखिरी अमेरिकी सैनिक की वापसी के बाद अफगानिस्‍तान में करीब 20 साल से चली आ रही महाजंग का खात्‍मा हो गया है। तालिबान और अमेरिका के बीच इस लड़ाई में अमेरिका को सबसे शर्मनाक हार का स्‍वाद चखना पड़ा है। तालिबान का दावा है कि उसे इस जंग में जीत हासिल हुई है लेकिन हकीकत कुछ और है। अमेरिका के इस सबसे लंबे समय तक चले युद्ध से जिसे जीत हासिल हुई है, वह है चीनी ड्रैगन। आइए समझते हैं कि अफगानिस्‍तान के इस युद्ध का असली विजेता चीन क्‍यों है..... विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी सेना अपने आखिरी अफगान गढ़ काबुल एयरपोर्ट से चली गई है लेकिन 9/11 हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ 20 साल तक चली इस महाजंग का असली विजेता चीन है। उनका कहना है कि इस जंग में अमेरिका ने सैन्‍य अभियानों पर एक ट्रिल्‍यन डॉलर खर्च किया। इसके अलावा लोन और अन्‍य खर्चों को मिला दिया जाए तो अमेरिका ने कुल 2.26 ट्रिल्‍यन डॉलर अफगानिस्‍तान में खर्च किए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में 6.4 ट्रिल्‍यन डॉलर खर्च ये सभी आंकड़े ब्राउन यूनिवर्सिटी की ओर से जारी किए गए हैं। इसके अलावा इराक में अमेरिका ने करीब दो ट्रिल्‍यन डॉलर सद्दाम हुसैन की सत्‍ता खत्‍म करने में खर्च कर दिए। आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में अब तक अमेरिका के करीब 7 हजार सैनिक और 8 हजार अमेरिकी सैन्‍य कॉन्‍ट्रैक्‍टर मारे गए हैं। इस तरह से अमेरिका ने पिछले 20 वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में 6.4 ट्रिल्‍यन डॉलर खर्च किए हैं। इनमें से ज्‍यादातर पैसा लोन के जरिए आया था जिससे आने वाले अमेरिकी बजट में इसको चुकाने का दबाव बना रहेगा। अफगानिस्‍तान और इराक में इन 20 वर्षों की लड़ाई के दौरान अमेरिका बुरी तरह से फंसा रहा। उधर चीनी ड्रैगन बहुत तेजी से बिना किसी रोक-टोक के अपना विकास करता रहा। आज चीन इतना ज्‍यादा शक्तिशाली हो चुका है कि वह दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक अमेरिकी दबदबे को चुनौती दे रहा है। चीन की नौसेना अमेरिकी नौसेना से ज्‍यादा बड़ी हो गई है। इसी ताकत के बल पर अब चीन दक्षिणी चीन सागर में अमेरिकी युद्धपोतों को तबाह करने की धमकी देता रहता है। साथ ही ताइवान पर जबरन कब्‍जा करना चाहता है। चीन से निपटने की तैयारी में लगे अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन अमेरिका सूत्रों के मुताबिक बाइडन प्रशासन अब चीन की धमकियों से निपटने के लिए एशिया प्रशांत क्षेत्र पर फोकस करना चाहता है। दरअसल, ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच जंग का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसी वजह से बाइडन प्रशासन अपनी सेना का आधुनिकीकरण तेज करना चाहते हैं। माना जारहा है कि अमेरिका के अफगानिस्‍तान से निकलने की सबसे बड़ी वजह चीन ही है। हालांकि अमेरिका के इस फैसले से भी चीन का फायदा होता दिख रहा है। चीन अब अफगानिस्‍तान के एक ट्रिल्‍यन डॉलर के खनिजों पर आर्थिक कब्‍जा कर सकेगा। साथ ही अपने बेल्‍ट एंड रोड प्रॉजेक्‍ट को मध्‍य एशिया तक आसानी से बढ़ा सकेगा। इस काम में उसे तालिबान के दोस्‍त पाकिस्‍तान का भी पूरा साथ मिलेगा।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/38rWKam
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अमेरिकी सेना अपने पीछे बड़ी मात्रा में हथियार और सैन्य उपकरण छोड़ गई है। माना जा रहा है कि तालिबान इन पर कब्जा कर अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा सकता है लेकिन सैनिकों की सूझबूझ के चलते ये हथियार अब तालिबान के किसी काम के नहीं रह गए हैं। अफगानिस्तान में अमेरिका की सबसे लंबी जंग आधिकारिक रूप से समाप्त हो चुकी है। सोमवार देर रात अमेरिकी सैनिकों ने निर्धारित समयसीमा से एक दिन पहले ही काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी। हेलीकॉप्टर्स की जांच कर रहे लड़ाकेअफगानिस्तान छोड़ने से पहले अमेरिकी सैनिकों ने काबुल एयरपोर्ट के हैंगर में खड़े ढेरों हेलीकॉप्टर्स और बख्तरबंद गाड़ियों को खराब कर दिया। ट्विटर पर शेयर किए गए एक वीडियो में देखा जा सकता है कि अमेरिकी का आखिरी फ्लाइट के उड़ान भरने के कुछ देर बाद तालिबानी लड़ाके काबुल एयरपोर्ट के हैंगर में दाखिल हुए और वहां खड़े अमेरिकी सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर की जांच की। न्यूज एजेंसी एएफपी ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि अमेरिकी सेना ने कई एयरक्राफ्ट्स, बख्तरबंद गाड़ियों और हाई-टेक रॉकेट डिफेंस सिस्टम को खराब कर दिया है। फिर कभी उड़ान नहीं भर पाएंगे विमानयूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख मरीन जनरल Frank McKenzie ने कहा कि अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान छोड़ने से पहले हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर तैनात 73 एयरक्राफ्ट को खराब कर दिया था। उन्होंने कहा कि अब वे विमान कभी उड़ान नहीं भर पाएंगे। अब कोई भी कभी भी उनका संचालन नहीं कर पाएगा। अधिकारियों ने कहा कि सैनिकों ने उपकरणों को नष्ट नहीं किया ताकि भविष्य में दोबारा उनका इस्तेमाल किया जा सके। अमेरिका ने छोड़ी 70 बख्तरबंद गाड़ियांअमेरिका ने 73 एयरक्राफ्ट्स और 27 Humvees को खराब कर दिया है। अमेरिका अपने पीछे 70 MRAP बख्तरबंद गाड़ियां छोड़ गया है जिनकी कीमत 1 मिलियन डॉलर प्रति गाड़ी है। सोमवार को अमेरिका की आखिरी फ्लाइट के उड़ान भरने के बाद तालिबान ने धुआंधार गोलीबारी कर 'आजादी' का जश्न मनाया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि तालिबानी लड़ाकों ने काबुल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है और अफगान राजधानी के आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा दिखाई पड़ रहा है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BlMAV4
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान से आखिरी अमेरिकी सैनिक के लौटने के बाद तालिबान के लड़ाकुओं ने पूरे काबुल एयरपोर्ट को अपने कब्‍जे में ले लिया है। करीब 20 साल तक चली जंग में सुपरपावर अमेरिका को शर्मनाक शिकस्‍त देने के बाद तालिबानी नेता जश्‍न मना रहे हैं। 'आजादी' की सुबह का जायजा लेने काबुल एयरपोर्ट पर पहुंचे तालिबान के प्रवक्‍ता जबीउल्‍ला मुजाहिद ने कहा कि अमेरिका की हार अन्‍य हमलावरों के लिए संदेश है। जबीउल्‍ला ने कहा कि यह ऐतिहासिक मौका है और हमारा देश अब एक 'स्‍वतंत्र और संप्रभु राष्‍ट्र' है। उन्‍होंने सभी अफगान नागरिकों को जीत की बधाई दी। तालिबानी प्रवक्‍ता ने लगे हाथ यह भी कहा कि हम अमेरिका समेत पूरी दुनिया के साथ अच्‍छे रिश्‍ते बनाना चाहते हैं। हम सभी के साथ राज‍नयिक संबंध का स्‍वागत करते हैं। जबीउल्‍लाह ने कहा कि यह हम सभी की जीत है। 'अमेरिकी सैन्‍य हस्‍तक्षेप के जरिए लक्ष्‍य हासिल नहीं कर सके' उन्‍होंने कहा, 'अब हमें संदेह नहीं है कि इस्‍लामिक अमीरात अफगानिस्‍तान एक स्‍वतंत्र और संप्रभु राष्‍ट्र है। जबीउल्‍ला ने कहा कि अमेरिकी सैन्‍य हस्‍तक्षेप के जरिए अपना लक्ष्‍य हासिल नहीं कर सके। तालिबानी प्रवक्‍ता ने दावा किया कि वे स्‍वतंत्रता और इस्‍लामिक मूल्‍यों की रक्षा करेंगे। इससे पहले तालिबान के कतर स्थित प्रवक्‍ता सुहैल शाहीन ने भी इसे आजादी करार दिया था। सुहैल शाहीन ने सोमवार देर रात को ट्वीट करके कहा, 'आज रात 12 बजे (अफगानिस्‍तान के समयानुसार) आखिरी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्‍तान से लौट गया। हमारे देश को पूरी आजादी मिल गई है। अल्‍लाह को धन्‍यवाद। सभी देशवासियों को दिली धन्‍यवाद।' इसी के साथ ही अब पंजशीर घाटी को छोड़कर पूरे अफगानिस्‍तान पर तालिबान का पूरा नियंत्रण हो गया है। राजधानी काबुल की सड़कों पर सन्‍नाटा पसरा तालिबानी जहां देशभर में जश्‍न मना रहे हैं, वहीं राजधानी काबुल की सड़कों पर सन्‍नाटा पसरा है। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के लिए यह एक ऐतिहासिक जीत है। तालिबान ने हमेशा से ही अफगानिस्‍तान में विदेशी सेनाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई के बारे में बयान दिया है और वे इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ बताते रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्‍तान से चले जाने के बाद अब देश के नए शासकों को कई सवालों का जवाब देना होगा।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3sYjtUS
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

पेइचिंग काबुल पर पूरी तरह से कब्जे के बाद तालिबान और चीन की दोस्ती सबके सामने आ रही है। तालिबान ने चीनी मीडिया से बात करते हुए चीन की तारीफों के पुल बांधे और 'ड्रैगन' को एक 'महान पड़ोसी' बताया। चीन उन देशों में शामिल है जो तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार हैं। चीनी उद्यमियों और सरकारी उद्यमों के मैनेजर्स ने हाल ही में चीनी मीडिया को बताया था कि अफगानिस्तान में निवेश के पर्याप्त अवसर हैं लेकिन हिंसा के खतरे और अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते किसी ने अभी तक उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। चीनी मीडिया के साथ इंटरव्यू के दौरान तालिबान ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाने के अपने वादे को दोहराया। चीन हमारा महान पड़ोसीतालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट के साथ बात करते हुए सोमवार को कहा, 'हम अपने आपसी संबंधों को बढ़ावा देने के लिए चीन के साथ विचार साझा करने के लिए तैयार हैं।' शाहीन ने कहा कि हमारा 'महान पड़ोसी' देश चीन अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और अफगानिस्तान के लोगों के आर्थिक विकास और समृद्धि में रचनात्मक और सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। आतंकी समूहों से किनारा करे तालिबानजुलाई में टियांजिन की एक बैठक में, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान नेता और सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से कहा कि समूह को शिनजियांग स्थित आतंकवादी समूह पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के साथ दृढ़ता से निपटना चाहिए। उन्होंने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि तालिबान को 'स्पष्ट रूप से' सभी आतंकवादी ताकतों से पूरी तरह से अलग होने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा पहचाने गए अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से मुकाबला करने की जरूरत है।' अफगानिस्तान नहीं बनेगा आतंक का पनहगारबीते सोमवार को सुहैल शाहीन ने कहा था कि तालिबान किसी को भी अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पड़ोसी या दूसरे देश की शांति को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करने देगा। समूह ने अमेरिका और पाकिस्तान को भी वादा किया है कि वह अल-कायदा और तहरीक-ई-तालिबान पाकिस्तान को मदद करना बंद कर देगा। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का अभियान सोमवार रात को निर्धारित डेडलाइन से एक दिन पहले ही खत्म हो चुका है। तालिबान इसे 'अफगानिस्तान की आजादी' बता रहा है और जश्न मना रहा है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3ywvmTg
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के लौटते ही तालिबान ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है। आतंकी समूह ने अमेरिकी सैनिकों की मदद करने वालों को धमकी दी है और उन्हें तालिबानी कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है। अभी तक आतंकी समूह अपना 'उदार' चेहरा दुनिया को दिखा रहा था लेकिन अब तालिबान का असली चेहरा सभी के सामने है। नए तालिबानी राज में उन अफगान नागरिकों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है जिन्होंने 20 साल तक चली लड़ाई में विदेशी सैनिकों की मदद की थी। हाजिर न होने पर मौत की सजातालिबान ने कहा है कि अमेरिकी सैनिकों की मदद करने वाले तालिबान की अदालत में हाजिर हों। लोगों को धमकी दी गई है कि अगर ये सामने नहीं आते हैं तो इन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि तालिबान काबुल में लोगों के घर-घर जाकर सैनिकों की मदद करने वाले अफगानियों की तलाश कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि तालिबान ने धमकी दी है कि अगर ये लोग सामने नहीं आते हैं तो इनके परिवार वालों को नुकसान पहुंचाया जाएगा। घर-घर जाकर तालिबान का तलाशी अभियानकाबुल से अमेरिकी सैनिकों के लौटने के दौरान आई एक मीडिया रिपोर्ट में जानकारी दी गई थी कि अमेरिका ने तालिबान को ऐसे अफगान नागरिकों की सूची सौंपी थी जिन्होंने उनकी मदद की। ताकि इन लोगों को निकासी अभियान के तहत देश से बाहर ले जाने के लिए काबुल एयरपोर्ट के परिसर में घुसने की अनुमति दी जा सके। निकासी अभियान के दौरान काबुल एयरपोर्ट के बाहरी क्षेत्र की सुरक्षा तालिबान के हाथ में थी जबकि एयरपोर्ट के भीतर अमेरिकी सैनिक तैनात थे। एक दिन पहले ही लौटे अमेरिकी सैनिकअफगानिस्तान में तालिबान की डेडलाइन से पहले ही अमेरिका ने अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी है। अफगानिस्तान से अमेरिका के आखिरी विमान C-17 ने 30 अगस्त को देर रात काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अपने कमांडरों की खतरनाक वापसी के लिए धन्यवाद किया। इसी के साथ अमेरिकी ने अफगानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति को भी खत्म कर दिया है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3jtlyoA
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान में आतंकवाद के खिलाफ कभी न खत्‍म होने वाली जंग के लिए घुसे अमेरिकी सैनिक 19 साल और 8 महीने बाद वापस लौट चुके हैं। करीब 20 वर्षों तक चली की इस जंग में अमेरिका को न केवल शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा है, बल्कि 2,461 सैनिकों तथा दो ट्रिल्‍यन डॉलर भी गंवाने पड़े हैं। अलकायदा के 9/11 हमले के बाद ओसामा बिन लादेन के खात्‍मे के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अधिकारियों ने 19 सितंबर 2001 को पहली बार अफगानिस्‍तान की सरजमीं पर कदम रखा था। अब 30 अगस्‍त 2021 की आधी रात को आखिरी अमेरिकी सैनिक को भी शर्मनाक हार के बाद खाली हाथ चुपचाप निकलना पड़ा है। अमेरिकी युद्ध की ये दोनों ही तस्‍वीरें इस बात की गवाह हैं कि कैसे एक और सुपरपावर महाशक्तियों की कब्रगाह कहे जाने वाले अफगानिस्‍तान में ढेर हो गया और उसे उल्‍टे पांव भागना पड़ा है। अमेरिका के अफगानिस्‍तान मिशन की शुरुआत 19 सितंबर, 2001 को हुई। अमेरिकी सेना की इस तस्‍वीर में दिखाई दे रहा है कि सीआईए के अधिकारी रूस निर्मित एमआई-17 हेलिकॉप्‍टर में बैठकर उज्‍बेकिस्‍तान के रास्‍ते अफगानिस्‍तान में घुसे थे। 3 मिलियन डॉलर नकद लेकर गए थे सीआईए एजेंट द ड्राइव की रिपोर्ट के मुताबिक ये सीआईए के ऑपरेटिव भारी हथियारों और विस्‍फोटकों से लैस थे। इन सीआईए अधिकारियों को रस्‍से से बांधा गया था ताकि अगर उड़ान के दौरान वे फ‍िसले तो गिरे नहीं। ये अमेरिकी 9/11 हमले के ठीक 8 दिन बाद अफगानिस्‍तान पहुंच गए थे। सीआईए के मुताबिक वे उस दौरान 3 मिलियन डॉलर नकद लेकर गए थे। इस पैसे को तीन बक्‍शों में भरा गया था। इस पैसे को नॉर्दन एलायंस को दिया जाना था ताकि तालिबान के खिलाफ जंग को तेज किया जा सके और स्‍थानीय वॉरलार्ड को खरीदा जा सके। यह अमेरिका के अफगानिस्‍तान में सैन्‍य मिशन की शुरुआत थी। 26 सितंबर 2001 को सीआईए के अधिकारी कबायली वॉरलार्ड से मुलाकात करने के लिए अफगानिस्‍तान के लिए उड़े थे। तालिबानी नॉर्दन एलायंस का विरोध करते थे। क‍बायली नेताओं को खरीदने के लिए अमेरिका ने करोड़ों रुपये उन्‍हें दिए ताकि तालिबान के खिलाफ जंग को शुरू किया जा सके। इस ऑपरेशन को 'जॉब्रेकर' नाम दिया गया था। इसमें अमेरिकी सेना के विशेष बल, हवाई ताकत, नॉर्दन एलायंस के लड़ाके शामिल थे। तालिबान के खिलाफ 20 साल तक चली इस जंग के बाद आखिरी अमेरिकी सैनिक की भी अफगानिस्‍तान से वापसी हो गई है। विडंबना देख‍िए जिस तालिबान के खिलाफ अमेरिका ने जंग लड़ा, उसी को अमेरिकी सेना को सत्‍ता सौंपनी पड़ी है। अफगानिस्‍तान की जमीन से सबसे आख‍िरी में अमेरिकी सेना के 82वें एयरबॉर्न डिविजन के जनरल क्रिस्‍टोफर दोनोहुये रवाना हुए थे। अब उनकी तस्‍वीर दुनियाभर में वायरल हो गई है। उनकी वापसी के साथ ही अब अमेरिका का अफगानिस्‍तान मिशन खत्‍म हो गया है। अफगानिस्‍तान की महाजंग में अमेरिका ने क्‍या खोया अफगानिस्‍तान की इस महाजंग में अमेरिका ने अपने 2,461 सैनिक और 3,846 अमेरिकी कॉन्‍ट्रैक्‍टरों को खो दिया। इस जंग में अफगान नैशनल मिल‍िट्री और पुलिस के 66 हजार जवान मारे गए। इसके अलावा अमेरिका के सहयोगी नाटो देशों के 1,144 सैनिक अपनी जान गंवा दिए। इसके अलावा तालिबान के भी 51 हजार से भी ज्‍यादा लड़ाके भी नाटो के हमले में ढेर हो गए। इस भीषण जंग में 72 पत्रकार भी मारे गए।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3t1fNlk
via IFTTT

Monday 30 August 2021

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क ने तालिबान को लड़ने में मदद की थी। खबरों के मुताबिक काबुल पर कब्जे के बाद हक्कानी नेटवर्क के वरिष्ठ नेता अफगान राजधानी पहुंच चुके हैं। उन्होंने काबुल की सुरक्षा की कमान संभाल ली है और नई सरकार के गठन के लिए जारी बातचीत में भी शामिल हो गए हैं। अगर नई तालिबान सरकार में हक्कानियों का दखल रहता है तो यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खासकर भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है। आखिर हक्कानी कौन हैं और तालिबान से ज्यादा भारत को हक्कानियों से खतरा क्यों है? एक बार फिर लौटा तालिबान राजअफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चिंता जताते हुए कहा था कि 'अफगानिस्तान में होने वाली घटनाओं ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए वैश्विक चिंता को बढ़ा दिया है'। यह दूसरी बार है जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ है। इससे पहले 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का राज था। भारत ने उस सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। अगर तालिबान सत्ता में आता है तो क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाएगा। भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा हक्कानीयूएन की बैठक में जयशंकर प्रसाद ने कहा था, 'क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंता का कारण हक्कानी नेटवर्क है। अफगानिस्तान हो या भारत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों को प्रोत्साहन मिलेगा।' उन्होंने कहा कि हमें कभी भी आतंकियों के पनाहगारों का समर्थन नहीं करना चाहिए और उनके संसाधन जुटाने की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। विदेश मंत्री का इशारा पाकिस्तान की ओर था, जो कई ऐसे आतंकी समूहों का पनाहगार माना जाता है जो भारत को निशाान बनाते हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को हक्कानी नेटवर्क के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। पाकिस्तान का करीबी है आतंकी समूहविशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में अल-कायदा के वरिष्ठ नेतृत्व की मौजूदगी के बावजूद पाकिस्तानी सेना लगातार वहां सैन्य अभियान चलाने से इनकार करती रही है। पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान के तत्व अफगानिस्तान में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए हक्कानी नेटवर्क को एक उपयोगी सहयोगी और प्रॉक्सी बल के रूप में देख रहे हैं। हक्कानी लड़ाके अफगानिस्तान में भारतीय बुनियादी ढांचे और निर्माण परियोजनाओं को बार-बार निशाना बनाते आए हैं। यह गुट 2008 और 2009 में काबुल में भारतीय दूतावास के खिलाफ हमलों के लिए भी जिम्मेदार था। क्या है हक्कानी नेटवर्कहक्कानी नेटवर्क को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने अपनी आतंकी समूहों की सूची में शामिल किया है। इस संगठन को खूंखार आतंकी और अमेरिका के खास रहे जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था। 1980 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के इलाके में इस संगठन ने काफी सफलता भी पाई थी। कई अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि जलालुद्दीन हक्कानी को सीआईए फंडिंग करती थी। इतना ही नहीं, उसे हथियार और ट्रेनिंग भी सीआईए के एजेंट ही दिया करते थे। जलालुद्दीन हक्कानी उसी समय से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के भी खास थे। सरकार में मिल सकती है जगहदरअसल, सीआईए को आईएसआई ही बताती थी कि किस मुजाहिद्दीन को कितना पैसा और हथियार देना है। यही कारण है कि आज भी हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का बहुत ज्यादा प्रभाव है और इसी कारण भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का पूरा फोकस फिलहाल नई सरकार के गठन पर है। कई तस्वीरों में सिराजुद्दीन के भाई अनस हक्कानी को तालिबानी नेताओं के साथ देखा गया था। चिंता की बात यह भी है कि हक्कानी नेटवर्क भी इन प्रयासों में शामिल है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3gOfIfP
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान में तालिबान के साथ करीब 20 साल तक चली जंग में शर्मनाक 'हार' के बाद अमेरिकी सैनिक अब अपने आखिरी गढ़ काबुल एयरपोर्ट को भी अलविदा कह चुके हैं। काबुल एयरपोर्ट से सोमवार की देर रात आखिरी अमेर‍िकी सैनिक की वापसी के बाद तालिबान आतंकियों ने जमकर जश्‍न मनाया। वहीं कतर में तालिबान के प्रवक्‍ता सुहैल शाहीन ने कहा कि अब हमारा देश पूरी तरह से आजाद है और देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई। सुहैल शाहीन ने सोमवार देर रात को ट्वीट करके कहा, 'आज रात 12 बजे (अफगानिस्‍तान के समयानुसार) आखिरी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्‍तान से लौट गया। हमारे देश को पूरी आजादी मिल गई है। अल्‍लाह को धन्‍यवाद। सभी देशवासियों को दिली धन्‍यवाद।' इसी के साथ ही अब पंजशीर घाटी को छोड़कर पूरे अफगानिस्‍तान पर तालिबान का पूरा नियंत्रण हो गया है। राजधानी काबुल की सड़कों पर सन्‍नाटा पसरा तालिबानी जहां देशभर में जश्‍न मना रहे हैं, वहीं राजधानी काबुल की सड़कों पर सन्‍नाटा पसरा है। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के लिए यह एक ऐतिहासिक जीत है। तालिबान ने हमेशा से ही अफगानिस्‍तान में विदेशी सेनाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई के बारे में बयान दिया है और वे इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ बताते रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्‍तान से चले जाने के बाद अब देश के नए शासकों को कई सवालों का जवाब देना होगा। तालिबान को अब अफगानिस्‍तान के फिर से निर्माण का बड़ा और पेचीदा काम करना होगा। तालिबान ने ऐलान किया है कि वह एक ऐसी कार्यकारी सरकार बनाएंगे जिसमें सभी पक्षों और गुटों को शामिल किया जाएगा। इसमें अफगानिस्‍तान के अल्‍पसंख्‍यक भी शामिल होंगे। बता दें कि करीब 19 साल 8 महीने तक चली जंग के बाद अमेरिकी सैनिक अफगानिस्‍तान से लौट गए हैं। इस जंग के दौरान उन्‍हें 2461 सैनिकों से हाथ धोना पड़ा। अफगानिस्‍तान से जाते-जाते भी अमेरिका को आईएसआईएस के भीषण हमले का सामना करना पड़ा। जो बाइडेन बोले- अफगानिस्तान में 20 साल की सैन्य उपस्थिति खत्म काबुल से आखिरी अमेरिकी विमान के उड़ने के बाद जो बाइडेन ने कहा- अब अफगानिस्तान में हमारी 20 साल की सैन्य उपस्थिति खत्म हो गई है। मैं अपने कमांडरों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि बिना किसी और अमेरिकी की जान गंवाए उन्होंने अफगानिस्तान से खतरनाक निकासी को पूरा किया, जैसा कि 31 अगस्त सुबह की डेडलाइन निर्धारित की गई थी।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3yv3zCC
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान में करीब 20 साल तक जंग लड़ने के बाद अमेरिकी सैनिक अपने मुल्क लौट चुके हैं। सोमवार को अमेरिका की आखिरी फ्लाइट के उड़ान भरने के बाद तालिबान ने धुआंधार गोलीबारी कर 'आजादी' का जश्न मनाया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि तालिबानी लड़ाकों ने काबुल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है और अफगान राजधानी के आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा दिखाई पड़ रहा है। 19 साल 8 महीने बाद निकला अमेरिकापेंटागन न्यूज ब्रीफिंग के दौरान सोमवार को यूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख मरीन जनरल Frank McKenzie ने आखिरी अमेरिकी विमान के काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरने के बाद सैनिकों के वापसी अभियान के पूरे होने की घोषणा की। फ्लाइट के निकलने के एक घंटे बाद एयरपोर्ट पर तालिबान का जश्न शुरू हुआ। लड़ाकों ने हवा में ताबड़तोड़ फायरिंग की, एयरपोर्ट पर तालिबानी झंडा फहराया और जीत के नारे लगाए। शीर्ष तालिबानी नेता अनस हक्कानी ने पुष्टि करते हुए कहा कि अमेरिका ने आधिकारिक रूप से 19 साल 8 महीने के बाद अफगानिस्तान छोड़ दिया है। सैनिकों की वापसी को बताया 'ऐतिहासिक क्षण'एक दूसरे वीडियो में तालिबानी लड़ाकों को काबुल एयरपोर्ट के एक हैंगर के भीतर टहलतते और चिनूक हेलीकॉप्टर की जांच करते देखा जा सकता है। तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी को 'ऐतिहासिक क्षण' बताया और कहा कि अफगानिस्तान अब पूरी तरह से 'आजाद' हो चुका है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि हम उन सभी को नहीं निकाल पाए जिन्हें निकालना चाहते थे। अगर हम 10 दिन और भी रुक जाते तो भी उन सभी को नहीं निकाल पाते। लोग फिर भी निराश होते। उन्होंने इसे एक 'कठिन स्थिति' बताया। डेडलाइन से पहले ही पूरा ऑपरेशनअफगानिस्तान में तालिबान की डेडलाइन से पहले ही अमेरिका ने अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी है। अफगानिस्तान से अमेरिका के आखिरी विमान C-17 ने 30 अगस्त को दोपहर 3.29 बजे काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अपने कमांडरों की खतरनाक वापसी के लिए धन्यवाद किया। इसी के साथ अमेरिकी ने अफगानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति को भी खत्म कर दिया है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BpkAQl
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान का खूनी खेल तेज हो गया है। तालिबानी आतंकियों ने अपने विरोधी नॉर्दन एलायंस के गढ़ पंजशीर की घाटी पर भीषण हमला किया है। पंजशीर घाटी में तालिबान के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने वाले ताजिक नेता अहमद मसूद के करीबी सूत्रों ने बताया कि तालिबान आतंकियों ने मंगलवार शाम को पंजशीर घाटी में उनकी एक चौकी पर बड़ा हमला किया है। मसूद के करीबी ने टोलो न्‍यूज को बताया कि उनके लड़ाकुओं ने इस तालिबानी हमले को विफल कर दिया है। दोनों पक्षों के बीच अभी छिटपुट जंग जारी है। तालिबान ने अभी तक इस हमले के बारे में कोई टिप्‍पणी नहीं किया है। बताया जा रहा है कि तालिबान ने यह हमला जाबुल सिराज इलाके में हुआ है जो परवान प्रांत का हिस्‍सा है। खबरों के मुताबिक इस हमले में कई लड़ाके मारे गए हैं और घायल हुए हैं। अहमद मसूद और अमरुल्‍ला सालेह ने संभाल रखा है मोर्चा तालिबान ने पंजशीर घाटी को चारों ओर से घेर रखा है और इंटरनेट को बंद कर दिया है ताकि अहमद मसूद के समर्थक दुनिया से संपर्क न कर सकें। पंजशीर की घाटी में ही पूर्व उप राष्‍ट्रपति अमरुल्‍ला सालेह भी डटे हुए हैं और यही से उन्‍होंने तालिबान के खिलाफ जंग का ऐलान कर रखा है। इससे पहले खबरें आई थीं कि तालिबान आतंकियों और अहमद मसूद के बीच समझौते को लेकर बातचीत चल रही है। हालांकि यह बातचीत विफल होती दिख रही है। 15 अगस्त को अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भाग जाने के बाद, अमरुल्लाह सालेह ने देश के संविधान के अनुसार खुद को अफगानिस्तान का वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया था। हालांकि, सालेह के दावे को अभी तक किसी भी देश या अंतरराष्ट्रीय निकाय जैसे संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता नहीं दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा भी था कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं। पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया है तालिबान पंजशीर अफगानिस्तान का एकमात्र ऐसा प्रांत है, जिसपर आजतक तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। 1996 से 2001 के इस्लामिक अमीरात के शासन के दौरान भी पंजशीर तालिबान के लिए एक नासूर बना रहा। तालिबान ने कहा था कि पंजशीर के स्थानीय राज्य के अधिकारियों ने इसे शांतिपूर्वक सौंपने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से हमें अपने लड़ाके भेजने पड़े हैं। पंजशीर बना तालिबान के लिए बड़ा नासूर जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, तभी से पंजशीर घाटी में विद्रोही लड़ाके जुटना शुरू हो गए हैं। बताया जा रहा है कि इनमें सबसे ज्यादा संख्या अफगान नेशनल आर्मी के सैनिकों की है। इस गुट का नेतृत्व नॉर्दन एलायंस ने चीफ रहे पूर्व मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद कर रहे हैं। उनके साथ पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर की सैन्य टुकड़ी भी है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/2WC81SK
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

वॉशिंगटन अफगानिस्तान में तालिबान की डेडलाइन से पहले ही अमेरिका ने अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी है। अफगानिस्तान से अमेरिका के आखिरी विमान C-17 ने 30 अगस्त को दोपहर 3.29 बजे काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट से उड़ान भरी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अपने कमांडरों की खतरनाक वापसी के लिए धन्यवाद किया। आपको बता दें कि इसी के साथ अमेरिकी ने अफगानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति को भी खत्म कर दिया है। जो बाइडेन बोले- अफगानिस्तान में 20 साल की सैन्य उपस्थिति खत्म काबुल से आखिरी अमेरिकी विमान के उड़ने के बाद जो बाइडेन ने कहा- अब अफगानिस्तान में हमारी 20 साल की सैन्य उपस्थिति खत्म हो गई है। मैं अपने कमांडरों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि बिना किसी और अमेरिकी की जान गंवाए उन्होंने अफगानिस्तान से खतरनाक निकासी को पूरा किया, जैसा कि 31 अगस्त सुबह की डेडलाइन निर्धारित की गई थी। अमेरिकी इतिहास में अबतक का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट बाइडेन ने आगे कहा- पिछले 17 दिनों में हमारे सैनिकों ने अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़े एयरलिफ्ट को अंजाम दिया। उन्होंने 1,20,000 से अधिक अमेरिकी नागरिकों, हमारे सहयोगियों के नागरिकों और संयुक्त राज्य अमेरिका के अफगान सहयोगियों को सुरक्षित निकाला है। जो बाइडेन ने कहा- मैंने अपने विदेश मंत्री से कहा है कि वे अपने अंतरराष्ट्रीय पार्टनर्स के साथ लगातार को-ऑर्डिनेट करें ताकि किसी भी अमेरिकी, अफगान भागीदारों और विदेशी नागरिकों के लिए सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित किया जा सके जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। आज अमेरिका को संबोधित करेंगे जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने बयान में कहा- 'कल दोपहर (मंगलवार), मैं अफगानिस्तान में हमारी उपस्थिति को 31 अगस्त से आगे नहीं बढ़ाने के अपने निर्णय पर लोगों को संबोधित करूंगा। योजना के अनुसार अफगानिस्तान में हमारे एयरलिफ्ट मिशन को समाप्त करने के लिए वहां ग्राउंड पर मौजूद हमारे सभी कमांडरों और जॉइंट्स चीफ्स की सर्वसम्मत सिफारिश थी।' अमेरिका ने अफगानिस्तान से दूतावास हटाकर कतर शिफ्ट किया अफगानिस्तान में अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म करने के अलावा अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति को भी खत्म कर दिया और इसे कतर में शिफ्ट कर दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका हर उस अमेरिकी की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहता है। ब्लिंकन ने कहा- अफगानिस्तान में अमेरिका का काम जारी है, हमारे पास एक योजना है...हम शांति बनाए रखने पर अथक रूप से केंद्रित रहेंगे.. इसमें हमारे समुदाय में हजारों लोगों का स्वागत करना भी शामिल है, जैसा कि हमने पहले भी किया है...। आखिरी अमेरिकी विमान ने काबुल से भरी उड़ान यूएस जनरल केनेथ एफ मैकेंजी ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियान खत्म होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के पूरा होने और अमेरिकी नागरिकों और अफगानों को निकालने के लिए सैन्य मिशन की समाप्ति की घोषणा करते हैं। जनरल मैकेंजी ने कहा कि अंतिम C-17 विमान को हामिद करजई एयरपोर्ट से 30 अगस्त की दोपहर 3:29 बजे रवाना किया गया। काबुल एयरपोर्ट पर रॉकेट हमले की जिम्मेदारी ISIS ने ली अमेरिकी सेना ने वापसी के अंतिम घंटों में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से कुछ और लोगों को सुरक्षित निकाला। इस बीच, आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने काबुल एयरपोर्ट पर रॉकेट हमलों की जिम्मेदारी ली।अमेरिकी सेना ने कहा कि रॉकेट हमलों में उसकी तरफ कोई हताहत नहीं हुआ है। अमेरिका अब अंतिम अमेरिकी व्यक्ति को बाहर निकालने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3kwqUPa
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार को फिलिस्तीन सहित पश्चिम एशिया शांति प्रक्रिया पर बैठक हुई। भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने फिलिस्तीन को दी जा रही मदद के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने गाजा पट्टी में हाल के तनाव पर भी चिंता जताई। श्रृंगला ने सभी पक्षों से क्षेत्रीय तनाव को कम करने और बातचीत की प्रक्रिया को शुरू करने की अपील की। भारत ने इजरायल की भी तारीफ की हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि ने कहा कि फिलिस्तीनियों को वर्क परमिट की संख्या बढ़ाने के इजरायल के निर्णय से दोनों अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने में मदद मिलेगी। फिलीस्तीनी प्राधिकरण के कोविड-टीकाकरण प्रमाणपत्रों की मान्यता और गाजा पट्टी से वेस्ट बैंक तक मरीजों के आने-जाने की सुविधा सकारात्मक संकेत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत उन सभी उपायों का स्वागत करता है जो फिलिस्तीनी लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अधिक अवसर पैदा करते हैं। फिलिस्तीन को ऐसे मदद कर रहा भारत भारतीय विदेश सचिवन ने बताया कि फिलिस्तीन के साथ भारत का विकास सहयोग भी इसी उद्देश्य की ओर अग्रसर है। हमने स्कूलों के निर्माण, आईसीटी और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, एक प्रौद्योगिकी पार्क और एक राष्ट्रीय प्रिंटिंग प्रेस स्थापित करने में मदद की है। उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन में कई अन्य त्वरित प्रभाव वाली सामुदायिक परियोजनाओं का समर्थन कर रहे हैं। भारत ने गाजा में बढ़ते तनाव पर चिंता जताई गाजा पट्टी में बढ़ते हालिया तनाव पर चिंता जताते हुए भारत ने सोमवार को संघर्ष से जुड़े सभी पक्षों से ऐसे कृत्यों से दूर रहने का आह्वान किया जो क्षेत्र में तनाव को बढ़ा सकते हैं और सुरक्षा हालात को खराब कर सकते हैं। श्रृंगला ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच जल्द उच्च स्तरीय वार्ता शुरू होने की भी आशा व्यक्त की, जोकि सभी अंतिम मुद्दों को हल करने के लिए सर्वोत्तम अवसर प्रदान करे और मुद्दे का दो-राष्ट्र समाधान प्राप्त कर सकें। इजरायल फिलिस्तीन में बातचीत का किया आह्वान अगस्त माह के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता करने वाले श्रृंगला ने कहा कि हम गाजा पट्टी में तनाव में हालिया वृद्धि से चिंतित हैं, जो एक बार फिर युद्धविराम की भंगुरता और तनाव को बढ़ाने वाले कारणों को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। विदेश सचिव ने कहा कि भारत संघर्ष के सभी पक्षों से युद्धविराम का सम्मान करने और ऐसे कृत्यों से दूर रहने का आह्वान करता है जो तनाव को बढ़ा सकते हैं और सुरक्षा स्थिति को खराब कर सकते हैं। द्विराष्ट्र समाधान का समर्थन किया श्रृंगला ने जोर देकर कहा कि इजराइल और फलस्तीन के बीच उच्च-स्तरीय वार्ता प्रत्यक्ष शांति वार्ता को बहाल करने के लिए बेहतर वातावरण प्रदान कर सकती है। उन्होंने कहा कि हम दोनों पक्षों के बीच इन वार्ताओं के जल्द शुरू होने की उम्मीद करते हैं क्योंकि वे सभी अंतिम स्थिति के मुद्दों को हल करने और दो-राज्य समाधान प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर प्रदान करते हैं। इन वार्ता को बहाल करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से पश्चिम एशिया क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। दोनों पक्षों को उकसावे की कार्रवाई से बचने को कहा श्रृंगला ने कहा कि वेस्ट बैंक में फलस्तीनियों और इजराइली सुरक्षा बलों के बीच हिंसा और संघर्ष की घटनाएं जारी हैं। दोनों पक्षों को शांति और स्थिरता के लिए उकसावे वाली कार्रवाई से बचना चाहिए। हम एक और सैन्य संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय देशों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3yurfH6
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पहली बार कंधार के गवर्नर हाउस में एक ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर की लैंडिंग हुई है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में खूब शेयर भी किया जा रहा है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि इस हेलिकॉप्टर को कौन उड़ा रहा है? क्या तालिबान लड़ाके इतने ट्रेंड हैं कि वे अमेरिका के इस सबसे प्रसिद्ध हेलिकॉप्टर को ऑपरेट कर पाएं। इससे पहले भी कई वीडियो और तस्वीरों में तालिबान लड़ाके अफगान सेना के हेलिकॉप्टर्स और जहाजों के साथ नजर आ चुके हैं। कंधार के गवर्नर के घर तालिबान के लड़ाके कंधार के गवर्नर हाउस पर अभी तालिबान का कब्जा है। ऐसे में इस बात की बेहद कम संभावना है कि अमेरिकी सैनिक इस हेलिकॉप्टर को ऑपरेट कर रहे हों। अगर नीचे तालिबान है तो अमेरिका के अपने हेलिकॉप्टर उतारने का कोई मतलब नहीं बनता। ऐसे में अगर तालिबान का कोई लड़ाका अत्याधुनिक तकनीक से लैस हेलिकॉप्टर को उड़ा रहा है तो यह पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। अमेरिका ने अफगान सेना को दिए थे ये हेलिकॉप्टर अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के दौरान अफगान सेना को अरबों डॉलर के हथियार दिए थे। इसमें हवाई जहाज, इंबरर इएमबी 314 सुपर टुकानों लाइट एयरक्राफ्ट, ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर, एमडी-530एफ हेलिकॉप्टर, सेसना 208 जहाज, बेल यूएच-1 हेलिकॉप्टर शामिल थे। ये सब अब तालिबान के कब्जे में हैं। हालांकि, एक्सपर्ट की राय है कि तालिबान के पास इन्हें उड़ाने की काबिलियत नहीं है। अमेरिकी अधिकारी क्या बोल रहे? अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि तालिबान ने भले ही इन हेलिकॉप्टर और जहाजों पर कब्जा कर लिया है। लेकिन, बिना मेंटीनेंस के इन्हें उड़ाया नहीं जा सकता है। अफगान वायु सेना के ये हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज मेंटिनेंस के बिना जमीन पर केवल शो पीस ही बनकर रह जाएंगे। लेकिन, ताजा वीडियो ने दुनिया की चिंता बढ़ा दी है। तालिबान के पास बिलियन डॉलर के अमेरिकी हथियार अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद करीब 28 बिलियन डॉलर के हथियारों को जब्त किया है। ये हथियार अमेरिका ने 2002 और 2017 के बीच अफगान बलों को दिया था। एक अधिकारी ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि जो हथियार नष्ट नहीं हुए हैं वे अब तालिबान के कब्जे में हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/2YbjGJ6
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर सोमवार को हुए छह रॉकेट हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, इस्लामिक स्टेट समर्थित नाशेर न्यूज ने अपने टेलीग्राम चैनल पर कहा कि उसके लड़ाकों ने काबुल हवाई अड्डे पर रॉकेट दागे हैं। हालांकि, एयरपोर्ट पर हवाई निगरानी के लिए तैनात अमेरिका के एयर डिफेंस सिस्टम ने इन सभी रॉकेट को पहले ही मार गिराया। आईएसआईएस ने क्या कहा? नाशेर न्यूज ने कहा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर की कृपा से, खिलाफत के सैनिकों ने काबुल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को छह कत्यूषा रॉकेटों से निशाना बनाया। अफगानिस्‍तान की मीडिया के मुताबिक ये रॉकेट खुर्शीद प्राइवेट यूनिवर्सिटी के पास दागे गए थे। हमले के बाद तालिबान ने काबुल की सुरक्षा को और अधिक बढ़ाने का ऐलान किया है। अमेरिका से बदला ले रहा इस्लामिक स्टेट आतंकियों ने यह हमला ऐसे समय पर किया है जब एक दिन पहले ही अमेरिका ने एक ड्रोन हमला करके आईएसआईएस के आतंकियों की कार को निशाना बनाया था। यह आतंक‍ी आत्‍मघाती बम हमलावर था जो काबुल एयरपोर्ट को निशाना बनाने की ताक में था। इस हमले में कई आतंकी के अलावा 9 आम नागरिक भी मारे गए थे। मारे गए लोगों में एक ही परिवार के 6 बच्‍चे भी शामिल थे। इस्लामिक स्टेट खुरासान क्या है?आईएसआईस-के मध्य एशिया में इस्लामिक स्टेट का सहयोगी है। 2014 में इस्लामिक स्टेट के लड़ाके पूरे सीरिया और इराक में फैल गए जिसके कुछ महीने बाद 2015 में आईएसआईएस-के की स्थापना हुई। इस संगठन में 'खुरासान' दरअसल अफगानिस्तान का एक प्रांत है जो अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के ज्यादातर हिस्से कवर करता है। इसे ISK या ISIS-K के नाम से भी जाना जाता है। आईएसआईएस-के के लड़ाके कौन हैं?आतंकवादी संगठन की शुरुआत कई सौ पाकिस्तानी तालिबान लड़ाकों के साथ हुई थी। लगातार चलाए गए सैन्य अभियानों के बाद उन्हें पाकिस्तान से निकाल दिया गया और उन्होंने अफगानिस्तान सीमा पर शरण ले ली। संगठन की ताकत चरमपंथी विचारधारा वाले लोगों ने बढ़ाई। इसमें तालिबान के वे असंतुष्ट लड़ाके भी शामिल हो गए जो पश्चिम के खिलाफ तालिबान के उदार और शांतिपूर्ण रवैये से नाखुश थे।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BoZPV7
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

इस्लामाबाद पाकिस्तान में हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हो रहे हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब धर्म परिवर्तन के लिए बदनाम सिंध के खिप्रो में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा कर रहे हिंदुओं पर हमला हुआ है। कट्टरपंथियों की भीड़ ने न केवल पूजा कर रहे लोगों को मारपीट कर भगा दिया, बल्कि भगवान के मूर्ति को भी क्षतिग्रस्त किया। जिसके बाद से सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्वीरें शेयर की जा रही हैं। पाकिस्तानी एक्टिविस्ट ने बताया सच पाकिस्तानी एक्टिविस्ट और वकील राहत ऑस्टिन ने ट्वीट कर बताया कि सिंध के खिप्रो में एक हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की गई है। हिंदू भगवान का अपमान किया गया है, क्योंकि वे भगवान कृष्ण का जन्मदिन (जन्माष्टमी) मना रहे थे। पाकिस्तान में इस्लाम के खिलाफ ईशनिंदा के झूठे आरोप में भी मॉब लिंचिंग या मौत की सजा दी जाती है, लेकिन गैर-मुस्लिम देवताओं के खिलाफ अपराध में कोई सजा नहीं होती है। जुलाई में भी गणेश मंदिर पर हुआ था हमला वहीं, एनजीओ न्यूज ऑर्गनाइजेशन द राइज न्यूज की एडिटर और पत्रकार वींगास ने ट्वीट कर लिखा कि खिप्रो में जन्माष्टमी पर कुछ लोगों ने तोड़-फोड़ की - क्या दोषियों को सजा मिलेगी? पाकिस्तान में आए दिन हिंदुओं के मंदिरों पर हमला होता रहता है। इससे पहले जुलाई के अंतिम हफ्ते में पंजाब सूबे के रहीम यार खान के पास स्थित भोंग में गणेशजी के मंदिर में धार्मिक अतिवादियों ने तोड़फोड़ की थी। मंदिरों पर हमले के लिए बदनाम है सिंध सूबा पाकिस्तान का सिंध सूबा मंदिरों पर हमले और धर्म परिवर्तन के लिए बदनाम है। इस राज्य में लगातार मंदिरों पर हमले होते रहे हैं, जबकि हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन भी करवाया जाता है। अक्टूबर 2020 में सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित नागारपारकर में धार्मिक अतिवादियों ने दुर्गा माता की मूर्ति को खंडित कर दिया गया था। इसके अलावा सितंबर 2020 में सिंध प्रांत के बादिन जिले में एक मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। पाकिस्तान में हर साल 1000 से ज्यादा लड़कियों का धर्म परिवर्तन मानवाधिकार संस्था मूवमेंट फॉर सॉलिडैरिटी एंड पीस (MSP) के अनुसार, पाकिस्तान में हर साल 1000 से ज्यादा ईसाई और हिंदू महिलाओं या लड़कियों का अपहरण किया जाता है। जिसके बाद उनका धर्म परिवर्तन करवा कर इस्लामिक रीति रिवाज से निकाह करवा दिया जाता है। पीड़ितों में ज्यादातर की उम्र 12 साल से 25 साल के बीच में होती है। आंकड़े ज्यादा हो सकते हैं मानवाधिकार संस्था ने यह भी कहा कि आंकड़े इससे ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि ज्यादातर मामलों को पुलिस दर्ज नहीं करती है। अगवा होने वाली लड़कियों में से अधिकतर गरीब तबसे से जुड़ी होती हैं। जिनकी कोई खोज-खबर लेने वाला नहीं होता है। इस कारण प्रशासनिक स्तर पर भी लापरवाही दिखाई जाती है। पहले भी सामने आए हैं कई मामले बता दें कि इससे पहले पंजाब के डेरा गाजी खान से 14 साल की एक ईसाई लड़की हुमा यूसूफ का अपहरण हो चुका है। जिसका धर्म परिवर्तन करवा कर एक मुस्लिम लड़के से निकाह करवा दिया गया था। इसके अलावा सना जॉन, महविश, फरजाना और सेहरिश नाम की लड़कियों के साथ भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3mJUzXT
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

पेइचिंग अमेरिका और भारत से बढ़ते तनाव के बीच चीन तेजी से अपने परमाणु शस्त्रागारों को बढ़ा रहा है। हाल में ही खबर आई थी कि चीन ने तीन अलग अलग ठिकानों पर 250 से अधिक इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल (ICBM) साइलोज को बनाया है। इनमें एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक परमाणु हमला करने में सक्षम मिसाइलों को रखा गया है। इसके अलावा चीन की 60 से अधिक पनडुब्बियां अगल-अलग ठिकानों पर परमाणु मिसाइलों के साथ गश्त लगा रही हैं। इस बीच चीन के एच-20 स्ट्रैटजिक बॉम्बर की तैनाती से चीन को जमीन और पानी के अलावा हवा से भी परमाणु हमला करने की ताकत मिल गई है। एच-20 के बारे में जानकारी छिपा रहा चीन चीन के एच-20 बमवर्षक के बारे में बहुत ही कम जानकारी सार्वजनिक प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद है। हालांकि, अटकलें हैं कि चीन इस विमान से जुड़ी डिलेट को जल्द ही साझा कर सकता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अफगानिस्तान, चेचन्या, खाड़ी युद्ध, इराक, कोरिया, लीबिया, सीरिया, वियतनाम और यूगोस्लाविया जैसे संघर्षों में अलग-अलग देशों ने बमवर्षक विमानों का व्यापक रूप से उपयोग किया। हालांकि, शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इसकी महंगी प्रॉडक्शन और रखरखाव को देखते हुए कई देशों ने ऐसे विमानों से पल्ला झाड़ लिया। उनके पास विकल्प थे कि इन विमानों की कमी को इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए पूरा किया जा सकता है। अमेरिका का बी-2 परमाणु हमला कर सकते हैं ये बॉम्बर यूके में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) में मिलिट्री एयरोस्पेस के सीनियर फेलो डगलस बैरी ने स्ट्रैटजिक बॉम्बर्स के फायदे बताते हुए कहा कि हैवी बॉम्बर रेंज और पेलोड के मामले में सबसे बेहतरीन होते हैं। जबकि मीडियम बॉम्बर हैवी वाले से थोड़ा कम पेलोड लेकर जा सकते हैं। इसके बावजूद इन विमानों की लागत इतनी ज्यादा है कि दुनिया के चुनिंदा देश ही ऐसे विमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। दुनिया के तीन देशों के पास ही ऐसे विमान दरअसल वर्तमान में केवल तीन देशों की सेना ही स्ट्रैटजिक बॉम्बर्स विमानों का उपयोग कर रही हैं। ये हैं- अमेरिका, रूस और चीन। गौरतलब है कि तीनों देश पुराने बेड़े को बदलने के लिए नए चोरी-छिपे बमवर्षक विकसित कर रहे हैं। इसके अलावा, बहुत कम संभावना है कि कोई भी अन्य देश जल्द ही इस अमेरिकी-चीनी-रूसी तिकड़ी में शामिल होगा। अमेरिका का बी-21 अमेरिका के बी-21 से चीन के एच-20 का मुकाबला अमेरिका के बी -21 रेडर स्टील्थ बॉम्बर के जवाब में चीन इन दिनों एच -20 बॉम्बर को विकसित कर रहा है। हालांकि इसके बारे में अभी तक बेहद कम जानकारी ही सामने आई है। अभी तक यह पता चला है कि यान एयरक्राफ्ट इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन (एक्सएसी) एच -20 विकसित कर रहा है। इसकी पहली आधिकारिक पुष्टि सितंबर 2016 में तत्कालीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (पीएलएएएफ) कमांडर जनरल मा शियाओटियन ने की थी। उन्होंने कहा था कि हम अब एक नई पीढ़ी, लंबी दूरी का स्ट्राइक बॉम्बर विकसित कर रहे हैं जिसे आप भविष्य में कभी भी देखेंगे। स्टील्थ तकनीकी से लैस होगा चीनी एच-20 बैरी ने एच-20 विमान के बारे में बताते हुए कहा कि सिग्नेचर मैनेजमेंट को ध्यान में रखकर इसे फ्लाइंग-विंग डिज़ाइन पर तैयार किया जा रहा है। फ्लाइंग विंग डिजाइन एक ऐसा विमान है जिसकी कोई टेल नहीं होती। इस प्रकार का पहला बमवर्षक अमेरिकी वायु सेना (USAF) का B-2 स्पिरिट था। चीन पहले ही फ्लाइंग विंग यूएवी उड़ा चुका है, जो इस तरह के डिजाइनों के साथ उसकी परिचितता और महारत दोनों का प्रदर्शन करता है। सिग्नेचर मैनेजमेंट का मतलब दुश्मन के रडार से आई तरंगों को यह सीधे जाने दे और खुद को गुप्त रखे। चीन का एच-20 एच-20 पर शेखी बघार रहा चीन द चाइना डेली ने एक सेवानिवृत्त पीएलएएएफ उपकरण विशेषज्ञ फू कियानशाओ के हवाले से एक लेख प्रकाशित किया, जिन्होंने गर्व से दावा किया कि एच -20 अमेरिकी बी -2 से अधिक सक्षम होगा। उन्होंने यह भी शेखी बधारी कि यह विमान भविष्य के बी -21 से अधिक ताकतवर होगा और यह अपने सभी समकक्ष विमानों को पीछे छोड़ देगा। फू ने कहा कि नए बमवर्षक का अनावरण होने के बाद, यह निश्चित रूप से हमारी अनूठी तकनीकों के लिए विश्व-अग्रणी हार्डवेयर होगा। विश्वसनीय इंजनों से लैस होगा। लोगों को केवल चीनी के उदय को देखने के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता है। स्वदेशी इंजन की कमी से परेशान है चीन हालांकि, फू ने यह नहीं बताया कि इस विमान में किस तरह से इंजन का इस्तेमाल किया जाएगा। क्योंकि विमान का इंजन बनाने में चीन अभी भी नौसिखिया है। वह WS10 जैसे इंजनों पर काम तो जरूर कर रहा है, लेकिन ऐसे स्टील्थ विमानों को ताकत देने के लिए उसे नए और इससे भी अधिक शक्तिशाली इंजन की जरूरत होगी। चीन अब भी अपने विमानों के लिए रूस से भारी मात्रा में जेट इंजन का आयात कर रहा है। चीन का एच-6 अभी एच-6 पर आश्रित है चीन का परमाणु ट्राएड अभी तक कोई भी सही-सही नहीं जानता है कि चीन के एच-20 स्टील्थ स्ट्रैटजिक बॉम्बस सर्विस में कब कमीशन होंगे। लेकिन, अनुमान लगाया जा रहा है कि 2026-27 तक इस विमान को चीनी वायु सेना में देखा जा सकता है। इसकी तुलना में अमेरिकी बी-21 की पहली उड़ान 2022 में निर्धारित है। पहले बी-21 को 2020 में उड़ान के लिए शेड्यूल किया गया था। ऐसे में चीन अभी परमाणु हमला करने के लिए अपनी नौसेना के H-6 बॉम्बर्स के बेड़े पर निर्भर है। यह विमान सोवियत संघ के जमाने के Tu-16 की कॉपी है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3ysOC3S
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

इस्लामाबाद पाकिस्तानी सेना इन दिनों इस बात से हैरान है कि अफगान सेना के जवान उनके देश को छोड़कर भारत में ट्रेनिंग करने क्यों जाते हैं। पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान ने पिछली अफगान सरकारों को अपने सैनिकों की ट्रेनिंग के लिए कई प्रस्ताव भी दिए थे। इसके बावजूद अफगानिस्तान की सरकार ने पाकिस्तान के ऊपर भारत को ही तरजीह दी है। पाकिस्तान की इस हैरानी या लाचारी का खुलासा खुद उनकी सेना के प्रॉपगैंडा विंग यानी इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के डॉयरेक्टर जनरल मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने किया है। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने दुखड़ा रोया! मीडिया से बात करते हुए बाबर इफ्तिखार ने कहा कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अफगानिस्तान के कई दौरे किए, लेकिन केवल छह कैडेट पाकिस्तान आए, जबकि हजारों सैनिक और अधिकारी भारत में प्रशिक्षित हुए हैं। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अफगान लोग और सेना पाकिस्तान से इतनी नफरत क्यों करते हैं। उन्होंने यह भी समझाने की कोशिश की कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए कितना कुछ किया है, लेकिन वे अफगानिस्तान में गड़बड़ियों के लिए हमेशा पाकिस्तान को दोष देते हैं। अफगानिस्तान में भारत के निवेश पर दिया 'ज्ञान' उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी हुआ है, हमें भारत की भूमिका को समझने की जरूरत है। भारत ने अफगानिस्तान में जो भी निवेश किया है, वह सब पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया था। उन्होंने अफगान लोगों या अफगानिस्तान से कोई प्यार नहीं है। पिछली अफगान सरकारें, उसकी सेनाएं, सांसद, मीडिया आउटलेट और राजनीतिक टिप्पणीकार पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों पर तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को मदद देने का आरोप लगाते रहे हैं। पाक गृहमंत्री ने स्वीकारी थी तालिबान वाली सच्चाई पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख रशीद ने स्वीकार किया कि तालिबान सदस्यों के परिवार पाकिस्तान में रह रहे थे, और घायल और मृत लड़ाकों से अफगानिस्तान से देश लाया गया। हजारों अफगान अब अपनी मातृभूमि से भागने की उम्मीद कर रहे हैं। कुछ सफल हुए हैं और बाकी काबुल हवाई अड्डे के बाहर इंतजार कर रहे हैं, जो इस क्षेत्र का सबसे खतरनाक स्थान बन गया है। पाकिस्तान से नफरत करते थे अफगान अधिकारी उनमें से कई खुले तौर पर पाकिस्तान की आलोचना करते रहे हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तान का लक्ष्य अपने संसाधनों के लिए अफगानिस्तान को कमजोर, विभाजित रखना है ताकि वे अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी, भारत के कथित प्रभाव और भागीदारी के खिलाफ देश को नियंत्रित कर सकें। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका (पाकिस्तान के अनुसार) क्षेत्र में छद्म आतंकवादी ताकतों का समर्थन करना है। डूरंड लाइन बनेगी पाकिस्तान के लिए सिरदर्द पाकिस्तानी विश्लेषकों के मुताबिक, एक और समस्या आने वाली है। तालिबान के बसने के बाद वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा-डूरंड रेखा का मुद्दा उठाएगा। उन्हें लगता है कि तालिबान पाकिस्तान की रणनीतिक चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत कुछ नहीं करेगा। पिछली अफगान सरकारों की तरह, इसने डूरंड रेखा को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सरकार और आतंकियों ने किया ऐलान कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल को स्पष्ट कर दिया था कि डूरंड लाइन पर कोई समझौता नहीं होगा। टीटीपी सुप्रीमो नूर वली महसूद ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि हमारी लड़ाई केवल पाकिस्तान में है और हम पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध में हैं। हम पाकिस्तानी सीमा क्षेत्रों पर नियंत्रण करने और उन्हें स्वतंत्र बनाने की पूरी उम्मीद कर रहे हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3BjdcWE
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

वॉशिंगटन अमेरिका में कोरोना वायरस के डेल्‍टा वेरिएंट का कहर बढ़ता ही जा रहा है और भारत की तरह से ही यहां पर भी कई अस्‍पतालों में ऑक्‍सीजन की भारी कमी होती जा रही है। बताया जा रहा है कि अमेरिका के दक्षिणी हिस्‍से में अस्‍पतालों की हालत बेहद खराब है। इस क्षेत्र में आ रहे ज्‍यादातर कोरोना के मामले उन लोगों के हैं जिन्‍होंने वैक्‍सीन नहीं लगवाई है। कोरोना वायरस की चपेट में अब तक लाखों अमेरिकी आ चुके हैं। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेर‍िका के दक्षिणी राज्‍यों फ्लोरिडा, साउथ कैरोलीना, टेक्‍सास आदि में ऑक्‍सीजन की भारी कमी हो गई है। आलम यह है कि अस्‍पतालों को अपने रिजर्व से ऑक्‍सीजन का इस्‍तेमाल करना पड़ रहा है या उनकी सप्‍लाइ खत्‍म होती जा रही है। खबर में कहा गया है कि इन राज्‍यों में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से ऑक्‍सीजन की डिमांड बहुत ज्‍यादा हो गई है। डेल्‍टा वेरिएंट की वजह से लोगों के फेफड़े खराब हो रहे उधर, कम सप्‍लाइ की वजह से अस्‍पताल मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आमतौर पर ऑक्‍सीजन की सप्‍लाइ टैंक के 90 फीसदी आने पर कर दी जाती थी लेकिन अब 30 से 40 तक आने पर टैंक को भरा जा रहा है। डॉक्‍टरों का कहना है क‍ि डेल्‍टा वेरिएंट की वजह से लोगों के फेफड़े खराब हो रहे हैं जिससे कई मरीजों की मौत हो रही है। उन्‍होंने बताया कि मरने वालों की दर बहुत ज्‍यादा है। इस बीच दुनियाभर में कोरोना वायरस के मामले बढ़कर 21.63 करोड़ हो गए है। इस महामारी से अब तक कुल 45 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैं। वहीं अभी तक 5.19 अरब से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो चुका है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने साझा किए। वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों की संख्या और टीकाकरण की संख्या क्रमश: 216,356,046, 4,500,291 और 5,191,545,258 हो गई है। सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 38,796,236 और 637,525 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है। कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील दूसरे नंबर पर कोरोना संक्रमण के मामले में भारत 32,695,030 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है। सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार 30 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (20,741,815), फ्रांस (6,827,146), रूस (6,785,465), यूके (6,762,904), तुर्की (6,329,519), अर्जेंटीना (5,173,531), कोलंबिया (4,905,258), ईरान (4,926,964 , स्पेन (4,831,809), इटली (4,530,246), इंडोनेशिया (4,073,831), जर्मनी (3,940,212) और मैक्सिको (3,328,863) हैं। कोरोना से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 579,308 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर है। जिन देशों में मरने वालों की संख्या 100,000 के पार चली गई हैं उनमें भारत (437,830), मैक्सिको (257,906), पेरू (198,115), रूस (178,457), यूके (132,760), इंडोनेशिया (131,923), इटली (129,093), कोलंबिया (124,811) फ्रांस (114,506), अर्जेंटीना (111,383) और ईरान (106,482) शामिल हैं।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3jqR0nn
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद अल-कायदा के एक बार फिर सिर उठाने का खतरा बढ़ गया है। काबुल पर कब्जे के कुछ ही दिनों के बाद इसके संकेत भी आना शुरू हो गए हैं। सोमवार को एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया गया जिसमें डॉ अमीन-उल-हक के अफगानिस्तान लौटने का दावा किया जा रहा है। अमीन-उल-हक अल-कायदा का प्रमुख सदस्य और कभी ओसामा बिन लादेन का सुरक्षा इंचार्ज था। यह खबर अमेरिका के लिए चिंताजनक है क्योंकि अमेरिका के लिए तालिबान से बड़ा दुश्मन अल-कायदा है। तोरा बोरा हमले में था सुरक्षा इंचार्जट्विटर पर शेयर किए गए वीडियो में दावा किया गया है कि अल-कायदा का प्रमुख सदस्य और तोरा बोरा में ओसामा बिन लादेन का सुरक्षा इंचार्ज डॉ अमीन-उल-हक अपने अपने घरेलू प्रांत नांगरहार लौट आया है, जो तालिबान के कब्जे में है। वीडियो के साथ लिखा है, 'डॉ अमीन 80 के दशक में मकतबा अखिदमत में अब्दुल्ला आजम के साथ काम करते हुए ओसामा बिन लादेन के करीब आया था।' डेढ़ मिनट के वीडियो में गाड़ियों के एक काफिले को देखा जा सकता है जिसमें एक सफेद कार के भीतर मुख्य व्यक्ति बैठा है। करीब 20 साल पहले अमेरिकी वायु सेना ने तोरा बोरा परिसर पर 15,000 पाउंड का 'डेज़ी कटर' बम गिराया था, जहां ओसामा बिन लादेन दिसंबर 2001 में छिपा हुआ था। इस भीषण हमले के दौरान अमीन-उल-हक ने ही लादेन की जान बचाई थी। अल कायदा के पास सिर उठाने का मौका अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के उभरने पर ट्रंप प्रशासन में आतंकवाद रोधी महकमे में वरिष्ठ निदेशक रहे क्रिस कोस्टा ने कहा था, 'मेरे ख्याल में अल-कायदा के पास मौका है और वह उस अवसर का फायदा उठाएंगे।' उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान में जो हुआ वह हर जगह के जिहादियों को प्रेरित करने वाला घटनाक्रम है।' गौरतलब है कि अफगानिस्तान में चली 20 साल लंबी जंग में अल-कायदा काफी हद तक खत्म हो गया है और अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समूह के पास अमेरिका पर 2001 जैसा हमला फिर से करने की क्षमता है या नहीं। यूएन की रिपोर्ट में दी गई थी चेतावनीहालांकि अमेरिका ने 20 साल में निगरानी बढ़ाई है और अन्य सुरक्षात्मक उपाय किए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जून की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि समूह के वरिष्ठ नेतृत्व अब भी अफगानिस्तान में है और उसके साथ सैकड़ों सशस्त्र कारिंदे हैं। अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने माना कि अल कायदा अफगानिस्तान में मौजूद है, लेकिन उसकी तादाद का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि देश में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की क्षमता घटी है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3jpv4ZU
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल अफगानिस्‍तान की राजधानी काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट को तबाह करने के लिए आतंकियों की ओर से दागे गए एक के बाद एक 5 रॉकेट को अमेरिका के रक्षा कवच ने तबाह कर दिया। यह वही रक्षा कवच है जिसका अमेरिका इराक से लेकर सीरिया तक इस्‍तेमाल कर रहा है। अमेरिका के इस एयर डिफेंस सिस्‍टम का नाम सी-रैम है। इसी अमेरिकी डिफेंस सिस्‍टम ने आतंकियों के रॉकेट की बारिश को नाकाम कर दिया और अमेरिकी सैनिकों की जान बचाई। अमेरिका के काबुल से निकलने में अब कुछ घंटे ही शेष बचे हैं और एक बार उन्‍हें भीषण हमले का सामना करना पड़ा है। काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निकट 5 रॉकेट हमले हुए हैं। रॉकेट हमले सोमवार सुबह काबुल के सलीम कारवां इलाके में हुए। विस्फोट के बाद गोलीबारी शुरू हो गई। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि गोलीबारी कौन कर रहा था। रॉकेट हमले में किसी के हताहत होने या न होने की पुष्टि नहीं हुई है। अब तक किसी ने भी हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि उन्होंने तीन धमाकों की आवाज सुनी और फिर आसमान में आग की तरह चमक उठती देखी। धमाकों के बाद लोग दहशत में हैं। अमेरिका के सीरैम सिस्‍टम ने नाकाम किया रॉकेट हमला अमेरिकी न्‍यूज वेबसाइट एबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस रॉकेट हमले को अमेरिका के सी-रैम सिस्‍टम ने बर्बाद कर दिया। मिसाइल रोधी इस सिस्‍टम को अमेरिका ने हामिद करजई एयरपोर्ट पर तैनात कर रखा है। रॉकेट हमले के जवाब में अमेरिकी सेना ने सी-रैम से गोले दागे। इस दौरान एयरपोर्ट से उड़ानों का आना-जाना जारी रहा। सी-रैम का पूरा नाम काउंटर रॉकेट, आर्टिलरी एंड मोर्टार है। इस सिस्‍टम को रॉकेट, तोप के गोले और मोर्टार राउंड की हवा में ही पहचान करने या उसे नष्‍ट करने के लिए किया जाता है। इससे वे जमीन पर फटने से पहले ही हवा में नष्‍ट हो जाते हैं। कैसे काम करता है सी-रैम सिस्‍टम यह सी-रैम सिस्‍टम रडार और अत्‍याधुनिक कैमरे की मदद से अपने लक्ष्‍य की पहचान करता है। सी-रैम सिस्‍टम में 20 एमएम का अत्‍यधिक विस्‍फोट वाला गोला इस्‍तेमाल किया जाता है। इस गोले को M163 वुलकान एयर डिफेंस सिस्‍टम के लिए विकसित किया गया था। यह गोला हवा में ही फटकर अपने लक्ष्‍य को नष्‍ट कर देता है। इस तरह से सी-रैम सिस्‍टम विभिन्‍न तरीके के ऐसे कल-पुर्जों से बना है जो सूंघने, चेतावनी, जवाबी कार्रवाई, दुश्‍मन को मार गिराने, नियंत्रण और युद्धक्षेत्र में सैनिकों की रक्षा करने का काम करता है। यह सिस्‍टम खुद ही खतरे को भांप लेता है और उसकी जांच करता है। इसके बाद निगरानी शुरू हो जाती है और फिर हमला करके उसे नष्‍ट कर दिया जाता है। जानें दुश्‍मन को तबाह करना कितना है महंगा अमेरिकी सेना के मुताबिक सी-रैम सिस्‍टम को इस हिसाब से बनाया गया है ताकि ज्‍यादा दूरी और कम खर्च में ही हवा में दुश्‍मन को तबाह किया जा सके। सी-रैम सिस्‍टम एक मिनट में 4500 राउंड फायर कर सकता है ताकि मिसाइल, रॉकेट या तोप के गोले को तबाह किया जा सके। हालांकि यह स‍िस्‍टम इतना भी सस्‍ता नहीं है। एक सी-रैम सिस्‍टम एक से डेढ़ मिलियन डॉलर का आता है। इसकी एक मिसाइल की कीमत 30 से 60 हजार डॉलर है। वहीं कुछ अन्‍य आकलनों में कहा गया है कि एक मिसाइल 40 हजार डॉलर की आती है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3ywqU6O
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

काबुल आज से 3000 हजार साल से भी ज्यादा समय से पहले सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान जो जमीन कभी हिंदुओं और फिर बाद में सिखों का घर थी, वहां आज 99.7 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम रहते हैं और एक कट्टरपंथी आतंकी समूह का राज है। बात अफगानिस्तान की हो रही है जिसकी सत्ता पर काबिज तालिबान के निशाने पर शुरुआत से ही हिंदू और सिख जैसे अल्पसंख्यक रहे हैं। यही कारण है कि यहां से अल्पसंख्यकों की आबादी लगातार सिकुड़ती जा रही है। हिंदू-सिख के प्राचीन पवित्र स्थलअफगानिस्तान में अक्सर हिंदुओं और सिखों को एक ही समुदाय का समझा जाता है क्योंकि दोनों धर्म कई समानताएं साझा करते हैं। अफगानिस्तान में दोनों धर्मों के कई पवित्र स्थल हैं जो बेहद प्राचीन हैं। जैसे जलालाबाद में स्थित Chisma साहिब गुरुद्वारा जिसे लेकर सिखों की मान्यता है कि 15वीं शताब्दी में सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक यहां आए थे। इसी तरह काबुल का Asamai मंदिर हिंदू देवी 'आशा' के नाम की पहाड़ी पर स्थित है। शुरू हुए हिंदुओं के 'काले दिन'सोवियत-अफगान युद्ध के समय बड़ी संख्या में हिंदू और सिख यूरोप और भारत पलायन कर गए। देश पर मुजाहिदीनों का कब्जा हो गया। 1994 में तालिबान के गठन के बाद हिंदुओं के 'काले दिन' शुरू हो गए। उन्हें प्रताड़ित किया जाता, मारा-पीटा जाता, उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया जाता और अपनी आस्था का प्रदर्शन करने पर उन्हें मारा-पीटा जाता। धीरे-धीरे हिंदुओं और सिखों के अपहरण और हत्याओं के मामले अफगानिस्तान में बेकाबू हो गए। पहचान को लेकर जूझ रहे हिंदूतालिबान ने पहचान के लिए हिंदुओं और सिखों को पीले रंग की पट्टी पहनने को मजबूर किया। यह नाजी जर्मनी में यहूदियों के पीले सितारा की तरह ही था। अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में यह उत्पीड़न अभी तक जारी रहा। इसीलिए सत्ता में तालिबान की वापसी होते ही हिंदुओं और सिखों ने देश छोड़ने का फैसला लिया, जिनमें से ज्यादातर भारत आ चुके हैं। यह तालिबान का खौफ ही था जिसने उन्हें अपना घर, अपनी जमीन, अपने मंदिर, अपनी आस्था और यादों को छोड़ने के लिए मजबूर किया। भारत आने के बाद शरणार्थीय के रूप में नया जीवन शुरू करने जा रहे कई हिंदू अपनी पहचान को लेकर असमंजस की स्थिति में भी हैं। वे खुद को 'अफगान' कहें या 'हिंदू' इसे लेकर फिलहाल कई शरणार्थी संघर्ष कर रहे हैं। अफगानिस्तान में बचे सिर्फ 50 हिंदूरिपोर्ट्स बताती हैं कि 70 के दशक में और सिखों की आबादी 700,000 थी। टोलो न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में यह आबादी सिर्फ 1350 तक सिकुड़ गई। वहीं इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़े के मुताबिक 2020 में अफगानिस्तान में सिर्फ 50 हिंदू और 700 सिख बचे। प्राचीनकाल में अफगानिस्तान मंदिर और गुरुद्वारों के लिए एक सुरक्षित स्थान हुआ करता था। कट्टरपंथियों के शासन के बाद एक तरह जहां लोगों में सार्वजनिक रूप से इन स्थलों के भीतर जाने से खौफ बढ़ा तो वहीं कई पवित्र स्थल निवास स्थानों में बदल गए। कई रिपोर्ट तो यहां तक दावा करती हैं कि अफगानिस्तान में अब सिर्फ दो-चार गुरुद्वारे और सिर्फ एक मंदिर ही बचा है।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3DsTWbk
via IFTTT

https://ift.tt/36CAGd7

रियाद सऊदी अरब के नेतृत्‍व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...