Sunday 28 February 2021

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साइबेरिया रूस के साइ‍बेरिया इलाके में मर्खा नदी के पास आकाश से ली गईं सैटलाइट तस्‍वीरों में रहस्‍यमय धारियां नजर आ रही हैं। इन धारियों को देखकर अमेरिकी अंतरिक्ष नासा के वैज्ञानिक भी हैरान हैं। वैज्ञानिक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इन धारियों के पीछे वजह क्‍या है। नासा के अर्थ ऑब्‍जरवेटरी वेबसाइट पर डाली गईं ताजा तस्‍वीरों में सिलवटदार जमीन नजर आ रही है। नासा ने लैंडसैट 8 से इन तस्‍वीरों को पिछले कई वर्षों में अपने कैमरे में कैद किया है। फोटो में नजर आ रहा है कि मर्खा नदी के दोनों ओर गहरी और हल्‍की दोनों ही तरह की धारियां नजर आ रही हैं। यह रहस्‍यमय प्रभाव सभी चारों ही मौसमों में नजर आ रहा है लेकिन सर्दियों में इसे साफ तरीके से देखा जा सकता है। सर्दियों में बर्फ की वजह से ये एक-दूसरे से अलग रहस्‍यमय धारियां बिल्‍कुल साफ नजर आ रही हैं। साइबेरिया में इस तरह की रहस्‍यमय धारियां क्‍यों नजर आ रही हैं, इसको लेकर वैज्ञानिक भी आश्‍वस्‍त नहीं हैं। विशेषज्ञ साइबेरिया की इन धारियों का बहुत ही विरोधाभासी व्‍याख्‍या कर रहे हैं। एक संभावित व्‍याख्‍या में कहा जा रहा है कि रूस का यह इलाका साल के 90 प्रतिशत दिनों में बर्फ से ढंका रहता है। यहां कुछ समय के लिए ही जमीन दिखाई देती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कभी बर्फ के नीचे दबने और कभी बर्फ के पिघलने पर जमीन के बाहर आने से यह रहस्‍यमय डिजाइन बना है। वहीं नार्वे जैसे इलाके में इस तरह की धारियां साइबेरिया के मुकाबले बहुत छोटी हैं। कुछ अन्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि करोड़ों सालों में जमीन के क्षरण की वजह से ये धारियां पड़ी हैं। अमेरिकी भूगर्भ वैज्ञानिक थॉमस क्राफोर्ड ने नासा से कहा कि ये धारियां चट्टानों की तलछट है। उधर, तस्‍वीरों से नजर आ रहा है कि ये धारियां सर्दियों में ज्‍यादा बड़ी हो जाती हैं। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धारियां अभी भी उनके लिए रहस्‍य हैं।


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इजरायल ने ईरान और सीरिया से जारी तनाव के बीच अपने बॉर्डर्स पर रोबोट स्नाइपर्स और सुसाइड ड्रोन की पूरी फौज तैनात कर दी है। ये ड्रोन कई किलोमीटर दूर बैठे अपने लक्ष्य को पलक झपकते उड़ा सकता है। वहीं, रोबोटिक स्नाइपर रात के अंधेरे में भी बॉर्डर के करीब घुसपैठ करने वालों को सबक सिखाने में सक्षम है। इन हथियारों को इजरायली बॉर्डर के कई इलाकों में तैनात किया गया है। गाजा पट्टी से हमास के लड़ाके अक्सर विस्फोटकों से भरे बैलून को इजरायल की तरफ उड़ाते रहते हैं। यह रोबोटिक स्नाइपर ऐसे बैलूनों को पलक झपकते मारकर गिरा सकता है। हालांकि, इन हथियारों की तैनाती को लेकर इजरायल को कई मानवाधिकार संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। हाल के कुछ साल में इजरायल ने ड्रोन और रोबोटिक टेक्नोलॉजी में बड़ा निवेश किया है। जिसकी मदद से उसने कई ऐसे हथियार बनाए हैं जो दुनिया में किसी और देश के पास नहीं हैं।

Israel Next Generation Weapons: इजरायल ने ईरान और सीरिया से जारी तनाव के बीच अपने बॉर्डर्स पर रोबोट स्नाइपर्स और सुसाइड ड्रोन की पूरी फौज तैनात कर दी है। ये ड्रोन कई किलोमीटर दूर बैठे अपने लक्ष्य को पलक झपकते उड़ा सकता है। वहीं, रोबोटिक स्नाइपर रात के अंधेरे में भी बॉर्डर के करीब घुसपैठ करने वालों को सबक सिखाने में सक्षम है। इन हथियारों को इजरायली बॉर्डर के कई इलाकों में तैनात किया गया है।


बॉर्डर की किलेबंदी में जुटा इजरायल, तैनात किए रोबोट स्नाइपर और सुसाइड ड्रोन की घातक फौज

इजरायल ने ईरान और सीरिया से जारी तनाव के बीच अपने बॉर्डर्स पर रोबोट स्नाइपर्स और सुसाइड ड्रोन की पूरी फौज तैनात कर दी है। ये ड्रोन कई किलोमीटर दूर बैठे अपने लक्ष्य को पलक झपकते उड़ा सकता है। वहीं, रोबोटिक स्नाइपर रात के अंधेरे में भी बॉर्डर के करीब घुसपैठ करने वालों को सबक सिखाने में सक्षम है। इन हथियारों को इजरायली बॉर्डर के कई इलाकों में तैनात किया गया है। गाजा पट्टी से हमास के लड़ाके अक्सर विस्फोटकों से भरे बैलून को इजरायल की तरफ उड़ाते रहते हैं। यह रोबोटिक स्नाइपर ऐसे बैलूनों को पलक झपकते मारकर गिरा सकता है। हालांकि, इन हथियारों की तैनाती को लेकर इजरायल को कई मानवाधिकार संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। हाल के कुछ साल में इजरायल ने ड्रोन और रोबोटिक टेक्नोलॉजी में बड़ा निवेश किया है। जिसकी मदद से उसने कई ऐसे हथियार बनाए हैं जो दुनिया में किसी और देश के पास नहीं हैं।



दुनियाभर में रोबोटिक हथियारों की बढ़ी डिमांड
दुनियाभर में रोबोटिक हथियारों की बढ़ी डिमांड

इजरायल के हेरोप सुसाइड ड्रोन, रॉबेल व्हील बैटलफील्ड रोबोट और ऑटोमेटिक बॉर्डर कंट्रोल मशीनगन ने इजरायल की सुरक्षा को कई गुना बढ़ाया है। यही कारण है कि स्थापना के बाद से अरब देशों के कई हमले झेल चुके इजरायल पर अब कोई भी देश आक्रमण करने की सोचता भी नहीं है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया में हथियारों को उन्नत और ऑटोमेटिक बनाने को लेकर तरह तरह की तकनीकों का विकास किया जा रहा है। हर देश चाहता है कि युद्ध के दौरान उसकी सेना के जवान कम से कम घायल हों या मारे जाएं। यही कारण है कि रोबोटिक हथियार और ड्रोन्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच पिछले साल हुए युद्ध में भी ड्रोन का बड़े पैमाने पर उपयोग देखा गया था। जिसके बाद से पूरी दुनिया में ड्रोन टेक्नोलॉजी को लेकर एक विशेष तेजी देखी गई।



घुसपैठियों को देखते ही मार गिराएगा रोबोट स्नाइपर
घुसपैठियों को देखते ही मार गिराएगा रोबोट स्नाइपर

इजरायल ने गाजा सीमा पर कई टॉवरों पर ऑटोमेटिक रोबोट स्नाइपर गन को तैनात किया है। .5 कैलिबर की ये मशीनगन अपने रेंज में आने वाले दुश्मन को पलक झपकते खत्म कर सकती है। यह मशीनगन सैमसन रिमोट कंट्रोल वेपन सिस्टम पर आधारित है। जिसमें लगे सेंसर ऑटोमेटिक अपने लक्ष्य को ढूंढ सकता है। दूर सुरक्षित दूरी पर बैठा ऑपरेटर इस मशीन के जरिए सीमा पर घुसपैठियों को दिन या रात दोनों समय आसानी से शूट कर सकता है। इन्हें वर्तमान में अलार्म सेंसर वाले स्टील के दरवाजों वाले केबिन में सेट किया जा रहा है।



युद्धक्षेत्र में सुसाइड ड्रोन की ताकत से दुनिया हैरान
युद्धक्षेत्र में सुसाइड ड्रोन की ताकत से दुनिया हैरान

सुसाइड ड्रोन्स गाइडेड मिसाइल और ड्रोन टेक्नोलॉजी से मिलकर बने होते हैं। ये ड्रोन दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसपैठ करने की क्षमता भी रखते हैं। साइज में छोटे और वजन में हल्के होने के कारण अधिकतर रडार इनका सिग्नेचर पकड़ नहीं पाते हैं। इन ड्रोन्स के अंदर बड़ी मात्रा में विस्फोटक भरा होता है। अगर इन्हें लक्ष्य नहीं मिला तो ये वापस बेस पर लौट आते हैं, लेकिन अगर इन्हें हमला करना होता है तो खुद को लक्ष्य से लड़ाकर उसे बर्बाद कर देते हैं। ऐसे हमले में ये ड्रोन पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं। इजरायल के हेरोप ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय सेना भी करती है।



बेहद घातक है इजरायली हेरोप ड्रोन
बेहद घातक है इजरायली हेरोप ड्रोन

इजरायली Harop Kamikaze Drones को कई नाम से जाना जाता है। इसे हीरो-120 या किलर ड्रोन भी कहा जाता है। इसे इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्री के एमबीटी डिविजन ने विकसित किया है। इस ड्रोन का उपयोग अजरबैजान की सेना 2016 की झड़प के दौरान भी कर चुकी है। इस ड्रोन में अलग से कोई मिसाइल नहीं होती है, बल्कि यह ड्रोन खुद में एक मिसाइल है। इसमे लगा हुआ एंटी-रडार होमिंग सिस्टम दुश्मन के रडार को भी जाम कर सकता है। जिससे अगर कोई इस मार नहीं गिराता या अगर इसे अपना लक्ष्य नहीं मिलता है तो यह वापस अपने बेस पर आ जाएगा। लेकिन, अगर इसे अपना लक्ष्य दिख गया तो यह ड्रोन उससे टकराकर खुद को उड़ा लेगा।



1000 किमी तक भर सकता है उड़ान
1000 किमी तक भर सकता है उड़ान

इजरायली Harop ड्रोन एक बार में 6 घंटे की उड़ान भर सकता है। इसे बेस स्टेशन से 1000 किलोमीटर की दूरी तक ऑपरेट किया जा सकता है। इसका समुद्र या जमीन पर टोही गतिविधियों या दुश्मन के खिलाफ मिसाइल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह ड्रोन पहले से तय प्रोग्रामिंग के हिसाब से खुद उड़ान भर सकता है या फिर ऑपरेटर भी इसके निर्धारिक रास्ते को बदल सकता है। इसमें मौजूद इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर के जरिए बेस पर मौजूद ऑपरेटर अपने निशाने को चुन सकता है।





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रूस अपने टी-14 आर्मटा टैंक और घातक बनाने की तैयारियों में जुटा हुआ है। रूसी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया का सबसे शक्तिशाली टैंक आर्मटा अब बिना क्रू मेंबर्स के अपने निशाने पर गोले दागने में सक्षम है। इससे रूस की भविष्य में होने वाले जंग की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल नोर्गोनो काराबाख क्षेत्र में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए युद्ध के बाद टैंकों की उपयोगिता पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कई विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले दिनों में युद्ध के दौरान टैंकों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। भारी वजन के कारण टैंकों के संचालन और रखरखाव में कई मुश्किलें आती हैं। हालांकि, अमेरिका और रूस सहित कई देश अब भी बड़ी संख्या में टैंकों को अपनी सेना में शामिल कर रहे हैं। भारत ने भी कुछ दिन पहले ही अर्जुन एमके-1ए मेन बैटल टैंक के 118 यूनिट के निर्माण का ऑर्डर दिया है।

Russian T-14 Armata Tank: रूस अपने टी-14 आर्मटा टैंक और घातक बनाने की तैयारियों में जुटा हुआ है। रूसी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया का सबसे शक्तिशाली टैंक आर्मटा अब बिना क्रू मेंबर्स के अपने निशाने पर गोले दागने में सक्षम है। इससे रूस की भविष्य में होने वाले जंग की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है।


दुनिया के सबसे शक्तिशाली टैंक T-14 आर्मटा को महाविनाशक बना रहा रूस, अब ऑटोमेटिक दागेगा गोले

रूस अपने टी-14 आर्मटा टैंक और घातक बनाने की तैयारियों में जुटा हुआ है। रूसी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया का सबसे शक्तिशाली टैंक आर्मटा अब बिना क्रू मेंबर्स के अपने निशाने पर गोले दागने में सक्षम है। इससे रूस की भविष्य में होने वाले जंग की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल नोर्गोनो काराबाख क्षेत्र में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए युद्ध के बाद टैंकों की उपयोगिता पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कई विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले दिनों में युद्ध के दौरान टैंकों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। भारी वजन के कारण टैंकों के संचालन और रखरखाव में कई मुश्किलें आती हैं। हालांकि, अमेरिका और रूस सहित कई देश अब भी बड़ी संख्या में टैंकों को अपनी सेना में शामिल कर रहे हैं। भारत ने भी कुछ दिन पहले ही अर्जुन एमके-1ए मेन बैटल टैंक के 118 यूनिट के निर्माण का ऑर्डर दिया है।



रिमोट कंट्रोल से ऑपरेट हो सकता है टी-14 आर्मटा टैंक
रिमोट कंट्रोल से ऑपरेट हो सकता है टी-14 आर्मटा टैंक

टी-14 आर्मटा टैंक को हाल में ही रिमोट कंट्रोल के जरिए टेस्ट किया गया है। जिसमें दूर बैठे इसके चालक दल न रिमोट कंट्रोल से इस टैंक को बखूबी चलाया है। रिमोट कंट्रोल के कारण इस टैंक के क्रू सैकड़ों लीटर फ्यूल और टैंकों के गोले की रेंज से बाहर सुरक्षित रहेंगे। दरअसल, अक्सर यह देखा जाता है कि शॉर्ट सर्किट या किसी लापरवाही के कारण टैंक के फ्यूल या विस्फोटकों में आग लग जाती है और इसका खामियाजा टैंकों के अंदर बैठे क्रू को भुगतना पड़ता है। लेकिन, दूर से इस टैंक को ऑपरेट करने के दौरान न तो दुश्मनों के एंटी टैंक मिसाइलों और न ही किसी दुर्घटना से इन चालकों को कोई खतरा होगा।



बिना क्रू के दुश्मनों के टैंक्स को बना सकता है निशाना
बिना क्रू के दुश्मनों के टैंक्स को बना सकता है निशाना

सैन्य निर्माण से जुड़े सूत्रों के हवाले से रूसी न्यूज एजेंसी स्पूतनिक ने कहा कि जंग के मैदान में टी -14 आर्मटा टैंक बिना क्रू की मौजूदगी के अपने लक्ष्यों को खोजने और उन्हें बर्बाद करने में सक्षम है। इस परीक्षण के दौरान टी -14 ने सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों को बर्बाद कर दिया। रूस के सैन्य इतिहास में यह पहला मौका है जब दूर बैठे चालक दल ने रिमोट कंट्रोल के जरिए ऑपरेट करते हुए किसी टैंक का परीक्षण किया है। जिसके बाद यह कहा जा रहा है कि इस टैंक का गनर दुश्मनों के इलाके से दूर बैठकर उनपर निशाना साध सकता है। इससे युद्ध के दौरान होने वाली जनहानि से बचा जा सकता है।



एक साथ कई टॉरगेट को कर सकता है लॉक
एक साथ कई टॉरगेट को कर सकता है लॉक

रूस के टी-14 आर्मटा टैंक के फायर कंट्रोल सिस्टम (एफसीएस) में एक डिजिटल कैटलॉग है। जिसके जरिए दुश्मनों के टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां और हेलीकॉप्टरों की स्पेशल सिग्नेचर का पता लगाया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एलिमेंट्स मशीन के ऑनबोर्ड कंप्यूटिंग सुविधाओं के जरिए यह टैंक स्वतंत्र रूप से अपने लक्ष्य को खोजने में सक्षम है। एक साथ कई लक्ष्यों को पहचानने के बाद यह टैंक प्राथमिकता के आधार पर अपने टॉरगेट पर फायरिंग कर सकता है। रूसी मीडिया का दावा है कि ऐसी क्षमता वाला कोई भी दूसरा टैंक किसी भी देश के पास नहीं है।



कितना खतरनाक है टी-14 आर्मटा टैंक
कितना खतरनाक है टी-14 आर्मटा टैंक

टी-14 आर्माटा टैंक रूसी सेना का मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) है। 80 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड से चलने वाली इस टैंक का वजन करीब 55 टन है। इस टैंक को पहली बार 2015 में बनाया गया था। तब से लेकर अब तक रूसी सेना के परेड में कई बार इन टैंकों को प्रदर्शित किया जा चुका है। रूस की आर्मटा को नेक्स्ट जेनरेशन का टैंक माना जाता है।यह टैंक 125 एमएम के स्मूथबोर कैनन से लैस होती है, जो 10 से 12 राउंड प्रति मिनट के दर से गोले दागने में सक्षम है। इस टैंक से एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल को भी फायर किया जा सकता है, जो दुश्मन के लो फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स जैसे हेलिकॉप्टर या छोटे ड्रोन का मार गिराने में सक्षम है। अभी तक इस टैंक के केवल 20 यूनिट को ही बनाया जा सका है। हालांकि, रूसी सेना इसके भी अपडेट वर्जन टी-15 आर्मटा का उपयोग कर रही है।



रूस ने तैनात किया घातक टर्मिनेटर टैंक
रूस ने तैनात किया घातक टर्मिनेटर टैंक

रूस ने बाल्टिक सागर में अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने अचूक निशाने वाले बीएमपीटी -72 टर्मिनेटर टैंक को तैनात कर दिया है। यह टैंक गोले बरसाने के साथ दुश्मनों के हेलिकॉप्टर और कम स्पीड से उड़ने वाले विमानों को भी मार गिराने में सक्षम है। इन टैंको को रूस के केंद्रीय सैन्य जिले में तैनात किया गया है। इस टैंक को रूस की कंपनी Uralvagonzavod ने बनाया है। टर्मिनेटर के नाम से मशहूर यह टैंक शहरी क्षेत्र में लड़ाई के दौरान अपने दूसरे साथी टैंक्स और ऑर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल को नजदीकी सहायता प्रदान करता है। जिससे दुश्मनों के हेलिकॉप्टर, ड्रोन या कम ऊंचाई पर उड़ने वाले दूसरे हवाई जहाज निशाना नहीं बना पाते हैं। BMPT-72 टैंक को पहली बार 2013 में रूसी आर्म्स एक्सपो में प्रदर्शित किया गया था।



सीरिया में टर्मिनेटर ने दिखाई थी अपनी ताकत
सीरिया में टर्मिनेटर ने दिखाई थी अपनी ताकत

टर्मिनेटर टैंक एक कॉम्बेट प्रूवन वेपन है। यानी युद्ध क्षेत्र में भी इस टैंक की महारत को साबित किया गया है। रूस ने इसे 2017 में सीरिया के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में तैनात किया गया था। सीरिया के हेममीम हवाई अड्डे पर जब सीरियाई राष्ट्रपति बशर असद रूसी चीफ ऑफ जनरल जनरल वलेरी गेरासिमोव से मिले थे, तब उन तस्वीरों में यह टैंक दिखाई दिया था। टर्मिनेटर टैंक के प्रमुख हथियारों में 130 एमएम की एटाका-30 मिसाइल लॉन्चर दो 30 मिमी 2 ए 42 ऑटो-तोप शामिल हैं। जबकि, इस टैंक के दूसरे हथियारों में दो 30 मिमी एजी -17 डी ग्रेनेड लांचर और 7.62 मिमी पीकेटीएम मशीन गन हैं। इस टैंक को रूस की प्रसिद्ध टी-72 मेन बैटल टैंक के चेचिस पर बनाया गया है। टी-72 टैंक का उपयोग रूस-भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में किया जाता है। भारत समेत कई देश ऐसे भी हैं जो इस टैंक को लाइसेंस के तहत अपने ही देश में बनाते भी हैं।





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वॉशिंगटन अमेरिका में एक डॉक्‍टर के मरीज का ऑपरेशन करते समय जूम पर वर्चुअल कोर्ट में चल रही सुनवाई में उपस्थित होने पर बवाच मच गया है। अब डॉक्‍टर के खिलाफ जांच शुरू हो गई है। कैलिफोर्निया के एक प्‍लास्टिक सर्जन डॉक्‍टर स्‍कॉट ग्रीन जूम पर एक ट्रैफिक कोर्ट में गुरुवार को चल रही सुनवाई में पेश हुए थे। इस दौरान वह एक मरीज का ऑपरेशन भी कर रहे थे। कोरोना वायरस की वजह से यह सुनवाई वर्चुअली जूम पर हुई थी। सोशल मीडिया पर जमकर शेयर किए जा रहे वीडियो में डॉक्‍टर ग्रीन ऑपरेशन के दौरान पहने जाने वाले कपड़े में दिखाई दे रहे हैं। सुनवाई के दौरान जब डॉक्‍टर ग्रीन पेश हुए तो क्‍लर्क ने उनसे पूछा, 'क्‍या आप सुनवाई के लिए उपस्थित हैं? ऐसा लग रहा है कि आप अभी ऑपरेशन रूम में हैं।' 'डॉक्‍टर के खिलाफ मरीज को मुकदमा करना चाहिए' डॉक्‍टर ग्रीन ने बताया कि हां, वह अभी सर्जरी कर रहे हैं लेकिन सुनवाई के लिए उपस्थित हैं। उन्‍होंने कहा, 'मैं उपस्थित हूं सर। हां मैं अभी ऑपरेशन रूम में हूं। हां, मैं अभी सुनवाई के लिए उपस्थित हूं। आप आगे बढ़ सकते हैं।' जब पीठासीन आयुक्‍त ने डॉक्‍टर से उनके कदम का औचित्‍य पूछा तो उन्‍होंने कहा कि मेरे साथ एक और सर्जन हैं जो अभी सर्जरी कर रहे हैं।' सर्जरी के कमरे से डॉक्‍टर के सुनवाई का यह अनोखा वीडियो अब तक लाखों लोग सोशल मीडिया पर देख चुके हैं। कई यूजर डॉक्‍टर के कदम को गैर जिम्‍मेदाराना बता रहे हैं। यही नहीं वे कह रहे हैं कि डॉक्‍टर के खिलाफ ऑपरेशन कक्ष में मौजूद मरीज को मुकदमा करना चाहिए। इस मुकदमें से डॉक्‍टर का लाइसेंस रद्द हो जाएगा।


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फ्लोरिडा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वाइट हाउस छोड़ने के बाद पहली बार सार्वजनिक तौर पर मौजूदगी दर्ज करवाते हुए अपनी पार्टी को लेकर बड़ा ऐलान कर दिया। फ्लोरिडा में कन्जर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ़्रेंस (सीपीएसी) को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा कि वह नई पार्टी नहीं बनाएंगे। उन्होंने अमेरिका के नए राष्ट्रपति पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी अमेरिका फर्स्ट की नीति अमेरिका लास्ट में पहुंच गई है। चुनाव में जीत का दावा दोहराया ट्रंप ने सीपीएसी को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अपनी जीत की झूठे दावे को एक बार फिर से दोहराया। उन्होंने इसके साथ ही 2024 में होने वाले अगले राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर से रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने के संकेत दे दिए हैं। ट्रंप ने कहा कि आज मैं आपके सामने आया हूं यह घोषणा करने के लिए 4 साल पहले जिस अतुलनीय यात्रा को हमने शुरू किया था, वह अभी समाप्त नहीं हुई है। बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हम यहां अपने मूवमेंट, अपनी पार्टी और अपने प्यारे देश के भविष्य के बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। लोगों से पूछा- आप मुझे मिस करते हो? ट्रंप ने अपनी बात शुरू करने से पहले कॉन्फ्रेंस में मौजूद जनसभा से पूछा- क्या आप मुझे मिस करते हैं? और फिर अपनी बात शुरू की। ट्रंप ने साथ ही अभी स्पष्ट किया कि वह कोई नई पार्टी नहीं बनाने करने जा रहे हैं। ट्रंप ने इस दौरान चुनाव की अपने झूठ को एक बार फिर से दोहराया। उन्होंने कहा, 'डेमोक्रेट्स चुनाव हार गए थे। किसे पता कि मैं तीसरी बार उन्हें हराने का फैसला भी ले सकता हूं। इसके साथ ही ट्रंप ने 2024 की अपनी योजना के बारे में संकेत भी दे दिए। जो बाइडन पर जमकर साधा निशाना ट्रंप ने इसके साथ ही मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आधुनिक इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति का पहला कार्यकाल इतना खराब रहा है। बाइडन प्रशासन ने यह साबित किया है कि वे नौकरी विरोधी, परिवार विरोधी, बॉर्डर विरोधी, एनर्जी विरोधी, महिला विरोधी और विज्ञान विरोधी हैं। एक ही महीने में हम 'अमेरिका फर्स्ट' से 'अमेरिका लास्ट' पर पहुंच गए हैं। ट्रंप के बेटे और उनके खास नेता हुए शामिल सीपीएसी सालाना कॉन्फ्रेंस है, जिसमें अमेरिका के कंजरवेटिव नेता हिस्सा लेते हैं। इसमें रिपब्लिकन पार्टी के कई अन्य नेताओं ने हिस्सा लिया, जिसमें पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो, टेक्सस से सीनेटर टेड क्रूज के अलावा उनके बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर मौजूद थे।


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तेल अवीव इजरायल के डॉक्‍टरों ने कहा है कि गर्भ में पल रहे ए‍क बच्‍चे को मां से कोरोना वायरस हो गया जिससे उसकी मौत हो गई। इस महिला का बच्‍चा 36 सप्‍ताह का हो गया था। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद महिला को शनिवार को इजरायल के मेइर मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया। डॉक्‍टरों ने जल्‍द ही पाया कि महिला के गर्भ में पल रहे बच्‍चे की मौत हो गई है। बाद में जांच की गई तो पता चला कि बच्‍चा भी मां के साथ कोरोना वायरस संक्रमित हो गया था। द टाइम्‍स ऑफ इजरायल की खबर के मुताबिक डॉक्‍टरों ने अभी इस बात की पुष्टि नहीं की है कि कोरोना वायरस से ही बच्‍चे की मौत हुई है। अभी कुछ सप्‍ताह पहले ही एक अजन्‍मी बच्‍ची की मौत हो गई थी। इस बच्‍ची की मां कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई थीं और गर्भनाल के जरिए बच्‍ची भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गई थी। स्‍थानीय मीडिया के मुताबिक यह बच्‍ची 25 सप्‍ताह की थी। दुनियाभर में अपनी तरह का दुर्लभ मामला इजरायल में यह अपनी तरह का पहला मामला था और दुनियाभर में अपनी तरह का दुर्लभ मामला था। अस्‍पताल के संक्रामक विभाग के प्रमुख डॉक्‍टर ताल ब्रोश ने कहा कि भ्रूण गर्भनाल के जरिए कोरोना वायरस की चपेट में आ गया था और इस बात की पूरी आशंका है कि उसकी कोरोना वायरस से मौत हुई है। उन्‍होंने कहा कि अब तक तीन महिलाएं यहां आई थीं जिन्‍हें कोरोना वायरस था लेकिन उनके गर्भ में पल रहे बच्‍चे इस वायरस की चपेट में नहीं आए। डॉक्‍टर ब्रोश ने कहा कि यदि मां को कोरोना वैक्‍सीन लग गया होता तो इससे बचा जा सकता था। उधर, पीड़‍ित मां ने कहा कि उसे संक्रमण बचाना चाहिए था और उन्‍होंने डॉक्‍टरों को धन्‍यवाद‍ दिया जो काफी मददगार रहे। डॉक्‍टर तोबिन ने कहा, 'यह भ्रूण के अंदर अंतर्गर्भाशयी संक्रमण था। इससे गर्भनाल में संक्रमण होता है और मौत हो जाती है।' उन्‍होंने कहा कि यह अपनी तरह का दुर्लभ मामला है क्‍योंकि आमतौर पर बच्‍चे के जन्‍म के बाद उसे कोरोना संक्रमण हो रहा है।


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लंदन इंग्लैंड के एक्सेटर शहर में रविवार को के जमाने के महाविनाशक बम को डिफ्यूज करने के लिए सेना ने पूरे शहर को ही खाली करा लिया। जब इस बम को रिमोट कंट्रोल के जरिए उड़ाया गया तो उसकी धमक इतनी जोरदार थी कि कई किलोमीटर दूर स्थित घरों की खिड़कियों के शीशे टूट गए। रिहायशी इलाके में 900 किलोग्राम के इस बम के मिलने के बाद आसपास के इलाके में सघन तलाशी अभियान भी चलाया जा रहा है। ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि इस इलाके में और भी जिंदा बम मिल सकते हैं, जिन्हें अगर समय पर खोजा नहीं गया तो कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है। आसपास के लोगों को अभी घर जाने की नहीं मिली अनुमति शुक्रवार को द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने के इस बम को निष्क्रिय करने के दो दिन बाद भी आसपास के निवासियों को उनके घरों को लौटने की इजाजत नहीं दी गई है। पुलिस का कहना है कि सिक्योरिटी ऑडिट करन के बाद ही हम किसी भी व्यक्ति को उस इलाके में जाने देंगे। माना जा रहा है कि इस बम को जर्मनी के हिटलर की नाजी सेना ने ब्रिटेन के एक्सेटर शहर पर गिराया था। इस बम को शुक्रवार को एक्सेटर यूनिवर्सिटी के कंपाउंड में खोजा गया था। दो दिन में पूरे इलाके को कराया गया खाली बम की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचे बम डिस्पोजल स्क्वाड और पुलिस ने पूरे इलाके को खाली करा लिया था। उन्होंने यूनिवर्सिटी के 1400 छात्रों समेत ग्लेनहॉर्न रोड के क्षेत्र में लगभग 2600 घरों में रहने वाले लोगों को शुक्रवार और शनिवार को इलाके से दूर सुरक्षित जगहों पर जाने के निर्देश दिए गए थे। इस बम को नियंत्रित विस्फोट के जरिए रविवार शाम 6 बजकर 10 मिनट पर डिफ्यूज किया गया। यह धमाका इतना शक्तिशाली था कि इसी गूंज लगभग 10 किलोमीटर दूर तक सुनी गई। आसपास के घरों को पहुंचा भारी नुकसान स्थानीय पुलिस ने लोगों को आदेश दिया है कि अभी उन्हें कई दिनों तक इस इलाके से दूर रहना पड़ सकता है। पूरी तरह से सुरक्षा जांच के बाद ही किसी को भी आने की इजाजत दी जाएगी। इस विस्फोट के कारण आसपास के कई घरों की खिड़कियां और दीवार टूट गए हैं। इससे इन घरों के गिरने का भी खतरा पैदा हो गया है। स्थानीय टीम पूरे इलाके के घरों की मरम्मत के काम मे भी जुटी है। घटना का वीडियो वायरल इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें धमाके के बाद उड़ते मलबे को दिखाया गया है। रॉयल नेवी बम डिस्पोजल टीम के विशेषज्ञों ने इस बम को कंट्रोल तरीके से निष्क्रिय किया। अब पूरे इलाके की जांच की जा रही है।


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यूरोपीय देशों में अमेरिकी सेना की बढ़ती धमक के बीच रूस ने भी अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाना शुरू कर दिया है। रूस की कई परमाणु पनडुब्बियां बाल्टिक सागर और कारा सागर के इलाके में जबरदस्त गश्त कर रही हैं। इतना ही नहीं, रूसी नौसेना में 2019 में शामिल दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु पनडुब्बी बेलगोरोड की भी रणनीतिक तैनाती की जा चुकी है। स्पेशल मिशन को अंजाम देने में माहिर इस पनडुब्बी में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात हैं, जो पलक झपकते वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों को खत्म कर सकती है। इसी हफ्ते अमेरिका ने अपने परमाणु बॉम्बर्स की एक टीम को रूस के नजदीक नॉर्वे में तैनात किया है। जिसके बाद से ही दोनों देशों में तनाव और बढ़ गया है। इन दिनों राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोधी एलेक्सी नवलनी की गिरफ्तारी के बाद से रूस और यूरोपीय देशों के बीच भी तनाव जारी है। ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग से रूस चिंतित है और अपनी सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है।

यूरोपीय देशों में अमेरिकी सेना की बढ़ती धमक के बीच रूस ने भी अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाना शुरू कर दिया है। रूस की कई परमाणु पनडुब्बियां बाल्टिक सागर और कारा सागर के इलाके में जबरदस्त गश्त कर रही हैं। इतना ही नहीं, रूसी नौसेना में 2019 में शामिल दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु पनडुब्बी बेलगोरोड की भी रणनीतिक तैनाती की जा चुकी है।


रूस की सीक्रेट परमाणु पनडुब्बी से दहशत में दुनिया, ताकत इतनी कि वॉशिंगटन को कर दे खाक

यूरोपीय देशों में अमेरिकी सेना की बढ़ती धमक के बीच रूस ने भी अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाना शुरू कर दिया है। रूस की कई परमाणु पनडुब्बियां बाल्टिक सागर और कारा सागर के इलाके में जबरदस्त गश्त कर रही हैं। इतना ही नहीं, रूसी नौसेना में 2019 में शामिल दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु पनडुब्बी बेलगोरोड की भी रणनीतिक तैनाती की जा चुकी है। स्पेशल मिशन को अंजाम देने में माहिर इस पनडुब्बी में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात हैं, जो पलक झपकते वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों को खत्म कर सकती है। इसी हफ्ते अमेरिका ने अपने परमाणु बॉम्बर्स की एक टीम को रूस के नजदीक नॉर्वे में तैनात किया है। जिसके बाद से ही दोनों देशों में तनाव और बढ़ गया है। इन दिनों राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोधी एलेक्सी नवलनी की गिरफ्तारी के बाद से रूस और यूरोपीय देशों के बीच भी तनाव जारी है। ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग से रूस चिंतित है और अपनी सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है।



6 परमाणु टॉरपीडो से रेकी और हमला कर सकती है बेलगोरोड पनडुब्बी
6 परमाणु टॉरपीडो से रेकी और हमला कर सकती है बेलगोरोड पनडुब्बी

604 फीट लंबी बेलगोरोड पनडुब्बी में छह की संख्या में पोसिडन लॉन्ग रेंज स्ट्रैटजिक न्यूक्लियर टॉरपीडो तैनात होते हैं। इस टॉरपीडो के जरिए रूसी नौसेना खुफिया जानकारी जुटाती है। यह एक अनमैंड अंडरवॉटर व्हीकल है, जो दुश्मन के इलाके में घुसकर खुफिया जानकारी इकट्ठा कर सकता है। पोसिडन को स्टेटस-6 ओशेनिक मल्टीपरपज सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अंडरवॉटर ड्रोन दुश्मनों के ठिकानों पर परंपरागत और परमाणु मिसाइलों के साथ हमला करने में भी सक्षम है। ऐसी स्थिति में रूस की बेलगोरोड पनडुब्बी दुश्मन के जद से काफी दूर रहते हुए उनके ठिकानों की न केवल रेकी कर सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर बर्बाद भी कर सकती है। पोसिडन अंडरवॉटर ड्रोन को 2018 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया के सामने पेश किया था।



1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है यह पनडुब्बी
1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है यह पनडुब्बी

बेलगोरोड पनडुब्बी समुद्र में 1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है। इतनी गहराई पर केवल कुछ ही देशों की पनडुब्बियां जा सकती हैं। 1700 फीट की गहराई तक गोता लगाने के कारण दुश्मन देशों के रडार और सोनार इसका पता बहुत मुश्किल से लगा पाएगें। ऐसे में अगर यह पनडुब्बी अमेरिका के नजदीक पहुंच जाती है तो यूएस नेवी के लिए इसे डिटेक्ट करना मुश्किल हो सकता है। इस पनडुब्बी को आधिकारिक तौर पर प्रोजेक्ट -09852 के तहत बनाया गया था। इसे मूल रूप से मूल रूप से ऑस्कर-2 क्लास की क्रूज मिसाइल पनडुब्बी से विकसित कर स्पेशल मिशन पनडुब्बी के रूप में विकसित किया गया है। इस पनडुब्बी के पानी के विस्थापन अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बियों से 50 फीसदी अधिक है।



अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी के नाम से प्रसिद्ध है यह पनडुब्बी
अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी के नाम से प्रसिद्ध है यह पनडुब्बी

यह पनडुब्बी इतने गुपचुप तरीके से अपने मिशन को अंजाम देगी कि इसे रूस का अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी नाम दिया गया है। बेलगोरोड पनडुब्बी के कप्तान सीधे राष्ट्रपति पुतिन को रिपोर्ट करेंगे। विशेषज्ञों ने संभावना जताई है कि अगर इन परमाणु तारपीडो में से किसी एक का भी प्रयोग किया जाता है तो समुद्र में रेडियोएक्टिव सुनामी आ सकती है। इस पनडुब्बी की तैनाती अमेरिका समेत कई देशों के लिए खतरा बन सकती है। बेलगोरोड पनडुब्बी 80 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकती है। जो समुद्र के भीतर 1700 फीट गहराई तक जा सकेगी। इस पनडुब्बी को सोनार से पता लगाना बहुत मुश्किल है।



दो मेगाटन के परमाणु बमों से कर सकती है हमला
दो मेगाटन के परमाणु बमों से कर सकती है हमला

इसमें लगे तारपीडो अपने साथ दो मेगाटन के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। इनकी क्षमता अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 130 गुना ज्यादा है। सोवियत संघ के विघटित होने के बाद से रूस कमजोर हो गया था। इसके अलावा अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया था। इस समय एक बार फिर दुनिया के कई देशों को हथियारों की सप्लाई कर फिर से अपना प्रभुत्व कायम करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, अमेरिका काट्सा जैसे नए प्रतिबंधों को लाकर दुनियाभर के देशों को रूप से हथियार न खरीदने की धमकी दे रहा है। यही कारण है कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिकी प्रशासन ने भारत को भी परोक्ष रूप से रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम न खरीदने को कहा है।



कितनी ताकतवर है अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी
कितनी ताकतवर है अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी

परमाणु शक्ति से चलने वाली गाइडेड मिसाइल सबमरीन यूएसएस ओहियो आकार और प्रहार दोनों के मामले में दुनिया के शीर्ष हथियारों में से एक है। लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ सिद्धार्थ कौशल के अनुसार, अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसपैठ कर सैनिकों और मिसाइलों से हमला कर सकती है। अमेरिका के ओहियो क्लास की पनडुब्बियों में यूएसएस ओहियो के अलावा यूएसएस मिशिगन, यूएसएस फ्लोरिडा और यूएसएस जॉर्जिया शामिल हैं। ये सभी पनडुब्बियां घातक एंटी शिप मिसाइलों से लैस हैं और इनमें दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाव करने की भी सबसे आधुनिक तकनीकी लगी हुई है। इस पनडुब्बी में पहले परमाणु मिसाइलों को भी लगाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हटाकर दूसरी इंटरकॉन्टिनेंटर बैलिस्टिक मिसाइलों को लगाया गया है। ओहियो को ताकत देने के लिए एक परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है, जो इसके दो टर्बाइनों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।





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वॉशिंगटन लद्दाख में जारी तनाव के दौरान चीन अपने हैकर्स की मदद से भारत में ब्लैकआउट कराने की फिराक में था। अमेरिकी मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक स्टडी के हवाले से दावा किया है कि चीनी हैकर्स की फौज ने अक्टूबर में मात्र पांच दिनों के अंदर भारत के पॉवर ग्रिड, आईटी कंपनियों और बैंकिंग सेक्टर्स पर 40500 बार साइबर अटैक किया था। इस स्टडी में कहा गया है कि जून में गलवान घाटी झड़प के चार महीन बाद 12 अक्टूबर को मुंबई में हुए ब्लैकआउट में चीन का हाथ था। चीनी साइबर अटैक से गई थी मुंबई की बिजली? दरअसल, यह भारत के पावर ग्रिड के खिलाफ एक व्यापक चीनी साइबर अभियान के हिस्से के रूप में चलाई जा रहे कैंपन का परिणाम था। चीन यह दिखाने की कोशिश में था कि अगर सीमा पर उसके खिलाफ कार्रवाई की गई तो वह भारत के अलग-अलग पावर ग्रिड पर मैलवेयर अटैक कर उन्हें बंद कर देगा। इस स्टडी में यह भी बताया गया है कि उन दिनों चीनी मैलवेयर भारत में बिजली की सप्लाई को नियंत्रित करने वाली प्रणालियों में घुस चुके थे। जिसमें हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन सबस्टेशन और थर्मल पावर प्लांट भी शामिल थे। अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी कंपनी का दावा अमेरिका की साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकॉर्डेड फ्यूचर (Recorded Future) की रिपोर्ट में भारत के बिजली सप्लाई लाइन में चीन की घुसपैठ का दावा किया गया है। यह कंपनी सरकारी एजेंसियों के साथ इंटरनेट के उपयोग की स्टडी करती है। कंपनी को बताया गया कि अधिकतर चीनी मैलवेयर कभी भी एक्टिवेट ही नहीं किए गए थे। हालांकि, रिकॉर्डेड फ्यूचर भारत के पावर सिस्टम के अंदर नहीं पहुंच सकता था इसलिए इसकी जांच नहीं की जा सकी। पावर ग्रिड और ट्रांसमिशन लाइन में चीनी हैकर्स ने की थी घुसपैठ रिकॉर्डेड फ्यूचर के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर स्टुअर्ट सोलोमन ने कहा कि चीन की सरकारी हैकर्स की रेड इको नाम की फर्म ने गुपचुप तरीके से भारत के एक दर्जन से ज्यादा पावर जनरेशन और ट्रांसमिशन लाइन मे घुसपैठ के लिए अडवांस साइबर हैकिंग के तकनीकों का व्यवस्थित रूप से उपयोग किया था। उस समय ही मुंबई में पावर ग्रिड फेल होने से बिजली सप्लाई बाधित हो गई थी। हालांकि, यह साबित नहीं किया जा सका था कि क्या इसके पीछे साइबर अटैक था या कोई दूसरी वजह। 12 अक्टूबर को क्या हुआ था मुंबई में? 12 अक्टूबर 2020 की सुबह मुंबई में अचानक से बिजली सप्लाई बंद होने से हड़कंप मच गया था। कभी न रुकने वाली मुंबई अचानक थम सी गई थी। बिजली जाने से कोरोना की मार झेल रहे मुंबई के अस्पतालों में वेंटिलेटर्स काम करना बंद कर दिए थे। ऑफिसों में बिजली चले जाने से अंधेरा हो गया था। हालांकि, 2 घंटे के मशक्कत के बाद फिर से पावर सप्लाई को चालू कर दिया गया था।


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रंगून म्‍यांमार में सैन्‍य तख्‍तापलट के बाद अब हालात जंग जैसे होते जा रहे हैं। पुलिस की कार्रवाई में 18 लोगों के मारे जाने के बाद भी म्‍यांमार की नेता आंग सांग सू की के समर्थक हजारों की तादाद में सड़कों पर डटे हुए हैं। तख्‍तापलट के बाद रविवार का दिन सबसे हिंसक रहा और संयुक्‍त मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 18 लोग मारे गए हैं। सुरक्षा बलों की गोलीबारी में यंगून, दवेई और मांडले शहरों से लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। अमेरिका समेत दुनियाभर के कई देशों ने इस हिंसा पर गंभीर चिंता जताई है। मानवाधिकार कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि इस बात की ‘पुख्ता जानकारी’ है कि म्‍यांमार में तख्तापलट का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर हुई कार्रवाई में कम से कम 18 लोग मारे गए है और 30 से अधिक घायल हुए है। बताया जा रहा है कि पुलिस ने म्‍यांमार के सबसे बड़े शहर यांगून में गोलियां चलाईं और प्रदर्शनकारियों को सड़कों से हटाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे तथा पानी की बौछार की। इस बीच खूनी हिंसा से भड़के अमेरिका ने कहा है कि वह म्‍यांमार के खिलाफ 'अतिरिक्‍त कार्रवाई' करेगा। उन्‍होंने कहा कि इस संबंध में अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों के साथ विचार विमर्श करेगा ताकि हिंसा के जिम्‍मेदार लोगों को जिम्‍मेदार ठहराया जा सके। सोशल मीडिया में शेयर किए जा रहे फुटेज में यह दिखाई पड़ रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जमकर तांडव किया है जिसमें कई लोग लहूलुहान हो गए। शनिवार से शुरू हुआ पुलिस का दमनचक्र रविवार को अपने चरम पर पहुंच गया जिसमें 18 लोग अब तक मारे गए हैं। पुलिसिया हिंसा के बाद भी लोग पीछे हटते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं। प्रदर्शनकारी देश की नेता आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार को सत्ता सौंपने की मांग कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने एक बयान में म्‍यांमार के कई शहरों का जिक्र करते हुए कहा, ‘यांगून, दावेई, मांडले, म्यीक, बागो और पोकोक्कु में भीड़ पर गोलीबारी किये जाने से कई लोगों की मौत हुई है।’ बयान में कार्यालय प्रवक्ता रविना शामदसानी के हवाले से कहा गया है, ‘हम म्यांमार में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की कड़ी निंदा करते हैं और सेना से शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ बल का इस्तेमाल तुरन्त बंद किये जाने का आह्वान करते है।’ एसोसिएटेड प्रेस के एक पत्रकार को विरोध प्रदर्शनों की कवरेज करते हुए शनिवार सुबह पुलिस हिरासत में ले लिया गया। पत्रकार थीन ज़ॉ, पुलिस हिरासत में है। ‘डेमोक्रेटिक वॉयस ऑफ बर्मा’ (डीवीबी) की खबर के अनुसार म्यांमा में शाम पांच बजे तक नौ शहरों में 19 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि अन्य 10 मौतों की पुष्टि नहीं हुई है। डीवीबी के अनुसार यांगून में पांच लोगों और मांडले में दो लोगों की मौत हुई है। स्थानीय मीडिया के खबर के अनुसार दावेई में पांच लोगों की मौत होने की खबर है। तीन लोगों की मौत विरोध मार्च के दौरान हुई है। सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें वायरल हो रहीं हैं, जिनमें कारतूस के खोखे दिखाई दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर सामने आई खबरों में एक युवक की पहचान हुई है और ऐसा माना जा रहा है कि यह युवा यांगून में मारा गया है। तस्वीरों में उसका शव दिखाई दे रहा है।


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फ्लोरिडा वाइट हाउस से निकलने के बाद पहली बार सार्वजनिक तौर पर सामने आए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति () ने चुनाव में अपनी जीत की झूठी बात को एक बार फिर से दोहराया है। उन्होंने इसके साथ ही 2024 में होने वाले अगले राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर से रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने के संकेत दे दिए हैं। फ्लोरिडा में 2021 कंजर्वेटिव पॉलीटिकल ऐक्शन कॉन्फ्रेंस में शिरकत करने आए ट्रंप ने कहा, 'आज मैं आपके सामने आया हूं यह घोषणा करने के लिए 4 साल पहले जिस अतुलनीय यात्रा को हमने शुरू किया था, वह अभी समाप्त नहीं हुई है। बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हम यहां अपने मूवमेंट, अपनी पार्टी और अपने प्यारे देश के भविष्य के बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। ट्रंप ने अपनी बात शुरू करने से पहले कॉन्फ्रेंस में मौजूद जनसभा से पूछा- क्या आप मुझे मिस करते हैं? और फिर अपनी बात शुरू की। ट्रंप ने साथ ही अभी स्पष्ट किया कि वह कोई नई पार्टी नहीं बनाने करने जा रहे हैं। ट्रंप ने इस दौरान चुनाव की अपने झूठ को एक बार फिर से दोहराया। उन्होंने कहा, 'डेमोक्रेट्स चुनाव हार गए थे। किसे पता कि मैं तीसरी बार उन्हें हराने का फैसला भी ले सकता हूं। इसके साथ ही ट्रंप ने 2024 की अपनी योजना के बारे में संकेत भी दे दिए। ट्रंप ने इसके साथ ही मौजूदा राष्ट्रपति पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'आधुनिक इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति का पहला कार्यकाल इतना खराब रहा है। बिडेन प्रशासन ने यह साबित किया है कि वे नौकरी विरोधी, परिवार विरोधी, बॉर्डर विरोधी, एनर्जी विरोधी, महिला विरोधी और विज्ञान विरोधी हैं। एक ही महीने में हम 'अमेरिका फर्स्ट' से 'अमेरिका लास्ट' पर पहुंच गए हैं।


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लंदन में ब्रिटिश रिसर्च स्टेशन के पास एक विशाल हिमखंड टूट गया है। ने बताया है कि बर्फ के इस टुकड़े का क्षेत्रफल 1,270 वर्ग किलोमीटर है। बताया जा रहा है कि यह घटना 26 फरवरी को हुई थी। लेकिन, इससे ब्रिटिश रिसर्च सेंटर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है क्योंकि आर्कटिक की सर्दियों के कारण इस स्टेशन को बंद किया गया है। हालात का जायजा ले रही ब्रिटिश एजेंसियां घटना के बाद से ब्रिटिश एजेंसियां पूरे इलाके का हवाई सर्वेक्षण कर हालात का जायजा ले रही हैं। इतने बड़े आकार के हिमखंड के टूटने से तहलका मचा हुआ है। कुछ विशेषज्ञ इसे ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़कर देख रहे हैं। उनका कहना है कि इंसानों की इस शीत मरुस्थल में बढ़ती आवाजाही से यहां का वातावरण गर्म हो रहा है। वहीं, दूसरी तरफ समुद्र का बढ़ता तापमान भी इन हिमखंडों को धीरे-धीरे पिघला रहा है। कैल्विंग के कारण टूटा हिमखंड वैज्ञानिकों ने बताया है कि 150 मीटर मोटी ब्रंट आइस शेल्फ कैल्विंग प्रक्रिया के कारण टूटी है। इस टुकड़े में पहले भी दरार देखा जा चुका था। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह टुकड़ा अलग हो सकता है। बताया जा रहा है कि यह घटना आर्कटिक में ब्रिटेन के हैली रिसर्च स्टेशन से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर हुआ है। ब्रिटिश ग्लेशियोलॉजिस्ट ने बताया दुर्लभ ब्रिटिश ग्लेशियोलॉजिस्ट और स्वानसी में जियोलॉजी के प्रोफेसर एड्रियन लकमैन ने बीबीसी को बताया कि अंटार्कटिक की बर्फ के बड़े हिस्सों को टूटना सामान्य बात है, लेकिन ब्रंट आइस शेल्फ में यह दरार वैज्ञानिकों के लिए दुर्लभ और रोमांचक है। हर साल अंटार्कटिका पहुंचते हैं हजारों शोधकर्ता बर्फ का जमा हुए रेगिस्तान (अंटार्कटिका) में हर साल करीब 1,000 से अधिक शोधकर्ता पहुंचते हैं। ये यहां के छिपे हुए रहस्यों का पता लगाने के अलावा जलवायु परिवर्तन की निगरानी भी करते हैं। इस क्षेत्र में कुछ जगहों पर तो तापमान माइनस 90 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। कठोर भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अंटार्कटिका के कई क्षेत्रों की निगरानी तो केवल सैटेलाइट्स के जरिए ही की जाती है।


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अमेरिकी एयरफोर्स की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद से सीरिया एक बार फिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। रूस ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए असद सरकार के समर्थक मिलिशिया को निशाना न बनाने को कहा है। उधर अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज ने दावा किया है कि साल 2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है। जिसके बाद यूएसएस जॉन वॉर्नर को रूसी युद्धपोतों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रखा गया था। उस समय इसी पनडुब्बी ने असद सरकार के समर्थक मिलिशिया पर बेहद घातक टॉमहॉक मिसाइलें दागी थीं।

2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है।


World War 3: जब रूसी युद्धपोत को डुबाने को तैयार थी अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी, छिड़ सकता था तीसरा विश्वयुद्ध

अमेरिकी एयरफोर्स की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद से सीरिया एक बार फिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। रूस ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए असद सरकार के समर्थक मिलिशिया को निशाना न बनाने को कहा है। उधर अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज ने दावा किया है कि साल 2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है। जिसके बाद यूएसएस जॉन वॉर्नर को रूसी युद्धपोतों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रखा गया था। उस समय इसी पनडुब्बी ने असद सरकार के समर्थक मिलिशिया पर बेहद घातक टॉमहॉक मिसाइलें दागी थीं।



मंडराने लगा था तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा
मंडराने लगा था तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा

2018 में अमेरिका और रूस के बीच सीरिया में तनाव इतना बढ़ गया था कि दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा था। पूरी दुनिया इस युद्ध को टालने के लिए सक्रिय थीं, क्योंकि रूस और अमेरिका ने सीरिया में अपने सबसे ज्यादा घातक हथियारों का जखीरा तैनात कर दिया था। रूस ने जहां असद सरकार के समर्थक सेनाओं की सुरक्षा के लिए एस-400 और एस-300 डिफेंस सिस्टम को एक्टिव कर दिया था, वहीं अमेरिका ने एफ-16, एफ-22 लड़ाकू विमानों को स्टेंडबॉय पर रहने का आदेश दिया था। अमेरिका की कई किलर पनडुब्बियां दिन-रात सीरिया के चारों ओर चक्कर काटती थीं। ऐसे में अगर रूस या अमेरिका में से किसी भी देश ने दूसरे देश के सेना को निशाना बनाया होता तो आज दुनिया का नक्शा ही कुछ और होता।



बेहद घातक है अमेरिका की वर्जीनिया क्लास पनडुब्बी
बेहद घातक है अमेरिका की वर्जीनिया क्लास पनडुब्बी

परमाणु शक्ति से चलने वाली फास्ट अटैक वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियां टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों से लैस होती हैं। स्टील्थ फीचर से लैस होने के कारण दुश्मन के रडार इस पनडुब्बी को डिटेक्ट नहीं कर पाते हैं। एंटी सबमरीन वॉरफेयर में इस पनडुब्बी का दुनिया में कोई तोड़ नहीं है। अमेरिकी नौसेना में इन्हें लॉस एंजिलिस क्लास पनडुब्बियों के जगह पर कमीशन किया गया था। इस क्लास की पनडुब्बियां अमेरिकी नौसेना में 2060 से 2070 तक सर्विस में रहेंगी। अमेरिकी नौसेना ऐसी 66 पनडुब्बियों के निर्माण की योजना पर काम कर रही है, जिसमें से 19 अभी एक्टिव हैं जबकि 11 पनडुब्बियों को बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अमेरिकी नेवी ने 6 पनडुब्बियों का और ऑर्डर दिया हुआ है।



महीनों तक पानी के नीचे लगा सकती है गश्त
महीनों तक पानी के नीचे लगा सकती है गश्त

वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियों में तैनात नौसैनिकों को अगर खाने-पीने की वस्तुएं न लेनी हो तो वह कई महीनों तक पानी के नीचे गायब रह सकते हैं। इसमें खुद के ऑक्सीजन जेनरेटर्स लगे होते हैं, जो पनडुब्बी में तैनात नौसैनिकों के लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं। इसके अलावा परमाणु रिएक्टर लगे होने के कारण इनके पास ऊर्जा का अखंड भंडार होता है। जबकि परंपरागत पनडुब्बियों में डीजल इलेक्ट्रिक इंजन होता है। उन्हें इसके लिए डीजल लेने और मरम्मत के काम के लिए बार बार ऊपर सतह पर आना होता है। पानी के नीचे अगर कोई पनडुब्बी छिपी हुई तो उसका पता लगाना बहुत ही कठिन काम होता है। लेकिन, अगर वह पनडुब्बी किसी काम से एक बार भी सतह पर दिखाई दे दे तो उसको डिटेक्ट करना और पीछा करना दुश्मन के लिए आसान हो जाता है।



बेहद घातक हैं अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलें
बेहद घातक हैं अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलें

मिसाइल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इस तरह के हमलों के लिए टॉमहॉक मिसाइलें बहुत सटीक हैं। इन क्रूज मिसाइलों का रेंज 1,250 किलोमीटर से 2,500 किलोमीटर के बीच होता है। अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर ट्रैवल करने वाले इन मिसाइलों को समुद्र से छोड़ा जाता है। कम ऊंचाई पर होने की वजह से इन्हें रेडार ट्रेस नहीं कर पाते। टॉमहॉक मिसाइलों को अडवांस नैविगेशन सिस्टम के जरिए गाइड किया जाता है। इस मिसाइल की लंबाई 18 फीट 3 इंच (5.56 मीटर) होती है, बूस्टर के साथ लंबाई 5 फीट होती है। मिसाइल की स्पीड 885.139 किलोमीटर प्रति घंटे से 1416.22 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है।



1 टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये
1 टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये

टॉमहॉक मिसाइलें टारगेट तक सीधी रेखा में नहीं जाते, इसलिए इन्हें बीच में मारकर नहीं गिराया जा सकता। अमेरिका ने इन मिसाइलों का सबसे पहले ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म में इस्तेमाल किया गया था। ये मिसाइलें अपने साथ 450 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक ले जा सकते हैं। ये न्यूक्लियर हथियारों को ले जाने में भी सक्षम हैं। हालांकि अमेरिका ने इन्हें न्यूक्लियर इस्तेमाल से अलग रखा है। एक टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये बैठती है। टॉमहॉक ब्लॉक-2 मिसाइल तो 2500 किमी तक मार कर सकती है। यह मिसाइल बिना बूस्टर के 5.5 मीटर और बूस्टर के साथ 6.5 मीटर तक लंबी होती है। फिलहाल यह मिसाइल अमेरिका और ब्रिटेन की रायल नेवी में तैनात है। ताइवान ने भी अमेरिका से इस मिसाइल की खरीद के लिए समझौता किया है।





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दमिश्क अमेरिका ने सीरिया के डेरा अल जोर में ईरानी मिलिशिया के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक करने के बाद एक और खुफिया ऑपरेशन को अंजाम दिया है। सीरिया की सरकारी समाचार एजेंसी साना ने दावा किया है कि उत्तर पूर्वी शहर ऐश शादादी से अमेरिकी सेना ने आईएसआईएस के 10 आतंकियों को एयरलिफ्ट किया है। इतना ही नहीं, एजेंसी का यह भी कहना है कि इन आतंकियों को देश से बाहर भेजने के लिए सीरियाई-जॉर्डन बॉर्डर पर स्थित अल तन्फ मिलिट्री बेस पर अमेरिकी सैन्य डॉक्टरों ने मेडिकल चेकअप भी की है। सीरिया ने अमेरिकी सेना पर लगाया गंभीर आरोप सीरिया ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी सेना इन आतंकवादियों का इस्तेमाल सीरियन आर्मी, नागरिकों और हाईवे पर हमले के लिए करने की प्लानिंग कर रही है। शुक्रवार को सीरियाई न्यूज एजेंसी ने बताया कि आईएसआईएस के इन 10 आतंकवादियों को अमेरिकी सेना ने अल-हसकाह प्रांत के इंड्रस्टियल सेकेंडरी जेल से एश शादादी एयबेस बेस तक लेकर आई थी। जहां से इन्हें मेडिकल जांच के लिए अल तन्फ मिलिट्री बेस भेज दिया गया। शुक्रवार को ही अमेरिका ने सीरिया में किए थे हवाई हमले पिछले शुक्रवार को ही अमेरिकी सेना ने सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया के ठिकानों पर जोरदार हवाई हमले किए थे। इस हमले में ईरानी मिलिशिया के कम से कम 22 लड़ाके मारे गए थे। जबकि, कई अन्य बुरी तरह से घायल हुए थे। दरअसल, अमेरिका को शक था कि इस मिलिशिया ने इराक में अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट से हमला किया था जिसमें तीन अमेरिकी सैनिक घायल हो गए थे। जिसके बाद अमेरिका ने यह कार्रवाई की थी। असद सरकार का विरोधी है अमेरिका सीरिया में अमेरिका सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज को समर्थन देता है। यह गुट असद सरकार का विरोध करती है। हाल में ही भयंकर गृहयुद्ध से निकली सीरिया सरकार का पूरे देश के ऊपर नियंत्रण नहीं है। जिसके कारण सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज समेत कई ऐसे विरोधी गुट हैं जो देश के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण बनाए हुए हैं। माना जा रहा है कि अमेरिकी सेना की नई तैनाती से सीरिया फिर जंग का मैदान बन सकता है। कई देशों के बीच जंग का मैदान बना सीरिया आईएसआईएस के आतंकियों के हाथों तबाह हो चुका सीरिया अब दुनियाभर के शक्तिशाली देशों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। वहां रूस और अमेरिका के बीत पहले से ही तनातनी जारी है। जिसमें रूस सीरियाई सरकार का समर्थन कर रही है, वहीं अमेरिका उनका विरोध। अमेरिका ने सीरिया के अल्पसंख्यक गुट कुर्दों के सैन्य दस्तों को समर्थन दिया हुआ है। वहीं, इजरायल भी सीरिया में ईरानी मिलिशिया की मौजूदगी को खत्म करने के लिए लगातार हमले कर रहा है। तुर्की भी सीरिया में भाड़े के सैनिकों के दम पर अपने हितों को सााधने में जुटा है।


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कराची पाकिस्तान ने 17 भारतीय मछुआरों को देश के जलक्षेत्र में कथित रूप से प्रवेश करने के लिए गिरफ्तार किया है और उनकी तीन नौकाओं को जब्त कर लिया है। पाकिस्तान समुद्री सुरक्षा एजेंसी (पीएमएसए) के एक प्रवक्ता ने बताया कि शुक्रवार को गिरफ्तार किए गए मछुआरों को शनिवार को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और पुलिस को सौंप दिया गया है। पाकिस्तान ने चेतावनी को अनसुना करने का आरोप लगाया पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा कि भारतीय मछुआरों को चेतावनी दी गई थी कि वे पाकिस्तान के जलक्षेत्र में हैं और उन्हें दूर चले जाना चाहिए लेकिन उन्होंने चेतावनी नहीं सुनी। प्रवक्ता ने कहा कि 17 मछुआरों को गिरफ्तार करने के लिए तेज गति वाली नौकाओं का इस्तेमाल किया गया जो पाकिस्तान और भारत के बीच तटीय सीमा सर क्रीक के पास पाकिस्तान के जलक्षेत्र में 10-15 समुद्री मील अंदर थे। एक साल बाद पाकिस्तान ने गिरफ्तार किए भारतीय मछुआरों को कराची में मलिर या लांधी जेल भेजा जाता है। यह गिरफ्तारी एक वर्ष के अंतराल के बाद हुई है जब 23 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया था और मछली पकड़ने वाली उनकी चार नौकाओं को समुद्री सुरक्षा एजेंसी ने जब्त किया था। कैसे भारतीय जलक्षेत्र को पार कर लेते हैं मछुआरे? पाकिस्तान और भारत अक्सर एक दूसरे के मछुआरों को गिरफ्तार करते रहते हैं क्योंकि अरब सागर में समुद्री सीमा का कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं है और मछुआरों के पास उनके सटीक स्थान को जानने के लिए तकनीक से लैस नौकाएं नहीं हैं। सुस्त नौकरशाही और लंबी विधिक प्रक्रियाओं के कारण, मछुआरे आमतौर पर कई महीनों तक जेलों में रहते हैं और कभी-कभी सालों तक भी।


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काठमांडू नेपाल में जारी राजनीतिक बवाल के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी ही पार्टी के विपक्षी गुट की अगुवाई कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड को खुली चुनौती दी है। ओली ने अपने गृह जिले झापा में एक रैली के दौरान सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचंड के नेतृत्व वाले धड़े को चुनौती दी कि अगर वे हटा सकते हैं, तो उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा दें। बता दें कि कुछ दिन पहले ही नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने पीएम ओली के फैसले को पलटते हुए संसद को बहाल कर दिया था। जिसके बाद से प्रचंड सहित सभी विपक्षी दलों ने ओली का इस्तीफा मांगा था। ओली ने प्रचंड को अविश्वास प्रस्ताव लाने की चुनौती दी पीएम ओली ने पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाले धड़े को अविश्वास प्रस्ताव लाने की चुनौती भी दी। नेपाली प्रधानमंत्री ने कहा कि केपी ओली अब भी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता हैं। वह पार्टी अध्यक्ष होने के साथ ही प्रधानमंत्री भी हैं। अगर आपने संसद को बहाल किया है, तो केपी ओली को प्रधानमंत्री के पद से हटा दें। अगर आप हटा सकते हैं, तो मुझे हटा दें। अगर मुझे हटाया जाता है तो मैं अगले चुनाव में दो तिहाई बहुमत से जीत हासिल करुंगा। माना जा रहा है कि ओली के इस बयान के बाद और गरमाने वाली है। नेपाली सुप्रीम कोर्ट ने पलटा ओली का फैसला पिछले साल नेपाल में उस समय राजनीतिक संकट पैदा हो गया था, जब 20 दिसंबर को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद के निचले सदन को भंग करने और नए चुनाव कराने की घोषणा की थी। पिछले हफ्ते नेपाली उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन को भंग करने के ओली सरकार के असंवैधानिक फैसले को रद्द कर दिया। न्यायालय ने सरकार को अगले 13 दिनों के भीतर सदन का सत्र बुलाने का भी आदेश दिया। ओली ने क्यों भंग की थी नेपाली संसद पीएम ओली को पहले से ही पता था कि संसद के सत्र के दौरान विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर उनका प्रतिद्वंदी धड़ा अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। इसी कारण उन्होंने आनन-फानन में संसद को भंग करने की सिफारिश कर दी थी। हालांकि अब उन्हें इसका सामना करना ही पड़ेगा। अगर विपक्ष एकजुट हो गया तो ओली के लिए कुर्सी बचाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।


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वॉशिंगटन कोरोना वायरस महामारी के बाद निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले 65 फीसदी देशों ने में कटौती की है। हालांकि, उच्च व उच्च-मध्यम आय वाले देशों में महज 33 प्रतिशत ने ऐसा किया है। की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि कोरोना के कारण स्कूली बच्चों को हुए नुकसान की भरपाई करने और विद्यालयों संक्रमण रोकने के उपायों को लागू करने की जगह कई देश शिक्षा बजट में कटौती कर रहे हैं। विश्वबैंक की इस रिपोर्ट को यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी (जीईएम) रिपोर्ट में शामिल किया गया है। विश्व बैंक ने जारी की रिपोर्ट इस रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में सरकारी खर्चों का मौजूदा स्तर सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है। शिक्षा बजट पर कोविड-19 महामारी के अल्पकालिक प्रभाव को समझने के लिये सभी क्षेत्रों में 29 देशों के नमूने एकत्र किये गये। इस नमूने का आकार दुनिया के स्कूल और विश्वविद्यालय की उम्र वाली आबादी का लगभग 54 प्रतिशत है। एकत्र की गयी जानकारी को विश्व बैंक की देश की टीमों के साथ सत्यापित किया गया। शिक्षा को कोरोना से उबारने के लिए बजट बढ़ाने की जरूरत में बताया गया है कि कोविड-19 संकट के मद्देनजर स्कूलों को बंद करने से विद्यार्थियों को हुए नुकसान की भरपाई तथा संक्रमण रोकने के दिशानिर्देशों का पालन करने में स्कूलों को सक्षम बनाने के लिये अतिरिक्त खर्च की आवश्यक्ता है। हालांकि, निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले इन देशों में शिक्षा बजट में की गई कमी के कारण यह लक्ष्य अभी पूरा होता नहीं दिख रहा है। इन देशों से जुटाए गए नमूने रिपोर्ट के लिये तीन निम्न-आय वाले देशों (अफगानिस्तान, इथियोपिया, युगांडा); 14 निम्न-मध्यम आय वाले देशों (बांग्लादेश, मिस्र, भारत, केन्या, किर्गिज गणराज्य, मोरक्को, म्यांमा, नेपाल, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, तंजानिया, यूक्रेन, उज्बेकिस्तान); 10 ऊपरी-मध्य आय वाले देशों (अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, जॉर्डन, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, मेक्सिको, पेरू, रूस, तुर्की); और दो उच्च आय वाले देशों (चिली, पनामा) से नमूने जुटाये गये। भारत समेत इन देशों में शिक्षा बजट 10 फीसदी से कम रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत अर्जेंटीना, ब्राजील, मिस्र, म्यांमा, नाइजीरिया, पाकिस्तान और रूस जैसे देशों ने बजट में शिक्षा को 10 प्रतिशत से कम हिस्सेदारी दी है। ऐसे में इन देशों में शिक्षा क्षेत्र को वित्तपोषण के अन्य साधन तलाशने होंगे। उल्लेखनीय है कि कोविड-19 ने दुनिया भर में अब तक 11.43 करोड़ लोगों को संक्रमित किया है और इसके कारण 25.37 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है।


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रंगून की पुलिस ने सैन्य तख्तापलट के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कई शहरों में फिर फायरिंग की है। पुलिस की फायरिंग में कम से कम 18 लोगों की मौत हुई है, जबकि कई अन्य घायल हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने पुष्टि की है कि रविवार को म्यांमार में हुए हिंसक प्रदर्शनों में 18 लोगों की मौत हुई है। हालांकि, अभी तक म्यांमार की सैन्य सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है। तीन शहरों में पुलिस ने चलाई गोलियां स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को तीन प्रदर्शनकारियों की मौत रंगून में पुलिस की गोली से हुई है। जबकि, दावोई शहर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़प में दो लोगों की मौत की खबर है। बाकी के दो लोगों की मौत मांडले में पुलिस की फायरिंग में हुई है। बताया जा रहा है कि इन तीनों शहरों में मरने वाले लोगों की तादाद इससे भी ज्यादा हो सकती है। सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें वायरल हो रहीं हैं जिनमें गोलियों के खोखे दिखाई दे रहे हैं। सैकड़ों लोग गिरफ्तार ऐसी भी खबरे हैं कि सुरक्षाबलों ने देश के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन को खत्म कराने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे और पानी की बौछारे भी की हैं। ऐसी खबरें हैं कि पुलिस ने म्यांमा के सबसे बड़े शहर यांगून में गोलियां चलाईं और प्रदर्शनकारियों को सड़कों से उठाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे तथा पानी की बौछारें छोड़ीं। उत्तर से दक्षिण तक हर राज्य में प्रदर्शन दक्षिणपूर्वी म्यांमा के छोटे से शहर दावेई में भी सुरक्षा बलों ने हिंसक कार्रवाई की। रविवार को दावोई में हिंसा उस वक्त भड़की जब मेडिकल के छात्र राजधानी की सड़कों पर मार्च निकाल रहे थे। घटना की जारी हुई तस्वीरों और वीडियो में प्रदर्शनकारी उस वक्त भागते दिख रहे हैं जब पुलिस ने उन पर सख्ती की। राजधानी में किसी के हताहत होने के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है। सड़कों पर गोलियों की आवाजें सुनी गईं और माना जा रहा है कि भीड़ पर स्मोग ग्रेनेड भी फेंका गया।


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कोलंबो श्रीलंका ने देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए चीन से फिर 2.2 बिलियन डॉलर (161912080000 रुपये) का नया कर्ज मांगा है। श्रीलंका के मनी एंड कैपिटल मार्केट के मंत्री निवर्द काबराल ने कहा कि अगले दो हफ्तों के भीतर श्रीलंकाई सरकार चीन की सेंट्रल बैंक के साथ 1.5 बिलियन डॉलर के मनी स्वैपिंग की डील भी फाइनल करने जा रही है। श्रीलंका पर चीन का पहले से ही अरबों डॉलर का कर्ज है। जिसके एवज में उसे अपना हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा है। कर्ज से विदेशी मुद्रा की जरूरतों को पूरा करेगा श्रीलंका एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका की सरकार का दावा है कि चीन से मिलने वाले इस कर्ज को उपयोग विदेशी मुद्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए बफर के रूप में किया जाएगा। श्रीलंका के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जनवरी के अंत में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 4.8 बिलियन डॉलर तक गिर चुका है। इससे पहले साल 2009 में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 4.2 बिलियन डॉलर तक पहुंचा था। चीन के कई बैंकों से कर्ज के लिए बात कर रहा श्रीलंका श्रीलंका के अधिकारियों का कहना है कि उनकी सरकार 700 मिलियन डॉलर के लोन के लिए चाइना डेवलपमेंट बैंक के साथ भी बातचीत कर रही है। इनमें से 200 मिलियन डॉलर चीनी करेंसी यूआन के रूप में मिलेगी। 2005 से 201515 के बीच महिंदा राजपक्षे ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लिया था। इस समय वह प्रधानमंत्री हैं,जबकि उनके भाई राष्ट्रपति। ऐसे में वे फिर से कर्ज के लिए चीन की शरण में जाते दिख रहे हैं। श्रीलंका के कर्ज से भारत-अमेरिका भी परेशान श्रीलंका को चीन की कर्ज के जाल में उलझते देख भारत समेत कई पश्चिमी देश परेशान हैं। दरअसल इन देशों को डर है कि कहीं चीन कर्ज के एवज में पूरे श्रीलंका पर कब्जा न कर ले। ऐसी स्थिति में हिंद महासागर में चीन को बड़ी ताकत मिल जाएगी। 2017 में श्रीलंका ने 1.4 अरब डॉलर के लोन के बदले अपना हंबनटोटा बंदरगाह ही चीनी कंपनी को सौंप दिया था। जिसके बाद जब भारत ने आपत्ति जताई तो श्रीलंका ने इस पोर्ट का इस्तेमाल मिलिट्री सर्विस के लिए रोक दिया था। श्रीलंका पर कुल 55 अरब डॉलर का कर्ज श्रीलंका पर दुनियाभर के देशों का कुल 55 अरब डॉलर का कर्ज है। रिपोर्ट के अनुसार, यह धनराशि श्रीलंका की कुल जीडीपी की 80 फीसदी है। इसमें सबसे अधिक कर्ज चीन और और एशियन डिवेलपमेंट बैंक का है। जबकि इसके बाद जापान और विश्व बैंक का स्थान है। भारत ने श्रीलंका की जीडीपी क 2 फीसदी कर्ज दिया है। डोनेशन डिप्लोमेसी से श्रीलंका को साध रहा चीन श्रीलंका ने जून के मध्य में कोरोना वायरस से निपटने के लिए चीनी निर्मित फेस मास्क और चिकित्सा उपकरण का एक और खेप प्राप्त किया है। जो इस बात का सबूत है कि श्रीलंका बीजिंग की विदेश नीति और डोनेशन डिप्लोमेसी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आर्थिक कर्ज से श्रीलंका को बेदम करने के बाद चीन खुद ही वायरस को फैलाकर अब उसका इलाज कर रहा है। हिंद महासागर में चीन के विस्तार का केंद्र है श्रीलंका चीन की इंडो पैसिफिक एक्सपेंशन और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन ने श्रीलंका को भी शामिल किया है। श्रीलंका ने चीन का कर्ज न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी को 1.12 अरब डॉलर में साल 2017 में 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। हालांकि अब श्रीलंका इस पोर्ट को वापस चाहता है। अमेरिका के साथ श्रीलंका ने कम किया संबंध 2017 से पहले श्रीलंका और अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंध थे। इस दौरान अमेरिकी समर्थक सिरिसेना-विक्रीमेसिंघे प्रशासन ने अमेरिका के साथ Acquisition and Cross-Servicing Agreement (ACSA) को अगले 10 साल के लिए बढ़ा दिया था। इससे अमेरिका को हिंद महासागर क्षेत्र में अपने ऑपरेशन के लिए रसद आपूर्ति, ईंधन भरने और ठहराव की सुविधा मिली थी। लेकिन अब गोटबाया प्रशासन ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को कमतर कर दिया है। महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में चीन से बढ़ी नजदीकियां महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका और चीन के बीच नजदीकियां खूब बढ़ी। श्रीलंका ने विकास के नाम पर चीन से खूब कर्ज लिया। लेकिन, जब उसे चुकाने की बारी आई तो श्रीलंका के पास कुछ भी नहीं बचा। जिसके बाद हंबनटोटा पोर्ट और 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल जोन के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब आशंका जताई जा रही है कि हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए चीन इसे बतौर नेवल बेस भी प्रयोग कर सकता है।


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ब्यूनस आयर्स अटलांटिक महासागर के किनारे बसे हुए देशों में जब भी बारिश के साथ तूफान आता है तो यहां के निवासी किसी न किसी मुसीबत में जरूर फंसते हैं। हाल में ही ऐसा कुछ दक्षिणी अमेरिकी देश अर्जेंटीना में देखने को मिला है। यहां तूफानी बारिश के बाद लोगों के ऊपर टॉरनेडो (बवंडर) के आकार में उड़ते हुए मच्छरों के झुंडों ने हमला कर दिया। इनकी तादाद इतनी ज्यादा थी कि राजधानी ब्यूनस आयर्स का आसमान धूल से ढक गया। जमीन से निकलकर आसमान में बनाया टॉरनेडो ब्यूनस आयर्स प्रांत के लोगों ने बताया कि उनकी आंखों के सामने मच्छरों के झुंड जमीन से निकलकर आसमान में टॉरनेडो के जैसे गोल-गोल आकार बना रहे थे। कई यात्रियों ने इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर किया है। अर्जेंटीना के जनरल मडारिगा से पिनमार को जोड़ने वाली सड़क रूट-74 पर यात्रा कर रहे एक यात्री ने मच्छरों के तूफान का एक वीडियो शेयर किया है, जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो इस वीडियो में सुनाई देता है कि एक व्यक्ति स्पेनिश में कहता है कि कौन विश्वास करेगा कि यह मच्छर हैं। एक दूसरी महिला कहती है कि यह बड़ा और बड़ा हो रहा है। मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा। जैसे ही यह वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट हुआ, वैसे ही लोगों के बीच मच्छरों के इस तूफान की चर्चा होने लगी है। विशेषज्ञों का दावा- इनसे इंसानों को खतरा नहीं सेंटर फ़ॉर पारसिटोलॉजिकल एंड वेक्टर स्टडीज़ (सेफवे) के एक रिसर्चर जुआन गार्सिया ने बताया कि बारिश के कारण इन इलाकों के खुले क्षेत्रों में बाढ़ का पानी भर जाता है। यह पानी जब कम होता है तो यहां मादा मच्छरें बड़ी संख्या में अंडे देती हैं। जो बाद में ऐसे ही झुंडों में उड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाते हैं। उन्होंने दावा किया कि इन मच्छरों से इंसानों के स्वास्थ्य के ऊपर कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा। डेंगू के मच्छरों के विपरीत है इनका प्रजनन जुआन गार्सिया ने यह भी कहा कि ये मच्छर डेंगू के मच्छरों के विपरीत यह प्रजाति झुंडों में प्रजनन करती है जो जमीन से कई मीटर ऊपर हैं। जबकि, डेंगू के मच्छर रूके हुए पानी के अंदर अंडे देते हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार, अर्जेंटीना के कई शहर जैसे मार डेल प्लाटा, पिनमार और विला गेसेल मच्छरों की आमद से प्रभावित हुए हैं। स्थानीय लोग इन मच्छरों के आतंक और हर जगह पैठ करने से काफी परेशान रहते हैं।


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पेइचिंग चीनी मिलिट्री पीएलए ने साउथ चाइना सी में अमेरिकी युद्धपोतों की मौजूदगी के बीच लाइव मिसाइल फायर ड्रिल की है। इस दौरान चीनी जंगी जहाजों ने शक्ति प्रदर्शन करते हुए सैकड़ों मिसाइलों को फायर किया। जिसके बाद से यह कयास लगाया जा रहा है कि जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं होगा। कुछ समय पहले ही अमेरिका ने इस इलाके में अपना सबसे घातक परमाणु पनडुब्बी यूएसएस ओहियो को गश्त पर भेजा था। मिसाइलों से दुश्मनों पर हमले का किया अभ्यास चीन की सरकारी मीडिया सीसीटीवी ने कहा कि इस दौरान चीनी सेना के दक्षिणी थिएटर कमांड ने समुद्र में दुश्मनों पर मिसाइलों से हमला करने का अभ्यास किया। हालांकि इस सरकारी भोपू ने यह नहीं बताया कि इस युद्धाभ्यास को कब और कहां आयोजित किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, इस ड्रिल में गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक यिनचुआन, गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट हेंगयांग, एम्फिबियस डॉक लैंडिंग शिप वुझिसन और सपोर्ट शिप चैगन हू ने हिस्सा लिया। चीन के दक्षिणी थिएटर कमांड ने की यह ड्रिल चीनी सेना का दक्षिणी थिएटर कमांड ही साउथ चाइना सी में चीनी जलक्षेत्र की रखवाली करता है। चीन ने इस थिएटर कमांड को ताइवान, जापान और वियतनाम से निपटने के लिए तैनात किया हुआ है। इस कमांड में 500 से ज्यादा अलग-अलग तरह के युद्धपोत शामिल हैं। दावा किया जा रहा है कि चीन जब यह युद्धाभ्यास कर रहा था तो उस समय अमेरिकी टोही विमान भी वहीं उड़ान भर रहा था। कुछ ही दूर पर गश्त कर रहा था अमेरिकी टोही विमान साउथ चाइना सी स्ट्रैटजिक सिचुएशन नाम के थिंकटैंक ने दावा किया है कि एक अमेरिकी टोही विमान ने पारसेल द्वीप के पास चीनी जलक्षेत्र के करीब उड़ान भरी है। पेइचिंग के इस थिंकटैंक ने कहा है कि चीन की मुख्य भूमि से मात्र 323 किलोमीटर दूर अमेरिकी टोही विमान यूएसएनएस इंपैक्टेबल का उड़ान चौंकाने वाला है। इस विमान ने ताइवान के पास से उड़ान भरकर असामान्य तरीके से चीनी क्षेत्र में घुसने की कोशिश की थी। साउथ चाइना सी में बढ़ा तनाव यही कारण है कि चीन और अमेरिका के बीच विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन और अमेरिका हॉन्ग कॉन्ग, ताइवान, शिनजियांग और तिब्बत के मामले में एक दूसरे के सामने हैं। अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर्स और पनडुब्बियां निरंतर साउथ चाइना सी में अपनी गश्त बढ़ा रही हैं। कई बार तो एक साथ दो-दो एयरक्राफ्ट कैरियर पूरे लाव-लश्कर के साथ साउथ चाइना सी में पहुंचकर चीनी शक्ति को चैलेंज कर रहे हैं।


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वॉशिंगटन अमेरिकी की स्पेस एजेंसी NASA अंतरिक्ष में हो रहीं ऐसी घटनाओं पर नजर रखती है जो किसी अजूबे से कम नहीं लगती हैं। कुछ दिन पहले इंस्टाग्राम पर एजेंसी ने ऐसी तस्वीर शेयर की जिसे अब 'खगोलीय जेवरात' की संज्ञा दी जा रही है। इसे देखकर सोशल मीडिया पर लोग अपनी सांसें थामने को मजबूर हैं। यह तस्वीर NASA के से ली गई है और इसमें धरती से 15 हजार लाइट इयर दूर स्थित Neclace Nebulae दिख रहा है। Hubble की ओर से तस्वीर शेयर करते हुए इसे कॉस्मिक जूलरी स्टोर बताया गया। शेयर किए जाने के बाद से ऑनलाइन इसे खूब पसंद किया जा रहा है और लाखों लोग इसे लाइक कर चुके हैं। NASA के मुताबिक किसी सितारे के फटने के बाद Nebula बनता है। तस्वीर में दिख रहा रिंग जैसा आकार 12 ट्रिलियन मील में फैला है। सितारे के फटने से होने वाले विस्फोट में गैसें निकलती हैं जो इकट्ठा होकर ग्लो करती हैं और किसी हार में लगे हीरों जैसी दिखती हैं। नेब्युला असल में अंतरिक्ष में विशालकाय बादल होता है जो धूल और गैस से बना होता है। कुछ नेब्युला मरते हुए तारों के फटने से निकलने वाले गैस और धूल से बनता है जैसे सुपरनोवा। वहीं कुछ नेब्युला ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां तारे बनते हैं यानी तारे का जन्मस्थल होते हैं। इस वजह से कुछ नेब्युला को 'स्टार नर्सरी' कहा जाता है। नेब्युला कुछ खास शक्ल में पाए जाते हैं जैसे ईगल, बटरफ्लाई आदि।


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संयुक्त राष्ट्र भारत ने कहा है कि इजरायल-फलस्तीन मुद्दे का हल दोनों राष्ट्र मिलकर खुद ही कर सकते हैं और दोनों पक्षों को सीधी बातचीत के जरिए मुद्दे का समाधान करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि राजदूत के. नागराज नायडू ने कहा कि इन मुद्दों को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी एकतरफा कार्रवाई से बचना चाहिए। इस महीने के शुरू में अरब राष्ट्रों की लीग ने 1967 की सीमा पर आधारित स्वतंत्र और संप्रभु फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना को लेकर अपना समर्थन दोहराया था जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम बनाए जाने का पक्ष लिया था। 'पश्चिम एशिया में स्थिति, जिसमें फलस्तीन का सवाल भी शामिल है' पर नायडू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा कि नई दिल्ली फलस्तीन के लिए और एक संप्रभु और स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की स्थापना के प्रति अपना समर्थन दोहराता है जो शांति और सुरक्षा के साथ इजरायल के साथ रहे। उन्होंने कहा, ' हमारा दृढ़ता से मानना है कि सिर्फ 'दो राष्ट्र समाधान' से ही स्थायी शांति होगी जो इजरायल और फलस्तीन के लोग चाहते हैं और उसके हकदार हैं। इसे अंतिम स्थिति के मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत के जरिए हासिल किया जाना चाहिए। इन अंतिम मुद्दों को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी एकतरफा कार्रवाई से बचना चाहिए।' नायडू ने रुकी हुई शांति वार्ता को पुनर्जीवित करने के लिए हालिया कूटनीतिक प्रयासों को उत्साहजनक करार दिया और कहा कि 'क्वॉर्टेट' (पश्चिम एशिया में शांति स्थापना के लिए लगी चार प्रमुख शक्तियां) के विशेष राजदूत की बैठकें समय पर हुई हैं। भारत ने 'क्वॉर्टेट' से इजरायल और फलस्तीनी नेतृत्व के साथ बातचीत शुरु करने को कहा है। नायडू ने कहा, 'भारत उन सभी प्रयासों का स्वागत करता है, जिसका उद्देश्य अंतररष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक प्रतिबद्धता को मजबूत करना है ताकि सीधी बातचीत फिर से शुरू हो और शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।' पश्चिम एशिया में शांति के लिए विशेष समन्वयक और महासचिव के निजी प्रतिनिधि टूर वेन्नेसलैंड ने परिषद की बैठक में कहा कि वैश्विक समुदाय की तवज्जो पक्षों को बातचीत की मेज पर वापस लाने में मदद करने की है।


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फ्लोरिडा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को भले ही भारी आलोचना का शिकार रहना पड़ा हो, पद से जाने के बाद भी उनकी लोकप्रियता बरकरार है। यही नहीं, कन्जर्वेटिव पॉलिटिकल ऐक्शन कॉन्फ्रेंस (CPAC) की बैठक में उनका सुनहरा पुतला लगा दिया गया। फ्लोरिडा में चल रही बैठक के लिए मेक्सिको से बनाया गया पुतला लाया गया था। आलोचना का असर नहीं? पार्टी में चल रही उठापटक के बीच सुनहरी की मूर्ति ऑनलाइन खूब चर्चा में रही। ट्रंप के नेतृत्व में पार्टी राष्ट्रपति चुनाव हार गई और खुद ट्रंप को दो बार महाभियोग का सामना करना पड़ा। कोरोना वायरस की महामारी को बुरी तरह हैंडल करने के लिए ट्रंप की खूब आलोचना हुई और जाते-जाते 6 जनवरी को संसद पर हुए हमले ने उनकी रही-बची छवि भी खत्म कर दी। जादू की छड़ी पकड़े ट्रंप बावजूद इसके पार्टी ने सुनहरे पुतले के साथ उनका सम्मान किया है। इस पुतले में ट्रंप जादू की छड़ी पकड़े हैं। उन्होंने सूट जैकेट, सफेद शर्ट, लाल टाई और अमेरिका के झंडे जैसे दिखने वाले शॉर्ट्स पहने हैं। पुतले के साथ लोगों ने खूब फोटो खिंचाईं जबकि सोशल मीडिया पर इस पुतले का खूब मजाक भी बना। खास बात यह है कि यह पुतला मेक्सिको में बना है जिसके खिलाफ अवैध पलायन को लेकर ट्रंप खूब सख्त थे और दीवार बनाने पर उतारू थे। 6 महीने में बना पुतला मेक्सिको में रहने वाले अमेरिकी जीगन ने यह पुतला 6 महीने में बनाया है। तीन लोगों ने 200 पाउंड का पुतला बनाने में उनकी मदद की। जीगन ने इसे फाइबर ग्लास से मेक्सिको में बनाया और फिर टांपा में इसे सुनहरा रंगा गया। जीगन का कहना है कि उन्होंने ट्रंप को वोट दिया था लेकिन उन्हें ट्रंप से मतलब नहीं है। उन्होंने जादू की छड़ी ट्रंप पर किए ओबामा के मजाक को लेकर बनाई है जिसमें उन्होंने कहा था कि ट्रंप को नौकरियां पैदा करने के लिए जादू का छड़ी चाहिए होगी।


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पश्चिमी साइबेरिया में पिछले साल अचानक एक विशाल क्रेटर देखा गया था। जियोसाइंसेज में छपी एक स्टडी के मुताबिक रूस के रिसर्चर्स ने बताया है कि धरती की सतह के नीचे मीथेन में होने वाले विस्फोटकों की वजह से 20 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा गड्ढा बन गया है। इस ब्लोआउट क्रेटर की तस्वीरें यहां से निकलने वाले ड्रोन विमानों ने लीं और फिर 3डी मॉडलिंग के आधार पर इसके आकार का अनैलेसिस किया गया। दूसरी स्टडीज के साथ इसके नतीजे मिलाने पर पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के असर से बर्फ पिघलती है और मीथेन गैस रिलीज होती है।

Siberian Craters: बर्फ के बीच तो कहीं मैदान में अचानक क्रेटर नजर आते हैं। ये अचानक कैसे पैदा हो जाते हैं, इसके पीछे की वजह ज्यादा खतरनाक है।


रूस: उल्कापिंड या एलियन नहीं, साइबेरिया में 'रहस्यमय' गड्ढों के पीछे की वजह किसी चेतावनी से कम नहीं

पश्चिमी साइबेरिया में पिछले साल अचानक एक विशाल क्रेटर देखा गया था। जियोसाइंसेज में छपी एक स्टडी के मुताबिक रूस के रिसर्चर्स ने बताया है कि धरती की सतह के नीचे मीथेन में होने वाले विस्फोटकों की वजह से 20 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा गड्ढा बन गया है। इस ब्लोआउट क्रेटर की तस्वीरें यहां से निकलने वाले ड्रोन विमानों ने लीं और फिर 3डी मॉडलिंग के आधार पर इसके आकार का अनैलेसिस किया गया। दूसरी स्टडीज के साथ इसके नतीजे मिलाने पर पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के असर से बर्फ पिघलती है और मीथेन गैस रिलीज होती है।



गर्म होता आर्कटिक
गर्म होता आर्कटिक

स्टडी में कहा गया है कि आर्कटिक में गर्माहट की वजह से permafrost पिघल रहा है। वायुमंडल में बढ़ती गैसों के कारण जलवायु परिवर्तन भी तेज हो रहा है। रूसी आर्कटिक पश्चिमिी साइबेरिया वाले हिस्से, खासकर यमल और गाइडन पेनिनसुला में permafrost के कारण गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। साल 2014-2020 में Oil and Gas Research Institute of the Russian Academy of Sciences (OGRI RAS) के विशेषज्ञों ने यहां स्टडी की।



मीथेन के साथ संबंध
मीथेन के साथ संबंध

इनके तले में गैस निकलने के सीधे निशान मिले हैं। गैस निकलन की वजह से ये क्रेटर बनते हैं। वहीं, ऐसे जोन जहां यह गैस निकलती है और हवा में मीथेन की मात्रा बढ़ती है, इनके बीच संबंध भी स्थापित किया गया है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी की Sentinel-5p सैटलाइट पर TROPOspheric Monitoring Instrument (TROPOMI) ने इसका डेटा रिकॉर्ड किया है। मीथेन अपने उत्सर्जन के 20 साल में कार्बनडायऑक्साइड की तुलना में जलवायु परिवर्तन में 84 गुना ज्यादा इजाफा करती है। (फोटो: Nature)



चक्र की तरह हो रहा नुकसान
चक्र की तरह हो रहा नुकसान

जब हमेशा जमी रहने वाली बर्फ की ऊपरी मिट्टी वाली सतह गर्म होती है और माइक्रोबियल जीवन काम करना शुरू कर देता है, तो ये गैसें रिलीज होती हैं। बर्फ के क्रिस्टल्स में मीथेन मॉलिक्यूल भी होती हैं जो इसके पिघलने से उत्सर्जित होते हैं। रूस में दो-तिहाई हिस्सा permafrost से घिरा है जो साइबेरिया में 1500 मीटर तक गहरा हो सकता है। वैज्ञानिक इस बात की स्टडी कर रहे हैं कि permafrost के पिघलने से कितनी मीथेन और कार्बन डायऑक्साइड रिलीज होती हैं। अभी के आकलन के मुताबिक यह कई अरब टन हो सकता है। इतना 2100 तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए काफी है।



blowout crater
blowout crater

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रियाद सऊदी अरब के नेतृत्‍व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...