Friday 30 April 2021

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मिस्र में पाई जाने वाली ममी अपने अंदर कई राज समेटे होती हैं। कई बार धीरे-धीरे इनके रहस्यों से पर्दा उठता है। ऐसा ही कुछ पोलैंड के वैज्ञानिकों को मिला जब उन्होंने पाया कि जिस ममी को एक पुजारी (Priest) का माना जा रहा था, वह दरअसल एक गर्भवती महिला की थी। वॉरसॉ ममी प्रॉजेक्ट के तहत अपनी तरह की पहली खोज करने वाले इन वैज्ञानिकों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। यह टीम 2015 से प्राचीन मिस्र की ममीज पर काम कर रही है। स्कैन में जब ममी के पेट के अंदर एक छोटा सा पैर दिखा, तब उन्हें समझ आया कि उनके हाथ क्या लगा है।

Pregnant Mummy in Egpyt: प्रॉजेक्ट के सह-संस्थापक वोहटेक एमंड ने CNN को बताया कि ममी को 1826 में पोलैंड लाया गया था। तब माना जा रहा था कि यह एक महिला की है लेकिन 1920 के दशक में इस पर मिस्र के पुजारी का नाम लिखा पाया गया।


मिस्र: 100 साल से जिसे समझा जा रहा था पुजारी, वह निकली गर्भवती महिला की ममी! अब सवाल कि आखिर यह इतनी अलग क्यों?

मिस्र में पाई जाने वाली ममी अपने अंदर कई राज समेटे होती हैं। कई बार धीरे-धीरे इनके रहस्यों से पर्दा उठता है। ऐसा ही कुछ पोलैंड के वैज्ञानिकों को मिला जब उन्होंने पाया कि जिस ममी को एक पुजारी (Priest) का माना जा रहा था, वह दरअसल एक गर्भवती महिला की थी। वॉरसॉ ममी प्रॉजेक्ट के तहत अपनी तरह की पहली खोज करने वाले इन वैज्ञानिकों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। यह टीम 2015 से प्राचीन मिस्र की ममीज पर काम कर रही है। स्कैन में जब ममी के पेट के अंदर एक छोटा सा पैर दिखा, तब उन्हें समझ आया कि उनके हाथ क्या लगा है।



माना जाता रहा कि पुजारी की है
माना जाता रहा कि पुजारी की है

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरसॉ के पुरातत्वविद मार्जेना ओजारेक-जील्क और उनके सहयोगी इस रिसर्च को पब्लिश करने की तैयारी में हैं। उन्होंने स्टेट न्यूज एजेंसी PAP को बताया है, 'अपने पति स्टैनिसलॉ के साथ हमने तस्वीरें देखों और उसके पेट में एक छोटा सा पैर देखा।' प्रॉजेक्ट के सह-संस्थापक वोहटेक एमंड ने CNN को बताया कि ममी को 1826 में पोलैंड लाया गया था। तब माना जा रहा था कि यह एक महिला की है लेकिन 1920 के दशक में इस पर मिस्र के पुजारी का नाम लिखा पाया गया।



..तो पता चला गर्भवती महिला है
..तो पता चला गर्भवती महिला है

रिसर्च के दौरान कंप्यूटर टोमोग्राफी की मदद से बिना उसकी पट्टियां खोले पुष्टि की गई कि यह एक महिला की ममी थी क्योंकि इसमें पुरुषों का प्राइवेट पार्ट नहीं थी। 3डी इमेजिंग में लंबे-घुंघराले बाल और स्तनों की पुष्टि की गई। उन्होंने बताया कि महिला की जब मौत हुई तब वह 20 से 30 साल की रही होगी और भ्रूण 26-30 हफ्तों का। उसकी मौत कैसे हुई यह अभी नहीं पता चला है और यह जानने के लिए और जांच की जरूरत होगी।



खड़े हुए सवाल
खड़े हुए सवाल

एक्सपर्ट्स के सामने एक बड़ी पहेली यह है कि आखिर अब तक महिला के अंदर भ्रूण कैसे रह गया? ममी बनाने के लिए मृतक के अंगों को निकाल दिया जाता था तो भ्रूण को क्यों नहीं निकाला गया। माना जा रहा है कि इसके पीछे कोई धार्मिक कारण हो सकता है। एमंड ने संभावना जताई है कि हो सकता है उन्हें लगता हो कि अजन्मे बच्चे की आत्मा नहीं होती है और वह अगले दुनिया में सुरक्षित रहेगा या हो सकता है कि उसे निकालने में महिला के शरीर को नुकसान का खतरा रहा हो।



तो ऊपर क्यों लिखा था पुजारी का नाम?
तो ऊपर क्यों लिखा था पुजारी का नाम?

यह भी सवाल है कि आखिर ममी के ऊपर पुजारी का नाम क्यों लिखा था। इसके जवाब में संभावना जताई गई है कि शायद पादरी के ताबूत को चोरी कर महिला की ममी को उसमें रखा गया हो। ऐसा करने के कई मामले पहले सामने आए हैं। अमीर और प्रतिष्ठित लोगों के ताबूतों में मूल्यवान चीजें भी होती थीं और उनकी चोरी भी की जाती थी। ताबूत को दोबारा इस्तेमाल करने के लिए भी चोरी कर लिया जाता था। एमंड के मुताबिक करीब 10% ममी गलत ताबूत में होती हैं। (Warsaw Mummy Project)





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पेइचिंग भारत इस वक्त कोरोना वायरस की दूसरी वेव से जूझ रहा है और ऐसे में दुनियाभर के देश मदद को आगे आए हैं। इनमें भारत का कट्टर प्रतिद्वंदी चीन भी शामिल है। चीनी राजदूत ने ग्लोबल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में दावा किया है कि 'भारत की मांग के मुताबिक चीन मदद देने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।' रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने जिन 40 हजार ऑक्सिजन जनरेटर्स का ऑर्डर दिया है उनका उत्पादन जारी है। चीनी कंपनियां जल्द ही भारत को जरूरी मेडिकल सप्लाई मुहैया कराएंगी। चीन में 24 घंटा चल रहा काम सुन ने इंटरव्यू में कहा है कि चीन को उम्मीद है कि भारत सरकार के नेतृत्व में स्थानीय लोग महामारी पर जल्द ही जीत हासिल कर लेंगे। उन्होंने कहा, 'भारत की मदद करने में सबसे पहले चीन आगे आया है।' अप्रैल से चीन ने 5000 से ज्यादा वेंटिलेटर, करीब 22 हजार ऑक्सिजन जनरेटर, 3800 टन दवाएं और 2.1 करोड़ मास्क भेजे हैं। उन्होंने बताया है कि चीनी कंपनियां पूरा दिन काम करके तेजी से 40 हजार ऑक्सिजन जनरेटर का उत्पादन कर रहे हैं और उन्हें जल्द से जल्द डिलिवर करने की कोशिश की जाएगी। सुन ने बताया है कि कई चीनी कंपनियां और निजी संगठन भी भारत की मदद करने में जुटे हैं। उन्होंने कहा है कि मेडिकल सप्लाई के साथ-साथ दोनों देशों के हेल्थ एक्सपर्ट्स के बीच संचार भी स्थापित किया जाएगा। सुन ने कहा है, 'हम जिंदगियां बचाने के लिए भारत को हर संभव मदद देंगे।' शी जिनपिंग ने भेजा संदेश इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संदेश भेजकर भारत में कोरोना वायरस महामारी पर संवेदना व्यक्त की थी और देश में कोविड-19 मामलों की बढ़ोतरी से निपटने के लिए समर्थन और सहायता प्रदान करने की पेशकश की थी। शी ने अपने संदेश में कहा था कि चीन भारत के साथ महामारी रोधी सहयोग मजबूत करने और देश को समर्थन और सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।


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ब्रसेल्स और BioNTech ने यूरोपीय संघ के दवा नियामकों से 12 से 15 साल की उम्र के बच्चों के लिए कंपनियों के कोरोना वायरस टीके को मंजूरी देने का अनुरोध किया है। यह कदम यूरोप में युवा और कम जोखिम वाली आबादी को टीके तक पहुंच मुहैया करा सकता है। दोनों कंपनियों ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी को उनकी अर्जी 2,000 से अधिक किशोरों पर किये गए एक उन्नत अध्ययन पर आधारित है जिसमें टीका सुरक्षित और प्रभावी होने का पता चला था। बच्चों पर और दो साल के लिए दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए निगरानी की जाएगी। Pfizer और BioNTech ने पहले अनुरोध किया था कि यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के साथ उनकी आपातकालीन उपयोग अनुज्ञा 12-15 वर्ष के बच्चों के लिए भी विस्तारित की जाए। Pfizer और BioNTech द्वारा बनाया गया कोविड-19 टीका पहला टीका था जिसे गत दिसंबर में ईएमए द्वारा हरी झंडी दिखायी गई थी जब इसे 16 साल और इससे अधिक आयु के लोगों और 27-देश के यूरोपीय संघ में लाइसेंस दिया गया था।


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पेइचिंग चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संदेश भेजकर भारत में महामारी पर संवेदना व्यक्त की है और देश में कोविड-19 मामलों की बढ़ोतरी से निपटने के लिए समर्थन और सहायता प्रदान करने की पेशकश की है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के अनुसार राष्ट्रपति शी ने भारत में कोविड -19 महामारी पर प्रधानमंत्री मोदी को संवेदना संदेश भेजा। शी ने अपने संदेश में कहा कि चीन भारत के साथ महामारी रोधी सहयोग मजबूत करने और देश को समर्थन और सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बृहस्पतिवार को वादा किया कि कोविड-19 के खिलाफ जंग में उनका देश भारत की हरसंभव मदद करेगा और कहा कि चीन में बनी महामारी रोधी सामग्री ज्यादा तेज गति से भारत पहुंचाई जा रही है। विदेश मंत्री एस जयशंकर को लिखे पत्र में वांग ने कहा चीनी पक्ष, 'भारत जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनके प्रति संवेदना रखता है और गहरी सहानुभूति प्रकट करता है।' भारत में चीन के राजदूत सुन वेइदोंग ने इस पत्र को ट्विटर पर साझा किया जिसमें लिखा है, 'कोरोना वायरस मानवता का साझा दुश्मन है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट और साथ मिलकर इसका मुकाबला करने की जरूरत है। चीनी पक्ष भारत सरकार और वहां के लोगों का, महामारी से लड़ाई में समर्थन करता है।' वांग ने कहा कि चीन में उत्पादित महामारी रोधी वस्तुएं तेजी से भारत में पहुंचाई जा रही हैं ताकि भारत की इस महामारी में मदद की जा सके। उन्होंने कहा, 'चीनी पक्ष भारत की जरूरत के अनुरूप यथासंभव समर्थन और मदद पहुंचाना जारी रखेगा। हमें उम्मीद और भरोसा है कि भारत सरकार के नेतृत्व के अंतर्गत लोग यथाशीघ्र इस महामारी पर काबू पा लेंगे।' राष्ट्रपति शी और विदेश मंत्री वांग का संदेश ऐसे समय आया है, जब दोनों देशों की सेनाओं की पूर्वी लद्दाख के बाकी बचे तनाव वाले इलाके से वापसी होनी बाकी है। दोनों देशों की सेना फरवरी में पैगोंग झील के इलाके से पीछे हटी थीं। भारत में शुक्रवार को कोविड-19 के अब तक के सर्वाधिक 3,86,452 नए मामले सामने आए जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 1,87,62,976 हो गयी। इसके साथ ही देश में उपचाराधीन मरीजों की संख्या 31 लाख को पार कर गयी है। वहीं 3,498 और मरीजों की मौत हो जाने से संक्रमण के कारण अब तक दम तोड़ चुके लोगों की कुल संख्या बढ़कर 2,08,330 हो गई है।


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पिछले 21 साल में धरती के ग्लेशियर्स इस गति से गायब हुए हैं कि उससे समुद्र स्तर को होने वाले खतरे की गंभीरता पता चलती है। एक स्टडी में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से हर साल 267 अरब टन ग्लेशियर गायब हुए हैं। वैश्विक समुद्र स्तर में होने वाली बढ़त का 21% हिस्सा इसी कारण रहा। फ्रांस के रिसर्चर्स ने 2 लाख ग्लेशियर्स के हाई रेजॉलूशन मैप्स के अनैलेसिस में यह पाया है कि ये इन दो दशकों में कैसे बदले हैं और इसमें चिंताजनक नतीजे दिखे हैं। अनैलेसिस में आशंका जताई गई है कि ग्लेशियर मास (द्रव्यमान) हर साल 48 अरब टन की दर से गायब हो रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ टूलूज की टीम ने दुनिया के करीब सारे 2.17 लाख ग्लेशियर्स के हाई-रेजॉलूशन मैप देखे। इनमें सैटलाइट और एरियल तस्वीरें थीं जिनसे यहां आया बदलाव पता चला। इनके आधार पर 2000-2019 के बीच ऊंचाई में आए बदलाव का आकलन किया गया जिसकी पुष्टि डेटा से हुई।


20 साल से हर साल 267 अरब टन पिघल रहे हैं धरती के ग्लेशियर, यूं ही बढ़ा समुद्र स्तर तो अरबों खतरे में

पिछले 21 साल में धरती के ग्लेशियर्स इस गति से गायब हुए हैं कि उससे समुद्र स्तर को होने वाले खतरे की गंभीरता पता चलती है। एक स्टडी में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से हर साल 267 अरब टन ग्लेशियर गायब हुए हैं। वैश्विक समुद्र स्तर में होने वाली बढ़त का 21% हिस्सा इसी कारण रहा। फ्रांस के रिसर्चर्स ने 2 लाख ग्लेशियर्स के हाई रेजॉलूशन मैप्स के अनैलेसिस में यह पाया है कि ये इन दो दशकों में कैसे बदले हैं और इसमें चिंताजनक नतीजे दिखे हैं। अनैलेसिस में आशंका जताई गई है कि ग्लेशियर मास (द्रव्यमान) हर साल 48 अरब टन की दर से गायब हो रहा है।



20 साल के डेटा ने खोला राज
20 साल के डेटा ने खोला राज

स्टडी में बताया गया है, 'कई क्षेत्रों में मास में आए बदलाव के पैटर्न समझने से हमें अलग-अलग ट्रेंड दिखते हैं जो दशकों के बीच अलग-अलग बारिश और तापमान के बारे में बताते हैं।' यूनिवर्सिटी ऑफ टूलूज की टीम ने दुनिया के करीब सारे 2.17 लाख ग्लेशियर्स के हाई-रेजॉलूशन मैप देखे। इनमें सैटलाइट और एरियल तस्वीरें थीं जिनसे यहां आया बदलाव पता चला। इनके आधार पर 2000-2019 के बीच ऊंचाई में आए बदलाव का आकलन किया गया जिसकी पुष्टि डेटा से हुई। इसके आधार पर वॉल्यूम और मास में बदलाव कैलकुलेट किया गया। (फोटो: Colin Baxter/Kieran Baxter, University of Dundee)



तेजी से पिघल रही बर्फ
तेजी से पिघल रही बर्फ

स्टडी के नतीजों में चिंताजनक बात यह सामने आई है कि इन 20 सालों में ग्लेशियर्स की बर्फ का 267 गीगाटन हिस्सा हर साल खो गया। वैश्विक समुद्र स्तर में इस दौरान जो बढ़त हुई उसका 21% हिस्सा यही रहा है। रिसर्चर्स ने ऐसे 7 क्षेत्रों की पहचान की है जहां ग्लेशियर मास लॉस का 83% हिस्सा रहा हो। सिर्फ दो क्षेत्रों में 20 सालों में ग्लेशियर से बर्फ पिघलना धीमा होता दिखा। रिसर्चर में कहा गया है कि समय के साथ ग्लेशियर कैसे पिछले और कैसे इन्होंने आज की हाइड्रॉलजी को बदला, समुद्र स्तर के बढ़ने में योगदान दिया, इसे समझने से भविष्य में बदलाव किए जा सकते हैं।



अरबों के लिए खाने और पानी का संकट
अरबों के लिए खाने और पानी का संकट

समुद्रस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में रह रहे लोगों और बर्फ में रहने वाले जीवों पर संकट खड़ा हो सकता है। स्टडी के मुताबिक करीब 20 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इन क्षेत्रों में रह रहे हैं। ये क्षेत्र सदी के आखिर तक बढ़ते समुद्र स्तर के कारण हाई-टाइड का शिकार हो सकते हैं। एक अरब लोगों के सामने अगले तीस साल में पानी और खाने की कमी हो सकती है। रिसर्चर्स ने उम्मीद जताई है कि इन नतीजों की मदद जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।





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पेरिस फ्रांस ने भारत में फैले कोरोना वायरस के स्वरूप वाला पहला मामला सामने आने की पुष्टि की है। फ्रांस में वायरस के नए स्वरूप का मामला ऐसे वक्त आया है जब राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने देश में अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने को लेकर छह महीने की पाबंदी के बाद चरणबद्ध तरीके से कुछ गतिविधियों को इजाजत के लिए राष्ट्रीय योजना का जिक्र किया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बृहस्पतिवार रात कहा कि दक्षिणी फ्रांस के बचेस डू रोने और लोत एत गारोने क्षेत्र में तीन लोगों के वायरस के नए स्वरूप से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है। तीनों लोगों ने पिछले दिनों भारत की यात्रा की थी। मंत्रालय ने कहा कि संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाया जा रहा है। फ्रांस ने भारत तथा संक्रमण के प्रसार वाले अन्य देशों से आने वाले लोगों के संबंध में पिछले सप्ताह नियंत्रण की घोषणा की थी।


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मॉस्को अमेरिका से जारी सैन्य तनाव के बीच रूस की एक मिसाइल टेस्टिंग के दौरान फेल होकर समुद्र में गिर गई। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। बताया जा रहा है कि इस कैलिबर क्रूज मिसाइल को 1155 उडलोय क्लास के डिस्ट्रॉयर मार्शल शापोशनिकोव से लॉन्च किया गया था। वीडियो में मिसाइल लॉन्चिंग के तुरंत बाद ही बेकाबू होकर गोल-गोल घूमते हुए दिख रही है। जिसके बाद वह नीचे समुद्र में गिरकर नष्ट हो जाती है। सोशल मीडिया पर लीक हुआ वीडियो बताया जा रहा है कि यह सरकारी रिकॉर्डिंग है, जिसका एक पार्ट रूसी टेलिग्राम सोशल मीडिया नेटवर्क पर लीक हो गया। बाद में यह ट्विटर और यूट्यूब पर भी खूब वायरल हो रहा है। रूसी नौसेना का डिस्ट्रॉयर मार्शल शापोशनिकोव ओवरहाल होकर वापस लौटा है। जिसके बाद इसे दोबारा रूसी नौसेना ने पैसिफिक फ्लीट में शामिल किया गया था। इन दिनों इस डिस्ट्रॉयर का परीक्षण चल रहा है। रूसी सेना के चैनल ने दिखाया था सफल लॉन्च समुद्र में वापस आने के बाद अप्रैल के शुरुआत से ही इसमें लगाए गए वर्टिकल लॉन्च सिस्टम से कैलिबर मिसाइल का लाइव-फायर ड्रिल किया जा रहा था। 27 अप्रैल को रूसी रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक समाचार चैनल जवेजा पर एक सफल मिसाइल लॉन्च की फुटेज दिखाई गई थी। जिसके बाद दावा किया जा रहा है कि यह दोनों घटना एक ही हो सकती है। जापान सागर में किया जा रहा टेस्ट जजेवा की रिपोर्ट के अनुसार, यह मिसाइल टेस्ट जापान सागर में किया जा रहा है। इसमें प्रशांत महासागर में तैनात रूसी सेना की पूर्वी फ्लीट के कई जंगी जहाज शामिल हैं। जिसमें लाइव फायर ड्रिल, मिसाइल और बंदूक की फायरिंग शामिल हैं। इस कारण जापान और रूस में तनाव भी काफी बढ़ गया है। अमेरिकी नौसेना भी जापान के आसपास के इलाकों में अपने टोही विमानों के जरिए रूसी नौसेना की हरकतों पर नजर बनाए हुए है। 1984 में बनाया गया था यह युद्धपोत साल 1984 में रूसी नौसेना की प्रोजेक्ट 1155 के रूप में उडलोय क्लास के एंटी सबमरीन वायफेयर डिस्ट्रॉयर मार्शल शापोशनिकोव को बनाया गया था। आज से चार साल पहले इस युद्धपोत को ओवरहाल के लिए व्लादिवोस्तोक लाया गया था। जिसके बाद इस जहाज को अपग्रेड कर इसमें वर्टिकल लॉन्च सिस्टम के अलावा, अतिरिक्त बंदूकें और यूरन सबसोनिक एंटी-शिप मिसाइलें तैनात की गईं। दावा किया गया कि इसके 20 फीसदी पुराने स्ट्रक्चर को ध्वस्त कर वहां नया निर्माण किया गया है। अपग्रेड होने के बाद बना अधिक शक्तिशाली इस जहाज में बाकी युद्धपोतों और कमांड सेंटर से बातचीत करने के लिए नई संचार प्रणाली, अधिक मात्रा में पावर देने के लिए नया पॉवरप्लांट और पानी के नीचे की गतिविधियों का पता लगाने के लिए अधिक शक्तिशाली सोनार लगाया गया है। इसमें कैलिबर क्रूज मिसाइलों को लॉन्च करने के लिए 3S14 वर्टिकल लॉन्च सिस्टम को लगाया गया है। जहाज पर इस तरह के कुल 16 मिसाइल लॉन्चिंग सेल हैं। इससे ओनिक्स सुपरसोनिक एंटी-शिप क्रूज मिसाइल को भी फायर किया जा सकता है। ऐसा शक है कि इस मिसाइल के अंदर हाइपरसोनिक Tsirkon क्रूज मिसाइल भी लगी हुई है।


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बिश्केक मध्य एशियाई देश और में पानी को लेकर हुई फायरिंग में कम से कम तीन लोगों की मौत हुई है। बताया जा रहा है कि दोनों देशों के नागरिकों के बीच शुरू हुई पत्थरबाजी में सुरक्षाबल भी शामिल हो गए। जिसके बाद किर्गिस्तान और तजाकिस्तान के सुरक्षाबलों ने एक दूसरे पर गोलियां भी चलाईं। वहीं, पत्थरबाजी में भी कई लोगों के घायल होने की खबर है। यह झड़प तजाकिस्तान के सुग्ग प्रांत और किर्गिस्तान के दक्षिणी बाटकेन प्रांत के बीच स्थित सीमा पर हुई। पानी को लेकर शुरू हुआ था विवाद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद काफी पुराना है। सोवियत संघ से अलग होने के बाद इन दोनों देशों के बीच कई इलाके ऐसे हैं, जहां कोई स्थायी सीमांकन नहीं है। इन इलाकों पर दोनों देश दावा करते हैं, जिस कारण पहले भी कई बार झड़पें हो चुकी हैं। इस बार का विवाद इतना गंभीर था कि दोनों देशों ने अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती तक कर दी है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी दोनों देश इस्फ़ारा नदी पर स्थित एक जलाशय और पम्पिंग स्टेशन पर अपना दावा करते हैं। दोनों पक्षों के निवासियों ने झड़पों के बढ़ने से पहले एक दूसरे पर पत्थर फेंके। जिसके बाद सुरक्षाबलों ने गोलियां चलाई। किर्गिस्तान की राज्य राष्ट्रीय सुरक्षा समिति ने तजाकिस्तान पर इस जलाशय से पानी चुराने का आरोप लगाया है। वहीं तजाकिस्तान ने कहा कि यह सुविधा उनसे संबंधित है और उन्होंने किर्गिस्तान की सेना पर फायरिंग करने का आरोप लगाया। युद्धविराम को लेकर सक्रिय दोनों देश सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच दोनों देशों के विदेश मंत्रालय लगातार बातचीत कर रहे हैं। किर्गिस्तान और तजाकिस्तान ने बयान जारी कर कहा है कि उन्होंने आपसी बातचीत के बाद सीमा से अतिरिक्त सैनिकों को हटा लिया है। हालांकि, किर्गिस्तान सरकार के एक सूत्र ने कहा कि उन्हें डर है कि पीछे हटने से वे स्थायी रूप से इस इलाके को खो सकते हैं। सीमावर्ती गांवों को कराया गया खाली बताया जा रहा है कि एक तालाब को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद किर्गिज़ सीमा चौकी पर तजाकिस्तान की सेना ने मोर्टार दागा। जिसके बाद किर्गिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए तजाकिस्तान की एक बार्डर चौकी पर कब्जा जमा लिया। तनाव बढ़ता देख दोनों देशों ने सीमा के आसपास के कई गांवों को खाली करवा लिया।


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पेइचिंग चीन ने भारत को कोरोना वायरस महामारी से जूझता देख तिब्बत में नए कमांडर को नियुक्त किया है। चीनी सेना के पश्चिमी थिएटर कमांड के अंदर आने वाले तिब्बत सैन्य क्षेत्र के नए कमांडर का नाम लेफ्टिनेंट जनरल वांग काई है। इससे पहले ये चीनी सेना के सबसे खूंखार मानी जाने वाली एलीट 13वीं ग्रुप आर्मी के कमांडर थे। इस एलीट फोर्स को टाइगर्स इन द माउंटेंस के नाम से जाना जाता है, जो पहाड़ी क्षेत्रों में लड़ाई करने में पारंगत है। जिसके बाद से यह अंदेशा जताया जाने लगा है कि चीन कहीं फिर से भारत के साथ धोखा करने प्लान तो नहीं बना रहा। चीन ने गुपचुप की नियुक्ति साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने लेफ्टिनेंट जनरल वांग काई की नियुक्ति को काफी गुपचुप तरीके से अंजाम दिया है। इस बात का खुलासा सोमवार को कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास शिक्षा वर्ग में हुआ। इस दौरान वांग काई चीन के सबसे बड़े सैन्य क्षेत्र पश्चिमी थिएटर कमांड के अंतर्गत आने वाले तिब्बत सैन्य क्षेत्र के नए कमांडर के रूप में दिखाई दिए। चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वांग काई से पहले इस पद पर वैंग हाईजियांग काबिज थे, जिन्हें अब शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र में एक सरकारी अधिकारी बना दिया गया है। चीन की एलीट कमांडो यूनिट के कमांडर थे वांग काई वांग काई को आज से आठ साल पहले 2013 में चीन की एलीट 13वीं ग्रुप आर्मी का कमांडर बनाया गया था। जिसके बाद वे लगातार सेना में तरक्की पाते रहे। इनके नेतृत्व में चीनी सेना की इस स्पेशल कमांडो यूनिट ने कई गुप्त अभियानों को अंजाम दिया है। चोंगकिंग स्थित चीनी सेना की 13वीं ग्रुप का लड़ाकू ईकाइयों में काफी नाम है। स्थानीय मीडिया के अनुसार, यह ग्रुप कठिन परिस्थिति में भी जंगल, घाटी और पहाड़ी इलाकों में लड़ाई करने में माहिर है। लेफ्टिनेंट जनरल वांग काई चीनी सेना के ग्रुप के पास सबसे ज्यादा युद्ध मेडल चीन की 13वीं ग्रुप फोर्स को 1949 के बाद से युद्ध अभियानों में भाग लेने वाला एकमात्र समूह माना जाता है। 1950 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद से इस ग्रुप के पास किसी भी दूसरी चाइनीज ग्रुप आर्मी से ज्यादा युद्ध सम्मान मिले हुए हैं। मध्य चीन में ताइयु मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट में स्थित इसके हेडक्वॉर्टर में 1930 से काम करने वाले सभी सैनिकों का बॉयोडेटा भी रखा हुआ है। लद्दाख विवाद में इनके ही लड़ाकों ने लिया था हिस्सा तिब्बत कमांड में अधिकांश सैनिक चीन के यून्नान प्रांत के निवासी होते हैं। माना जाता है कि 2017 के डोकलाम तनातनी और 2020 के लद्दाख विवाद में इसी ग्रुप के कमांडो सैनिकों ने हिस्सा लिया था। इनके प्रमुख कार्यों में तिब्बत की स्थिरता सुनिश्चित करना और भारत-वियतनाम के साथ लगी चीन की सीमाओं की रक्षा करना शामिल है। इस कोर के पूर्व कमांडरों में जनरल जांग यूशिया भी शामिल हैं, जो अभी चीनी सेना के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय केंद्रीय सैन्य आयोग के दूसरे सबसे बड़े कमांडर हैं। तिब्बत को लेकर परेशान है चीन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के एक पूर्व प्रशिक्षक सॉन्ग झोंगपिंग ने SCMP को बताया कि चीन के लिए तिब्बत का इलाका अब भी चिंता का विषय बना हुआ है। इसलिए, ही वांग काई को उनके व्यापक युद्ध अनुभवों को देखते हुए इस इलाके की जिम्मेदारी दी गई है। पेइचिंग को को इस क्षेत्र की देखरेख करने और चीनी सीमा को सुरक्षित रखने के लिए बहुत पहले से एक अनुभवी कमांडर की आवश्यकता थी, जिसपर वांग काई बिलकुल फिट बैठे हैं।


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Thursday 29 April 2021

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तेल अवीव के माउंट मेरोन में लाग बी'ओमर उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 44 यहूदियों की मौत हो चुकी है। पुलिस ने बताया है कि इस हादसे में 103 से ज्यादा लोग घायल हैं, जिनमें से कई की हालत गंभीर बनी हुई है। इजरायल की बचाव सेवा, द मैगन डेविड एडोम (एमडीए) ने अंदेशा जताया है कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है। लाग बी'ओमर इजरायल के रूढ़िवादी यहूदियों को प्रमुख धार्मिक उत्सव है, जिसे हिब्रू महीने आयर (Iyar) के 18वें दिन मनाया जाता है। अबतक 44 की मौत, बढ़ सकता है आंकड़ा इजरायली मीडिया येरुशलम पोस्ट ने अभी तक 44 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है। इस घटना के बाद पुलिस ने पूरे इलाके को बंद कर दिया और वहां इकट्ठा हुए लोगों को बाहर निकाला। एमडीए ने कहा है कि घायलों में 38 लोगों की हालत बहुत ही गंभीर है, इनमें से कई अभी भी भगदड़ वाली जगह पर पड़े हुए हैं। पुलिस के साथ राहत और बचाव एजेंसियां घायलों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने के काम में जुटी हुई हैं। पिछले साल नहीं हुआ था यह आयोजन यह धार्मिक आयोजन पिछले साल कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण नहीं हुआ था। इस बार वैक्सीनेशन के बाद इस धार्मिक उत्सव के आयोजन की मंजूरी मिली हुई थी। जिसके बाद बड़ी संख्या में यहूदी लोग तीर्थयात्रा में शामिल होने के लिए एकत्रित हुए थे। यह कार्यक्रम एक स्टेडियम में आयोजित किया जा रहा था, जिसमें लाखों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। स्टेडियम का एक हिस्सा गिरने से मची भगदड़ पुलिस ने बताया कि भगदड़ की शुरुआत स्टेडियम में लोगों के बैठने की एक जगह के गिरने से हुई। जैसे ही स्टेडियम का एक हिस्सा ढहा, लोग जान बचाने के लिए चारों तरफ दौड़ने लगे। जिसके बाद पूरे स्टेडियम में भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। मृतकों और घायलों में बड़ी संख्या में बुजुर्ग लोग और बच्चे शामिल हैं। इजरायली मीडिया ने जमीन पर प्लास्टिक की थैलियों में ढंके शवों की एक तस्वीर प्रकाशित की गई है। सेना तैनात, नेतन्याहू ने जताया दुख आपातकालीन सेवाओं ने घायलों को निकालने के लिए छह हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं। इजरायल के प्रधान मंत्री ने इसे भारी आपदा करार देते हुए सभी घायलों के स्वस्थ होने की अपील की। उन्होंने लिखा कि हम सभी हताहतों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। इजरायली सेना ने कहा कि उसकी मेडिकल टीमें और जवान माउंट मेरोन में घायल लोगों को बचाने के अभियान में जुटी हुई हैं।


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साओ पाउलो ब्राजील में महज एक महीने में कोरोना वायरस से 1,00,000 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण के बाद लोगों के मरने की इस भयावह रफ्तार से ब्राजील में दहशत फैली हुई है। दक्षिण अमेरिका के इस देश में कोरोना से मरने वाले लोगों की कुल संख्या 400000 के पार पहुंच गई है। हालांकि, कोविड से हुई कुल मौतों के मामले में ब्राजील अब भी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने देश में हालात और बिगड़ने को लेकर आगाह किया है। अबतक 4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत ब्राजील में इस वैश्विक महामारी से अप्रैल में सबसे अधिक मौत हुई हैं। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि इस महीने के पहले दो दिनों में 4,000 से अधिक लोगों की मौत हुई। पिछले दो हफ्तों में हर दिन करीब 2,400 लोगों की मौत हुई और स्वास्थ्य मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को 3,001 और लोगों के मरने की जानकारी दी, जिससे देश में मृतकों की संख्या 401,186 पर पहुंच गई। कोरोना के एक और लहर की आशंका से बढ़ी चिंता स्थानीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने संक्रमण के मामले और मौत की संख्या घटने पर थोड़ी राहत की सांस ली, लेकिन उन्हें बीमारी की एक अन्य लहर आने की आशंका है जैसा कि कुछ यूरोपीय देशों में देखा गया। ऑनलाइन रिसर्च वेबसाइट आवर वर्ल्ड इन डेटा के अनुसार छह प्रतिशत से भी कम ब्राजीलियाई नागरिकों को कोविड-19 का टीका लगा है। वैक्सीनेशन को लेकर निशाने पर राष्ट्रपति बोलसोनारो देश के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने दोहराया कि वह सबसे आखिर में टीका लगवाएंगे और उन्होंने महामारी को फैलने से रोकने के लिए पाबंदियों लगाने के लिए देशभर के मेयर और गवर्नर पर निशाना साधा। स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों में से एक महामारी विशेषज्ञ वेंडरसन ओलिविरा ने कहा कि उन्हें जून के मध्य तक तीसरी लहर आने की आशंका है।


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इस्लामाबाद पाकिस्तान में सरकार के दिन अब पूरे होते दिखाई दे रहे हैं। निराशा और आक्रोश में डूबी पाकिस्तान की अवाम ने कराची के NA-249 संसदीय उपचुनाव में इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ को कड़ा सबक सिखाया है। इस उपचुनाव में बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के उम्मीदवार कादिर खान मंडोखेल को जीत हासिल हुई है। उन्होंने नवाज शरीफ की पीएमएल-एन के उम्मीदवार मिफ्ताह इस्माइल को हराया है। जबकि, इमरान की पार्टी पीटीआई के प्रत्याशी अमजद अफरीदी पांचवें स्थान पर हैं। बैन के बाद टीएलपी ने लड़ा चुनाव बड़ी बात यह है कि इस उपचुनाव में प्रतिबंधित होने के बावजूद ने अपना प्रत्याशी उतारा। इस चुनाव में टीएलपी के उम्मीदवार मुफ्ती नजीर अहमद कमलवी 11,125 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर हैं। इसी कट्टरपंथी पार्टी ने कुछ दिनों पहले फ्रांस से राजनयिक संबंध तोड़ने के नाम पर पाकिस्तान की सड़कों पर जमकर उत्पात मचाया था। जिसके बाद इमरान कैबिनेट ने टीएलपी को आतंकवादी संगठन मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया था। विपक्षी पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा चुनाव NA-249 संसदीय उपचुनाव में विपक्षी पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, हालांकि इमरान सरकार को हटाने के नाम पर ये एकजुट होने का दावा करते हैं। जीत के बाद खुशी से लबरेज बिलावल भुट्टो जरदारी ने ट्वीट कर कराची के मतदाताओं को धन्यवाद किया। वहीं, पीएमएल-एन की प्रमुख नेता और नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज ने ट्वीट कर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। मरियम ने चुनाव परिणाम रोकने की मांग की मरियम नवाज ने लिखा कि चुनाव आयोग को सबसे अधिक विवादित और विवादास्पद चुनावों में से एक के परिणामों को रोकना चाहिए। भले ही यह नहीं होगा, यह जीत अस्थायी होगी और जल्द ही पीएमएल-एन वापसी करेगी। उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को नवाज शरीफ और पार्टी के लिए मतदान और मिफ्ताह इस्माइल का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया। देर रात तक चली वोटिंग में सिर्फ 15 फीसदी मतदान? उन्होंने सवाल किया कि जब मतदान केवल 15 से 18 फीसदी ही हुआ तो यह देर रात तक कैसे जारी रहा। क्या यहां कुछ पर्दे के पीछे खेल हुआ जिससे इलेक्शन स्टॉफ को देरी हुई। क्या उन्हें लगता है कि हम मूर्ख हैं? पहले यह सीट नवाज शरीफ की पार्टी के पास थी, लेकिन 2018 में यहां से इमरान खान की पार्टी को जीत मिली। लेकिन, इस बार के उपचुनाव में इमरान की पार्टी पांचवें स्थान पर लुढ़क गई है।


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वॉशिंगटन कोरोना महाविस्फोट से जूझ रहे भारत की मदद करने के लिए दुनियाभर के कई देशों ने हाथ बढ़ाया है। बेइज्जती के बाद जागा अमेरिका प्रशासन भी कोरोना को लेकर भारत के साथ 24 घंटे संपर्क में है। अमेरिका से दो ट्रांसपोर्ट विमान ऑक्सिजन सिलिंडर/रेग्युलेटर, रैपिड डायग्नोस्टिक किट, N95 मास्क और पल्स ऑग्जीमीटर लेकर रवाना भी हो चुके हैं। इन विमानों के आज यानी शुक्रवार को भारत पहुंचने की उम्मीद है। USAID के वरिष्ठ सलाहकार ने किया खुलासा सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) ने बताया है कि बाइडन प्रशासन कोरोना का कहर झेल रहे भारत के साथ उनकी प्राथमिकताओं पर नॉनस्टॉप सलाह दे रहा है। कोरोना को लेकर यूएसएआईडी के वरिष्ठ सलाहकार समन्वयक जेरेमी कोनडायक ने बताया कि भारत को की जा रही आपूर्ति रवाना हो चुकी है और इससे दोनों देशों के बीच एक बहुत ही करीबी समन्यवय भी स्थापित हुआ है। आज भारत के लिए रवाना होगा तीसरा शिपमेंट अमेरिका की वायुसेना का विमान C-5M सुपरगैलेक्सी और C-17 ग्लोबमास्टर III विमान कैलिफोर्निया में ट्रैविस एयर फोर्स बेस से रवाना हो चुके हैं। जबकि, आज एक और जहाज ट्रैविस एयर फोर्स बेस से तीसरा शिपमेंट लेकर भारत के लिए रवाना होने वाला है। इस जहाज में पीपीई, ऑक्सीजन, टेस्ट किट, मास्क के साथ कई अन्य मेडिकल इक्यूपमेंट्स लदे होंगे। बाइडन-मोदी फोन कॉल के बाद बदले हालात पिछले हफ्ते ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर बातचीत कर मदद का भरोसा दिलाया था। बाइडन ने कहा था कि भारत जरूरत के वक्त अमेरिकी लोगों के साथ था और भारत में अब तक के सबसे बुरे जन स्वास्थ्य संकट के समय अमेरिका उसके साथ खड़ा रहेगा। वाइट हाउस ने बाद में जारी एक बयान में बताया था कि वे भारत को दवाईयां, वेंटिलेटर तथा कोविशील्ड टीके के निर्माता के लिए आवश्यक कच्चा माल सहित अन्य संसाधनों को मुहैया कराने जा रहे हैं। रेडक्रॉस ही नहीं, प्राइवेट कंपनियों के साथ भी सहायता जारी USAID के जेरेमी कोनडायक ने बताया कि भारत सरकार ने कहा है कि यूएसएआईडी भारतीय रेड क्रॉस के माध्यम से आपूर्ति वितरित करने के लिए काम करता है इसलिए हम मुख्य रूप से उस चैनल के माध्यम से काम करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस आपूर्ति के अलावा वे निजी क्षेत्र की साझेदारी के माध्यम से भारत में अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं को कुछ प्रत्यक्ष सहायता प्रदान कर रहे हैं और साथ ही कई एनजीओ को अतिरिक्त सहायता दे रहे हैं। अमेरिका ने भारत रवाना किया ये सामान यूएसएड ने अपने बयान में बताया कि जो दो जहाज भारत के लिए रवाना हुए हैं, उनमें कैलिफोर्निया राज्य द्वारा दान किया गया 440 ऑक्सीजन सिलेंडर भी लगा हुआ है। इसके अलावा सामुदायिक संक्रमण को रोकने में मदद करने वाले 960,000 रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट और 100,000 एन 95 मास्क शामिल हैं। दरअसल कैलिफोर्निया ने अमेरिका की संघीय सरकार को बताया था कि उनके पास ये सामान बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। क्या यह भारत के लिए उपयोगी हो सकते हैं? जिसके बाद वहां से भारत के लिए ये सामान रवाना किए गए।


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वॉशिंगटन बढ़ती महामारी के बीच अमेरिका की वायुसेना का विमान C-5M सुपरगैलेक्सी और C-17 ग्लोबमास्टर III भारत के लिए निकल लिए हैं। ये ऑक्सिजन सिलिंडर/रेग्युलेटर, रैपिड डायग्नोस्टिक किट, N95 मास्क और पल्स ऑग्जीमीटर लेकर आ रहे हैं। सूत्रों ने बुधवार को बताया था कि भारत ने अमेरिका से मेडिकल आपूर्ति मांगी है जिनमें वैक्सीन की तैयार खुराकों के साथ-साथ कच्चा माल भी शामिल है। बताया गया है कि मेडिकल आपूर्ति लेकर एक अमेरिकी विमान के शुक्रवार को यहां पहुंचने की संभावना है जबकि रूसी विमान के बृहस्पतिवार रात तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत अमेरिका और अन्य देशों से रेमडेसिविर, टोसिलिज़ुमैब और फेवीपिरवीर जैसी अहम दवाओं की खरीद पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। अमेरिका के अलावा रूस, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्समबर्ग, सिंगापुर, पुर्तगाल, स्वीडन, न्यूजीलैंड, कुवैत और मॉरीशस सहित कई प्रमुख देशों ने भारत को महामारी से लड़ने में मदद करने के लिए मेडिकल सहायता की घोषणा की है।


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पेइचिंग प्रमुख रक्षा अध्यक्ष का यह बयान कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति बदलने का प्रयास किया 'पूरी तरह से तथ्यों से परे' है। यह बात गुरुवार को चीन की सेना ने कही। जनरल रावत ने कहा था कि उत्तरी सीमा पर यथास्थिति बदलने से रोकने के लिए भारत पूरी दृढ़ता से खड़ा है और देश ने साबित किया है कि वह किसी दबाव में पीछे नहीं हटेगा। इसके बाद चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान सामने आया है। जनरल रावत ने 15 अप्रैल को नयी दिल्ली में रायसीना डायलॉग में कहा था, 'उन्होंने कोशिश की कि बिना बल का इस्तेमाल किए बाधा डालने वाली प्रौद्योगिकी के माध्यम से वे यथास्थिति बदल देंगे... उन्होंने सोचा कि एक देश के तौर पर भारत उस दबाव में झुक जाएगा जो वे अपनी प्रौद्योगिकी दक्षता के मार्फत डाल रहे थे।' उन्होंने डिजिटल सम्मेलन में कहा था, 'लेकिन मेरा मानना है कि उत्तरी सीमा पर भारत पूरी दृढ़ता के साथ खड़ा रहा और हमने साबित किया है कि हम पीछे नहीं हटेंगे।' जनरल रावत के बयान पर जब चीन से जवाब मांगा गया तो चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल वू कियान ने इसे 'खारिज' कर दिया। यह जानकारी चीन की सेना की आधिकारिक वेबसाइट ने दी। खबर में बताया गया, 'वरिष्ठ कर्नल वू ने राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के नियमित संवाददाता सम्मेलन में 29 अप्रैल को कहा कि भारतीय पक्ष का बयान तथ्यों से परे है।' उन्होंने कहा, 'चीन-भारत सीमा के पश्चिमी हिस्से में स्थिति के बारे में चीन ने विस्तार से बता दिया है और जिम्मेदारी चीन की नहीं है।' वू ने कहा, 'भारत और चीन के संयुक्त प्रयास से सीमा पर तैनात सुरक्षा बल हाल में गलवान घाटी और पैंगोंग झील इलाके में पीछे चले गए हैं और पूरे सीमावर्ती क्षेत्र में स्थिति में सुधार आया है।' वू ने कहा कि चीन-भारत सीमा मुद्दे पर चीन का रूख स्पष्ट और सतत है।


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वॉशिंगटन भारत में कोरोना वायरस की दूसरी वेव ने ऐसे हाहाकार मचाया कि सारी दुनिया सदमे में है। अभी तक कई देशों को मदद पहुंचा चुके भारत में अब लोग अपनों के लिए भटक रहे हैं। जाहिर है कि पूरी दुनिया की निगाहें हालात पर हैं। इसी कड़ी में अमेरिका की प्रतिष्ठित 'टाइम' मैगजीन ने अपने कवर पेज पर भारत की त्रासदी को दिखाया है। 'संकट में भारत' हेडिंग के साथ श्मशान घाट की तस्वीर इस दर्दनाक माहौल की कहानी सुना रही है। मैगजीन के लिए नैना बजेकल ने कवर स्टोरी में लिखा है, 'भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने की कगार पर है। देश के अस्पतालों में ऑक्सिजन, वेंटिलेटर और बेड्स की कमी है। भारतीय रेडेसिविर के लिए भाग रहे हैं जिससे कीमतें बढ़ गई हैं जबकि लैब बढ़ते कोविड-19 टेस्ट निपटाने की कोशिश कर रही हैं।' यह मानवीय आपदा सिर्फ भारत के 1.4 अरब लोगों के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए भयावह होगी।' स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पिछले 24 घंटे में एक दिन में कोविड-19 के सर्वाधिक तीन लाख 79 हजार 257 मामले आए और 3645 लोगों की मौत हुई। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले कुछ हफ्तों के दौरान भारत को अतिरिक्त पांच लाख आईसीयू बिस्तरों, दो लाख नर्सों और डेढ़ लाख डॉक्टरों की जरूरत पड़ेगी। डॉ. शेट्टी ने कहा, 'भारत में 75 से 90 हजार आईसीयू बेड हैं, जो महामारी की दूसरी लहर के चरम पर पहुंचने से पहले ही भर चुके हैं। रोज 3.5 लाख नए मामले आ रहे हैं। एक्सर्ट्स का कहना है कि यह संख्या पांच लाख तक जा सकती है।' डॉ. शेट्टी ने कहा, हर संक्रमित मरीज के साथ पांच से 10 लोग ऐसे हैं, जिनकी जांच नहीं हो रही है। भारत में अब रोज 15 से 20 लाख लोग संक्रमित हो सकते हैं।' ऐसे हालात में दुनियाभर से मदद भारत आ रही है। भारतीय वायुसेना ने गुरुवार को बैंकॉक, सिंगापुर और दुबई से 12 खाली क्रायोजेनिक ऑक्सिजन कंटेनर भारत लाए। भारत कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहा है और कई राज्यों के अस्पतालों में चिकित्सीय ऑक्सीजन और बिस्तरों की कमी है। एक आधिकारिक बयान में बताया गया, 'भारतीय वायुसेना फिलहाल खाली क्रायोजेनिक कंटेनर तीन स्थानों से ला रही है। तीन कंटेनर बैंकॉक से, तीन सिंगापुर से और छह कंटेनर दुबई से लाए गए हैं।' भारतीय वायुसेना शुक्रवार से खाली ऑक्सिजन टैंकर और कंटेनर देश के विभिन्न फिलिंग स्टेशनों पर पहुंचा रही है ताकि कोविड-19 रोगियों को मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सके।


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दक्षिण अफ्रीका की एक गुफा में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे करीब बीस लाख साल पहले इंसानी ठिकाने होने के सबूत मिले हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि ये हमारे पूर्वजों का सबसे पहला घर हो सकता है। जेरूसलेम में हीब्रू यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने दक्षिण अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में वंडरवर्क केव को स्टडी किया और यहां प्राचीन परतों में छिपे रहस्यों को खोजा गया। इस जगह का स्थानीय भाषा में नाम ही 'चमत्कार' है और यहां लाखों साल के पुरातन रेकॉर्ड मौजूद हैं। (फोटो: Michael Chazan)

नई स्टडी में यहां करीब 20 लाख साल पहले के इंसानों के बनाए औजार मिलने की पुष्टि की गई है। इसके साथ ही गुफा में रहने का यह दुनिया का सबसे पुराना सबूत माना जा रहा है। यहां आग का इस्तेमाल करने के सबूत भी मिले हैं।


Cave found in South Africa: अफ्रीका के रेगिस्तान में मिला आदिमानव का सबसे पहला घर, गुफा में छिपे औजार खोलेंगे धरती के इतिहास का राज

दक्षिण अफ्रीका की एक गुफा में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे करीब बीस लाख साल पहले इंसानी ठिकाने होने के सबूत मिले हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि ये हमारे पूर्वजों का सबसे पहला घर हो सकता है। जेरूसलेम में हीब्रू यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने दक्षिण अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में वंडरवर्क केव को स्टडी किया और यहां प्राचीन परतों में छिपे रहस्यों को खोजा गया। इस जगह का स्थानीय भाषा में नाम ही 'चमत्कार' है और यहां लाखों साल के पुरातन रेकॉर्ड मौजूद हैं। (फोटो: Michael Chazan)



अंदर क्या मिला?
अंदर क्या मिला?

नई स्टडी में यहां करीब 20 लाख साल पहले के इंसानों के बनाए औजार मिलने की पुष्टि की गई है। इसके साथ ही गुफा में रहने का यह दुनिया का सबसे पुराना सबूत माना जा रहा है। यहां आग का इस्तेमाल करने के सबूत भी मिले हैं। स्टडी के लीड रिसर्चर प्रफेसर रॉन शार ने बताया, 'वंडरवर्क प्राचीन ओल्डोवन साइट्स में अनोखा है।' यहां टीम ने गुफाओं की परतों में खोज की और ओल्डोवन औजारों से आगे उन्हें हाथ से बनी कुल्हाड़ियां मिलीं। (फोटो: Michael Chazan)



कैसे बदला समय?
कैसे बदला समय?

यहां उन्हें 10 लाख साल पहले आग का इस्तेमाल करने के सबूत मिले। यहां जली हुईं हड्डियां, तलछट और औजारों की राख मिली है। टीम ने 8 फीट मोटी सेडिमेंटरी लेयर का अनैलेसिस किया जिसमें पत्थर से बने औजार, जानवरों के अवशेष और आग से जुड़ा सामान मिला। इनके मैग्नेटिक सिग्नल को स्टडी किया गया है। मैग्नेटाइजेशन तब होता है जब गीली मिट्टी के पार्टिकल, जो बाहर से गुफा में आए हों और प्राचीन जमीन पर रह गए हों और इससे उस वक्त धरती की जो मैग्नेटिक फील्ड थी, उसकी दिशा पता चलती है। (फोटो: Michael Chazan)



इतिहास की कहानी
इतिहास की कहानी

लैब अनैलेसिस में पता चला है कि कुछ सैंपल दक्षिण की तरफ मैग्नेटाइज्ड थे जो आज की मैग्नेटिक फील्ड है। शार ने बताया है कि धरती के चुबंकीय ध्रुवों के पलटने का समय विश्वस्तर पर माना गया है। इससे गुफाओं के अंदर परतों के क्रम से काफी अहम सबूत मिलते हैं। प्रफेसर अरी मैटमन ने सेकंडरी डेटिंग मेथड की मदद से पुष्टि की है यहां सबसे प्राचीन आदिमानव रहे होंगे। उन्होंने बताया कि रेत में क्वॉर्ट्ज पार्टिकल्स ने एक जियोलॉजिकल घड़ी बनाते हैं जो गुफा के अंदर जाने पर जैसे चल पड़ती हो। अलग-अलग आइसोटोप्स की मदद से इन्हें पहचाना जा सकता है। (फोटो: Michael Chazan)





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बर्लिन में जॉगिंग कर रही एक महिला को पारदर्शी पॉलिथीन में ग्रेनेड जैसी कोई चीज पड़ी दिखी। जिसके बाद उसने स्थानीय पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने तत्काल सक्रियता दिखाते हुए उस जगह की घेराबंदी कर दी और बम निरोधक दस्ते को बुला लिया। जब एक्सपर्ट की टीम ने पूरे लाव-लश्कर और सुरक्षा के साथ इस सामान की तलाशी ली तो यह ग्रेनेड की शक्ल में निकली। बॉर्डर इलाके में बम मिलने से फैली सनसनी यह पॉलिथीन जर्मनी के बवेरियन शहर के बाहर एक जंगल में मिला था। यह इलाका चेक रिपब्लिक और ऑस्ट्रिया के बार्डर के पास पड़ता है। इसलिए, पुलिस को ज्यादा शक नहीं हुआ। पूरे जर्मनी में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय के बम अक्सर मिलते रहते हैं। इसलिए, इस इलाके में लोगों की आवाजाही को रोकर बम निरोधक दस्ते को इसकी सूचना दी गई। पारदर्शी पॉलिथीन से दिख रहा था ग्रेनेड पारदर्शी पॉलिथीन में ग्रेनेड के आकार की उस चीज को देखकर बम निरोधक दस्ते के अधिकारी भी सकते में आ गए। उन्होंने कई किलोग्राम का अपना वजनी सुरक्षा सूट पहना और रोबोट की मदद से उस पॉलिथीन को सुरक्षित स्थान पर लेकर गई। लेकिन, जब इसकी जांच की गई तो यह ग्रेनेड के शक्ल में बनी सेक्स ट्वॉय निकली। इस पॉलिथीन में कॉन्डोम और लूब्रिकेंट भी मिला। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे डिब्बे में रखा था कॉन्डोम कॉन्डोम और लुब्रिकेंट को डिवाइस जैसे दिखने वाले डिब्बे में रखा गया था। जिससे पुलिस को पहले तो पक्का यकीन हो गया था कि यह कोई विस्फोटक सामान ही है। पुलिस प्रवक्ता ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि उन्हें शक है कि कोई आदमी इसे किसी डस्टबिन में डालने के बजाए बाहर सुनसान इलाके में फेंकना चाहता था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के 75 से अधिक वर्षों बाद भी जर्मनी में बम मिलने की घटना सामान्य है। पिछले हफ्ते मिला था 500 किग्रा का बम पिछले हफ्ते, दक्षिणी जर्मन शहर मैनहेम में एक मकान के निर्माण के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध के समय का 500 किलो का बम मिला था। इसे किसी लड़ाकू विमान से गिराया गया था, लेकिन यह फटने के बजाए जमीन में धंस गया था। पुलिस ने बाद में बताया था कि जिस स्थान पर यह बम मिला था वहीं पर अमेरिकी सेना का अड्डा था। जिसे बाद में डिफ्यूज कर दिया गया।


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पेइचिंग कोरोना वायरस महामारी के दौरान कई देशों में लोगों के मिलने जुलने पर पाबंदी लगी हुई थी। अब जब दुनिया के कई देशों में कोरोना का प्रभाव कम हो रहा है, तब वे लॉकडाउन की पाबंदियों भी ढील दे रहे हैं। चीन में भी लंबे समय तक लॉकडाउन में रहने के बाद अब लोग एक दूसरे से काफी मिलजुल रहे हैं। इस दौरान वहां कॉन्डोम की बिक्री में बड़ा इजाफा देखा गया है। कॉन्डोम की बिक्री में 12 फीसदी का इजाफा डेली मेल की खबर के अनुसार, कंज्यूमर गुड्ल बनाने वाली दिग्गज कंपनी रेकिट बेंकिजर ने बताया है कि चीन में उनके ड्यूरेक्स कॉन्डोम प्रोडक्ट की बिक्री 12 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। होलसेलर्स और रिटेलर उनके इस ब्रांड को काफी बड़ी संख्या में खरीद रहे हैं। कंपनी ने उम्मीद जताई है कि जैसे-जैसे दुनियाभर में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग में ढील दी जाएगी वैसे-वैले उनके प्रोडक्ट की बिक्री बाकी देशों में भी काफी बढ़ेगी। पिछले साल महामारी के कारण आई थी गिरावट पिछले साल महामारी की शुरुआत में ड्यूरेक्स को बनाने वाली कंपनी रेकिट बेंकिजर ने कॉन्डोम की मांग में भारी गिरावट देखी थी। लेकिन, जैसे-जैसे गर्मियों के महीनों में सामाजिक-नियमों में ढील दी गई, वैसे-वैसे कॉन्डोम की बिक्री में 12 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। केवल चीन ही नहीं, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी इस प्रोडक्ट की बिक्री में काफी तेजी देखी गई है। सेक्स ट्वॉय की मांग भी बढ़ी कोरोना महामारी के दौरान चीन में बने सेक्ट ट्वॉय की मांग दुनियाभर में 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है। चीन की सेक्स ट्वॉय इंडस्ट्रीज को इन दिनों देश और विदेश से बड़ी संख्या में ऑर्डर मिल रहे हैं। चीन के शैंडोंग स्थित सेक्स ट्वॉय बनाने वाली कंपनी लिबो टेक्नोलॉजी के विदेशी सेल्स मैनेजर वायलेट डू ने कहा कि जब हम लॉकडाउन के बाद काम पर लौटे तो बढ़ती मांग के कारण हमें कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी पड़ी। फ्रांस, अमेरिका और यूरोप से मिल रहे ऑर्डर डू ने कहा कि फ्रांस, अमेरिका और इटली से हमें सबसे अधिक ऑर्डर मिल रहे हैं। हमारी भी कोशिश है कि अपने ग्राहकों तक जल्द से जल्द ऑर्डर पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि हालांकि इस दौरान चीन में हमारी बिक्री प्रभावित हुई है। जल्द ही हमें घरेलू बाजार से भी बड़ी संख्या में ऑर्डर मिलने शुरू हो जाएंगे। हमारी प्रोडक्शन लाइनें 24 घंटे काम कर रही हैं। वहीं, हमारे कर्मचारी दो शिफ्टों में डिमांड को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।


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प्योंगयांग उत्तर कोरिया के तानाशाह ने चीन से घटिया मेडिकल सामान खरीदने वाले अपने एक बड़े अधिकारी को मौत की सजा सुनाई है। इस अधिकारी ने राजधानी प्योंगयांग में बन रहे किम जोंग के ड्रीम प्रोजक्ट वाले अस्पताल के लिए चीन से घटिया किस्म के सामान खरीदे थे। किम जोंग इस अस्पताल में हर सामान यूरोपीय देशों से मंगवाना चाहते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि इन देशों का उत्पाद दुनिया में सबसे बेहतरीन क्वॉलिटी का होता है। छह महीने में अस्पताल बनवाना चाहते थे किम जोंग दक्षिण कोरिया के डेली एनके अखबार के अनुसार, किम जोंग ने पिछले साल मार्च में बड़ी धूमधाम से प्योंगयांग के जनरल अस्पताल को अपनी उपस्थिति में तुड़वा दिया था। वे इस जगह पर केवल 6 महीने में एक भव्य और बड़ा अस्पताल बनवाना चाहते थे। किम के निर्देश के बावजूद उद्घाटन की तारीख तक यह अस्पताल तैयार नहीं हो सका था। इस अस्पताल में चिकित्सीय उपकरणों की भारी कमी थी। इसलिए, उत्तर कोरिया के आयात-निर्यात को देखने वाले अधिकारी ने आनन-फानन में चीन से सामान खरीद लिया। अस्पताल की समीक्षा बैठक में हुआ खुलासा इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि किम जोंग ने जब इस अस्पताल की समीक्षा बैठक की, तब उन्हें इन सामानों के बारे में जानकारी लगी। उन्होंने तत्काल ही उस अधिकारी को दोषी ठहराते हुए मारने का हुक्म सुना दिया। मारा गया अधिकारी विदेश मंत्रालय में डिप्टी डॉयरेक्टर था, जिसकी उम्र करीब 50 साल थी। इस अधिकारी के पास उत्तर कोरिया में होने वाले आयात और निर्यात की जिम्मेदारी थी। यूरोपीय सामानों को अच्छा मानते हैं किम जोंग रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी को बर्खास्त भी किया गया है। किम जोंग उन ने अपने बचपन का बड़ा हिस्सा स्विट्जरलैंड में बिताए हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि यूरोपीय देशों का सामान दुनिया के बाकी देशों की अपेक्षा सबसे अच्छी गुणवत्ता का होता है। इसलिए, उनकी पार्टी ने इस अस्पताल को बनाने के लिए भारी-भरकम फंड आवंटित किया। प्रतिबंधों और कोरोना के कारण यूरोप से नहीं मिला सामान बताया जा रहा है कि उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंध और कोरोना वायरस महामारी के कारण यूरोपीय देशों से उत्तर कोरिया को मेडिकल इक्यूपमेंट्स नहीं मिल सके। जिसके बाद चीन से कम कीमत पर घटिया क्वालिटी के सामानों के आयात का फैसला किया गया। इस फैसले की जानकारी किम जोंग को नहीं दी गई। इसी बात की जानकारी जब उत्तर कोरिया के तानाशाह को हुई तो वह भड़क गए।


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वॉशिंगटन अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने प्रशासन के 100 दिन पूरे होने के बाद कांग्रेस में दिए गए पहले भाषण में ही की तुलना आतंकवाद से कर डाली। जिसके बाद कई विपक्षी नेताओं ने उनकी आलोचना भी की है। बाइडन ने कहा कि श्वेत वर्चस्व की भावना घरेलू आतंकवाद है जिसके खिलाफ अमेरिका को चौकन्ना रहना होगा। जनवरी में कैपिटल हिल पर हुए हमले को जो बाइडन ने अस्तित्व का संकट करार दिया। उन्होंने कहा कि इस हमले ने हमारी लोकतंत्र की परीक्षा ली। कैपिटल हिल हमले को बताया अस्तित्व का संकट जो बाइडन ने संसद के अपने पहले संबोधन में कहा कि आज जब हम यहां एकत्रित हुए हैं तो कैपिटल पर हमला करने, हमारे लोकतंत्र की छवि बिगाड़ने वाली हिंसक भीड़ की तस्वीरें हमारे दिमाग में ताजा हो गई हैं। लोगों की जान गई। विद्रोह अस्तित्व का संकट था, एक ऐसी परीक्षा थी कि क्या हमारा लोकतंत्र बचा रह सकता है। वह बचा रहा। इस घटना के समय भी जो बाइडन ने इसके लिए डोनाल्ड ट्रंप को जिम्मेदार बताया था। श्वेत वर्चस्व को आतंकवाद क्यों बता रहे बाइडन जो बाइडन की राजनीति की अश्वेतों की वकालत पर टिकी हुई है। जब 1972 में जो बाइडन पहली बार डेलावेयर से सीनेटर चुने गए तब भी उनको जीत दिलाने में वहां के अश्वेत लोगों का बड़ा योगदान था। अमेरिका में इन लोगों को पारंपरिक रूप से बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से डोनाल्ड ट्रंप जहां श्वेतों की तरफदारी कर रहे थे, वहीं बाइडन अश्वेतों की। यही कारण रहा कि चुनाव में अश्वेतों ने खुलकर बाइडन को वोट दिया। अमेरिका में पुरानी है श्वेत और अश्वेत की लड़ाई दरअसल अमेरिका में श्वेतों और अश्वेतों के बीच लड़ाई काफी पुरानी है। पिछले साल जब मिनियापोलिस में पुलिस ने जॉर्ज फ्लायड नाम के एक अश्वेत को अपने घुटनों से दबाकर मार दिया तो इसकी पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई। लगभग 15 दिनों तक अमेरिका का हर शहर इस आग से झुलसता रहा। ब्लैक लाइव्स मैटर के नाम से चलाए गया यह आंदोलन इतना हिंसक हो गया कि तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वाइट हाउस के बंकर में शरण लेनी पड़ी थी। अमेरिका में कई बार हो चुके हैं रंगभेद वाले दंगे साल 2020 में ऐसा पहली बार नहीं हुआ था जब अमेरिका में गोरे और काले के विवाद ने इतना उद्र रूप धारण किया। खुद को लीडर ऑफ द फ्री वर्ल्ड कहने वाले अमेरिका में लंबे समय तक अफ्रीकी मूल के लोगों को गुलाम की तरह रखा गया। अमेरिका में सिविल राइट्स के जनक अब्राहम लिंकन और मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर के प्रयासों से काले लोगों को बराबरी का दर्जा मिला। लेकिन, वर्तमान स्थिति देखते हुए यह नहीं लगता कि मार्टिन लूथर किंग का सपना पूरा हुआ है।


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पेइचिंग चीन ने अंतरिक्ष में अमेरिका को टक्कर देने के लिए गुरुवार को खुद का स्पेस स्टेशन के पहले कोर कैप्सूल मॉड्यूल को लॉन्च किया है। आने वाले दिनों में ऐसी ही कई लॉन्चिंग के जरिए स्पेस स्टेशन के बाकी हिस्सों को भी अंतरिक्ष में पहुंचा दिया जाएगा। चीन की योजना इस साल के अंत से अपने पहले स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन को शुरू करने की है। अभी तक केवल रूस और अमेरिका ने ही ऐसा कारनामा किया है। हालांकि, इस समय केवल अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन ही सक्रिय है। लॉन्ग मार्च-5 बी रॉकेट के जरिए की गई लॉन्चिंग चीन ने वेन्चांग स्पेस लॉन्च सेंटर से लॉन्ग मार्च-5 बी रॉकेट के जरिए स्पेस स्टेशन के कोर कैप्सूल को अंतरिक्ष में लॉन्च किया। यह लॉन्ग मार्च-5बी की दूसरी उड़ान थी। चाइना एकेडमी ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी (सीएएसटी) में अंतरिक्ष के उप मुख्य डिजाइनर बाई लिन्होउ ने कहा कि तियांहे मॉड्यूल अंतरिक्ष केंद्र तियानगोंग के प्रबंधन एवं नियंत्रण केंद्र के रूप में काम करेगा और इसमें एक साथ तीन अंतरिक्ष यान खड़ा करने की व्यवस्था है। चीन ने अपने स्पेस स्टेशन का रखा यह नाम चीन ने अपने स्पेस स्टेशन को टियोंगॉन्ग (Tiangong) नाम दिया है। चीनी भाषा में इसका मतलब जन्नत का महल होता है। यह मल्टीमॉडल स्पेस स्टेशन मुख्य रूप से तीन पार्ट से मिलकर बना होगा, जिसमें एक अंतरिक्ष कैप्सूल और दो लैब होंगी। इन सभी का कुल भार 90 मीट्रिक टन के आसपास होगा। स्पेस स्टेशन के कोर कैप्सूल का नाम तियान्हे (Tianhe) रखा गया है, जिसका मतलब स्वर्ग का सद्भाव होता है। अंतरिक्ष में 15 साल तक करेगा काम चीनी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह स्पेस स्टेशन इस साल के अंत से काम करना शुरू कर देगा। इसकी जीवन अवधि 15 साल आंकी गई है। चीनी कोर कैप्सूल की लंबाई 4.2 मीटर और डायामीटर 16.6 मीटर है। इसी जगह से पूरे अंतरिक्ष स्टेशन का संचालन किया जाएगा। अंतरिक्ष यात्री इसी जगह पर रहते हुए पूरे स्पेस स्टेशन को कंट्रोल कर सकेंगे। इस मॉड्यूल में साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट करने की भी जगह होगी। इस कैप्सूल में कनेक्टिंग सेक्शन के तीन हिस्से होंगे, जिसमें एक एक लाइफ-सपोर्ट, दूसरा कंट्रोल सेक्शन और तीसरा रिसोर्स सेक्शन होगा। 'T' के आकार का होगा चीनी स्पेस स्टेशन चीन के अंतरिक्ष केंद्र का आकार अंग्रेजी के वर्ण टी (T) की तरह होगा जिसके मध्य में मुख्य मॉड्यूल होगा, जबकि दोनों ओर प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कैप्सूल होंगे। प्रत्येक मॉड्यूल का वजन 20 टन होगा और जब अंतरिक्ष केंद्र पर, अंतरिक्ष यात्री और सामान लेकर यान पहुंचेंगे तो इसका वजन 100 टन तक पहुंच सकता हैं। इस अंतरिक्ष केंद्र को पृथ्वी की निचली कक्षा में 340 से 450 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जा रहा है।


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थिंपू भारत जब कोरोना के भीषण कहर से जूझ रहा है, उस समय तक पड़ोसी देश अपने 93 फीसदी लोगों का वैक्सीनेट कर चुका है। इस छोटे से पहाड़ी राज्य की इस सफलता पर दुनिया के सभी देश हैरान है। भूटान के कई इलाके तो ऐसे हैं जहां जाने के लिए सड़क भी उपलब्ध नहीं है। बर्फीली नदियों और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस देश ने भारत से मुफ्त में मिली वैक्सीन से सफलता की नई कहानी लिख दी है। अबतक 93 फीसदी वयस्क आबादी का हुआ वैक्सीनेशन भारत के सीरम इंस्टीट्यूट में बनी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की शीशियां पिछले महीने हेलीकॉप्टर से इस देश में पहुंची थी। जिसके बाद इस पहाड़ी देश ने वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू करने के लिए पूरे देश के स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात किया गया। इन लोगों ने एक गांव से दूसरे गांव तक कभी बर्फ तो कभी नदियों को लांघते हुए वैक्सीनेशन का काम जारी रखा। इसी का नतीजा है कि इस देश में कुल आबादी के 93 फीसदी वयस्कों को अभी तक कोविड वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है। ऊंचे पहाड़ और बर्फीली नदी भी नहीं बन सकी बाधा दुनिया से कटे और अलग-थलग रहने वाले भूटान के ग्रामीण इलाकों के लोगों को वैक्सीन के लिए मनाने में भी स्वास्थ्यकर्मियों को काफी परेशानी आई। लोकल वॉलंटियर्स और स्वास्थ्यकर्मियों ने इलाके के मुखिया को साथ लेकर लोगों को समझाया कि वैक्सीन लेने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा और यह स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए काफी जरूरी है। मार्च के आखिरी में शुरू हुआ था वैक्सीनेशन पिछले शनिवार तक बौद्ध बहुल इस देश में 478,000 से अधिक लोगों को कोविड वैक्सीन की पहली टीका खुराक दी थी। यह संख्या यहां की कुल वयस्क आबादी की 60 फीसदी से अधिक है। वहीं, अब भूटान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि उन्होंने अपनी कुल वयस्क आबादी के 93 फीसदी लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज दे दी है। मार्च के अंत और अप्रैल के शुरुआत में इस देश में 1,200 टीकाकरण केंद्रों पर वैक्सीन पहुंचाई गई थी। वैक्सीनेशन में दुनिया में छठवें स्थान पर भूटान न्यूयॉर्क टाइम्स के एक डेटाबेस के अनुसार, शनिवार तक भूटान में प्रति 100 लोगों में से 63 लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी थी। कोविड टीकाकरण की यह दर दुनिया में छठवें स्थान पर है। मतलब साफ है कि दुनिया में केवल 5 देश ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी आबादी को भूटान से ज्यादा वैक्सीनेट किया हुआ है। भूटान का यह दर भारत से सात गुना और वैश्विक औसत से छह गुना ज्यादा है। भूटान के स्वास्थ्य मंत्री ने राजा और जनता को दिया श्रेय भूटान के स्वास्थ्य मंत्री डैशो डेचेन वांगमो ने इस सफलता का श्रेय देश के राजा और लोगों को दिया है। उन्होने कहा कि यहां के लोगों ने वैक्सीन लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। वहीं, राजा के निर्देशन में पूरा वैक्सीनेशन अभियान बहुत ही प्रभावी ढंग से चला। डैशो डेचेन वांगमो ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि केवल 750,000 की आबादी वाला छोटा देश होने के कारण ही उन्होंने दो सप्ताह में इस आंकड़े को छूआ है। भारत ने फ्री में दी थी सभी वैक्सीन भूटान के वैक्सीनेशन में सबसे बड़ी बात यह है कि इस देश में जितनी भी कोविड वैक्सीन लगाई गई है, उसे भारत ने दान में दिया है। इस वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बनाया है। भूटान की सरकार ने कहा है कि वह पहले दौर के बाद लगभग 8 से 12 सप्ताह के बाद दूसरी खुराक देने की योजना बना रही है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के लिए भूटान में काम करने वाले विल पार्क्स ने भी इस अभियान की खूब सराहना की है।


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Wednesday 28 April 2021

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पेइचिंग चीन के ग्वांग्शी प्रांत में एक नर्सरी स्कूल पर एक व्यक्ति ने चाकू से हमला करके 16 बच्चों को घायल कर दिया। इसमें से दो बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है। पुलिस ने इस मामले में एक संदिग्ध को हिरासत में भी लिया है। इस हमलावर ने कुल 18 लोगों को चाकू मारी, जिसमें 16 बच्चे हैं। 25 साल के हमलावर ने दिया घटना को अंजाम चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार, यह हमला ग्वांग्शी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के बीलियू शहर में हुआ। कई रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इस हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की गई है। हमलावर की उम्र 25 साल बताई जा रही है, लेकिन हमला करने के कारणों का खुलासा नहीं हुआ है। खून देने वाले लोगों की लगी भीड़ बच्चों को जिस अस्पताल में भर्ती कराया गया है, वहां के डॉक्टरों ने लोगों से खून डोनेट करने की अपील की है। जिसके बाद बड़ी संख्या में स्थानीय लोग अपना-अपना खून देने के लिए अस्पताल में इकट्ठा हुए हैं। स्थानीय पुलिस प्रशासन पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच में जुटा हुआ है। पहले भी हो चुके हैं ऐसे हमले पिछले साल जून में भी ग्वांग्शी प्रांत के एक दूसरे नर्सरी स्कूल पर चाकूबाज ने हमला किया था। इस हमले में शिक्षक और बच्चे समेत कुल 39 लोग घायल हुए थे। चीनी मीडिया ने बाद में बताया था कि वुजू शहर में वांगफू टाउनशिप में स्कूल में हुए इस हमले को एक सुरक्षा गार्ड अंजाम दिया था। जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। 2 को हमले में लगी थी गंभीर चोट इस हमले में 37 लोगों को मामूली चोट लगी थी, जबकि दो लोग बुरी तरह से घायल हुए थे। हालांकि, इसमें किसी की मौत नहीं हुई थी। पुलिस इस हमले के आरोपी को सजा के लिए जल्द ही कोर्ट में पेश करने वाली है।


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वॉशिंगटन अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ कर दिया है कि वह चीन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक नीति पर ही चलेंगे। अपने प्रशासन के 100 साल पूरा होने के बाद कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए बाइडन ने कहा कि अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाए रखेगा। बाइडन के इस बयान से चीन को मिर्ची लगना तय माना जा रहा है, जिससे एशिया में तनाव फिर से बढ़ सकता है। दूसरे देशों को संघर्ष से रोकने के लिए बढ़ा रहे सेना बाइडन ने परोक्ष रूप से चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि हिंद प्रशांत में अमेरिकी सेना की उपस्थिति कोई संघर्ष शुरू करने के लिए नहीं है, बल्कि दूसरे देशों को ऐसा करने से रोकने के लिए है। गौरतलब है कि चीन सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा हैं। इस कारण पूरे क्षेत्र में कई देशों के साथ चीन का तनाव बना हुआ है। अमेरिका प्रतिस्पर्धा का स्वागत करता है, लेकिन संघर्ष नहीं अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में बाइडन ने कहा कि उन्होंने शी को यह भी बताया कि अमेरिका प्रतिस्पर्धा का स्वागत करता है लेकिन संघर्ष नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि मैंने राष्ट्रपति शी को बता दिया कि हमारी सेना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति बनाई रखेगी जैसा कि हमने यूरोप में नाटो के साथ किया लेकिन यह कोई संघर्ष शुरू करने के लिए नहीं बल्कि संघर्ष रोकने के लिए है। बाइडन बोले- मैं अमेरिकी हितों की रक्षा करूंगा बाइडन ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति शी को यह भी बताया कि हम प्रतिस्पर्धा का स्वागत करते हैं लेकिन टकराव नहीं चाहते। लेकिन मैंने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि मैं पहले अमेरिकी हितों की रक्षा करूंगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका व्यापार के अनुचित तरीकों के खिलाफ खड़ा रहेगा जिससे अमेरिकी कामगारों और उद्योगों में कटौती तथा अमेरिकी प्रौद्योगिकियों तथा बौद्धिक संपदा की चोरी होती है। कई मुद्दों पर अमेरिका और चीन में है तनाव अमेरिकी राष्ट्रपति ने शी से यह भी कहा कि अमेरिका मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटेगा। कोई भी जिम्मेदार अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसे समय में चुप नहीं बैठ सकता जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। अमेरिका और चीन के बीच के रिश्ते अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार, विवादित दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के आक्रामक सैन्य कदम और हांगकांग तथा शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों समेत कई मुद्दों को लेकर टकराव है।


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पोर्ट लुईस कोरोना संकट से जूझ रहे भारत की मदद करने के लिए दुनियाभर के कई देशों ने हाथ बढ़ाया है। लेकिन, इन सबके बीच एक देश ऐसा भी है, जिसने अपनी दरियादिली से कई महाशक्तिशाली देशों को आईना दिखाने का काम किया है। भारत ने भी कई बार इस देश को आर्थिक और सामान देकर मदद की है। हाल में ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस देश में भारत की मदद से बने मेट्रो सर्विस का उद्धाटन किया था। भारत को गिफ्ट किए 200 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स जी हां, इस देश का नाम मॉरीशस है, जिसने संकट के समय भारत को 200 ऑक्सिजन कंसंट्रेटर्स उपहार स्वरूप भेजे हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी इस बहुमूल्य उपहार के लिए मॉरीशस की सरकार को धन्यवाद भेजा है। मॉरीशस के साथ भारत की दोस्ती इसलिए भी खास है, क्योंकि इस देश पर चीन ने भी काफी दबाव बनाया हुआ है। उसके बावजूद इस देश ने भारत के साथ अपने संबंधों को पहली प्राथमिकता दी है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है मॉरीशस मॉरीशस हिंद महासागर के रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र में स्थित है। इस इलाके से होकर हर साल खरबों डॉलर का व्यापार होता है। अफ्रीकी महाद्वीप के नजदीक होने से इस देश से हिंद महासागर के बड़े इलाके पर नजर रखी जा सकती है। इस देश के पास ही रेयूनियों द्वीप है, जिसपर फ्रांस का कब्जा है। फ्रांस ने इस द्वीप पर बड़ा मिलिट्री बेस बनाकर रखा हुआ है। मॉरीशस के उत्तर-पूर्व में डिएगो गार्सिया है, जहां अमेरिकी और ब्रिटिश मिलिट्री का बेस है। मॉरीशस और भारत में करीबी रिश्ता भारत और मॉरीशस के बीच संबंधों की मजबूती को इसी बात से समझा जा सकता है कि यह देश अपना राष्ट्रीय दिवस गांधीजी की नमक सत्याग्रह के वर्षगांठ के दिन यानी 12 मार्च को मनाता है। मॉरीशस का मानना है कि इसी की प्रेरणा से उसे 1968 में अंग्रेजों से आजादी मिली। भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता, ब्लू ओशन इकनॉमी, समुद्री सुरक्षा, एंटी पायरेसी ऑपरेशन जैसे कई महत्वपूर्ण अभियानों में मॉरीशस हमेशा भारत के साथ रहा है। भारत ने मॉरीशस में बनाए मेट्रो और अस्पताल भारत ने वर्ष 2016 में मॉरीशस को दिए गए 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर का विशेष आर्थिक पैकेज के जरिए न्यू मॉरीशस सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग प्रोजेक्ट को शुरू किया था। इस बिल्डिंग का उद्धाटन साल 2020 में किया गया। इसके अलावा भारत की मदद से मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस में मेट्रो एक्सप्रेस सर्विस को शुरू किया गया। इसके अलावा 100-बेड वाले अत्याधुनिक ईएनटी अस्पताल का भी निर्माण भारत के सहयोग से किया गया है।


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न्यूयॉर्क भारत इस वक्त महामारी के दुनिया में सबसे भयानक रूप का सामना कर रहा है। दूसरी वेव ने बड़ी संख्या मे लोगों को अपनी चपेट में लिया है और जरूरी सामान की मांग बढ़ गई है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता ने बताया है कि भारत में उसकी टीम कोविड-19 से लड़ने में प्रशासन की मदद कर रही है। एक बयान में बताया गया है कि वह स्थानीय सरकारों को उपकरण और सप्लाई पहुंचा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और UNICEF 7000 ऑक्सिजन कंसंट्रेटर, ऑक्सिजन सप्लाई के लिए 500 नेजल की डिवाइस और ऑक्सिजन जनरेटिंग प्लांट मुहैया कराने में लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन मोबाइल अस्पताल इकाइयां और लैब की व्यवस्था कर रहा है। 2,600 WHO फील्ड ऑफिसरों को स्वास्थ्य प्रशासन को सपॉर्ट के लिए तैनात किया गया है। महाराष्ट्र में भी UNICEF के एक्सपर्ट्स लगे हैं। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस के प्रवक्ता ने बताया था कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र की एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला के जरिये की गई मदद की पेशकश को अस्वीकार कर दिया है और कहा है कि देश के पास जरूरी साजो-सामान के साथ स्थिति से निपटने के लिए 'मजबूत व्यवस्था' है। 'भारत ने कहा, हमारे पास मजबूत व्यवस्था' संयुक्त राष्ट्र महासचिव के उप प्रवक्ता फरहान हक ने कहा था, 'हमने जरूरत पड़ने पर अपनी एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला से सहायता की पेशकश की है। हमें बताया गया कि इस समय इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि भारत के पास इससे निपटने के लिए यथोचित मजबूत व्यवस्था है लेकिन हम अपनी पेशकश पर कायम हैं और हम जो भी मदद कर सकते हैं वह करने को इच्छुक हैं।' 'भारत पर ना पड़े बोझ' हक ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव की मुख्य सचिव मारिया लुइजा रिबेरियो वियोत्ती भारत में कोविड-19 की स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरूमूर्ति और व्यवस्था से जुड़े अन्य अधिकारियों के संपर्क में हैं। हक ने इसके साथ ही कहा कि संयुक्त राष्ट्र यह सुनिश्चित कर रहा है कि भारत में उसके अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कर्मी सुरक्षित रहें ताकि भारत की स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ नहीं बढ़े।


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कोलंबो में एक हिंदू मंदिर के शीर्ष अधिकारियों को COVID-19 के मामले बढ़ने के मद्देनजर बड़ी सभाओं पर प्रतिबंध के बावजूद उत्सव का आयोजन करने आरोप में गिरफ्तार किया गया है। मीडिया में आई खबर में यह जानकारी दी गई है। कोलंबो गजट समाचार-पत्र ने खबर दी कि तमिलों की बहुलता वाले जाफना प्रदेश में श्री कामाक्षी अम्मन कोविल मंदिर के उत्सव में बड़ी भीड़ एकत्र हुई थी जिसमें न किसी ने मास्क लगाया हुआ था और न ही शारीरिक दूरी का पालन किया गया। पुलिस ने कहा कि मंदिर के न्यासी मंडल के प्रमुख और सचिव को प्रतिबंध के बावजूद उत्सव का आयोजन करने कारण गिरफ्तार कर लिया गया है। सरकार ने ऐसे बड़े कार्यक्रमों पर 31 मई तक पाबंदियां लगाई हुई हैं। सिनहाला और तमिल नववर्ष के बाद श्रीलंका को तीसरे स्तर के अलर्ट पर जाने के बाद पिछले हफ्ते, सरकार ने ट्यूशन कक्षाएं, पार्टियों और जनसभाओं को 31 मई तक प्रतिबंधित किए जाने की घोषणा की थी। स्वास्थ्य अधिकारियों ने मध्य अप्रैल में नव वर्ष उत्सवों के बाद मामले बढ़ने को लेकर आगाह किया है। नये स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों के मुताबिक कसीनो, नाइट क्लब और तट पर होने वाली पार्टियों पर भई अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाए गए हैं। सरकारी एवं निजी दफ्तरों को कम से कम कर्मचारियों को बुलाकार और अधिकतर को घर से ही काम कराने को कहा गया है। श्रीलंका में मंगलवार को COVID-19 के 1,111 नये मामले सामने आए। मार्च 2020 में पहली बार मामले सामने आने के बाद से यह एक दिन में आए सर्वाधिक मामले हैं।


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जिनेवा, 28 अप्रैल (भाषा) कोरोना वायरस का ‘भारतीय प्रकार’ जिसे बी.1.617 के नाम से या ‘दो बार रूप परिवर्तित कर चुके प्रकार’ के तौर पर जाना जाता है, वह कम से कम 17 देशों में पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह बात कही है जब दुनिया पिछले हफ्ते कोरोना संक्रमण के 57 लाख मामले सामने आए। इन आंकड़ों ने इससे पहले की सभी लहरों के चरम को पार कर लिया है।

संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने मंगलवार को अपने साप्ताहिक माहामारी संबंधी जानकारी में कहा सार्स-सीओवी-2 के बी.1.617 प्रकार या ‘भारतीय प्रकार’ को भारत में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने का कारण माना जा रहा है जिसे डब्ल्यूएचओ ने रुचि के प्रकार (वैरिएंट्स ऑफ इंटरेस्ट -वीओआई) के तौर पर निर्दिष्ट किया है।

इसने कहा, 27 अप्रैल तक, जीआईएसएआईडी में करीब 1,200 अनुक्रमों (सीक्वेंस) को अपलोड किया गया और वंशावली बी.1.617 को कम से कम 17 देशों में मिलने वाला बताया।”

जीआईएसएआईडी 2008 में स्थापित वैश्विक विज्ञान पहल और प्राथमिक स्रोत है जो इंफ्लुएंजा विषाणुओं और कोविड-19 वैश्विक माहामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस के जीनोम डेटा तक खुली पहुंच उपलब्ध कराता है।

एजेंसी ने कहा, ‘‘पैंगो वंशावली बी.1.617 के भीतर सार्स-सीओवी-2 के उभरते प्रकारों की हाल में भारत से एक वीओआई के तौर पर जानकारी मिली थी और डब्ल्यूएचओ ने इसे हाल ही में वीओआई के तौर पर निर्दिष्ट किया है।”

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अध्ययनों ने इस बात पर जोर दिया है कि दूसरी लहर का प्रसार भारत में पहली लहर के प्रसार की तुलना में बहुत तेज है।

विश्व स्वास्थ्य निकाय की रिपोर्ट में कहा, “जीआईएसएआईडी को सौंपे गए अनुक्रमों पर आधारित डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रारंभिक प्रतिरूपण से सामने आया है कि बी.1.617 भारत में प्रसारित अन्य प्रकारों से अधिक गति से विकसित हो रहा है, जो संभवत: अधिक संक्रामक है, साथ ही अन्य प्रसारित हो रहे वायरस के प्रकार भी अधिक संक्रामक मालूम हो रहे हैं।’

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अन्य कारकों में जन स्वास्थ्य एवं सामाजिक उपायों का क्रियान्वयन एवं पालन से जुड़ी चुनौतियां, सामाजिक सभाएं (सांस्कृतिक एवं धार्मिक उत्सव और चुनाव आदि) शामिल हैं। इन कारकों की भूमिका को समझने के लिए और जांच किए जाने की जरूरत है।



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हमारा सौर मंडल कैसे बना? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एक और मिशन तैयार किया जा रहा है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA अरबों मील दूर एक प्रोब भेजेगी जो इसका पता लगाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और नासा का यह मिशन हीलियोस्फीयर तक 2030 के दशक की शुरुआत में प्रोब भेजेगा। इससे पहले 1977 में लॉन्च किए गए Voyager 1 और Voyager 2 सिर्फ दो ऐसे प्रोब हैं जो हीलियोस्फीयर के बाहर पहुंचे हैं, धरती से 14 और 11 अरब मील दूर।

इस प्रॉजेक्ट में दुनियाभर के 500 वैज्ञानिक और इंजिनियर जुड़े हैं। टीम को यह पता लगाने की उम्मीद है कि कैसे सूरज का प्लाज्मा दो सितारों के बीच की स्पेस में गैस से इंटरैक्ट करते हैं जिससे हीलियोस्फीयर बनता है और उसके बाहर क्या है।


कैसे बना था हमारा सौर मंडल, जवाब खोजने सबसे दूर यान भेजेगा NASA

हमारा सौर मंडल कैसे बना? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एक और मिशन तैयार किया जा रहा है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA अरबों मील दूर एक प्रोब भेजेगी जो इसका पता लगाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और नासा का यह मिशन हीलियोस्फीयर तक 2030 के दशक की शुरुआत में प्रोब भेजेगा। इससे पहले 1977 में लॉन्च किए गए Voyager 1 और Voyager 2 सिर्फ दो ऐसे प्रोब हैं जो हीलियोस्फीयर के बाहर पहुंचे हैं, धरती से 14 और 11 अरब मील दूर।



कहां जाएगा प्रोब?
कहां जाएगा प्रोब?

हीलियोस्फीयर सूरज और ग्रहों का बाहर मौजूद एक घेरा होता है जहां सौर-तूफन चलते हैं। वोयेजर्स में लगे उपकरण ने मिशन को लेकर सीमित डेटा दिया है। इसलिए यह जरूरत महसूस की गई कि दूसरे मिशन की जरूरत है जो नई परतें खोल सके। इसे फिलहाल इंटरस्टेलर प्रोब नाम दिया गया है। स्पेस एजेंसी इसे 1000 ऐस्ट्रोनॉमिकल यूनिट दूर भेजना चाहती है जो धरती और सूरज के बीच की दूरी से 1000 गुना ज्यादा है।



क्या है मिशन?
क्या है मिशन?

92 अरब मील की दूरी में Oort cloud का इलाका भी होगा जहां प्राचीन धूमकेतु और बर्फीली चट्टानें होती हैं। प्रोब की लीड एलेना प्रोवोर्निकोवा ने कहा है कि पहली बार हम हीलियोस्फीयर की बाहर से तस्वीर लेंगे और देखेंगे कि हमारा सौर मंडल कैसा लगता है। इस प्रॉजेक्ट में दुनियाभर के 500 वैज्ञानिक और इंजिनियर जुड़े हैं। टीम को यह पता लगाने की उम्मीद है कि कैसे सूरज का प्लाज्मा दो सितारों के बीच की स्पेस में गैस से इंटरैक्ट करते हैं जिससे हीलियोस्फीयर बनता है और उसके बाहर क्या है।



कैसा दिखता है सौर मंडल...
कैसा दिखता है सौर मंडल...

मिशन के तहत हीलियोस्फीयर की तस्वीरें ली जाएंगी और हो सकता है कि ऐसी बैकग्राउंड लाइट देखी जा सके जो गैलेक्सीज की शुरुआत से आती है लेकिन धरती से नहीं देखी जा सकती। गैलेक्सीज से निकलने वाली कॉस्मिक रेज से हमारे सौर मंडल को हीलियोस्फीयर बचाता है। साल के आखिर तक टीम नासा को प्रॉजेक्ट की आउटलाइन, उपकरण का पेलोड, ट्रैजेक्ट्री जैसी चीजें दे देगी। लॉन्च के बाद प्रोब को 15 साल लगेंगे हीलियोस्फीयर की सीमा पर पहुंचने में।





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लंदन ब्रिटेन के प्रिंस ऑफ वेल्स चार्ल्स ने भारत में कोरोना महामारी से पैदा हुई स्थिति पर दुख जताया है और मदद करने की इच्छा जताई है। उन्होंने लिखा है कि एक साल से इस महामारी ने दुनियाभर में लोगों पर असर डाला है। इस हफ्ते भारत से आए भयानक आंकड़ों से बहुत दुख पहुंचा है। उन्होंने भारत में बिताए अपने वक्त को याद करते हुए लिखा है कि उन्हें इस देश के लिए बहुत प्यार है और जैसे भारत ने दूसरे देशों की मदद की है, उसकी मदद भी का जानी चाहिए। प्रिंस चार्ल्स ने लिखा है, 'भारतीय समुदाय की मदद से ब्रिटिश एशियन ट्रस्ट ने भारत के लिए इमर्जेंसी अपील लॉन्च की है जिससे है इन हालात के बारे में कुछ करने और जिंदगियां बचाने की इच्छा को पूरा किया जा सके। इस समुदाय के कई लोग, व्यापार, ट्रस्ट और फाउंडेशन आगे आए हैं।' उन्होंने उम्मीद जताई है कि और ज्यादा लोग भारत में लोगों की मदद कर सकें। उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में इन हालात से गुजर रहे लोग उनकी प्रार्थनाओं में हैं और मिलकर यह जंग जीती जाएगी। वैक्सीन नहीं, पर मदद भेजी वहीं, ब्रिटेन ने मंगलवार को कहा है कि वह फिलहाल कोविड-19 टीकों के लिए अपनी घरेलू प्राथमिकता पर जोर दे रहा है और इस चरण में भारत जैसे जरूरतमंद देशों को मुहैया कराने के लिए उसके पास अतिरिक्त खुराकें नहीं हैं। भारत में महामारी की भयावह दूसरी लहर के संदर्भ में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता ने कहा कि इस प्रक्रिया की निरंतर समीक्षा की जा रही है और देश 495 ऑक्सीजन केंद्र, 120 वेंटिलेटर आदि का एक सहायता पैकेज भेज रहा है ताकि भारत में आपूर्ति की कमी को पूरा किया जा सके। एक सौ वेंटिलेटर और 95 ऑक्सीजन संकेंद्रक की पहली खेप मंगलवार तड़के नयी दिल्ली पहुंची। प्रवक्ता ने कहा कि हमने फरवरी में प्रतिबद्धता जतायी थी कि ब्रिटेन को होने वाली आपूर्ति से अतिरिक्त खुराकें 'कोवैक्स खरीद पूल' और जरूरतमंद देशों को दी जाएंगी। उन्होंने कहा कि अभी हम घरेलू मोर्चे पर जोर दे रहे हैं और हमारे पास अतिरिक्त खुराकें उपलब्ध नहीं हैं।


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करीब तीन साल पहले बोत्सवाना के कालाहारी रेगिस्तान में एक छोटा ऐस्टरॉइड आसमान से आ गिरा। अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह ऐस्टरॉइड आया कहां से है। माना जा रहा है कि यह हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ऐस्टरॉइड Vesta का हिस्सा रहा होगा। इसे 2018LA नाम दिया गया है और सबसे पहले इसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऐरिजोना के कैटलीना स्काई सर्वे में टेलिस्कोप की मदद से ऑब्जर्व किया गया था।

वैज्ञानिकों का मानना है कि Motopi Pan 4.324 अरब साल पहले बना था जब Vesta पर Veneneia इंपैक्ट बेसिन बना था। इस घटना में Motopi Pan गर्म हुआ और दूसरी घटना Rheasilbia इंपैक्ट में यह Vesta से बाहर निकल गिया।


Meteorite from Asteroid Belt: वैज्ञानिकों ने खोजा धरती पर गिरे उल्कापिंड का 'घर', जिसने तय किया 2 करोड़ साल का सफर

करीब तीन साल पहले बोत्सवाना के कालाहारी रेगिस्तान में एक छोटा ऐस्टरॉइड आसमान से आ गिरा। अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह ऐस्टरॉइड आया कहां से है। माना जा रहा है कि यह हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ऐस्टरॉइड Vesta का हिस्सा रहा होगा। इसे 2018LA नाम दिया गया है और सबसे पहले इसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऐरिजोना के कैटलीना स्काई सर्वे में टेलिस्कोप की मदद से ऑब्जर्व किया गया था।



दिखा और कुछ ही घंटों में आ गिरा
दिखा और कुछ ही घंटों में आ गिरा

SETI इंस्टिट्यूट में उल्कापिंड खगोलविद पीटर जेनिस्केंस ने बताया है कि यह दूसरी बार है जब धरती पर टकराने से पहले अंतरिक्ष में किसी ऐस्टरॉइड को देखा गया। इससे पहले 2008 में सूडान में ऐस्टरॉइड देखा गया था। वहीं, 2018 LA दो देखने के कुछ घंटे बाद ही यह बोत्सवाना में आग का गोला बनकर आ गिरा। ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी (ANU) के SkyMapper टेलिस्कोप ने धरती के वायुमंडल में इसके दाखिल होने से कुछ ही पल पहले इसे कैमरे में कैद किया। सीसीटीवी फुटेज में इसके आखिरी पल साफ दिख रहे हैं।



कहां से आया, कहां गिरा
कहां से आया, कहां गिरा

ANU के SkyMapper प्रॉजेक्ट साइंटिस्ट क्रिस्टफर ओंकेन ने बताया कि इन आखिरी तस्वीरों की मदद से ऐस्टरॉइड के धरती पर गिरे टुकड़ों को ढूंढने और अंतरिक्ष में इसकी उत्पत्ति से जुड़ी बातों को समझने में मदद मिली है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि इसके टुकड़े कालाहारी रेगिस्तान के नैशनल पार्क सेंट्रल कालाहारी गेम रिजर्व में मिले। इस उल्कापिंड को Motopi Pan नाम दिया गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि Motopi Pan 4.324 अरब साल पहले बना था जब Vesta पर Veneneia इंपैक्ट बेसिन बना था। इस घटना में Motopi Pan गर्म हुआ और दूसरी घटना Rheasilbia इंपैक्ट में यह Vesta से बाहर निकल गिया। (फोटो: Christian Wolf and colleagues ANU)



तय किया 2 करोड़ साल का सफर
तय किया 2 करोड़ साल का सफर

इसके आइसोटोप्स को स्टडी किया गया। इनसे ऐस्टरॉइड की केमिकल बनावट और आकार का पता चला जब वह वायुमंडल में आकर फटा नहीं था। 2018 LA 5 फीट का रहा होगा और धरती पर गिरने से पहले इसने 2.2-2.3 करोड़ साल तक अंतरिक्ष में सफर किया होगा। धरती के वायुमंडल में दाखिल होने से पहले इसकी गति 60 हजार किमी प्रतिघंटा रही होगी। अनैलेसिस में इसकी समानता 2015 में तुर्की में गिरे उल्कापिंड Sariçiçek से पाई गई। इन दोनों को Vesta से निकला पाया गया है।





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रियाद सऊदी अरब के नेतृत्‍व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...