
इस प्रॉजेक्ट में दुनियाभर के 500 वैज्ञानिक और इंजिनियर जुड़े हैं। टीम को यह पता लगाने की उम्मीद है कि कैसे सूरज का प्लाज्मा दो सितारों के बीच की स्पेस में गैस से इंटरैक्ट करते हैं जिससे हीलियोस्फीयर बनता है और उसके बाहर क्या है।

हमारा सौर मंडल कैसे बना? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एक और मिशन तैयार किया जा रहा है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA अरबों मील दूर एक प्रोब भेजेगी जो इसका पता लगाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और नासा का यह मिशन हीलियोस्फीयर तक 2030 के दशक की शुरुआत में प्रोब भेजेगा। इससे पहले 1977 में लॉन्च किए गए Voyager 1 और Voyager 2 सिर्फ दो ऐसे प्रोब हैं जो हीलियोस्फीयर के बाहर पहुंचे हैं, धरती से 14 और 11 अरब मील दूर।
कहां जाएगा प्रोब?

हीलियोस्फीयर सूरज और ग्रहों का बाहर मौजूद एक घेरा होता है जहां सौर-तूफन चलते हैं। वोयेजर्स में लगे उपकरण ने मिशन को लेकर सीमित डेटा दिया है। इसलिए यह जरूरत महसूस की गई कि दूसरे मिशन की जरूरत है जो नई परतें खोल सके। इसे फिलहाल इंटरस्टेलर प्रोब नाम दिया गया है। स्पेस एजेंसी इसे 1000 ऐस्ट्रोनॉमिकल यूनिट दूर भेजना चाहती है जो धरती और सूरज के बीच की दूरी से 1000 गुना ज्यादा है।
क्या है मिशन?

92 अरब मील की दूरी में Oort cloud का इलाका भी होगा जहां प्राचीन धूमकेतु और बर्फीली चट्टानें होती हैं। प्रोब की लीड एलेना प्रोवोर्निकोवा ने कहा है कि पहली बार हम हीलियोस्फीयर की बाहर से तस्वीर लेंगे और देखेंगे कि हमारा सौर मंडल कैसा लगता है। इस प्रॉजेक्ट में दुनियाभर के 500 वैज्ञानिक और इंजिनियर जुड़े हैं। टीम को यह पता लगाने की उम्मीद है कि कैसे सूरज का प्लाज्मा दो सितारों के बीच की स्पेस में गैस से इंटरैक्ट करते हैं जिससे हीलियोस्फीयर बनता है और उसके बाहर क्या है।
कैसा दिखता है सौर मंडल...

मिशन के तहत हीलियोस्फीयर की तस्वीरें ली जाएंगी और हो सकता है कि ऐसी बैकग्राउंड लाइट देखी जा सके जो गैलेक्सीज की शुरुआत से आती है लेकिन धरती से नहीं देखी जा सकती। गैलेक्सीज से निकलने वाली कॉस्मिक रेज से हमारे सौर मंडल को हीलियोस्फीयर बचाता है। साल के आखिर तक टीम नासा को प्रॉजेक्ट की आउटलाइन, उपकरण का पेलोड, ट्रैजेक्ट्री जैसी चीजें दे देगी। लॉन्च के बाद प्रोब को 15 साल लगेंगे हीलियोस्फीयर की सीमा पर पहुंचने में।
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