Sunday 28 February 2021

https://ift.tt/36CAGd7

अमेरिकी एयरफोर्स की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद से सीरिया एक बार फिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। रूस ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए असद सरकार के समर्थक मिलिशिया को निशाना न बनाने को कहा है। उधर अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज ने दावा किया है कि साल 2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है। जिसके बाद यूएसएस जॉन वॉर्नर को रूसी युद्धपोतों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रखा गया था। उस समय इसी पनडुब्बी ने असद सरकार के समर्थक मिलिशिया पर बेहद घातक टॉमहॉक मिसाइलें दागी थीं।

2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है।


World War 3: जब रूसी युद्धपोत को डुबाने को तैयार थी अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी, छिड़ सकता था तीसरा विश्वयुद्ध

अमेरिकी एयरफोर्स की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद से सीरिया एक बार फिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। रूस ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए असद सरकार के समर्थक मिलिशिया को निशाना न बनाने को कहा है। उधर अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज ने दावा किया है कि साल 2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है। जिसके बाद यूएसएस जॉन वॉर्नर को रूसी युद्धपोतों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रखा गया था। उस समय इसी पनडुब्बी ने असद सरकार के समर्थक मिलिशिया पर बेहद घातक टॉमहॉक मिसाइलें दागी थीं।



मंडराने लगा था तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा
मंडराने लगा था तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा

2018 में अमेरिका और रूस के बीच सीरिया में तनाव इतना बढ़ गया था कि दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा था। पूरी दुनिया इस युद्ध को टालने के लिए सक्रिय थीं, क्योंकि रूस और अमेरिका ने सीरिया में अपने सबसे ज्यादा घातक हथियारों का जखीरा तैनात कर दिया था। रूस ने जहां असद सरकार के समर्थक सेनाओं की सुरक्षा के लिए एस-400 और एस-300 डिफेंस सिस्टम को एक्टिव कर दिया था, वहीं अमेरिका ने एफ-16, एफ-22 लड़ाकू विमानों को स्टेंडबॉय पर रहने का आदेश दिया था। अमेरिका की कई किलर पनडुब्बियां दिन-रात सीरिया के चारों ओर चक्कर काटती थीं। ऐसे में अगर रूस या अमेरिका में से किसी भी देश ने दूसरे देश के सेना को निशाना बनाया होता तो आज दुनिया का नक्शा ही कुछ और होता।



बेहद घातक है अमेरिका की वर्जीनिया क्लास पनडुब्बी
बेहद घातक है अमेरिका की वर्जीनिया क्लास पनडुब्बी

परमाणु शक्ति से चलने वाली फास्ट अटैक वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियां टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों से लैस होती हैं। स्टील्थ फीचर से लैस होने के कारण दुश्मन के रडार इस पनडुब्बी को डिटेक्ट नहीं कर पाते हैं। एंटी सबमरीन वॉरफेयर में इस पनडुब्बी का दुनिया में कोई तोड़ नहीं है। अमेरिकी नौसेना में इन्हें लॉस एंजिलिस क्लास पनडुब्बियों के जगह पर कमीशन किया गया था। इस क्लास की पनडुब्बियां अमेरिकी नौसेना में 2060 से 2070 तक सर्विस में रहेंगी। अमेरिकी नौसेना ऐसी 66 पनडुब्बियों के निर्माण की योजना पर काम कर रही है, जिसमें से 19 अभी एक्टिव हैं जबकि 11 पनडुब्बियों को बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अमेरिकी नेवी ने 6 पनडुब्बियों का और ऑर्डर दिया हुआ है।



महीनों तक पानी के नीचे लगा सकती है गश्त
महीनों तक पानी के नीचे लगा सकती है गश्त

वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियों में तैनात नौसैनिकों को अगर खाने-पीने की वस्तुएं न लेनी हो तो वह कई महीनों तक पानी के नीचे गायब रह सकते हैं। इसमें खुद के ऑक्सीजन जेनरेटर्स लगे होते हैं, जो पनडुब्बी में तैनात नौसैनिकों के लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं। इसके अलावा परमाणु रिएक्टर लगे होने के कारण इनके पास ऊर्जा का अखंड भंडार होता है। जबकि परंपरागत पनडुब्बियों में डीजल इलेक्ट्रिक इंजन होता है। उन्हें इसके लिए डीजल लेने और मरम्मत के काम के लिए बार बार ऊपर सतह पर आना होता है। पानी के नीचे अगर कोई पनडुब्बी छिपी हुई तो उसका पता लगाना बहुत ही कठिन काम होता है। लेकिन, अगर वह पनडुब्बी किसी काम से एक बार भी सतह पर दिखाई दे दे तो उसको डिटेक्ट करना और पीछा करना दुश्मन के लिए आसान हो जाता है।



बेहद घातक हैं अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलें
बेहद घातक हैं अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलें

मिसाइल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इस तरह के हमलों के लिए टॉमहॉक मिसाइलें बहुत सटीक हैं। इन क्रूज मिसाइलों का रेंज 1,250 किलोमीटर से 2,500 किलोमीटर के बीच होता है। अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर ट्रैवल करने वाले इन मिसाइलों को समुद्र से छोड़ा जाता है। कम ऊंचाई पर होने की वजह से इन्हें रेडार ट्रेस नहीं कर पाते। टॉमहॉक मिसाइलों को अडवांस नैविगेशन सिस्टम के जरिए गाइड किया जाता है। इस मिसाइल की लंबाई 18 फीट 3 इंच (5.56 मीटर) होती है, बूस्टर के साथ लंबाई 5 फीट होती है। मिसाइल की स्पीड 885.139 किलोमीटर प्रति घंटे से 1416.22 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है।



1 टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये
1 टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये

टॉमहॉक मिसाइलें टारगेट तक सीधी रेखा में नहीं जाते, इसलिए इन्हें बीच में मारकर नहीं गिराया जा सकता। अमेरिका ने इन मिसाइलों का सबसे पहले ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म में इस्तेमाल किया गया था। ये मिसाइलें अपने साथ 450 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक ले जा सकते हैं। ये न्यूक्लियर हथियारों को ले जाने में भी सक्षम हैं। हालांकि अमेरिका ने इन्हें न्यूक्लियर इस्तेमाल से अलग रखा है। एक टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये बैठती है। टॉमहॉक ब्लॉक-2 मिसाइल तो 2500 किमी तक मार कर सकती है। यह मिसाइल बिना बूस्टर के 5.5 मीटर और बूस्टर के साथ 6.5 मीटर तक लंबी होती है। फिलहाल यह मिसाइल अमेरिका और ब्रिटेन की रायल नेवी में तैनात है। ताइवान ने भी अमेरिका से इस मिसाइल की खरीद के लिए समझौता किया है।





from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/2O6nVR6
via IFTTT

No comments:

Post a Comment

https://ift.tt/36CAGd7

रियाद सऊदी अरब के नेतृत्‍व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...