
काबुल कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता के साथ मुलाकात की। विदेश मंत्रालय के मुताबिक तालिबान की ओर से मुलाकात की इच्छा जाहिर की गई थी और दोहा स्थित दूतावास में दोनों प्रतिनिधि मिले। इससे पहले लंबे वक्त तक भारत की नीति तालिबान के साथ बातचीत नहीं करने की रही थी लेकिन अफगानिस्तान में दिनोंदिन बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने अपने सभी विकल्प खुले रखे। एक ओर अमेरिकी सेना देश छोड़ रही थी तो वहीं भारत भी पर्दे के पीछे से यह सुनिश्चित कर रहा था कि इस सत्ता हस्तांतरण के बीच कहीं उसके हितों को नुकसान न पहुंचे। पर्दे के पीछे बातचीत की चर्चा इससे पहले जून में कतर के विशेष दूत मुतलाक बिन मजीद अल कहतानी ने दावा किया था कि भारतीय अधिकारियों ने तालिबान के नेताओं से मुलाकात के लिए दोहा का दौरा किया है। उन्होंने तब कहा था कि भविष्य में अफगानिस्तान में तालिबान की भूमिका को समझते हुए हर पक्ष बातचीत को तैयार था। रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भारतीय अधिकारियों की बातचीत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दिशानिर्देश में आगे बढ़ी। हालांकि, तब न भारत सरकार ने और न ही तालिबान ने इसकी पुष्टि की। अभी तक मानी जा रही थी जल्दबाजी वहीं, जब बीते शनिवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से इस बारे में सवाल किए गए थे कि क्या तालिबान के साथ भारत की बातचीत चल रही है तो उन्होंने कहा था कि भारत का ध्यान देश के नागरिकों को वापस लाने की है जो इस वक्त अफगानिस्तान में फंसे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत, अफगानिस्तान में तालिबान को मान्यता देगा, बागची ने कहा कि काबुल में किसी इकाई के सरकार बनाने को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है और अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। कुछ नेताओं से बातचीत को तैयार जून में ही हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत की ओर से मुल्लाह बरादर से बातचीत की जा रही है जिसके अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनने की सबसे ज्यादा अटकलें लगाई जा रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत ऐसे तालिबानी नेताओं से बातचीत का मन बना रहा है जिनपर पाकिस्तान या ईरान का ज्यादा असर नहीं है। बरादर के साथ बातचीत की पुष्टि नहीं की गई। भारत के लिए अहम हैं कुछ मुद्दे रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया था तालिबान से बातचीत न करने की नीति को बदला गया। हालांकि, इसमें हक्कानी नेटवर्क या क्वेटा शूरा के सदस्य शामिल नहीं थे जिनका संबंध पाकिस्तान और पाक सेना से है। माना जा रहा है कि भारत के लिए अफगानिस्तान में लोकतंत्र के सम्मान और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों जैसे मुद्दे अहम हैं जिनपर बातचीत जटिल रह सकती है क्योंकि तालिबान ने इस्लामिक शासन का ऐलान किया है। अफगानिस्तान से दोस्ताना संबंध जरूरी हालांकि, तालिबान यह भी चाहता है कि वह भारत के साथ पहले जैसे संबंध बनाकर रख सके। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ-साथ पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में उसके लिए आसानी हो सकती है अगर उसे भारत का साथ मिल गया। भारत के लिए भी चीन और पाकिस्तान की भूमिका को देखते हुए तालिबान के साथ बातचीत के रास्ते खुले रखना जरूरी है।
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