Monday 30 August 2021

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इस्लामाबाद पाकिस्तानी सेना इन दिनों इस बात से हैरान है कि अफगान सेना के जवान उनके देश को छोड़कर भारत में ट्रेनिंग करने क्यों जाते हैं। पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान ने पिछली अफगान सरकारों को अपने सैनिकों की ट्रेनिंग के लिए कई प्रस्ताव भी दिए थे। इसके बावजूद अफगानिस्तान की सरकार ने पाकिस्तान के ऊपर भारत को ही तरजीह दी है। पाकिस्तान की इस हैरानी या लाचारी का खुलासा खुद उनकी सेना के प्रॉपगैंडा विंग यानी इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के डॉयरेक्टर जनरल मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने किया है। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने दुखड़ा रोया! मीडिया से बात करते हुए बाबर इफ्तिखार ने कहा कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अफगानिस्तान के कई दौरे किए, लेकिन केवल छह कैडेट पाकिस्तान आए, जबकि हजारों सैनिक और अधिकारी भारत में प्रशिक्षित हुए हैं। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अफगान लोग और सेना पाकिस्तान से इतनी नफरत क्यों करते हैं। उन्होंने यह भी समझाने की कोशिश की कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए कितना कुछ किया है, लेकिन वे अफगानिस्तान में गड़बड़ियों के लिए हमेशा पाकिस्तान को दोष देते हैं। अफगानिस्तान में भारत के निवेश पर दिया 'ज्ञान' उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी हुआ है, हमें भारत की भूमिका को समझने की जरूरत है। भारत ने अफगानिस्तान में जो भी निवेश किया है, वह सब पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया था। उन्होंने अफगान लोगों या अफगानिस्तान से कोई प्यार नहीं है। पिछली अफगान सरकारें, उसकी सेनाएं, सांसद, मीडिया आउटलेट और राजनीतिक टिप्पणीकार पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों पर तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को मदद देने का आरोप लगाते रहे हैं। पाक गृहमंत्री ने स्वीकारी थी तालिबान वाली सच्चाई पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख रशीद ने स्वीकार किया कि तालिबान सदस्यों के परिवार पाकिस्तान में रह रहे थे, और घायल और मृत लड़ाकों से अफगानिस्तान से देश लाया गया। हजारों अफगान अब अपनी मातृभूमि से भागने की उम्मीद कर रहे हैं। कुछ सफल हुए हैं और बाकी काबुल हवाई अड्डे के बाहर इंतजार कर रहे हैं, जो इस क्षेत्र का सबसे खतरनाक स्थान बन गया है। पाकिस्तान से नफरत करते थे अफगान अधिकारी उनमें से कई खुले तौर पर पाकिस्तान की आलोचना करते रहे हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तान का लक्ष्य अपने संसाधनों के लिए अफगानिस्तान को कमजोर, विभाजित रखना है ताकि वे अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी, भारत के कथित प्रभाव और भागीदारी के खिलाफ देश को नियंत्रित कर सकें। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका (पाकिस्तान के अनुसार) क्षेत्र में छद्म आतंकवादी ताकतों का समर्थन करना है। डूरंड लाइन बनेगी पाकिस्तान के लिए सिरदर्द पाकिस्तानी विश्लेषकों के मुताबिक, एक और समस्या आने वाली है। तालिबान के बसने के बाद वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा-डूरंड रेखा का मुद्दा उठाएगा। उन्हें लगता है कि तालिबान पाकिस्तान की रणनीतिक चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत कुछ नहीं करेगा। पिछली अफगान सरकारों की तरह, इसने डूरंड रेखा को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सरकार और आतंकियों ने किया ऐलान कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल को स्पष्ट कर दिया था कि डूरंड लाइन पर कोई समझौता नहीं होगा। टीटीपी सुप्रीमो नूर वली महसूद ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि हमारी लड़ाई केवल पाकिस्तान में है और हम पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध में हैं। हम पाकिस्तानी सीमा क्षेत्रों पर नियंत्रण करने और उन्हें स्वतंत्र बनाने की पूरी उम्मीद कर रहे हैं।


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