Monday 30 August 2021

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काबुल अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क ने तालिबान को लड़ने में मदद की थी। खबरों के मुताबिक काबुल पर कब्जे के बाद हक्कानी नेटवर्क के वरिष्ठ नेता अफगान राजधानी पहुंच चुके हैं। उन्होंने काबुल की सुरक्षा की कमान संभाल ली है और नई सरकार के गठन के लिए जारी बातचीत में भी शामिल हो गए हैं। अगर नई तालिबान सरकार में हक्कानियों का दखल रहता है तो यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खासकर भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है। आखिर हक्कानी कौन हैं और तालिबान से ज्यादा भारत को हक्कानियों से खतरा क्यों है? एक बार फिर लौटा तालिबान राजअफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चिंता जताते हुए कहा था कि 'अफगानिस्तान में होने वाली घटनाओं ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए वैश्विक चिंता को बढ़ा दिया है'। यह दूसरी बार है जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ है। इससे पहले 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का राज था। भारत ने उस सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। अगर तालिबान सत्ता में आता है तो क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाएगा। भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा हक्कानीयूएन की बैठक में जयशंकर प्रसाद ने कहा था, 'क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंता का कारण हक्कानी नेटवर्क है। अफगानिस्तान हो या भारत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों को प्रोत्साहन मिलेगा।' उन्होंने कहा कि हमें कभी भी आतंकियों के पनाहगारों का समर्थन नहीं करना चाहिए और उनके संसाधन जुटाने की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। विदेश मंत्री का इशारा पाकिस्तान की ओर था, जो कई ऐसे आतंकी समूहों का पनाहगार माना जाता है जो भारत को निशाान बनाते हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को हक्कानी नेटवर्क के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। पाकिस्तान का करीबी है आतंकी समूहविशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में अल-कायदा के वरिष्ठ नेतृत्व की मौजूदगी के बावजूद पाकिस्तानी सेना लगातार वहां सैन्य अभियान चलाने से इनकार करती रही है। पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान के तत्व अफगानिस्तान में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए हक्कानी नेटवर्क को एक उपयोगी सहयोगी और प्रॉक्सी बल के रूप में देख रहे हैं। हक्कानी लड़ाके अफगानिस्तान में भारतीय बुनियादी ढांचे और निर्माण परियोजनाओं को बार-बार निशाना बनाते आए हैं। यह गुट 2008 और 2009 में काबुल में भारतीय दूतावास के खिलाफ हमलों के लिए भी जिम्मेदार था। क्या है हक्कानी नेटवर्कहक्कानी नेटवर्क को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने अपनी आतंकी समूहों की सूची में शामिल किया है। इस संगठन को खूंखार आतंकी और अमेरिका के खास रहे जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था। 1980 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के इलाके में इस संगठन ने काफी सफलता भी पाई थी। कई अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि जलालुद्दीन हक्कानी को सीआईए फंडिंग करती थी। इतना ही नहीं, उसे हथियार और ट्रेनिंग भी सीआईए के एजेंट ही दिया करते थे। जलालुद्दीन हक्कानी उसी समय से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के भी खास थे। सरकार में मिल सकती है जगहदरअसल, सीआईए को आईएसआई ही बताती थी कि किस मुजाहिद्दीन को कितना पैसा और हथियार देना है। यही कारण है कि आज भी हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का बहुत ज्यादा प्रभाव है और इसी कारण भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का पूरा फोकस फिलहाल नई सरकार के गठन पर है। कई तस्वीरों में सिराजुद्दीन के भाई अनस हक्कानी को तालिबानी नेताओं के साथ देखा गया था। चिंता की बात यह भी है कि हक्कानी नेटवर्क भी इन प्रयासों में शामिल है।


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