
वॉशिंगटन धरती के चक्कर काट रहे स्पेसक्राफ्ट्स का काम खत्म होने के बाद उनका क्या होता है? जब वे अपना पूरा जीवन जी लेते हैं तो उन्हें कहां रखा जाता है? इसका जवाब मिलता है प्रशांत महासागर की गहराइयों में। यहां है एक ऐसा ठिकाना जहां पुरानी सैटलाइट्स को दफन कर दिया जाता है। यहां तक कि इस जगह का नाम भी 'स्पेसक्राफ्ट का कब्रिस्तान' रख दिया गया है। यह जगह है जो धरती की सबसे दूरस्थ जगह है। दक्षिण प्रशांत महासागर की यह जगह अपनी सबसे करीबी जमीन से 1400 नॉटिकल मील दूर है। चार किलोमीटर नीचे दिलचस्प बात यह है कि इस जगह का नाम क्लासिक साई-फाई नॉवेल '20,000 लीग्स अंडर द सी' के कैरेक्टर डीप-सी डाइविंग कैप्टन के नाम पर रखा गया है। NASA के मुताबिक महासागर के इस इलाके में किसी स्पेस मलबे के गिरने की संभावना 10,000 में से एक है। स्पेसक्राफ्ट का कब्रिस्तान महासागर की सतह के चार किलोमीटर नीचे है और यहां पुराने और खराब सैटलाइट, ईंधन के टैंक और कचरे के फ्रीट रखी जाती हैं। ISS भी यहीं पहुंचेगा यहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती और सिर्फ स्पंज, वाइपरफिश, स्किवड, ऑक्टोपाई और वेल रहते हैं। स्पेस एजेंसीज 1971 से यहां अपनी खराब सैटलाइट में फेंक रही हैं। चार दशक से ज्यादा समय के बाद 160-300 सैटलाइट यहं डंप की जा चुकी हैं। सबसे ज्यादा रूस से आती हैं। मलबे में रूस के 6 Salyut स्पेस स्टेशन, यूरोपियन स्पेस एजेंसी के पांच ट्रांसफर वीइकल, जापान के चार HTV कार्गो क्राफ्ट और 145 स्वायत्त रूसी सप्लाई शिप डंप किए जा चुके हैं। रूसी स्पेस स्टेशन Mir को 2001 में यहां डाला गया। अब से 3 साल बाद जब इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन का काम पूरा हो जाएगा तब उसे भी यहीं डाला जाएगा।
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