
वॉशिंगटन आजकल अमेरिका और चीन कई मुद्दों को लेकर एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। कई बार तो दोनों ही देशों में जंग का अंदेशा भी जताया जा चुका है। लेकिन, क्या आपको पता है कि अमेरिका के संबंध चीन के साथ हमेशा से तनावपूर्ण नहीं रहे हैं। एक समय तो ऐसा था, जब अमेरिका ने चीन के लड़ाकू विमान को अपग्रेड करने में तकनीकी रूप से बड़ी मदद की थी। उसी की बदौलत चीन J-8II लड़ाकू विमान को ताकतवर बनाने में कामयाब हो पाया था। वही, चीन आज रक्षा, व्यापार, कूटनीति के क्षेत्र में अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। चीन को ताकतवर बनाने में अमेरिका का हाथ आज चीनी वायुसेना के पास पांचवी पीढ़ी का जे-20 लड़ाकू विमान है। भले ही चीन ने इसे अमेरिकी वायुसेना के एफ-35 की तकनीक को चोरी कर बनाया है, लेकिन उसके पास रडार को चकमा देने की ताकत को कम से कम है ही। इसी बदौलत वह आए दिन अपने पड़ोसी देशों को धौंस देता रहता है। अमेरिका की विमान निर्माता कंपनी ग्रूमैन के सहयोग से बनाया गया J-8II लड़ाकू विमान अब पुराना पड़ गया है। चीन ने इस विमान की तकनीक का प्रयोग कर इस समय कई एडवांस लड़ाकू विमानों को तैयार कर लिया है, जिसमें जे-10 मल्टीरोल लड़ाकू विमान भी शामिल है। 1979 में गहराई थी चीन-अमेरिका की दोस्ती चीनी जे-8आईआई लड़ाकू विमान प्रोग्राम में बी-2 बॉम्बर बनाने वाली अमेरिकी कंपनी ग्रुम्मन के शामिल होने की कहानी 1979 में शुरू हुई थी। उस समय अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते सबसे मजबूती के दौर से गुजर रहे थे। इसी साल अमेरिकी सरकार ने पेइचिंग को चीन की आधिकारिक राजधानी होने की मान्यता दी थी और ताइवान की राजधानी ताइपे के दावे को नकार दिया था। इसी के साथ चीन और अमेरिका के बीच एक नई व्यापारिक और राजनयिक रिश्तों की शुरुआत हुई। इस नए रिश्ते ने वैश्विक हथियार बाजार को भी प्रभावित किया। अमेरिकी हथियारों का बड़ा खरीदार बना चीन चीन ने अमेरिकी विदेश विभाग की आधिकारिक मंजूरी के बाद अमेरिकी कंपनियों से बड़ी मात्रा में हथियारी की खरीद शुरू कर दी। यही कारण है कि चीनी सेना आज भी कई सिकोरस्की S-70 ब्लैक हॉक यूटिलिटी हेलिकॉप्टरों का संचालन करती है। अमेरिकी हथियारों की खरीद के साथ चीन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के लिए बनाने में अमेरिकी मदद लेने का फैसला किया। अमेरिका के सहयोग से माओ की सांस्कृतिक क्रांति के प्रभाव से बाधित चीन का लड़ाकू विमान उद्योग को बड़ी ताकत मिली। जे-8 को अपग्रेड करने को तैयार हुआ अमेरिका चीन ने शेनयांग जे-8 को रूस के सहयोग से 1960 के दशक में बनाना शुरू किया था। इस लड़ाकू विमान को अधिक ऊंचाई पर लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले इंटरसेप्टर विमान के रूप में बनाया जाना था।। इस विमान को जे-7 से विकसित किया गया था, जो कॉम्पेक्ट ट्विन इंजन लड़ाकू विमान था। 1969 में पहली बार इसके पहले प्रोटोटाइप ने उड़ान भरी। लेकिन, चीनी वायुसेना ने इस विमान को टेस्ट करने के बाद से शामिल करने से इनकार कर दिया। जिसके कारण इस विमान के उन्नत संस्करण जे-8II को बनाना पड़ा। तब भी चीनी वायुसेना पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थी। अमेरिका ने एफ-16 की तकनीकी दी जिसके बाद चीन ने इस लड़ाकू विमान को उन्नत बनाने के लिए अमेरिका से संपर्क किया। उस दौरान अमेरिका ने चीन को हथियारों का बड़ा खरीदार मानते हुए इस विमान को अपग्रेड करने में सहायता करने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद अमेरिकी वायुसेना की निगरानी में औपचारिक सैन्य सहायता कार्यक्रम शुरू किया गया। इस कार्यक्रम को पीस पर्ल (Peace Pearl) का उपनाम दिया गया। इस विमान में अमेरिका ने चीन को एफ-16 लड़ाकू विमान की तकनीकी मुहैया करवाई।
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