
वॉशिंगटन संयुक्त अरब अमीरात और चीन के बीच बढ़ते सैन्य संबंधों से अमेरिका टेंशन में है। उसे खाड़ी देश का अपना महत्वपूर्ण साथी दुश्मन चीन के साथ जाता दिखाई दे रहा है। दावा किया जा रहा है कि यही कारण है कि जो बाइडन ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद यूएई के साथ की डील को रद्द कर दिया था। अमेरिका को डर है कि चीन कहीं दुनिया से सबसे अत्याधुनिक विमान की तकनीकी न हासिल कर ले। तो खाड़ी देशों के एफ-35 नहीं बेचेगा अमेरिका? इस साल अप्रैल में अमेरिका और यूएई एफ-35 डील पर फिर से विचार करने पर सहमत हुए हैं। हालांकि, पेंटागन से साफ-साफ कहा है कि अगर डील फाइनल भी हो जाता है तब भी यूएई को अगले कई सालों तक यह विमान सौंपा नहीं जाएगा। माना जा रहा है कि अमेरिका, यूएई और चीन के बढ़ते रक्षा संबंधों के कारण सख्त कदम उठाने पर मजबूर हुआ है। चीन के कई मिलिट्री एयरक्राफ्ट यूएई में देखे गए वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी अधिकारी चिंतित हैं कि संयुक्त अरब अमीरात और चीन के बीच बढ़ते संबंधों के कारण अबू धाबी को 23 अरब डॉलर की हथियारों की बिक्री खतरे में पड़ सकती है। इसमें यह भी बताया गया है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने यूएई और चीन के बीच कई मिलिट्री ट्रांसपोर्ट फ्लाइट का पता लगाया है। जिसमें पता लगा है कि पिछले कुछ महीनों में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के कई विमान यूएई के एक हवाई अड्डे पर उतरे हैं। अमेरिका ने यूएई से मांगी तकनीकी की गारंटी रिपोर्ट के अनुसार, बाइडन प्रशासन यूएई से इस बात की गारंटी मांग रहा है कि अगर बिक्री आगे बढ़ती है तो वह चीन को अमेरिकी हथियारों तक पहुंच की अनुमति नहीं देगा। अमेरिका जानता है कि अगर यूएई को एफ-35 जैसा दुनिया का सबसे अत्याधुनिक विमान बेचा गया तो चीन जरूर इसकी तकनीकी और प्रौद्योगिकी को पाने का प्रयास जरूर करेगा। अगर चीन इसमें सफल रहता है तो यह अमेरिका के लिए किसी सदमें से कम नहीं होगा। यूएई को एफ-35 बेंचने पर कैसे राजी हुआ था अमेरिका? अमेरिका और यूएई के बीच एफ-35 लड़ाकू विमान की डील पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के आखिरी साल में हुई थी। यूएई को अपने देश की सुरक्षा के लिए इस लड़ाकू विमान की सख्त जरूरत है। ऐसे में ट्रंप ने मौका देखते हुए इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने की शर्त रखी थी। जिसके बाद इजरायल और यूएई के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे अब्राहम अकार्ड के नाम से जाना जाता है। वर्टिकल टेकऑफ और लैंडिंग कर सकता है एफ-35 अमेरिका में बना एफ-35 लड़ाकू विमान वर्टिकल-टेक ऑफ और लैंडिंग तकनीकी से लैस है। अमेरिकी एयरफोर्स का एफ-35 लड़ाकू विमान का वजन लगभग 25 टन के आसपास है। इस प्लेन को बनाने का कार्यक्रम अमेरिकी एयरफोर्स की पुराने पड़ते एफ-16 के सैकड़ों विमानों को रिप्लेस करने के लिए शुरू किया गया था। इंजन सहित एक एफ-35 लड़ाकू विमान की कीमत करीब 100 मिलियन डॉलर है। भारतीय रुपये में यह कीमत करीब 724 करोड़ के आसपास आएगी। मेंटीनेंस इतना महंगा कि फेरारी से होती है तुलना इतना महंगा होने के कारण एफ-35 लड़ाकू विमानों का मेंटिनेंस या रखरखाव भी काफी महंगा है। इसमें कई ऐसे हाईटेक उपकरण लगे हैं, जिन्हें एक निश्चित उड़ान के घंटों के बाद बदलने की जरूरत होती है। जिसके कारण एयरफोर्स का अधिकांश बजट इसके मेंटिनेंस में ही खर्च हो रहा है। वायु सेना के एक पूर्व प्रोग्राम मैनेजर और द सिंपलिसिटी साइकिल सहित लोकप्रिय बिजनेस बुक्स लिखने वाले डैन वार्ड ने कहा कि एफ- 35 कम लागत वाला हल्का लड़ाकू नहीं है। एक फेरारी है।
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