
अंकारा तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन का पाकिस्तान प्रेम किसी से छिपा हुआ नहीं है। एर्दोगन पाकिस्तान और चीन की सहायता से खुद को इस्लामिक देशों का नया खलीफा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि वह आए दिन भारत के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। पिछले साल जब संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन किया गया था, तब एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दा उठाते हुए इसपर पाकिस्तान का हक बताया था। इसी दुश्मनी को आगे बढ़ाते हुए एर्दोगन ने अब भारत के पहलवानों पर अपनी खीज निकाली है। भारतीय पहलवानों को तुर्की ने क्वारंटीन करने की 'धमकी' दी दरअसल, तीन जुलाई से तुर्की के इस्तांबुल में वर्ल्ड डेफ कुश्ती चैंपियनशिप का आयोजन होने जा रहा है। इस चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए भारतीय पहलवानों के दल को भी इस्तांबुल रवाना होना था। लेकिन, जब भारतीय कुश्ती टीम एयरपोर्ट पहुंची, तभी उन्हें जानकारी दी गई कि तुर्की पहुंचने के बाद उन्हें 14 दिन के के लिए अनिवार्य क्वारंटीन कर दिया जाएगा। यह चैंपियनशिप ही 8 जुलाई को खत्म हो जाएगी। ऐसे में भारतीय पहलवानों के टूर्नामेंट में शामिल होने पर ही सवालिया निशान लग गए हैं। पाकिस्तान-तुर्की बनाएंगे चीनी फाइटर जेट और मिसाइलें पाकिस्तान और तुर्की एक साथ मिलकर चीन के लड़ाकू विमान बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, इन दोनों देशों ने मिसाइल निर्माण पर भी एक मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर साइन किया है। तुर्की के अधिकारियों ने कहा कि उनका देश पाकिस्तान को एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखता है और उसके साथ मिलकर सिपेर लॉंग रेंज मिसाइल डिफेंस प्रॉजेक्ट तथा टीएफ-एक्स फाइटर जेट पर मिलकर काम कर रहा है। तुर्की को परमाणु बम टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगा पाकिस्तान ग्रीस के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पाकिस्तान परमाणु बम और मिसाइल तकनीक को तुर्की को ट्रांसफर कर रहा है। पिछले साल 22-23 दिसंबर को इस मुद्दे पर तुर्की और पाकिस्तान के बीच एक हाई लेवल मीटिंग भी आयोजित की गई थी। एर्दोगन ने सितंबर 2019 में एक भाषण में कहा था कि कुछ देशों के पास एक दो नहीं बल्कि कई परमाणु मिसाइलें हैं और हमारे पास एक भी नहीं। हम इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि इमरान खान से दोस्ती के बल पर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान अपने परमाणु बम के सपने को पूरा करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि परमाणु हथियार हासिल करके वह इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब के प्रिंस से बढ़त बना लेंगे। पाकिस्तानी सेना को हथियार दे रहा तुर्की तुर्की पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई करने वाले देशों में अभी चौथे स्थान पर है। लेकिन, दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, उससे वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान अपने आधे से अधिक हथियार इसी देश से खरीदेगा। पाकिस्तान वर्तमान में सबसे ज्यादा हथियार अपने सदाबहार दोस्त चीन से खरीदता है। 2018 में तुर्की की सरकारी स्वामित्व वाली डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर फर्म ASFAT इंक के साथ पाकिस्तान मिलिट्री ऑफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) ने मैग्नम परियोजना के तहत एडा क्लास के चार युद्धपोतों के लिए करार किया था। इसके अलावा पाकिस्तान ने तुर्की के साथ 30 की संख्या में T-129 ATAK हेलिकॉप्टरों की खरीद का सौदा भी किया है। कश्मीर में भाड़े के लड़ाकों को भेजने को तैयार तुर्की! सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स और हावर न्यूज ने हाल के रिपोर्टों में दावा किया है कि तुर्की सीरिया में सक्रिय अपने भाड़े के लड़ाकों के संगठन सादात को कश्मीर में तैनात करने की प्रक्रिया में है। सादात का नेतृत्व एर्दोगन के सैन्य सलाहकार अदनान तनरिवर्दी करता है। जिसने कश्मीर में बेस तैयार करने के लिए कश्मीर में जन्मे सैयद गुलाम नबी फई नाम के आतंकी को नियुक्त किया है। फई पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पैसों पर भारत के खिलाफ भाड़े के सैनिकों की भर्ती करने और टैक्स चोरी के लिए अमेरिका की जेल में दो साल की सजा काट चुका है। आंख बंद कर एक दूसरे का समर्थन करते हैं तुर्की-पाकिस्तान तुर्की और पाकिस्तान केवल रक्षा संबंधों में ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी एक दूसरे का आंख बंदकर समर्थन करते हैं। हाल में ही जब ग्रीस के साथ भूमध्य सागर में सीमा विवाद हुआ तो पाकिस्तान ने बिना सच्चाई जाने खुलेआम तुर्की के पक्ष में समर्थन का ऐलान किया था। इतना ही नहीं, भूमध्य सागर में पाकिस्तान और तुर्की की नौसेनाओं ने युद्धाभ्यास कर एकजुटता का ऐलान भी किया। इसके बदले में तुर्की कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का खुला समर्थन करता है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन तो इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भी उठा चुके हैं। एर्दोगन ने फरवरी 2020 में कहा कि यह मुद्दा तुर्की के लिए उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि पाकिस्तान के लिए। कैसे शुरू हुई तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती दरअसल, तुर्की और पाकिस्तान दोनों शीत युद्ध के जमाने में अमेरिका के सहयोगी रहे हैं। अमेरिका ने रूस के खिलाफ इन दोनों देशों का सबसे ज्यादा उपयोग किया। यही कारण है कि रूस को न केवल अफगानिस्तान से हार मानकर वापस जाना पड़ा, बल्कि यूरोप और भूमध्य सागर के इलाके में भी अपनी सेना का विस्तार बंद करना पड़ा। तुर्की और पाकिस्तान दोनों ताकत में भी लगभग बराबर हैं। इन दोनों देशों में सबसे बड़ी समानता इनका धर्म इस्लाम है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान दोनों ही इस्लामी मुल्कों का नया खलीफा बनने की कोशिश में जुटे हैं। भारत से दुराव और पाक से नजदीकी की कहानी 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की ओर ज्यादा हो गया था। इस्लाम के नाम पर उदय हुए पाकिस्तान ने तुर्की के साथ दोस्ती में अपना उज्ज्वल भविष्य देखा। तुर्की में रह रहे कुर्द, अल्बानियाई और अरब जैसे तुर्को के बीच पाकिस्तान की स्वीकार्यता में इस्लाम में बड़ी भूमिका अदा की। मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्ष सोच के बावजूद पाकिस्तान और तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए। 1970 के दशक में नेकमेटिन एर्बाकन के नेतृत्व में इस्लामी दलों के उदय ने तुर्की की राजनीति में इस्लाम की भूमिका को और मजबूत किया। इस तरह के राजनीतिक अनुभवों ने तुर्की की विदेश नीति को भी प्रभावित किया और पाकिस्तान के साथ तुर्की की नजदीकी का समर्थन किया। साल 1954 में पाकिस्तान और तुर्की ने शाश्वत मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए।
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