काबुल तालिबान को अफगानिस्तान के अपदस्थ उपराष्ट्रपति की ट्वीट से डर लगने लगा है। हफ्ते भर से सालेह के गढ़ को घेरे तालिबान लड़ाकों ने सालेह को ट्वीट करने से रोकने के लिए पंजशीर के इंटरनेट कनेक्शन को काट दिया है। तालिबान यह नहीं चाहता है कि पंजशीर के विद्रोही किसी भी तरह से अपनी आवाज दुनिया तक पहुंचा सकें। पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया है तालिबान पंजशीर अफगानिस्तान का एकमात्र ऐसा प्रांत है, जिसपर आजतक तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। 1996 से 2001 के इस्लामिक अमीरात के शासन के दौरान भी पंजशीर तालिबान के लिए एक नासूर बना रहा। तालिबान ने कहा था कि पंजशीर के स्थानीय राज्य के अधिकारियों ने इसे शांतिपूर्वक सौंपने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से हमें अपने लड़ाके भेजने पड़े हैं। सालेह ने खुद को घोषित किया है अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति 15 अगस्त को अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भाग जाने के बाद, अमरुल्लाह सालेह ने देश के संविधान के अनुसार खुद को अफगानिस्तान का वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया था। हालांकि, सालेह के दावे को अभी तक किसी भी देश या अंतरराष्ट्रीय निकाय जैसे संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता नहीं दी है। उपराष्ट्रपति सालेह इसी इलाके में छिपे अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह इसी इलाके में छिपे हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा भी था कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं। पंजशीर बना तालिबान के लिए बड़ा नासूर जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, तभी से पंजशीर घाटी में विद्रोही लड़ाके जुटना शुरू हो गए हैं। बताया जा रहा है कि इनमें सबसे ज्यादा संख्या अफगान नेशनल आर्मी के सैनिकों की है। इस गुट का नेतृत्व नॉर्दन एलायंस ने चीफ रहे पूर्व मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद कर रहे हैं। उनके साथ पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर की सैन्य टुकड़ी भी है। अहमद शाह मसूद के नाम से कांपता था तालिबान अहमद शाह मसूद अफगानिस्तान के वो हीरो थे जिन्हें रूस और तालिबान कभी नहीं हरा पाए। अहमद शाह मसूद ताजिक समुदाय से ताल्लुकात रखने वाले सुन्नी मुसलमान थे। इंजीनियरिंग किए हुए अहमद शाह मसूद साम्यवाद के कट्टर आलोचक थे। 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब उन्होंने विद्रोही ताकतों की कमान संभाली और एक के बाद एक कई सफलताएं भी हासिल की।
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