काबुल कुछ समय पहले अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में योगदान देने के लिए अमेरिका के कहने पर जिस को पाकिस्तान की जेल से रिहा किया गया था, आज वही न केवल एशिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के एक नए खौफनाक चेहरे के रूप में उभर कर सामने आया है। पड़ोसी देश अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू होते ही सत्ता पर कब्जा जमाने वाले तालिबान संगठन के सर्वेसर्वा और अफगान आतंकवादी अब्दुल गनी बरादर तालिबान की नींव रखने वालों में से एक रहा है और किसी जमाने में संगठन के पहले नेता मोहम्मद उमर का दायां हाथ रह चुका है। उसे तालिबान संगठन में सम्मान से मुल्ला बरादर नाम से पुकारा जाता है। बरादर यानी ‘भाई’, यह उपनाम मोहम्मद उमर ने उसे दिया था। उमर से थी पुरानी दोस्ती हालांकि हैबतुल्लाह अखुंदजाद तालिबान का शीर्ष नेता है लेकिन बरादर संगठन का राजनीतिक प्रमुख और उसका सार्वजनिक चेहरा है। अफगानिस्तान के उरूजगान प्रांत का एक जिला है डेह राहवुद और इसी जिले के वितमाक गांव में करीब 1968 में अब्दुल गनी बरादर का जन्म हुआ था। इसी इलाके का एक कबीला है पोपालजई और इस कबीले की एक उपशाखा सदोज़ई कबीले से ताल्लुक रखने वाला अब्दुल गनी बरादर दुर्रानी पश्तून है। ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद उमर के साथ उसकी दोस्ती किशोरावस्था में ही हुई थी। मिलकर खोला था मदरसा ऐसा नहीं है कि अब्दुल गनी बरादर अचानक ही सुर्खियों में आ गया हो। उसने 1980 के दशक में सोवियत संघ समर्थित अफगान सरकार के खिलाफ कंधार के पंजवाई इलाके में ‘सोवियत -अफगान युद्ध’ में उमर के उप कमांडर के रूप में अफगान मुजाहिदीन के साथ हिस्सा लिया था। बाद में दोनों ने मिलकर कंधार प्रांत के माईवांद इलाके में एक मदरसा खोल लिया। पश्चिमी मीडिया के अनुसार उमर और अब्दुल आपस में रिश्तेदार भी हैं। अफगानिस्तान से सोवियत संघ के पीछे हटने के बाद 1994 में अब्दुल गनी बरादर ने उमर के साथ ही दो अन्य लोगों के साथ मिलकर दक्षिणी अफगानिस्तान में तालिबान का गठन किया जिसका मकसद अफगानिस्तान में ‘धार्मिक शुद्धीकरण’ और एक अमीरात की स्थापना करना था। मजहबी कट्टरपन और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के व्यापक समर्थन से तालिबान गृह युद्ध में उलझे देश में 1996 में सत्ता में आ गया। मुख्य रणनीतिकार तब से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान, बरादर हेरात और निमरोज प्रांतों का गवर्नर रहने के साथ ही पश्चिमी अफगानिस्तान का कोर कमांडर भी रहा था। उसे संगठन का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता है। अमेरिकी विदेश विभाग के सार्वजनिक दस्तावेजों में बरादर को आर्मी स्टाफ का पूर्व उप प्रमुख और सेंट्रल आर्मी कोर, काबुल का कमांडर बताया गया है जबकि इंटरपोल कहता है कि वह तालिबान का उप रक्षा मंत्री था। अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया और अफगान बलों की मदद से तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। उस समय भी बरादर ने अमेरिका समर्थित नार्दर्न एलायंस के खिलाफ जंग लड़ी थी। समाचार पत्रिका ‘न्यूजवीक’ के अनुसार, तालिबान का किला जब ढहने के कगार पर था तो बरादर अपने पुराने दोस्त उमर के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहाड़ों में जा छुपा था। 2018 में हुआ रिहा बरादर को पाकिस्तानी खुफिया बलों ने 2010 के पूर्वार्द्ध में गिरफ्तार किया था लेकिन बाद में उसे 24 अक्टूबर 2018 को अमेरिका की अपील पर जेल से रिहा कर दिया गया। उसके बाद से ही उसने अफगानिस्तान के भीतर तालिबान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। फरवरी 2020 में उसने अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी को लेकर दोहा समझौते पर तालिबान की ओर से हस्ताक्षर किए। और 2001 में पहली तालिबान सरकार के पतन के बाद से बरादर 17 अगस्त 2021 को पहली बार अफगानिस्तान लौटा। यह तथ्य अपने आप में काफी रोचक है कि बरादर को फरवरी 2010 के आसपास पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था और कहा जाता है कि उसकी गिरफ्तारी में अमेरिका की भूमिका थी और अब उसकी रिहाई में तो अमेरिकी भूमिका पूरी तरह दुनिया के सामने है। बरादर को कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के राजनयिक कार्यालय का प्रमुख भी नियुक्त किया गया। उसके बाद का घटनाक्रम हालिया इतिहास का हिस्सा बन चुका है। खौफनाक हालात बरकरार तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद वहां हालात खौफनाक हैं और अमेरिका द्वारा अपने सैनिकों को पूरी तरह वापस बुलाने की अंतिम तारीख 31 अगस्त सामने खड़ी है। ऐसे में बताया जाता है कि 23 अगस्त 2021 को सीआईए निदेशक विलियम जे बर्न्स ने काबुल में बरादर से गोपनीय मुलाकात की और 31 अगस्त की अंतिम समय सीमा पर चर्चा की। अब देखना यह है कि अफगान शांति प्रक्रिया में मदद के लिए बोतल से निकाला गया बरादर नाम का यह जिन्न दशकों से युद्ध से जर्जर इस देश में कितनी शांति स्थापित कर पाता है, जहां से नागरिक अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग रहे हैं।
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