लंदन धरती के पर्यावरण के लिए बहुत बुरी खबर है। पृथ्वी ने वर्ष 1994 से लेकर वर्ष 2017 के बीच में 28 ट्रिल्यन टन बर्फ खो दिया। यह बर्फ इतनी ज्यादा है कि पूरे ब्रिटेन को 300 फुट मोटी बर्फ की चादर से ढंका जा सकता है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी का चक्कर लगा रहे उपग्रहों के आंकड़े के आधार पर वैश्विक स्तर पर बर्फ के पिघलने का पता लगाया है। शोधकर्ताओं के दल ने पाया कि 23 साल की अवधि में हर साल बर्फ के पिघलने की दर में 65 फीसदी का इजाफा हुआ। पृथ्वी पर 90 के दशक में 0.8 ट्रिल्यन टन पिघलती थी जो बढ़कर 1.3 ट्रिल्यन टन पहुंच गई। वैज्ञानिकों ने कहा कि बर्फ का यह पिघलना लगातार जारी है। इसे अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ के तेजी से पिघलने से गति मिली है। बर्फ के पिघलने से पूरे विश्व में समुद्र का जलस्तर बढ़ता जा रहा है। जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है और इससे वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास संकट में आ गया है। पृथ्वी वैज्ञानिक थॉमस स्लाटेर ने कहा, 'हमने जहां अध्ययन किया, हर जगह पर बर्फ को पिघलता पाया लेकिन ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ की चादर सबसे ज्यादा पिघली है।' उन्होंने चेतावनी दी कि अगर समुद्र के जलस्तर में बहुत जरा सा भी बदलाव होता है तो इसका तटीय इलाकों में इस सदी में बहुत गंभीर असर पड़ेगा। शोधकर्ता थॉमस ने कहा कि सैटलाइट के इस्तेमाल से हमने पहली बार पूरी धरती पर पिघली हुई बर्फ का पता लगाया है। उन्होंने कहा कि बर्फ के पिघलने की मुख्य वजह पृथ्वी के वातावरण का गरम होना है। इससे वर्ष 1980 के बाद हर दशक में तापमान में 0.26 डिग्री सेंटीग्रेट की बढ़ोत्तरी हुई है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा बर्फ करीब 68 फीसदी वातावरण में गर्मी की वजह से पिघली है। उन्होंने कहा कि करीब 32 फीसदी बर्फ समुद्र की वजह से हुई है। इस टीम ने दुनियाभर के 2,15,000 पहाड़ी ग्लेशियरों, दोनों ध्रुवों के बर्फ की जांच की।
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