Tuesday, 2 February 2021

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बैंकॉक/यंगून भारत के पड़ोसी देश म्‍यांमार में सोमवार को एक बार फिर से सैन्य तख्तापलट हो गया और देश की सर्वोच्‍च नेता आंग सांग सू की को अरेस्‍ट कर लिया गया। सेना ने उपराष्‍ट्रपति मिंट स्वे को राष्ट्रपति नामित किया है जो वर्ष 2007 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में अपनी भूमिका और ताकतवर सैन्य नेताओं के साथ संबंधों के लिए जाने जाते हैं। मिंट स्‍वे ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद शीर्ष सैन्य कमांडर सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग को सत्ता की कमान सौंप दी। जनरल मिन रिटायरमेंट की कगार पर हैं और विश्‍लेषकों का मानना है कि वह एक साल बाद होने वाले राष्‍ट्रपति चुनाव में ताल ठोक सकते हैं। दरअसल, म्‍यांमार के 2008 में बने संविधान के तहत, आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति सैन्य कमांडर को सत्ता की कमान सौंप सकता है। लाइंग (64) 2011 से सैन्य बलों के कमांडर हैं और जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं। यानी यदि सैन्‍य जुंटा वादे के अनुसार एक साल में चुनाव कराता है तो उनके असैन्य नेतृत्व की भूमिका संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा। सेना ने यह कहकर तख्तापलट को सही ठहराया है कि सरकार चुनाव में धोखाधड़ी के उसके दावों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है। सेना की ‘यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डवलपमेंट पार्टी’ की शर्मनाक हार चुनाव में सेना के समर्थन वाली ‘यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डवलपमेंट पार्टी’ को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। ‘एशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के गेरार्ड मैकार्थी ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि इस बात का एहसास हो गया है कि मिन आंग लाइंग सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्हें एक बड़ी भूमिका दिए जाने की संभावना है।’ अमेरिका सरकार ने ‘गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन’ में शामिल होने के कारण लाइंग को 2019 में काली सूची में डाल दिया था। लाइंग ने राखिने क्षेत्र में सुरक्षा अभियानों के दौरान सेना का नेतृत्व किया था। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार जांचकर्ताओं का कहना है कि अभियान के दौरान सेना की कार्रवाई के कारण रोहिंग्या समुदाय के करीब सात लाख लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था। स्वे ने 2017 में एक जांच का नेतृत्व किया था, जिसमें सेना पर लगे इन आरोपों को खारिज किया गया था और कहा गया था कि सेना ने ‘वैध तरीके’ से काम किया। लाइंग म्यामां के दर्जन से अधिक उन अधिकारियों में शामिल हैं, जिन्हें 2008 में फेसबुक से हटा दिया गया था। उनका ट्विटर अकाउंट भी बंद कर दिया गया था। स्वे (69) पूर्व जुंटा नेता थान श्वे के निकट सहयोगी हैं। श्वे ने 2011 में अर्द्ध-सैन्य सरकार की शुरुआत के लिए सत्ता हस्तांतरण की अनुमति दी थी। इस सत्ता हस्तांतरण के बाद म्यामां पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए थे, जिनके कारण यह देश वर्षों तक अलग-थलग रहा था और विदेशी निवेश से वंचित रहा था। पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है। डोकलाम विवाद के समय भारत आए थे जनरल मिन वर्ष 2017 में चीन के साथ डोकलाम विवाद के दौरान जनरल मिन भारत आए थे। इस दौरान जनरल मिन का भारत के तत्‍कालीन सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने स्‍वागत किया था। जनरल मिन बोध गया गए थे और भगवान बुद्ध की पूजा की थी। उन्‍होंने देशभर में कई जगहों की यात्रा की थी। दिल्‍ली लौटने पर उन्‍होंने पीएम मोदी और तत्‍कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली और राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल से मुलाकात की थी। म्‍यांमार के उठापटक पर भारत की पैनी नजर पूर्वोत्‍तर भारत से सटे म्‍यांमार में एक बार फिर से सैन्‍य उठापटक के बाद भारत सरकार की पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर बनी हुई है। भारत या तो आंग सांग सू की का साथ दे सकता है या उनके खिलाफ जा सकता है। म्‍यांमार में यह सैन्‍य उठापटक से पहले गत वर्ष अक्‍टूबर महीने में भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रंगला और सेना प्रमुख एमएम नरवणे म्‍यांमार गए थे। विश्‍लेषकों का कहना है कि यह एक असामान्‍य यात्रा थी जिसका मकसद भी पता नहीं चला। उनका कहना है कि भारत को पूर्वोत्‍तर भारत में मौजूद उग्रवादियों से निपटने के लिए म्‍यांमार की सेना की जरूरत है और इसी वजह से नई दिल्‍ली जनरल मिन को नाराज नहीं कर सकता है। वह भी तब जब चीन उन्‍हें अपने पाले में लाने के लिए लगा हुआ है।


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