
पेइचिंग/यंगून चीन और भारत सटे म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और सेना के कमांडर इन चीफ मिन आंग लाइंग के हाथों में देश की बागडोर आ गई है। जनरल मिन के सत्ता में आने से चीन की नींद उड़ती दिख रही है और यही वजह है कि उसने बहुत ठंडी प्रतिक्रिया दी है। म्यांमार की सेना के प्रमुख जनरल मिन का चीन के साथ करीबी संबंध है लेकिन वह पाकिस्तानी सेना प्रमुख की तरह से गुलामी नहीं करते हैं। जनरल मिन के चीन के दो बड़े दुश्मनों भारत और चीन से करीबी संबंध हैं। यही वजह है कि आंग सांग सू की को अपने पाले में लाने में लगे चीन की नींद उड़ गई है। म्यांमार में तख्तापलट पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है, 'म्यांमार में जो कुछ हुआ है, हमने उसका संज्ञान लिया है और हम हालात के बारे में सूचना जुटा रहे हैं।' उन्होंने कहा, 'चीन, म्यांमार का मित्र और पड़ोसी देश है। हमें उम्मीद है कि म्यामां में सभी पक्ष संविधान और कानूनी ढांचे के तहत अपने मतभेदों को दूर करेंगे और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।' चीन की इस प्रतिक्रिया को अब शक की नजरों से देखा जा रहा है। आंग सांग सू की एनएलडी सरकार को था चीन का पूरा समर्थन चीन और म्यांमार मामलों के विशेषज्ञ यून सुन ने वाइस ऑफ अमेरिका से बातचीत में कहा कि चीन की प्रतिक्रिया अपेक्षित थी। हम जानते हैं कि चीन किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है, इसलिए सेना की निंदा की अपेक्षा उससे नहीं थी। चीन का यह रटा-रटाया रवैया काफी समय से है। उन्होंने कहा कि यह तख्तापलट निश्चित रूप से चीन के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने जा रहा है। याद रखिए चीन के स्टेट काउंसलर वांग यी ने हाल ही में चीन की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान उन्होंने आंग सांग सू की एनएलडी सरकार को पूरा समर्थन दिया था। यून सुन ने कहा कि वांग यी ने पूरी मजबूती के साथ प्रतिबद्धता जताई थी कि चीन एनएलडी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान आंग सांग सू की के साथ काम करना चाहता है। चीन ने म्यांमार में बड़े पैमाने निवेश किया है। उन्होंने कहा कि चीन-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर को ड्रैगन आगे बढ़ाना चाहता है लेकिन आने वाले महीने एक महीने पहले की स्थिति की तुलना में उसके लिए अनिश्चित होने जा रहे हैं। सुन ने कहा कि इस तख्तापलट से म्यांमार में चीनी निवेश और चीनी आर्थिक क्रियाकलाप के लिए खतरे की घंटी बज गई है। सुन ने कहा कि चीन के लिए आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता भी राजनीतिक बोझ बन गई क्योंकि हम जानते हैं कि म्यांमार की शक्तिशाली सेना के खिलाफ चीन कुछ नहीं कर सकता है। चीन को बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार की सेना को बचाना होगा और यही वजह है कि म्यांमार का सैन्य तख्तापलट चीन के लिए एक बोझ बन गया है। सुरक्षा परिषद में इस तख्तापलट पर चर्चा होगी जो चीन के लिए अच्छी खबर नहीं है। चीन ने किया है काफी निवेश दरअसल, चीन, म्यांमार का महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है और उसने यहां खनन, आधारभूत संरचना और गैस पाइपलाइन परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है। चीन ने म्यांमार में काफी निवेश किया है। पिछले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब यहां दौरे पर आए थे तो 33 ज्ञापनों पर दस्तखत किए गए थे जिनमें से 13 इन्फ्रास्टक्चर से जुड़े थे। चीन ने देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाई है और पिछली सैन्य तानाशाह सरकार में साथ भी रहा लेकिन आंग सान सू ची के आने के बाद उनके साथ भी चीन के संबंध अच्छे रहे। चीन को नहीं है चिंता? थिंक टैंक चैटम हाउस की चंपा पटेल ने द गार्जियन को बताया है, 'चीन तख्तापलट का स्वागत नहीं करेगा। चीन के सूची के साथ अच्छे संबंध हैं, खासकर तब जब रोहिंग्या संकट पर उनकी सरकार के रवैया की पश्चिमी देशों ने आलोचना की है।' चीन और म्यांमार के बीच 2,100 किमी की सीमा है और यहां सरकार और अल्पसंख्यक विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष चलता रहता है लेकिन चीन की सेना को इस बात की चिंता भी नहीं है कि म्यांमार की उथल-पुथल का असर उसके क्षेत्र में होगा।
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