
दोहा कतर को फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए तैयार करने के दौरान पिछले एक दशक में कम से कम 6500 विदेशी कामगारों की मौत हो चुकी है। मरने वाले कामगारों में सबसे अधिक संख्या भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से गए लोगों की है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2010 में जब कतर को 22वें फीफा वर्ल्डकप के लिए चुना गया था तब से लेकर अब तक इन देशों के लगभग 12 लोगों की मौत हर हफ्ते हुई है। श्रमिकों के मौत का आंकड़ा हो सकता है और ज्यादा गार्डियन ने कतर के सरकारी सोर्स का हवाला देकर दावा किया है कि इन लोगों की मौत फुटबाल वर्ल्डकप के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाते समय हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवासी श्रमिकों की मौत का यह आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है। क्योंकि, इन आंकड़ों में फिलिपींस और केन्या सहित कई ऐसे देशों को शामिल नहीं किया गया हैं जहां के लाखों लोग कतर में नौकरी करते हैं। 10 साल में प्रवासी श्रमिकों ने कतर को बनाया 'स्वर्ग' कतर में पिछले 10 साल में लगभग 28 लाख प्रवासी मजदूरों ने फुटबॉल के 7 नए स्टेडियमों का निर्माण किया है। 2022 गर्मियों में आयोजित होने वाले दुनिया के सबसे प्रसिद्ध खेल के प्रेमियों को स्वर्ग की अनुभूति देने के लिए नया मेट्रो, एयरपोर्ट, मोटरवे यहां तक कि एक नया शहर भी बसाया गया है। कतर में लगभग 20 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं, जिनमें अधिकतर लोग दक्षिण एशिया, अफ्रीका और पूर्वी एशिया के रहने वाले हैं। श्रमिकों ने चुकाई वर्ल्ड कप की तैयारियों की कीमत इस खेल के प्रेमियों के लिए स्वर्ग को धरती पर उतारने की कोशिश में लगे मजदूरों ने पिछले कई सालों से अपना खून-पसीना एक किया हुआ है। इस खेल का आनंद उठाने कतर आने वाले लोगों के लिए लाखों कामगारों ने डरावने डॉरमेट्री वाले कमरों में रात गुजारी है। आधिकारिक तौर पर कतर का कहना है कि वर्ल्ड कप स्टेडियमों में काम करते हुए 37 श्रमिकों की मौत हुई है। खाड़ी देशों में कतर में सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिकों की मौत खाड़ी देशों में श्रम अधिकारों को लेकर काम करने वाले फेयरस्केयर प्रोजेक्ट्स के निदेशक निक मैकगिहान ने कहा कि इस निर्माण कार्य में मजदूरों की हुई मौत को उनके काम के हिसाब से बांटा नहीं गया है, फिर भी संभावना जताई जा रही है कि अधिकतर श्रमिकों की मौत वर्ल्ड कप के लिए निर्माण करते समय हुई है। उन्होंने कहा कि 2011 के बाद से कतर में बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों की मौत हुई है।
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