
Solar Storm on Earth 1582: साल 1582 में अंतरिक्ष से आए महातूफान से आकाश में 'आग की लपटें' दिखाई दे रही थीं। तीन रातों तक आकाश में बस आग ही आग दिखाई दे रही थी। अब इस महातूफान के एक बार फिर से आने का खतरा मंडरा रहा है।

धरती पर आज से करीब 500 साल पहले महाविनाशकारी सौर तूफान आया था। इस तूफान की वजह से धरती के उत्तरी आसमान में हर तरफ तीन रातों तक बस आग ही आग दिखाई दे रही थी। आकाश का हर हिस्सा ऐसा लग रहा था जैसे मानो आग की लपटों में तब्दील हो गया हो। हालत यह थी कि उस समय के लोगों ने ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था। अंतरिक्ष से आए इस महातूफान का खतरा एक बार फिर से धरती पर मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस सदी में भी अंतरिक्ष से सौर तूफान के आने का खतरा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज की सतह पर गड़बड़ी का असर पूरे सोलर सिस्टम पर पड़ेगा। इसका धरती पर विनाशकारी असर हो सकता है। आइए जानते हैं महातूफान का धरती पर क्या हो सकता है असर....
धरती के हर से शहर से गायब हो सकती है बिजली

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अंतरिक्ष से महातूफान फिर आता है तो धरती के लगभगर हर शहर से बिजली गुल हो सकती है। इससे पहले वर्ष 1989 में आए सौर तूफान की वजह से कनाडा के क्यूबेक शहर में 12 घंटे के के लिए बिजली गुल हो गई थी और लाखों लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से वर्ष 1859 में आए चर्चित सबसे शक्तिशाली जिओमैग्नेटिक तूफान ने यूरोप और अमेरिका में टेलिग्राफ नेटवर्क को तबाह कर दिया था। इस दौरान कुछ ऑपरेटर्स ने बताया कि उन्हें इलेक्ट्रिक का झटका लगा है जबकि कुछ अन्य ने बताया कि वे बिना बैट्री के अपने उपकरणों का इस्तेमाल कर ले रहे हैं। नार्दन लाइट्स इतनी तेज थी कि पूरे पश्चिमोत्तर अमेरिका में रात के समय लोग अखबार पढ़ने में सक्षम हो गए थे। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वर्तमान समय में दुनिया बहुत ज्यादा कंप्यूटर और ऑटोमेशन पर निर्भर हो गई है, ऐसे में पिछले तूफान के मुकाबले इस बार सौर तूफान से परिणाम ज्यादा भयावह हो सकता है। सौर तूफान आने पर हमारे अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे सैटलाइट प्रभावित हो सकते हैं और इससे हमारी संचार और जीपीएस प्रणाली ठप पड़ सकती है।
साल 1582 में आए महातूफान में क्या-क्या हुआ था? चला पता

अब शोधकर्ताओं ने ऐसे प्रत्यक्षदर्शियों का पता लगाया है जिन्होंने साल 1582 में आए महातूफान को देखा था। इस सोलर तूफान को पूरी दुनिया में देखा गया था और लोगों को ऐसा लगा कि धरती खत्म होने वाली है। उस समय के पुर्तगाल के लेखक पेरे रुइज सोआरेस ने लिखा है, 'उत्तरी आसमान में हर तरफ तीन रातों तक बस आग ही आग दिखाई दे रही थी। आकाश का हर हिस्सा ऐसा लग रहा था जैसे मानो आग की लपटों में तब्दील हो गया हो।' उन्होंने लिखा है, 'मध्यरात्रि को किले के ऊपर एक भयानक आग की किरणें उभरकर सामने आईं जो बहुत भयानक और डरावनी थी। उसके दूसरे दिन भी ठीक उसी समय पर आसामन में यह किरणें फिर से दिखाई दीं लेकिन वह उतना डरावनी नहीं थीं जितनी की पहले दिन थी। हर व्यक्ति गांव की तरफ चला गया ताकि इस महान संकेत को जीभर के निहार सके। शोध में पता चला है कि डरावनी किरणों को दिखने की घटना जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देशों में भी देखी गई थी।
21वीं सदी में भी धरती से टकरा सकता है महातूफान

कार्नेल विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक वर्ष 1582 में आए सौर तूफान की वजह से ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) को ध्रुवों के साथ-साथ भूमध्य रेखा तक देखा गया था। सौर सिस्टम पर शोध करने वाले वैज्ञानिक अब पिछली घटनाओं की जांच कर रहे हैं ताकि सूरज पर आने वाले तूफान के पैटर्न का पता लगाया जा सके। साथ ही इस संभावना का पता लगाया जा सके कि क्या सौर तूफान का पता लगाया जा सकता है या नहीं। शोध में कहा गया है कि ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि साल 1582 में आए महातूफान सदी में एक बार आते हैं। इस तरह का तूफान 21वीं सदी में भी धरती से टकरा सकता है। उन्होंने कहा कि आने वाले 79 वर्षों में कभी भी इस तरह से आग की लपटों की तरह से किरणें धरती से टकरा सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अभी ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे यह पता लगाया जा सके कि सौर किरणों की चपेट में आने पर तकनीक कैसे प्रतिक्रिया करेगी। विशेषज्ञों के मुताबिक 11 साल के चक्र में सूरज की गतिविधि कम और तेज होती है। सोलर चक्र 25 अभी पिछले साल ही शुरू हुआ है, इसका मतलब है कि वर्ष 2025 में सूरज अपने चरम पर होगा।
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