
मॉस्को संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के खिलाफ वोट करने वाले रूस ने फिलिस्तीन की मदद के लिए बड़ा कदम उठाया है। रूस की कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने वाली रशियन डॉयरेक्ट इंवेस्टमेंट बोर्ड ने ऐलान किया है कि फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिंगल डोज वाली स्पुतनिक लाइट वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। स्पुतनिक लाइट वैक्सीन स्पुतनिक वी का फस्ट कंपोनेंट है। स्पुतनिक की सिंगल डोज वैक्सीन 79 फीसदी प्रभावी! रूस का दावा है कि उसकी स्पूतनिक लाइट वैक्सीन का इंजेक्शन लगाने के 28 दिनों के बाद विश्लेषण किए गए आंकड़ों के अनुसार 79.4 फीसदी प्रभावी है। 5 दिसंबर, 2020 से लेकर 15 अप्रैल 2021 के बीच बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान किसी भी कारण से दूसरा डोज नहीं लगवाने वाले रूसियों से यह डेटा इकट्ठा किया गया है। इतना ही नहीं, रूस का यह भी कहना है कि स्पूतनिक सिंगल डोज वैक्सीन दुनियाभर में मौजूद दो डोज वाली कई कोरोना वैक्सीन से ज्यादा प्रभावी है। को पहले ही मिल चुकी है मंजूरी फिलिस्तीन ने जनवरी 2021 में ही रूस में बनी हुई दो डोज वाली स्पुतनिक वी वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी थी। आरडीआईएफ ने बताया है कि स्पुतनीक वी वैक्सीन को अबतक दुनियाभर के 65 देशों में मंजूरी दी जा चुकी है। इन देशों में कुल मिलाकर 3.2 अरब से अधिक लोग रहते हैं। रूस का दावा- अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज होंगे कम रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के सीईओ किरिल दिमित्रीव ने कहा कि सिंगल डोज वाली स्पुतनिक लाइट वैक्सीन का उपयोग करने से अस्पताल में भर्ती होने वाले गंभीर मामलों की संभावना काफी कम हो जाती है। उन्होंने फिलिस्तीन में स्पुतनिक लाइट को मंजूरी दिए जाने के लिए अधिकारियों को धन्यवाद भी दिया। किरिल ने कहा कि इस वैक्सीन के कारण वहां के लोग कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जल्द से जल्द हर्ड इम्यूनिटी को पा सकेंगे। कैसे काम करती है यह वैक्सीन रूस की वैक्सीन सामान्य सर्दी जुखाम पैदा करने वाले adenovirus पर आधारित है। इस वैक्सीन को आर्टिफिशल तरीके से बनाया गया है। यह कोरोना वायरस SARS-CoV-2 में पाए जाने वाले स्ट्रक्चरल प्रोटीन की नकल करती है जिससे शरीर में ठीक वैसा इम्यून रिस्पॉन्स पैदा होता है जो कोरोना वायरस इन्फेक्शन से पैदा होता है। यानी कि एक तरीके से इंसान का शरीर ठीक उसी तरीके से प्रतिक्रिया देता है जैसी प्रतिक्रिया वह कोरोना वायरस इन्फेक्शन होने पर देता लेकिन इसमें उसे COVID-19 के जानलेवा नतीजे नहीं भुगतने पड़ते हैं। मॉस्को की सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में 18 जून 2020 से क्लिनिकल ट्रायल शुरू हुए थे।
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