Monday 31 May 2021

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अमेरिका और चीन इन दिनों अंतरिक्ष की दुनिया में एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते दिखाई दे रहे हैं। अप्रैल के आखिरी हफ्ते में ही चीन ने अपने स्वदेशी स्पेस स्टेशन के लिए पहला मॉड्यूल रवाना किया था। माना जा रहा है कि चीन इस स्टेशन के जरिए अंतरिक्ष में अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना चाहता है। इतना ही नहीं, यह दोनों देश अब चंद्रमा को लेकर भी एक दूसरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चीन ने बीते एक दशक में चंद्रमा पर चार बार से अधिक सफलतापूर्वर लैंडिंग कर अपना परचम फहराया है। वहीं, अमेरिका इकलौता ऐसा देश है, जिसने चांद पर इंसान को उतारा है। 14 दिसंबर, 1972 को नासा के अंतरिक्ष यात्री यूजीन सर्नन ने अपोलो 17 के लूनर मॉड्यूल चैलेंजर में बैठकर चंद्रमा की सतह से धरती के लिए उड़ान भरी थी। तब से लेकर अबतक किसी भी देश ने चंद्रमा पर इंसान को नहीं भेजा है। अब चीन इस तैयारी में जुटा है कि वह अपने स्पेस स्टेशन के ऐक्टिव होते ही चंद्रमा पर अंतरिक्षयात्रियों को भेजने का मिशन शुरू करेगा। ऐसा नहीं है कि केवल चीन ही चांद पर इंसानों को भेजना चाहता है, बल्कि इस दौड़ में अमेरिका, रूस, भारत कनाडा और दक्षिण कोरिया भी जी-जान से जुटे हुए हैं।

कोल्ड वॉर के बाद दुनियाभर के देशों में फिर से एक बार स्पेस रेस शुरू हो गई है। इस बार की दौड़ में अंतर बस इतना है कि रूस की जगह चीन ने ले ली है। दुनियाभर के सभी देश आने वाले वर्षों में चांद पर बस्तियां बसाने की योजना पर काम कर रहे हैं। लेकिन, बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर चांद पर ऐसा क्या है कि अमेरिका, रूस चीन ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देश इस बंजर और वीरान उपग्रह पर पहुंचना चाहते हैं?


Moon Gold Rush: चंद्रमा पर ऐसा क्या है जिसके लिए बेताब हुए अमेरिका-चीन, कोल्ड वॉर के बाद शुरू हुई नई स्पेस रेस

अमेरिका और चीन इन दिनों अंतरिक्ष की दुनिया में एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते दिखाई दे रहे हैं। अप्रैल के आखिरी हफ्ते में ही चीन ने अपने स्वदेशी स्पेस स्टेशन के लिए पहला मॉड्यूल रवाना किया था। माना जा रहा है कि चीन इस स्टेशन के जरिए अंतरिक्ष में अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना चाहता है। इतना ही नहीं, यह दोनों देश अब चंद्रमा को लेकर भी एक दूसरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चीन ने बीते एक दशक में चंद्रमा पर चार बार से अधिक सफलतापूर्वर लैंडिंग कर अपना परचम फहराया है। वहीं, अमेरिका इकलौता ऐसा देश है, जिसने चांद पर इंसान को उतारा है। 14 दिसंबर, 1972 को नासा के अंतरिक्ष यात्री यूजीन सर्नन ने अपोलो 17 के लूनर मॉड्यूल चैलेंजर में बैठकर चंद्रमा की सतह से धरती के लिए उड़ान भरी थी। तब से लेकर अबतक किसी भी देश ने चंद्रमा पर इंसान को नहीं भेजा है। अब चीन इस तैयारी में जुटा है कि वह अपने स्पेस स्टेशन के ऐक्टिव होते ही चंद्रमा पर अंतरिक्षयात्रियों को भेजने का मिशन शुरू करेगा। ऐसा नहीं है कि केवल चीन ही चांद पर इंसानों को भेजना चाहता है, बल्कि इस दौड़ में अमेरिका, रूस, भारत कनाडा और दक्षिण कोरिया भी जी-जान से जुटे हुए हैं।



क्यों चांद पर जल्द से जल्द पहुंचना चाहते हैं ये देश
क्यों चांद पर जल्द से जल्द पहुंचना चाहते हैं ये देश

चांद के वीरान और उजाड़ सतह के नीचे कई बहुमूल्य धातुएं मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि सोने और प्लेटिनम का खजाना चंद्र सतह के ठीक नीचे दबी हुई हैं। इसके अलावा धरती पर मिलने वाले कई अन्य धातुएं जैसे टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। दावा यह भी है कि चंद्रमा पर पृथ्वी की दुर्लभ कई धातुएं हैं जो अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक्स को शक्ति प्रदान करेंगी। यही कारण है कि सभी देश जल्द से जल्द इस वीरान, उबड़-खाबड़ और अमानवीय जलवायु वाले उपग्रह पर पहुंचना चाहते हैं। चंद्रमा पर नॉन-रेडियोएक्टिव हीलियम गैस भी एक महत्वपूर्ण मात्रा में उपलब्ध है। यह गैस एक दिन धरती पर परमाणु फ्यूजन (nuclear fusion) रिएक्टरों को शक्ति प्रदान कर सकती है। विशेषज्ञों का तो दावा यहां तक है कि चंद्रमा पर पानी भी मौजूद है। एक दिन ऐसा आएगा जब इस उपग्रह की पानी के लिए सभी देशों के बीच होड़ मचेगी।



बस्तियां बसाकर अंतरिक्ष में उत्‍खनन करना चाहते हैं देश
बस्तियां बसाकर अंतरिक्ष में उत्‍खनन करना चाहते हैं देश

विशेषज्ञों के मुताबिक, विश्‍वभर की महाशक्तियों की योजना चांद पर बस्तियां बसाने की है। इसी को देखते हुए चीन ने लंबी अवधि की योजना पर काम करते हुए अपना चंद्रमा उत्‍खनन कार्यक्रम शुरू किया है। उसकी कोशिश वर्ष 2036 तक चंद्रमा पर एक स्‍थायी ठिकाना बनाने की है। चीन चंद्रमा के टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहे और पानी का इस्‍तेमाल रॉकेट निर्माण के लिए करना चाहता है। अंतरिक्ष में यह रॉकेट निर्माण सुविधा वर्ष 2050 तक अंतरिक्ष में लंबी दूरी तक उत्‍खनन करने की उसकी योजना के लिए बेहद जरूरी है। चीन क्षुद्र ग्रहों का भी उत्‍खनन करना चाहता है। साथ ही उसकी योजना भू समकालिक कक्षा में सोलर पॉवर स्‍टेशन बनाने की है। चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख झांग केजिन ने घोषणा की है कि चीन अगले 10 साल में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना शोध केंद्र स्‍थापित करेगा।



चंद्रमा पर अड्डा बनाना चाहता है अमेरिका, मंगल पर नजर
चंद्रमा पर अड्डा बनाना चाहता है अमेरिका, मंगल पर नजर

चीन की इन पुख्‍ता तैयारियों को देखते हुए ही 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तत्कालीन अमेरिकी उपराष्‍ट्रपति माइक पेंस ने भी कहा था, 'हम इन दिनों एक स्‍पेस रेस में जी रहे हैं जैसाकि वर्ष 1960 के दशक में हुआ था और दांव पर उस समय से ज्‍यादा लगा है। चीन ने रणनीतिक रूप से महत्‍वपूर्ण चंद्रमा के सुदूरवर्ती इलाके में अपना अंतरिक्ष यान उतारा है और इस पर कब्‍जा करने की योजना का खुलासा किया है।' चंद्रमा के खनिजों का तेजी के साथ खनन अमेरिका के लिए भी बेहद महत्‍वपूर्ण हो गया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक ऐसे रोबॉट पर काम कर रही है जो प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने के लिए चंद्रमा की मिट्टी को निकालकर उसकी जांच कर सकता है। नासा भी वर्ष 2028 तक चंद्रमा पर एक अड्डा बनाना चाहती है। नासा के ऐडमिनिस्‍ट्रेटर जिम ब्राइडेनस्‍टाइन ने पिछले दिनों कहा था कि हम चांद पर इसलिए जाना चाहते हैं क्‍योंकि हम मानव के साथ मंगल ग्रह पर जाना चाहते हैं।



चांद पर पहुंचने के प्रोग्राम में प्राइवेट स्पेस एजेंसियां भी पीछे नहीं
चांद पर पहुंचने के प्रोग्राम में प्राइवेट स्पेस एजेंसियां भी पीछे नहीं

नासा के इस काम में ऐमजॉन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस मदद कर रहे हैं। उनकी एक कंपनी ब्‍लू ओरिजिन एक नए रॉकेट पर काम कर रही है। बेजोस की योजना पृथ्‍वी पर स्थित सभी विशालकाय उद्योगों को अंतरिक्ष में ले जाने की है। चीन और बेजोस दोनों की योजना अंतरिक्ष में मानव बस्तियां बसाने और औद्योगीकरण की है। चीन की सोच है कि धरती पर स्थित परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर अगर उसकी अर्थव्‍यवस्‍था निर्भर रहेगी तो यह लंबे समय के लिए ठीक नहीं होगा। इसीलिए वह अंतरिक्ष के संसाधनों के इस्‍तेमाल पर काम कर रहा है। बेजोस भी मानते हैं कि मानव के रहने के लिए पृथ्‍वी के संसाधन सीमित हैं, इसलिए अंतरिक्ष में रहने की संभावना पर काम करना होगा। बेजोस ने अपने एक भाषण में कहा था कि चंद्रमा के पानी का इस्‍तेमाल ईंधन के रूप में किया जा सकता है।





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