Thursday, 27 May 2021

https://ift.tt/36CAGd7

एथेंस इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान और तुर्की के मजबूत होते संबंधों से पूरी दुनिया परेशान है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दोगन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को साथ मिलाकर इस्लामिक देशों का नया खलीफा बनने की कोशिश में जुटे हैं। यही कारण है कि तुर्की ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को खुला समर्थन दिया हुआ है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने भी रिटर्न गिफ्ट के तौर पर भूमध्य सागर विवाद में तुर्की के समर्थन का ऐलान किया हुआ है। यही कारण है कि ये दोनों देश एशिया ही नहीं, बल्कि यूरोप की भी शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत-ग्रीस रक्षा संबंधों को करेंगे मजबूत पाकिस्तान और तुर्की के इस गठजोड़ के खिलाफ भारत ने भी ग्रीस के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी है। 25 मई को ग्रीस के नागरिक सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंध महानिदेशालय के जनरल डायरेक्टर डॉ. कॉन्स्टेंटिनो पी बालोमेनोस ने एथेंस में स्थित राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय में भारत के रक्षा अटैशे कर्नल अनुपम आशीष के साथ बैठक की। इस दौरान भारत और ग्रीस के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर सहमति भी बनी है। मिलिट्री ट्रेनिंग बढ़ाने पर जोर देंगे दोनों देश ग्रीस की मीडिया पेंटापोस्टेग्मा की रिपोर्ट के अनुसार, इस बैठक के दौरान दोनों देशों के कॉमन इंट्रेस्ट को लेकर बातचीत की गई। इतना ही नहीं, दोनों देशों ने मिलिट्री ट्रेनिंग पर किए जा रहे सहयोग को और बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की। इसमें भारत-ग्रीस के अलावा अन्य देशों के साथ मिलकर सैन्य अभ्यास, मिलिट्री एकेडमिक ट्रेनिंग और हाइब्रिड वॉर के खतरों से निपटने पर भी चर्चा की गई। दोनों अधिकारियों ने प्रत्येक देश के सामने परस्पर सुरक्षा और स्थिरता की चुनौतियों पर भी चर्चा की। इसके अलावा, उन्हें यूरोपीय संघ के बारे में सामान्य हित के मुद्दों पर बाचतीच की। इसके साथ ही दोनों देशों ने साथ ही साथ क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के ढांचे में ग्रीस और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करने के महत्व पर बल दिया। कैसे शुरू हुई तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती दरअसल, तुर्की और पाकिस्तान दोनों शीत युद्ध के जमाने में अमेरिका के सहयोगी रहे हैं। अमेरिका ने रूस के खिलाफ इन दोनों देशों का सबसे ज्यादा उपयोग किया। यही कारण है कि रूस को न केवल अफगानिस्तान से हार मानकर वापस जाना पड़ा, बल्कि यूरोप और भूमध्य सागर के इलाके में भी अपनी सेना का विस्तार बंद करना पड़ा। तुर्की और पाकिस्तान दोनों ताकत में भी लगभग बराबर हैं। इन दोनों देशों में सबसे बड़ी समानता इनका धर्म इस्लाम है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान दोनों ही इस्लामी मुल्कों का नया खलीफा बनने की कोशिश में जुटे हैं। भारत से दुराव और पाक से नजदीकी की कहानी 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की ओर ज्यादा हो गया था। इस्लाम के नाम पर उदय हुए पाकिस्तान ने तुर्की के साथ दोस्ती में अपना उज्ज्वल भविष्य देखा। तुर्की में रह रहे कुर्द, अल्बानियाई और अरब जैसे तुर्को के बीच पाकिस्तान की स्वीकार्यता में इस्लाम में बड़ी भूमिका अदा की। मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्ष सोच के बावजूद पाकिस्तान और तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए। 1970 के दशक में नेकमेटिन एर्बाकन के नेतृत्व में इस्लामी दलों के उदय ने तुर्की की राजनीति में इस्लाम की भूमिका को और मजबूत किया। इस तरह के राजनीतिक अनुभवों ने तुर्की की विदेश नीति को भी प्रभावित किया और पाकिस्तान के साथ तुर्की की नजदीकी का समर्थन किया। साल 1954 में पाकिस्तान और तुर्की ने शाश्वत मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए।


from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/34j7ZQq
via IFTTT

No comments:

Post a Comment

https://ift.tt/36CAGd7

रियाद सऊदी अरब के नेतृत्‍व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...