Tuesday, 1 June 2021

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भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए आबादी को वैक्सिनेट करने का काम तेजी से चल रहा है। भारत की खुद की Covaxin तो मैदान में है ही, Oxford-AstraZeneca की Covishield भी इस जंग में सबसे आगे दौड़ रही है। इन दोनों के अलावा रूस की Sputnik V लगवाने का विकल्प भी आ चुका है और कुछ ही हफ्तों में BioNTech-Pfizer की वैक्सीन के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ऐसे में लोगों के लिए यह समझना अहम हो जाता है कि उन्हें कौन सी वैक्सीन और क्यों चुननी चाहिए। इसे समझने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के लिए शताक्षी अस्थाना ने बात की अमेरिकन फिजियॉलजिकल सोसायटी के सदस्य डॉ. जोसेफ रोश से जिन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे ये सभी वैक्सीन एक-दूसरे से अलग हैं।

अमेरिकन फिजियॉलजिकल सोसायटी के सदस्य डॉ. जोसेफ रोश ने बताया है कि भारत में दी जा रहीं Covishield और Covaxin वैक्सीनें एक-दूसरे से कैसे अलग हैं। उन्होंने Pfizer की वैक्सीन के बारे में भी बताया है जो जल्द ही भारत आ सकती है।


भारत आ रही Pfizer की कोरोना वैक्सीन, एक्सपर्ट ने बताया Covishield, Covaxin, Sputnik ... किसमें क्या है खास?

भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए आबादी को वैक्सिनेट करने का काम तेजी से चल रहा है। भारत की खुद की Covaxin तो मैदान में है ही, Oxford-AstraZeneca की Covishield भी इस जंग में सबसे आगे दौड़ रही है। इन दोनों के अलावा रूस की Sputnik V लगवाने का विकल्प भी आ चुका है और कुछ ही हफ्तों में BioNTech-Pfizer की वैक्सीन के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ऐसे में लोगों के लिए यह समझना अहम हो जाता है कि उन्हें कौन सी वैक्सीन और क्यों चुननी चाहिए। इसे समझने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के लिए शताक्षी अस्थाना ने बात की अमेरिकन फिजियॉलजिकल सोसायटी के सदस्य डॉ. जोसेफ रोश से जिन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे ये सभी वैक्सीन एक-दूसरे से अलग हैं।



Pfizer
Pfizer

अभी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि कोई वैक्सीन रणनीति दूसरी से बेहतर है। समय के साथ हमारे पास ऐसी तुलना करने के लिए पर्याप्त डेटा हो सकता है। बायलॉजिकल नजरिए से देखें तो mRNA आधारित वैक्सीन, जैसे Pfizer या Moderna का फायदा यह है कि mRNA लाइपोसोम में होता है, वायरल वेक्टर में नहीं और होस्ट सेल में mRNA का जीवन और ऐक्शन कम समय के लिए होता है। लाइपोसोम के साथ mRNA होस्ट सेल में चला जाएगा। इसे न्यूक्लियस की जगह साइटोप्लाज्म में राइबोसोम पहचानेंगे। इससे ऐसा प्रोटीन बनेगा जो SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन से मिलता-जुलता हो। इसे होस्ट सेल की प्लाज्मा मेंबरेन में भेजा जाएगा।

इम्यून सिस्टम इस प्रोटीन को देखेगा और इम्यून रिस्पॉन्स पैदा होगा। इम्यून सिस्टम मेमोरी पैदा करेगा जिससे बाद में SARS-CoV-2 इन्फेक्शन होने पर उससे निपटा जा सके। यह सीक्वेंस निश्चित है और ज्यादा वक्त के लिए mRNA वैक्सीन का जेनेटिक मटीरियल होस्ट सेल में रह जाने की संभावना नहीं है। इस तरह की वैक्सीन में एक समस्या यह हो सकती है कि पूरी तरह से सुरक्षा के लिए ज्यादा खुराकें लेनी पड़ें। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत में जल्द ही इसे मंजूरी मिल जाएगी और जुलाई तक इसके भारत आने की उम्मीद की जा सकती है।



Covishield
Covishield

इससे अलग, adenoviral vector वैक्सीन के केस में उन्हें होस्ट सेल के न्यूक्लियस में दाखिल होना होगा, तभी उनका ऐक्शन होगा। जेनेटिक मटीरियल वेक्टर के जीनोम में होता है जिससे होस्ट सेल के न्यूक्लियस में mRNA बनता है। इसके आगे की प्रक्रिया mRNA वैक्सीन जैसी ही है। इसमें भी वायरस के जैसा स्पाइक प्रोटीन बनेगा जिसे इम्यून सिस्टम पहचानकर रिस्पॉन्स पैदा करेगा।

इससे पहले अगर किसी और adenovirus का इनफेक्शन हुआ हो तो वायरल वेक्टर के खिलाफ ही इम्यून रिस्पॉन्स पैदा हो सकता है जिससे वैक्सीन का काम फेल हो सकता है। इससे बचने के लिए ऑक्सफर्ड-ऐस्ट्राजेनेका ने इंसानी वेक्टर की जगह चिंपांजी वेक्टर का इस्तेमाल किया है। कोविशील्ड के साइड-इफेक्ट्स को लेकर कई देशों में चिंता है लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके कारण किसी खतरे से ज्यादा कोविड-19 के खिलाफ इसके असर से फायदा है।



Covaxin
Covaxin

इन दोनों से एकदम उलट भारत-बायोटेक की बनाई Covaxin में इनैक्टिवेटेड SARS-CoV-2 वायरस का इस्तेमाल किया गया है। इस वैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी ने मिलकर बनाया है। यह रणनीति पहले से इस्तेमाल की जाती रही है जैसे मौसमी इन्फ्लुएंजा की वैक्सीन में। इनमें भी इनैक्टिवेटेड जीवाणु का इस्तेमाल किया जाता है।

इसका सबसे बड़ा फायदा यह हो सकता है कि यह न सिर्फ SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन को पहचानने के बाद इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करती है, बल्कि इस वायरस के दूसरे हिस्सों के आधार पर भी पहचान सकती है। हालांकि, इनैक्टिवेटेड वैक्सीन भी शुरुआत में कम इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करती हैं। इसलिए हो सकता है कि इसकी भी ज्यादा खुराकों की जरूरत पड़े।



Sputnik V
Sputnik V

भारत में रूस की Sputnik V वैक्सीन को भी मंजूरी मिल चुकी है। इसे कोल्ड-टाइप वायरस से बनाया जाता है। इस वायरस को इंजिनियर करके इससे होने वाला खतरा खत्म किया जाता है और फिर इसे कैरियर के तौर पर इस्तेमाल करके शरीर में कोरोना वायरस का एक हिस्सा पहुंचाया जाता है। इम्यून सिस्टम वायरस के जेनेटिक कोड को पहचानता है और बिना बीमार पड़े उससे लड़ता है। इससे शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ खास ऐंटीबॉडी बनती हैं। खास बात यह है कि Sputnik की पहली और दूसरी खुराक में अलग-अलग वेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है। रिसर्चर्स का कहना है कि अलग-अलग वेक्टर के इस्तेमाल से इम्यून रिस्पॉन्स ज्यादा मजबूत और लंबे समय तक बरकरार रहने वाला होता है।

इसे लेकर शुरुआत में तीसरे चरण के ट्रायल डेटा पर विवाद हुआ था। हालांकि, भारत में इसे मंजूरी मिल गई है। इस वैक्सीन से हल्के साइड इफेक्ट्स रिपोर्ट किए गए हैं।





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