
रीगा कोरोना वायरस महासंकट के बीच प्लेग महामारी को लेकर एक अद्भुत जानकारी सामने आई है। यूरोपीय देश लाटविया से मिली एक इंसानी खोपड़ी में इस महामारी के बैक्टीरिया पाए गए हैं। वैज्ञानिकों को प्लेग महामारी के सबसे शुरुआती स्ट्रेन येरसिनिया के साक्ष्य मिले हैं। 'काली मौत' कही जाने वाली इस प्लेग महामारी से 14वीं सदी में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। येरसिनिया बैक्टीरिया को एक पुरुष शिकारी की खोपड़ी से पाया गया है जिसे RV 2039 नाम दिया गया है। इसे लाटविया के रिन्नुकलान्स इलाके से पाया गया है। जेनेटिक विश्लेषण से पता चला है कि प्लेग का यह प्राचीन स्ट्रेन उतना संक्रामक और जानलेवा नहीं था जितना कि मध्ययुगीन काल में फैला प्लेग था। माना जा रहा है कि प्लेग के शुरुआती स्ट्रेन से 3000 ईसापूर्व में RV 2039 की मौत हुई थी। यूरोप की आधी जनसंख्या हुई प्लेग महामारी का शिकार वैज्ञानिकों के मुताबिक उस समय यह महामारी बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी और उतना ज्यादा संक्रामक नहीं थी। हालांकि अगले 4300 साल में प्लेग महामारी का स्ट्रेन विकसित होकर इंसानों के लिए प्राणघातक बन गया। इससे यूरोप, अफ्रीका और भारत में लाखों लोगों की मौत हो गई। बताया जाता है कि वर्ष 1346 से 1353 के बीच यूरोप की आधी जनसंख्या प्लेग महामारी का शिकार हो गई थी। RV 2039 का जेनेटिक विश्लेषण जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ काइल के पुरातत्वविद बेन क्राउसे-कयोरा ने किया है। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्लेग वायरस के उत्पत्ति को अब 2 हजार साल और ज्यादा पीछे किया जा सकता है। बेन ने कहा कि ऐसा लगता है कि हम अब बैक्टीरिया की उत्पत्ति का पता लगाने के बिल्कुल करीब हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि RV 2039 शिकारी की जब मौत हुई थी, उस समय वह 20 से 30 साल के बीच में रहा होगा।
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