काबुल करीब 20 साल के लंबे अंतराल के बाद अफगानिस्तान एक बार से तालिबान आतंकियों के क्रूर शासन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। तालिबान का दावा है कि उन्होंने देश के 85 फीसदी हिस्से पर कब्जा कर लिया है। अफगानिस्तान में 'तालिबान राज' फिर से लाने के लिए पाकिस्तान ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी है। महासंकट की इस घड़ी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भी ऐक्शन में आ गए हैं। जयशंकर लगातार ईरान से लेकर रूस तक की यात्रा कर रहे हैं। इस बीच सामरिक हलके में यह चर्चा जोर पकड़ रही है क्या तालिबान-पाकिस्तान की नापाक चाल को फेल करने के लिए भारत अफगानिस्तान में अपनी सेना को भेजेगा? आइए समझते हैं पूरा मामला.... 'मिशन अफगानिस्तान' को फतह करने के लिए भारतीय विदेश मंत्री ने सबसे पहले कतर से इसकी शुरुआत की। पश्चिम एशियाई देश कतर वही जगह है जहां पर अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता हुआ था। इसके बाद जयशंकर ईरान, रूस, ताजिकिस्तान और अब उज्बेकिस्तान पहुंचे हैं। ताशकंद में भारतीय विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात कर युद्धग्रस्त देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां तेजी से बिगड़ रही स्थिति पर चर्चा की। जयशंकर ने कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और विकास के प्रति भारत का समर्थन दोहराया। यह मुलाकात बहुपक्षीय कनेक्टिविटी सम्मेलन से इतर हुई। रूस से लेकर अमेरिकी प्रतिनिधि तक से जयशंकर की मुलाकात भारतीय विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, ‘राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात कर प्रसन्न हूं। अफगानिस्तान के भीतर और आसपास मौजूदा स्थिति पर चर्चा की। अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और विकास के प्रति समर्थन दोहराया।’ यही नहीं भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिका के अफगानिस्तान में विशेष प्रतिनिधि जाल्मई खलीलजाद के साथ भी मुलाकात की। जयशंकर ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे की दो दिवसीय यात्रा के बाद ताशकंद पहुंचे हैं। दुशांबे में जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हुए। एससीओ देशों के विदेश मंत्रियों ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ने से बिगड़ रही स्थिति पर गंभीर चर्चा की। दरअसल, अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने 95 फीसदी सैनिकों को वापस बुला लिया है और वह युद्धग्रस्त देश में लगभग दो दशक तक अपनी मौजूदगी के बाद अगस्त के अंत तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया पूरा करना चाहता है। अफगानिस्तान में हाल के सप्ताहों में तालिबान ने सिलसिलेवार हमलों को अंजाम दिया है। जयशंकर ने बुधवार को एससीओ की बैठक में अपनी टिप्पणी में कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य इसका विगत नहीं हो सकता और विश्व हिंसा एवं ताकत के दम पर सत्ता हथियाने के खिलाफ है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमार बैठक में शामिल हुए। इस बीच पाकिस्तान भी एक शांति बैठक आयोजित करने जा रहा है। पाकिस्तान ने अब तालिबान को एयर सपॉर्ट भी देना शुरू कर दिया है। भारत-अफगान दोस्ती के प्रतीक पर तालिबान का हमला तालिबान ने अब भारत-अफगान दोस्ती के प्रतीक कहे जाने वाले सलमा बांध पर हमले करना शुरू कर दिया है। सलमा बांध पर भारत ने करोड़ों रुपये खर्च किया था और यह अफगानिस्तान में भारत के सबसे महंगे प्रॉजेक्ट में से एक था। इस बांध न केवल बिजली का उत्पादन होता है, बल्कि जमीन सिंचाई के लिए भी पानी की सप्लाइ होती है। अब तालिबान इस बांध को तबाह करने में जुट गया है और लगातार बम बरसा रहा है। सलमा बांध अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में स्थित है। इस बांध का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी ने वर्ष 2016 में उद्घाटन किया था। अधिकारियों ने बताया कि तालिबान आतंकी रॉकेट और तोपों से गोलों की बारिश कर रहे हैं। 'तालिबान राज में भारत में बढ़ सकते हैं आतंकी हमले' विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तालिबान सत्ता में आया तो पाकिस्तान के पाले आतंकी कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में पहले की तरह से आतंकी हमले तेज कर सकते हैं। पाकिस्तान तालिबान आतंकियों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकता है। इस बीच ऐसी खबरें आई हैं कि भारत ने तालिबान के साथ पर्दे के पीछे से बात की है लेकिन अभी तक तालिबान की ओर से ठोस जवाब नहीं आया है। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने दावा किया है कि भारत अफगान सेना को हथियार दे रहा है। इतना ही नहीं, तालिबान ने बातचीत की पहल से पहले भारत को अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए भी कहा है। फॉरेन पॉलिसी मैगजीन से बातचीत में सुहैल शाहीन ने कहा कि अगर भारत तालिबान के साथ बात करना चाहता है तो उसे पहले अपनी निष्पक्षता साबित करनी होगी। अफगान सरकार को हथियार दे रहा भारत: तालिबान तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि भारत विदेशियों द्वारा स्थापित अफगान सरकार का पक्ष ले रहा था। वे हमारे साथ नहीं हैं। अगर वे अफगानों पर थोपी गई सरकार का समर्थन करने की अपनी नीति पर कायम रहते हैं, तो शायद उन्हें चिंतित होना चाहिए। वह एक है गलत नीति जो उनकी रक्षा नहीं करेगी। भारत शुरू से ही अफगानिस्तान में किसी भी सैन्य संगठन या मिलिशिया का समर्थन करने में चौकन्ना रहा है। नॉर्दन अलायंस को दी गई रक्षा मदद से भी भारत को बड़ी सीख मिली है। शाहीन ने कहा, 'हमें अपने कमांडरों से रिपोर्ट मिली है कि भारत दूसरे पक्ष को हथियार मुहैया करा रहा है। यह कैसे संभव है कि वे तालिबान से बात करना चाहते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से वे काबुल को हथियार, ड्रोन, सब कुछ उपलब्ध करा रहे हैं? यह विरोधाभासी है।' भारत को अफगानिस्तान में भेजनी चाहिए सेना ? अफगानिस्तान में खराब होते हालात के बीच अब सामरिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या तालिबान और पाकिस्तान की नापाक साजिश को नाकाम करने के लिए भारत को अपनी सेना भेजनी चाहिए। फॉरेन पॉलिसी के मुताबिक अफगान सरकार भारत के तालिबान के साथ बातचीत की खबरों से खुश नहीं है। अफगान सरकार ने भारत से अपील की है कि संकट की इस घड़ी में वह और ज्यादा समर्थन दे। अफगानिस्तान ने कहा कि अमेरिका उसे हर साल साढे़ 4 अरब डॉलर देने जा रहा है। इसमें बड़ी मात्रा में हथियार भी शामिल हैं। अफगानिस्तान के भारत में राजदूत फरीद ममुंदजाय कहते हैं, 'हमने अभी भारत से सैन्य सहायता नहीं मांगी है लेकिन उसे ऐसा करना पड़ सकता है।' उन्होंने कहा कि अगर तालिबान के साथ बातचीत फेल होती है तो हम भारत से सैन्य सहायता मांग सकते हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि अगले 6 महीने में अफगान सरकार गिर सकती है। ऐसे में अफगानिस्तान को तत्काल मदद की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रह चुके चर्चित राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन कहते हैं कि इस बात के कोई आसार नहीं हैं कि भारत अफगानिस्तान में अपनी सेना को भेजेगा। उन्होंने फॉरेन पॉलिसी मैगजीन से बातचीत में कहा, 'हमारी सीमाओं पर हमारी अपनी चुनौतियां हैं। वर्तमान स्थिति में मैं नहीं समझता हूं कि इसके लिए कोई राजनीतिक या जनता की ओर से स्वीकारोक्ति दी जाएगी।' वहीं एक अन्य विश्लेषक राहुल बेदी कहते हैं कि भारत किसी देश में विदेशी सेनाओं के हस्तक्षेप का विरोध करता रहा है। उन्होंने कहा कि भारत अफगानिस्तान को चार हेलिकॉप्टर, तोप के गोले, छोटे हथियार और रेडार दे चुका है। उन्होंने कहा कि भारत हथियार तो दे सकता है लेकिन सेना नहीं भेजेगा। उन्होंने बताया कि अभी अफगानिस्तान में 3100 भारतीय नागरिक मौजूद हैं। अफगान विश्लेषक सेना न भेजने के तर्क से सहमत नहीं भारतीय विश्लेषकों के सेना नहीं भेजने के तर्क से अफगान विश्लेषक सहमत नहीं हैं। उनका कहना कि अगर संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान में शांतिरक्षकों को भेजता है तो भारत इसमें अपने सैनिकों को भेजकर योगदान कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान शांतिरक्षक सैनिक भेजकर अफगानिस्तान को अराजकता की ओर जाने से रोक सकते हैं। अफगानिस्तान में शांतिरक्षक सैनिकों को तैनात करने का सबसे पहले विचार अफगानिस्तान में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जाल्मई खलीलजाद ने दिया था। जाल्मई खलीलजाद ने ही तालिबान के साथ शांति वार्ता का अमेरिका की ओर से नेतृत्व किया था। कहा यह भी जा रहा है कि चीन भी शांतिरक्षक सैनिक भेजने की इच्छा रखता है। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजनयिक रहे अकबरुद्दीन कहते हैं कि वर्तमान स्थिति में शांति रक्षक सैनिक भेजने का आइडिया क्रियान्वित नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि शांतिरक्षक सैनिक वहां भेजे जाते हैं जहां शांति हो और उसे बरकरार रखना हो। पाकिस्तान पर्दे के पीछे से तालिबान की मदद कर रहा है, इसलिए वह अफगानिस्तान में स्वाभाविक शांतिरक्षक नहीं होगा। साथ ही पाकिस्तान भी चाहेगा कि भारतीय सेना अफगानिस्तान में नहीं घुसने पाए। अफगान तालिबान से बात करे भारत: विशेषज्ञ कई भारतीय विश्लेषकों का कहना है कि भारत को तालिबान के साथ बातचीत करना चाहिए था। वह भी तब जब तालिबान को भारत की जरूरत थी। वे कहते हैं कि जब हर कोई तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है तो भारत के ऐसा करने में बुराई क्या है। तालिबान ने भी कहा है कि उन्हें भारत से कोई दिक्कत नहीं है। बताया जा जाता है कि वर्ष 2018 में रूस में तालिबान के नेताओं ने भारत से बातचीत की थी। विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त के बाद अब उनके सुर बदल गए हैं। भारत ने अभी तक तालिबान के साथ बातचीत की कोई पुष्टि नहीं की है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अफगानिस्तान में सेना भेजने की बजाय कश्मीर में नियंत्रण रेखा की सुरक्षा को और ज्यादा मजबूत करेगा। साथ ही यह उम्मीद करेगा कि अमेरिका अफगान सरकार को बचाए रखेगा। ऐसा नहीं है कि केवल भारत ही इस खतरे से परेशान है। रूस, ईरान और चीन को भी अफगानिस्तान के गृहयुद्ध के लंबा खींचने का डर सता रहा है। ऐसे में आने वाले दिन अफगानिस्तान के लिए काफी अहम हैं।
from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3rfUcET
via IFTTT
No comments:
Post a Comment