काबुल अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट पर आईएसआईएस के आत्मघाती हमले में अब तक 90 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इस भीषण हमले में 13 अमेरिकी सैनिक भी मारे गए हैं। करीब 8 साल बाद इतनी बड़ी तादाद में अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने से सुपर पावर अमेरिका को बड़ा झटका लगा है। यही नहीं इससे तालिबान के अफगानिस्तान पर एकाधिकार को लेकर किए गए दावे को पोल खोलता है। अमेरिका और तालिबान को यह बड़ा झटका देने वाला है इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रांत का अमीर डॉक्टर शाहब अल मुहाजिर। आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ.... स्वीडन के लुंड शहर में रहने वाले अब्दुल सैयद अफगानिस्तान और पाकिस्तान में लंबे समय से जिहाद पर नजर रखते हैं। सैयद ने ट्वीट करके बताया कि वह पिछले साल से ही इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रांत को लेकर चेतावनी दे रहा हूं। आईएसआईएस के पी फरवरी 2020 से अपना दायरा बढ़ा रहा है और लगातार खतरनाक होता जा रहा है। इस दौरान उसे अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत और कुनार प्रांत जैसे मजबूत गढ़ों में अमेरिका के आतंकवाद निरोधक अभियान, अफगान सेना और तालिबान के हाथों मुंह की खानी पड़ी। आईएसआईएस ने तालिबान के खिलाफ हमले करने के लिए भर्ती तेज की सैयद कहते हैं कि वह अब आईएसआईएस में तेजी से उभार देख रहे हैं। इस संगठन ने अमेरिका-तालिबान डील के बाद तालिबान के खिलाफ लंबे समय तक चलने वाले युद्ध की घोषणा की है और तैयारी भी शुरू कर दी है। आईएसआईएस केपी ने नांगरहार और कुनार प्रांत में तालिबान के खिलाफ हमले तेज करने के लिए भर्ती तेज कर दी है। आईएसकेपी के अमीर डॉक्टर शाहब अल मुहाजिर को मई 2020 में नियुक्त किया गया था। स्वीडन के विशेषज्ञ ने बताया कि मुहाजिर ने ऐलान किया था कि वह तालिबान, अफगान सरकार और उसके स्वामी अमेरिका के खिलाफ शहरों में एक नया आतंकी अभियान चलाएगा। आईएसकेपी का यह ऐलान झूठा नहीं था और उसने बहुत तेजी से इसे सही साबित कर दिया। आतंकी संगठन ने कई भीषण हमले किए जिसमें काबुल और जलालाबाद शहरों पर हमला शामिल है। उसी ने नांगरहार जेल पर अगस्त 2020 में हमला किया था। काबुल पर हमले में क्यों सफल रहा आईएसआईएस केपी सैयद बताते हैं कि आईएसआईएस केपी काबुल में इतना भीषण हमला करने में इस वजह से सफल रहा क्योंकि वह अब अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से ही अपने नए नेतृत्व और लड़ाकुओं को लेकर आ रहा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आईएस के बड़ी तादाद में लड़ाकुओं को या तो अरेस्ट कर लिया गया या उनकी हत्या कर दी गई या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। अब आईएस काबुल के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व से लोगों को जोड़ रहा है। नांगरहार और कुनार प्रांत में अपने इलाके को खो देने के बाद आईएस ने काबुल में जंग में उतरने के लिए तत्पर, बेहद कट्टर सलाफी पंथ को मानने वाले आतंकियों को भर्ती किया है जो काफी पढ़े लिखे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका पर 9/11 हमले के बाद कुछ लोग तालिबान में इसलिए शामिल हुए थे कि हमला करने वाली अमेरिकी सेना के खिलाफ जिहाद किया जा सके। इनकी अलकायदा के साथ सहानुभूति भी थी। अब आईएसकेपी के काबुल नेटवर्क में तालिबान के सहयोगी हक्कानी नेटवर्क को छोड़कर शामिल हुए विद्रोही लोग हैं। ये लोग कई वर्षों से शहरों के अंदर युद्ध लड़ने में माहिर हैं और काबुल के अंदर कई घातक हमले करते रहे हैं। इन विद्रोहियों की वजह से आईएसकेपी और हक्कानी नेटवर्क में मिश्रण दिखाई दे रहा है। तालिबान के लोगों की हत्या करना ज्यादा बड़ी 'धार्मिक जिम्मेदारी' कई लोगों का यह भी दावा है कि हक्कानी नेटवर्क के फील्ड कमांडर दोहा शांति समझौते से सहमत नहीं हैं। इसलिए ये लोग तालिबान की डील के खिलाफ अमेरिका पर हमले कर रहे हैं। हालांकि इस बारे में कुछ ठोस साक्ष्य नहीं हैं। आईएसकेपी का मानना है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के लोगों की हत्या करना अमेरिका और अन्य विश्वासघातियों पर हमले करने से ज्यादा बड़ी 'धार्मिक जिम्मेदारी' है। हक्कानी नेटवर्क के टॉप कमांडर बिलाल जर्दान के नेतृत्व में कुनार में आईएसकेपी ने एक भीषण युद्ध लड़ा था। उन्होंने कहा कि इस इलाके में आतंकवाद और जिहाद का इतिहास बहुत जटिल है। भविष्य में यह और ज्यादा जटिल होने जा रहा है। मुझे डर है कि आने वाले समय में और ज्यादा हिंसा हो सकती है।
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