काठमांडू नेपाल में शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद भारत के साथ अच्छे संबंधों की उम्मीद जताई जा रही थी। पिछले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कार्यकाल में सीमा सहित कई मुद्दों पर भारत और नेपाल के रिश्ते काफी नाजुक मोड़ पर पहुंच गए थे। लेकिन, अब देउबा सरकार ने भी ओली की राह पर चलते हुए चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर दोबारा बातचीत शुरू कर दी है। गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक महत्वकांक्षी योजना है। इसके जरिए चीन की योजना एशिया को अफ्रीका और यूरोप के साथ जमीनी और समुद्री मार्ग से जोड़ने की है। हालांकि, चीन इस परियोजना के पीछे गरीब देशों को भारी मात्रा में कर्ज देकर उन्हें अपना आर्थिक गुलाम बना रहा है। एशिया में श्रीलंका और लाओस चीन के बीआरआई प्रॉजेक्ट के सबसे बड़े शिकार हैं। 2017 में नेपाल ने किया था हस्ताक्षर काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में बीआरआई प्रॉजेक्ट के जरिए स्वीकृत एक भी परियोजना अभी शुरू नहीं हुई है। नेपाल और चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर साल 2017 में हस्ताक्षर किए थे। नेपाल के कई सरकारी अधिकारियों के अनुसार, अब दोनों पक्षों के साथ मसौदा कार्यान्वयन योजना का आदान-प्रदान, परियोजनाओं पर बातचीत और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत उनके शुरू होने की उम्मीद है। नेपाल की देउबा सरकार ने फिर से शुरू हुई बातचीत इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मसौदे पर काम कर रहे कम से कम तीन अधिकारियों के अनुसार, नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस परियोजना को जल्द से जल्द शुरू करने का बीड़ा उठाया है। जबकि, प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय जैसी अन्य एजेंसियां इनपुट प्रदान कर रही हैं। नेपाली विदेश मंत्रालय में उत्तर पूर्व एशिया डिवीजन के प्रमुख के रूप में तीन साल से अधिक समय तक सेवा देने वाले काली प्रसाद पोखरेल ने कहा कि चीन ने सरकार से कार्ययोजना की मांग की थी, ताकि वह जल्द से जल्द काम शुरू कर पाए। भारत के कारण अबतक नेपाल ने नहीं दी थी मंजूरी जब नेपाल ने 2017 में बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर किए, तो इसे नेपाल-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में देखा गया। लेकिन चीनी कार्यक्रम के तहत एक भी परियोजना शुरू नहीं होने के कारणों पर सवाल भी उठे थे। बताया जाता है कि भू-राजनीतिक स्थिति के कारण नेपाल सरकार ने चीन की इस परियोजना के खिलाफ अभी तक अनिच्छा दिखाई थी। नेपाल अभी तक भारत और अमेरिका के नाराज होने के कारण इस परियोजना को मंजूरी देने से आनाकानी कर रहा था। प्रचंड के पीएम रहते साइन हुई थी डील बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर के समय नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) के पुष्प कमल दहल प्रचंड प्रधानमंत्री थे। उनके बाद, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा ने सरकार का नेतृत्व किया। उनके बाद सीपीएन-यूएमएल के केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने। अब एक बार फिर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं और उनकी सरकार में प्रचंड भी शामिल हैं। ऐसे में बीआरआई एक बार फिर जोर पकड़ते दिखाई दे रहा है। भारत को बीआरआई से क्या नुकसान भारत के पांच पड़ोसी देश चीन के बीआरआई प्रॉजेक्ट का हिस्सा हैं। इनमें पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका शामिल हैं। इन देशों में चीन अपने पैसों से इंफ्रास्ट्रक्चर का विकसित कर रहा है। ऐसे में इन देशों के ऊपर चीनी कर्ज की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं, पैसे के प्रवाह को तेज करने के कारण इन देशों की कूटनीति में भी चीन का दखल बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भारत के लिए खतरा भी बढ़ रहा है।
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