Thursday, 26 August 2021

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काबुल काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस ने ली है। इस हमले में कम से कम 13 लोगों की मौत हुई है, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। बताया जा रहा है कि दूसरे घमाके में एयरपोर्ट के गेट के बाहर तैनात अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाया गया है। अमेरिकी अधिकारियों ने भी पुष्टि की है कि इस हमले में अमेरिकी सैनिक भी घायल हुए हैं। इस बीच सभी विदेशी दूतावासों ने अपने नागरिकों को एयरपोर्ट से दूर रहने की सलाह दी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या अफगानिस्तान में अब नई जंग शुरू हो गई है। काबुल एयरपोर्ट के बाद पकड़े गए थे चार आतंकी तालिबान ने कुछ दिन पहले ही काबुल एयरपोर्ट के बाहर से आईएसआईएस के चार आतंकियों को पकड़ा था। ये आतंकी एयरपोर्ट के आसपास के इलाकों की रेकी कर रहे थे। इस बीच अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पुख्ता जानकारी दी थी कि एयरपोर्ट के बाहर आईएसआईएस के आतंकी कभी भी हमला कर सकते हैं। वाइट हाउस ने भी कहा था कि अमेरिकी सैनिक जितने दिन काबुल एयरपोर्ट पर रुकेंगे, उनके ऊपर हमले के खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ेगा। आईएसआईएस का शक्ति प्रदर्शन तालिबान के प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने एक दिन पहले ही दावा किया था कि अफगानिस्तान की धरती से इस्लामिक स्टेट का सफाया कर दिया गया है। तालिबान ने तो साफ-साफ कहा था कि वह इस्लामिक स्टेट को अपने देश में पांव पसारने की अनुमति नहीं देगा। ऐसे में माना जा रहा है कि आईएसआईएस ने आज के हमले से यह संदेश देने की कोशिश की है कि अफगानिस्तान की धरती पर वह अब भी एक बड़ी ताकत है। तालिबान की बुराई कर रहे आईएस समर्थक अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही आईएसआईएस चिढ़ा हुआ था। इस आतंकी समूह ने अपने समर्थन वाले सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए तालिबान के खिलाफ बड़ा अभियान भी चलाया था। अपने पोस्ट के जरिए आईएसआईएस के ये समर्थक तालिबान की लगातार बुराई कर रहे हैं। आईएसआईएस के समर्थन वाले मीडिया समूहों ने 16 अगस्त से 22 अगस्त के बीच में कुछ 22 प्रॉपगैंडा लेख प्रकाशित किए हैं। इनमें से अधिकतर पोस्टर की शक्ल में हैं। तालिबान को बताया था अमेरिका का पिट्ठू आईएसआईएस ने 19 अगस्त को आधिकारिक बयान जारी कर कहा था कि तालिबान अमेरिका का पिट्ठू है। इस्लामिक स्टेट ने यह भी कहा था कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी हुआ वो तालिबान नहीं, बल्कि अमेरिका की जीत है। क्योंकि तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत कर इस सफलता को पाया है। आईएसआईएस के समर्थक तालिबान पर अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शिया हजारा समुदाय के साथ सुलह पर भी आक्रोश जताया है। आईएसआईएस शिया हजारा समुदाय को गैर इस्लामिक और विधर्मी बताता रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान-ISIS में तनाव अफगानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे तालिबान को सबसे ज्यादा खतरा आईएसआईएस से लग रहा है। अगर अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव बढ़ता है तो इससे तालिबान का असर कम होगा। दूसरा, तालिबान अफगान धरती पर आईएसआईएस को रोककर दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश भी कर सकता है कि वह आतंकी संगठनों को अब पनाह नहीं दे रहा। आईएसआईएस बढ़ाना चाहता है अपना प्रभाव दुनिया में इस समय केवल तालिबान की ही चर्चा हो रही है। इससे आईएसआईएस को अपने अस्तित्व का खतरा महसूस हो रहा है। डर को बेचने वाला यह आतंकी समूह हर हाल में तालिबान को नीचा दिखाने की कोशिश में जुटा है। 1999 में स्थापित हुए आईएसआईएस को दुनिया ने 2014 के बाद से ही जानना शुरू किया। इससे पहले सीरिया, इराक या बाकी दूसरे देशों में इसका प्रभाव नहीं था। पहले भी हमले कर चुका है ISIS-K आईएसआईएस के खुरसान मॉड्यूल ने पहले भी अफगानिस्तान में कई आतंकी हमले किए हैं। इस आतंकी संगठन ने मई में काबुल में लड़कियों के एक स्कूल पर हुए घातक विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 68 लोग मारे गए और 165 घायल हो गए थे। ISIS-K ने जून में ब्रिटिश-अमेरिकी HALO ट्रस्ट पर भी हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे गए और 16 अन्य घायल हो गए थे।


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