काबुल अफगानिस्तान सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल, सामी सादात ने एक अमेरिकी अखबार के लिए लिखते हुए कहा कि 'अमेरिकी सहयोगियों के सब कुछ छोड़ने के भाव' के कारण अफगान सेना ने भी लड़ने की इच्छा खो दी थी। 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद इस तरह का यह पहला खुलासा है। अफगान सेना की काबिलियत पर लगातार सवाल उठ रहे है। कमांडर ने कहा कि उनकी सेना क्रोनिज्म और ब्यूरोक्रेसी से लड़ रही थी। 1500 लोगों का किया नेतृत्वउन्होंने लिखा कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि अमेरिकी सेना यह लड़ाई नहीं लड़ सकती और उसे अफगानिस्तान के लिए नहीं लड़ना चाहिए तो अफगान सेना ने लड़ने की इच्छा खो दी। यह लेख ऐसे समय पर आया है जब तालिबान की जीत को किसी 'विरोध के बिना' हासिल की गई जीत माना जा रहा है। सादात ने लिखा, 'मैं अफगान सेना में थ्री स्टार जनरल हूं। 11 महीनों के लिए 215 Maiwand Corps के कमांडर के रूप में मैंने दक्षिण-पश्चिमी अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध अभियानों में 1500 लोगों का नेतृत्व किया।' अफगान और अमेरिकी नेतृत्व से हारेअफगान कमांडर ने लिखा, 'मैंने सैकड़ों अधिकारियों और सैनिकों को मरते देखा इसलिए मैं बेहद परेशान और निराश हूं और एक व्यावहारिक दृष्टिकोण पेश करना चाहता था और अफगान सेना के सम्मान की रक्षा करना चाहता था।' उन्होंने लिखा, 'मैं अफगान सेना की गलतियां नहीं छिपाना चाहता लेकिन सच्चाई यह है कि हममें से कई लोगों ने बहादुरी और सम्मान के साथ लड़ाई लड़ी। हम सिर्फ अमेरिकी और अफगान नेतृत्व से हार गए।' रातोंरात बदल गए 'मदद' के नियमसामी अफगान सेना की नाकामी के पीछे तीन कारण मानते हैं। पहला अमेरिका का दोहा शांति समझौता, दूसरा अफगान सेना के पास रसद और रखरखाव संबंधी समर्थन का अभाव और तीसरा अशरफ गनी सरकार का भ्रष्टाचार। उन्होंने लिखा कि अफगान सुरक्षा बलों के लिए अमेरिकी हवाई-समर्थन के नियम रातोंरात बदल गए जिससे तालिबान का हौसला बढ़ गया। वे जीत को महसूस कर सकते थे और जानते थे कि उन्हें सिर्फ अमेरिकियों के वापस जाने का इंतजार करना है।
from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3jq3FHr
via IFTTT
No comments:
Post a Comment