
शिंगटन अमेरिका के रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन ने कहा कि संसाधन बहुल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता और बलप्रयोग की प्रकृति क्वाड देशों के बीच अक्सर चर्चा का विषय रही है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी के बीच महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को किसी भी प्रभाव से मुक्त रखने के लिहाज से एक नयी रणनीति विकसित करने के लिए नवंबर 2017 में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने लंबे समय से लंबित क्वाड की स्थापना के प्रस्ताव को आकार दिया था। 'सिर्फ चीन से नहीं है नाता' पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने बृहस्पतिवार को कहा, 'क्वाड के बहुत सारे परिणाम हैं और सभी का चीन से कोई नाता नहीं है... ऐसा नहीं है कि क्वाड का अस्तित्व केवल चीन या उसके प्रभाव का मुकाबला करने के लिए है।' उन्होंने कहा, 'जाहिर है हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन क्या कर रहा है, जिस आक्रामकता, बलप्रयोग के जरिए वह अपने दावों को पेश करने की कोशिश करता है, निश्चित रूप से यह क्वाड में हमारे सभी सहयोगियों और भागीदारों के साथ लगातार चर्चा का एक विषय रहा है।' किर्बी ने कहा, 'क्वाड व्यवस्था हमें सभी प्रकार की पहलों पर बहुपक्षीय रूप से काम करने का एक और शानदार अवसर प्रदान करती है, जो हमें वास्तव में एक स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत क्षेत्र बनाने में मदद कर सकता है, जैसा कि हम चाहते हैं। इसमें काफी कुछ है और हर चीज का चीन से नाता नहीं है।' हाल ही में 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलिया और जापान के अपने समकक्षों के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा आयोजित क्वाड नेताओं की पहली आमने-सामने की बैठक में भाग लिया था। दक्षिण चीन सागर पर विवाद हिंद-प्रशांत में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत की पृष्ठभूमि में भारत, अमेरिका और कई अन्य विश्व शक्तियां क्षेत्र को एक स्वतंत्र, खुला और संसाधन संपन्न क्षेत्र बनाने की आवश्यकता के बारे में बात कर रही हैं। चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग सभी क्षेत्र पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इसके कुछ हिस्सों पर अपना दावा करते हैं। चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान भी बनाए हैं। पाकिस्तान को बताया आतंकियों का पनाहगाह पेंटागन ने कहा है कि अमेरिका लंबे समय से पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में आतंकवादियों की पनाहगाहों के संबंध में अपनी चिंताओं को लेकर बहुत ईमानदार रहा है। अफगानिस्तान और अमेरिका ने पहले भी तालिबानी आतंकवादियों को पाकिस्तान में घुसने देने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की है, जहां उन्हें पनाह दी जाती है और साथ ही चिकित्सीय इलाज भी दिया जाता है। करते रहेंगे पाकिस्तान से बात अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने कहा, 'हम लंबे समय से पनाहगाहों के संबंध में पाकिस्तान के साथ अपनी चिंताओं को लेकर बहुत ईमानदार रहे हैं। ये पनाहगाह सीमा पर उनकी तरफ हैं और ये चिंताएं आज भी बनी हुई हैं।' उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान का पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान के पास निश्चित रूप से दुनिया के उस हिस्से में आतंकवाद के संबंध में कुछ समानताएं और जिम्मेदारियां हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, 'हम अपनी चिंताओं को लेकर पाकिस्तानी नेताओं के साथ स्पष्ट बातचीत करते रहेंगे।' पाकिस्तानी भी हैं पीड़ित किर्बी ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह याद दिलाना महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तानी लोग भी उन समूहों और उसी सीमा से पैदा होने वाले आतंकवादी खतरों के पीड़ित रहे हैं।' काबुल दावा करता है कि इस्लामाबाद युद्ध ग्रस्त देश में लड़ने के लिए हजारों आतंकवादियों को भेज रहा है और तालिबान को पनाह दे रहा है। वहीं, पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान विरोधी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और एक अलगाववादी समूह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को पनाह देता है। 'देश की रक्षा का अधिकार' किर्बी ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान के भीतर ड्रोन हमले जारी रखना अमेरिका के अधिकारों के दायरे में आता है। उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि हमारे पास देश की रक्षा करने का अधिकार है।' दरअसल, तालिबान ने अमेरिका पर अफगानिस्तान में ड्रोन उड़ाना जारी रखकर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
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