Sunday 31 October 2021

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काबुल तालिबान का सर्वोच्च नेता पहली बार सार्वजनिक तौर पर दिखाई दिया है। उसने तालिबान की जन्मभूमि कंधार शहर में अपने समर्थकों को संबोधित किया है। इससे पहले रिपोर्ट में दावा किया गया था कि हैबतुल्लाह अखुंदजादा की मौत 2020 में ही हो चुकी है। तब तालिबान ने इस खबर का न तो खंडन किया था और न ही समर्थन। अखुंदजादा साल 2016 में अख्तर मंसूर की मौत के बाद तालिबान का सरगना बना था, तभी से वह पर्दे के पीछे से दुनिया के सबसे ताकतवर आतंकी संगठन का संचालन कर रहा था। अखुंदजादा बोला- हमने काफिरों के खिलाफ लड़ाई लड़ी अगस्त में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से ही अखुंदजादा की भूमिका को लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे थे। तालिबान सोशल मीडिया अकाउंट्स पर प्रसारित ऑडियो संदेश में दावा किया गया है कि शनिवार को अखुंदजादा ने अपने लड़ाकों और "बहादुर सैनिकों" से बात करने के लिए दारुल उलूम हकीमा मदरसे का दौरा किया। अखुंदजादा ने रिकॉर्डिंग में कहा कि अल्लाह अफगानिस्तान के उत्पीड़ित लोगों पर रहम करे, इन लोगों ने 20 साल तक काफिरों और उत्पीड़कों से लड़ाई लड़ी। कड़ी सुरक्षा के कारण वीडियो और फोटो नहीं आई बाहर 10 मिनट की रिकॉर्डिंग में अखुंदजादा ने मारे गए तालिबान लड़कों, घायल हुए मुजाहिदीन और अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के पुनर्निर्माण में शामिल लोगों की सफलता के लिए दुआ मांगी। उसने कहा कि आइए प्रार्थना करें कि हम इस बड़ी परीक्षा से सफलतापूर्वक बाहर आएं। अल्लाह हमें मजबूत रहने में मदद करे। इस पूरे कार्यक्रम की सुरक्षा काफी कड़ी थी, जिससे कोई भी वीडियो और तस्वीर सामने नहीं आ सकी है। अमीरुल मोमिनीन की मिली है उपाधि अखुंदजादा को "अमीरुल मोमिनीन" के रूप में जाना जाता है। इसका अर्थ वफादारों के कमांडर होता है। अखुंदजादा को यह पदवी उनके समर्थकों ने दिया है। इससे पहले यह पदवी तालिबान संस्थापक मुल्ला उमर को भी दी गई थी। लो प्रोफाइल होने के बावजूद अखुंदजादा ने तालिबान को पूरे पांच साल तक जीत के लिए प्रेरित किया। उसी के कारण हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब के बीच पहले कोई तनाव नहीं हुआ था। तालिबान में हैबतुल्लाह अखुंदजादा का फैसला अंतिम हैबतुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान के वफादार नेताओं के रूप में जाना जाता है। अखुंदजादा इस्लामी कानूनी का बड़ा विद्वान होने के साथ तालिबान का सर्वोच्च नेता है। तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम फैसला हैबतुल्लाह अखुंदजादा ही करता है। अखुंदजादा 2016 में तालिबान का सरगना बना था। उससे पहले तालिबान का चीफ अख्तर मंसूर नाम का आतंकी था। 2016 में अफगान-पाकिस्तान सीमा के पास अमेरिकी ड्रोन हमले में अख्तर मंसूर की मौत हुई थी। पाकिस्तान के मस्जिद में मौलवी था अखुंदजादा 2016 में अचानक गायब होने से पहले हैबतुल्लाह अखुंदजादा दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के एक कस्बे कुचलक में एक मस्जिद में पढ़ाया करता था। यहीं से वह तालिबान के संपर्क में आया और इस खूंखार आतंकी संगठन के शीर्ष पद पर पहुंचा। माना जाता है कि उसकी उम्र लगभग 60 वर्ष है और उसका ठिकाना अज्ञात है।


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