Monday, 8 November 2021

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काबुल अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद आंतरिक मंत्री बने की खूब चर्चा हो रही है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का पिट्ठू हक्कानी के सिर पर अमेरिका ने पांच मिलियन डॉलर का ईनाम भी रखे हुए है। इसके बावजूद वह पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) से शांति वार्ता कर रहा है। अब विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में हक्कानी के बढ़ते रुतबे से तालिबान के और खूंखार होने का डर है। इससे न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया को खतरा हो सकता है। दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकी संगठन है अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कट्टरपंथी आतंकवादी समूहों पर शोध करने वाले सुरक्षा विशेषज्ञ अब्दुल सईद और सौफान समूह में रिसर्च और पॉलिसी के डायरेक्टर कॉलिन पी क्लार्क ने फॉरेन पॉलिसी में लेख लिखकर पूरी दुनिया को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि सिराजुद्दीन हक्कानी और उसका चाचा खलील दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क को चलाते हैं। यह एक कट्टर अफगान सुन्नी इस्लामी आतंकवादी संगठन है, जिसे तालिबान का हिस्सा माना जाता है। अमेरिका ने 2012 में हक्कानी नेटवर्क को विदेशी आतंकवादी संगठन करार दिया था। तालिबान का सर्वेसर्वा बन सकता है सिराजुद्दीन हक्कानी हक्कानी नेटवर्क लंबे समय से तालिबान का सबसे घातक और शातिर संगठन रहा है। इसके सभी लड़ाके अपने आप में सबसे ज्यादा हिंसक और लालची हैं। अब सत्ता पाने के बाद हक्कानी के और अधिक खूंखार होने की संभावना है। इससे दुनिया में शांति और दयालु बनने का ढोंग कर रहे तालिबान को भी नुकसान पहुंच सकता है। वह खुद ही तालिबान का सर्वेसर्वा बन सकता है, क्योंकि समूह में उसके विरोधी लोग काबुल से निर्वासित जीवन जी रहे हैं। मुल्ला बरादर और मुल्ला यूसुफ तालिबान के दो ऐसे नेता हैं जिनका सिराजुद्दीन हक्कानी से पुरानी दुश्मनी है। अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी सिराजुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व में ही हक्कानी नेटवर्क पहले से कहीं अधिक खूंखार हुआ। इसी ने काबुल में सबसे पहले हाई-प्रोफाइल आत्मघाती हमलों की सीरीज शुरू की। वास्तव में, हक्कानी नेटवर्क तालिबान का पहला ऐसा धड़ा था जिसने आत्मघाती बम विस्फोटों को अपनाया। हक्कानी ने आत्मघाती हमलों का तरीका अल कायदा से सीखा और 2004 में उपयोग करना शुरू किया। पिछले दो दशक में काबुल में जितने भी हमले हुए हैं, उनसें से 90 फीसदी में हक्कानी नेटवर्क का हाथ था। हक्कानी और अल कायदा के बीच संबंध आज भी मजबूत हैं। ऐसे में अफगानिस्तान की धरती पर अल कायदा के एक बार फिर मजबूत होने का अंदेशा है। तालिबान के सभी फैसले खुद ले रहा सिराजुद्दीन हक्कानी 2013 में तालिबान के संस्थापक और लंबे समय के अमीर मुल्ला मोहम्मद उमर की मौत के बाद समूह ने मुल्ला मंसूर को अपना नया नेता नियुक्त किया। उस समय सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान का सैन्य प्रमुख बन गया। वह मुल्ला मंसूर के खास टॉप दो नेताओं में एक था। इसी में से एक वर्तमान में तालिबान प्रमुख हैबतुल्लाह अखुंदजादा भी था। 2016 में पाकिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमले में मंसूर की मौत के बाद अखुंदजादा को तालिबान का प्रमुख बनाया गया था। सिराजुद्दीन ने पेशावर शूरा के नेता के रूप में अपने चाचा खलील को भी स्थापित किया है। इसे अफगानिस्तान के एक बड़े हिस्से में तालिबान के संचालन पर उसका नियंत्रण मजबूत हो गया है। उसकी मंजूरी के बिना तालिबान में पत्ता तक नहीं हिलता नंगरहार, नूरिस्तान, कुनार, और लगमन प्रांतों के साथ-साथ वर्दक, परवान और कपिसा प्रांत में अब तालिबान का नहीं, बल्कि हक्कानी नेटवर्क का शासन है। खुंदजादा के डिप्टी के रूप में सिराजुद्दीन को औपचारिक रूप से राजधानी सहित 20 अफगान प्रांतों में तालिबान गतिविधियों का प्रभार दिया गया था। जबकि, दूसरे डिप्टी मुल्ला मुहम्मद याकूब को सिर्फ 14 राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। मंसूर और उसके बाद अखुंदजादा को युद्ध के मैदान का कोई अनुभव नहीं है , इसका फायदा सिराजुद्दीन हक्कानी ने उठाया। उसे तालिबान के हर सैन्य रणनीति को बनाने और उसे लागू करने में लगभग स्वायत्तता ही मिली। तालिबान के नेताओं के अनुसार, समूह के कमांडरों को अपनी योजनाओं को बदले से पहले सिराजुद्दीन की मंजूरी लेनी होती है। उसकी मंजूरी के बिना किसी भी राज्य में गवर्नर तक नहीं नियुक्त किया जा सकता है। जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था हक्कानी नेटवर्क हक्कानी नेटवर्क का प्रभाव पूरे पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लंबे समय से बना हुआ है। इस संगठन को खूंखार आतंकी और अमेरिका के खास रहे जलालुद्दीन हक्कानी ने स्थापित किया था। 1980 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के इलाके में इस संगठन ने काफी सफलता भी पाई थी। कई अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया है कि जलालुद्दीन हक्कानी को सीआईए फंडिंग करती थी। इतना ही नहीं, उसे हथियार और ट्रेनिंग भी सीआईए के एजेंट ही दिया करते थे। जलालुद्दीन हक्कानी उसी समय से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के भी खास थे। हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान के आईएसआई ने पाला दरअसल, सीआईए को आईएसआई ही बताती थी कि किस मुजाहिद्दीन को कितना पैसा और हथियार देना है। यही कारण है कि आज भी हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का बहुत ज्यादा प्रभाव है और इसी कारण भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं। सोवियत सेना की वापसी के बाद भी हक्कानी नेटवर्क ने वजीरिस्तान और आसपास के इलाके में अपनी धमक बनाए रखी। अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में जन्में जलालुद्दीन हक्कानी ने अपने संगठन की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में काफी विस्तार किया। 1990 तक सीआईए और आईएसआई की मदद से हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान का सबसे मजबूत आतंकी संगठन बन गया। हक्कानी का अल कायदा के साथ करीबी संबंध उस समय अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हो रहा था। जलालुद्दीन हक्कानी भी जाना माना पश्तून मुजाहिद्दीन था। यही कारण है कि तालिबान ने हक्कानी के साथ दोस्ती कर ली और दोनों ने पूरे देश पर राज करना शुरू कर दिया। तालिबान और हक्कानी के नजदीक आते ही अमेरिका ने दूरी बना ली हालांकि, आईएसआई अब भी उससे चिपका रहा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जलालुद्दीन हक्कानी मूल रूप से एक पावर ब्रोकर था। उसने सबसे पहले अमेरिका के साथ डील की। बाद में पाकिस्तान के साथ और उसके बाद अलकायदा और तालिबान के साथ। वह सभी ताकतवर गुटों के साथ एक अलग संबंध बनाकर रखता था।


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