Monday, 1 February 2021

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म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ रहे इस दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र के लिए इस उलटफेर को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर इस तख्तापलट का कारण क्या है-

Myanmar Coup: म्यांमार में तख्तापलट नहीं करने का दावा करके सेना ने आखिरकार देश में आपातकाल लागू कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची को हिरासत में ले लिया।


Myanmar Coup Explained: आंग सान सू ची हिरासत में, देश में आपातकाल...आखिर म्यांमार में क्यों हुआ तख्तापलट?

म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ रहे इस दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र के लिए इस उलटफेर को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर इस तख्तापलट का कारण क्या है-



​संविधान
​संविधान

सेना के स्वामित्व वाले ‘मयावाडी टीवी’ ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। प्रस्तोता ने कहा कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को 'संभावित तख्तापलट की व्यवस्था' करार दिया था। संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इनकार किया गया है।



क्या है वजह?
क्या है वजह?

कुछ विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि सेना अपनी शक्तिशाली यथास्थिति को क्यों पलटेगी लेकिन कुछ अन्य ने सीनियर जनरल मीन आउंग हलैंग की निकट भविष्य में सेवानिवृत्ति को इसका कारण बताया जो 2011 से सशस्त्र बलों के कमांडर हैं। म्यामांर के नागरिक और सैन्य संबंधों पर शोध करने वाले किम जोलीफे ने कहा, 'इसकी वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है जो काफी अपारदर्शी है। यह उन समीकरणों की वजह से हो सकता है और हो सकता है कि यह अंदरूनी तख्तापलट हो और सेना के अंदर अपना प्रभुत्व कायम रखने का तरीका हो।' सेना ने उपराष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं।



​चुनाव
​चुनाव

सू ची की पार्टी ने नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिणाम की पुष्टि की है। लेकिन चुनाव होने के कुछ समय बाद ही सेना ने दावा किया कि 314 शहरों में मतदाता सूची में लाखों गड़बड़ियां थीं जिससे मतदाताओं ने शायद कई बार मतदान किया या अन्य 'चुनावी फर्जीवाड़े' किए। जोलीफे ने कहा, 'लेकिन उन्होंने उसका कोई सबूत नहीं दिखाया।' चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते दावों से इंकार किया और कहा कि इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है। चुनाव के बाद नई संसद के पहले ही दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। सू ची और अन्य सांसदों को पद की शपथ लेनी थी लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। ‘मयावाडी टीवी’ पर बाद में घोषणा की गई कि सेना एक वर्ष का आपातकाल समाप्त होने के बाद जीतने वाले को सत्ता सौंप देगी।



​अभी क्या हो रहा है
​अभी क्या हो रहा है

देश में सुबह और दोपहर तक संचार सेवाएं ठप हो गईं। राजधानी में इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं। देश के कई अन्य स्थानों पर भी इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। देश के सबसे बड़े शहर यांगून में कंटीले तार लगाकर सड़कों को जाम कर दिया गया और सिटी हिल जैसे सरकारी भवनों के बाहर सेना तैनात है। काफी संख्या में लोग एटीएम और खाद्य वेंडरों के पास पहुंचे और कुछ दुकानों एवं घरों से सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के निशान हटा दिए गए।



​अब आगे क्या होगा
​अब आगे क्या होगा

विश्व भर की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि म्यामां में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वाच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, 'लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यामां के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विश्व मंच पर इसकी साख को बट्टा लग गया है।' मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्रवाई संभव है। अमेरिका के कई सीनेटरों और पूर्व राजनयिकों ने सेना की आलोचना करते हुए लोकतांत्रिक नेताओं को रिहा करने की मांग की है और जो बाइडन सरकार और दुनिया के अन्य देशों से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।



भारत के लिए क्या अहमियत
भारत के लिए क्या अहमियत

म्यांमार में जारी राजनीतिक उठापटक पर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत की भी निगाहें टिकी हैं। खास इसलिए क्योंकि म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है। वहां की राजनीतिक स्थिरता का असर दोनों देशों के संबंधों और सीमावर्ती क्षेत्रों की शांति पर पड़ सकता है। यही नहीं, म्यांमार की सीमा चीन से भी सटी है। इसलिए भी भारत के लिए म्यांमार की सरकार ज्यादा अहम हो जाती है। पहले से ही उत्तरपूर्व में म्यांमार से होकर उग्रवादी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं जिनका संबंध चीन से होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। यह भी कहा जाता है कि चीन और म्यांमार की सेनाओं के बीच संबंध अच्छे हैं। ऐसे में तत्पदौ के हाथ में देश की बागडोर होना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। खासकर तब जब लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक न सिर्फ दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात हैं, बल्कि सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं।





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