भारत में मानसून को ताकतवर बनाने वाली गल्फ स्ट्रीम जलधारा पिछले 1000 साल में सबसे कमजोर देखी गई है। जिसके बाद से ही दुनियाभर के पर्यावरणविद् भविष्य में पैदा होने वाले खतरों को लेकर डरे हुए हैं।
भारत में मानसून को ताकतवर बनाने वाली गल्फ स्ट्रीम जलधारा पिछले 1000 साल में सबसे कमजोर देखी गई है। जिसके बाद से ही दुनियाभर के पर्यावरणविद् भविष्य में पैदा होने वाले खतरों को लेकर डरे हुए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण अटलांटिक महासागर की यह जलधारा धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है। इसी गर्म जलधारा के कारण ब्रिटेन, फ्रांस, नॉर्वे और डेनमार्क सहित यूरोप के कई बंदरगाह साल भर खुले रहते हैं। अगर, यह धारा विलुप्त हो जाए या इसके तापमान में कमी आ जाए तो पूरे यूरोप सहित उत्तरी गोलार्ध के अधिकतर देशों में हिमयुग आ सकता है।
गल्फ स्ट्रीम के कमजोर होने से यूरोप में आ सकता है हिमयुग
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब पूरी दुनिया में लगभग हर जगह औसत तापमान बढ़ रहा है। तब, ग्रीनलैंड के दक्षिण-पूर्व में अटलांटिक महासागर का एक बड़ा हिस्सा लगातार ठंडा होता जा रहा है। वैज्ञानिकों को चिंता है कि इस कारण अटलांटिक महासागर में तापमान के नाजुक संतुलन को गर्म से ठंडा कर देगा। अटलांटिक धाराओं (गल्फ स्ट्रीम) के कमजोर होने से तापमान और मौसम के पैटर्न में तेजी से बदलाव आ सकते हैं। जिसके कारण कई देशों में भयानक तूफान, कई जगहों पर समुद्र के जलस्तर में तेजी से वृद्धि और बारिश में बहुत कमी हो सकती है। अगर बारिश कम होती है तो दुनिया के कई हिस्सों में रेगिस्तानी इलाकों में बदलाव हो सकता है।
पूरी दुनिया में खतरनाक तरीके से बदलेगा मौसम का मिजाज
गल्फ स्ट्रीम दरअसल एक गर्म जलधारा है, जो समुद्र में सैकड़ों फीट नीचे मेक्सिको की खाड़ी से पैदा होकर पश्चिमी यूरोप के कई देशों तक सफर करती है। वैज्ञानिक इसे एक ऐसी विशालकाय नदी मानते हैं, जिसे किसी भी इंसान ने अपनी आंखों से नहीं देखा होगा। अगर दुनिया की मीठे पानी की सभी नदियों को आपस में मिला दे फिर भी यह जलधारा उससे ज्यादा मात्रा में पानी का प्रवाह करती है। यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली जलधारा है जो वैश्विक मौसम और तापमान को प्रभावित करने की ताकत रखती है। इसके कारण कई महाद्वीपों में बहने वाली हवा प्रभावित होती है। अगर यह जलधारा अपने साथ हवा के रूख को मोड़ दे को कई देशों को भयंकर सूखे का सामना करना पड़ सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया राक्षसी परिवर्तन, डूब जाएंगे तटीय इलाके
पिछले सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि गल्फ स्ट्रीम के उत्तरी भाग और गहरे समुद्र की धाराओं से यह संकेत मिलता है कि यह आने वाले समय में और कमजोर हो सकता है। वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के प्रेसिडेंट और डॉयरेक्टर पीटर डे मेनोकल ने कहा कि हम इसे सच नहीं मान रहे हैं। क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो यह केवल एक राक्षसी परिवर्तन है। इससे अमेरिका और यूरोप के कई हिस्से समुद्र की पानी के नीचे दब जाएंगे। दरअसल, यूरोप में गल्फ स्ट्रीम की धारा को वैज्ञानिकों की भाषा में अटलांटिक मेरिडेशनल ओवरवर्टनिंग सर्कुलेशन (एएमओसी) के नाम से जाना जाता है। अब वैज्ञानिकों ने इस इलाके की बर्फ और समुद्र की तलछट के आधार पर आशंका जताई है कि इस क्षेत्र में एएमओसी कमजोर पड़ गई है।
अमेरिका और अफ्रीका में पड़ेगा भयंकर सूखा
वैज्ञानिकों को डर है इसके कारण यूरोप के कुछ हिस्सों में तापमान आज की औसत तापमान की तुलना में लगभग 15 डिग्री सेल्सियस नीचे गिर सकता है। जिसके बाद उत्तरी अमेरिका और यूरोप में आर्कटिक जैसे बर्फीले हालात बन जाएंगे। उत्तरी अफ्रीका और उत्तरी दक्षिण अमेरिका के हिस्से बारिश की कमी के कारण बहुत अधिक सूख जाएंगे। हाल के कुछ साल में वैज्ञानिकों ने इन इलाकों में पहले से कम होती बारिश को रिकॉर्ड किया है। इससे उनकी संभावनाओं को और बल मिल रहा है।
भारत पर भी होगा बुरा प्रभाव
गल्फ स्ट्रीम जलधारा का असर हिंद महासागर में भी काफी पड़ता है। ऐसे में अगर समुद्र की इस ताकतवर जलधारा के तापमान में कोई बदलाव होता है तो उससे भारत का प्रभावित होना लाजिमी है। भारत की पूरी कृषि अर्थव्यवस्था मानसूनी बारिश पर आधारित है। जुलाई से सितंबर तक होने वाली बारिश के कारण पूरा भारत सालभर हराभरा रहता है। ऐसे में अगर गल्फ स्ट्रीम में आए बदलाव से मानसून प्रभावित होगा तो इसका सीधा असर भारत की कृषि और तटीय इलाकों पर देखने को मिलेगा।
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