
यह मैप Monthly Notices of the Royal Astronomical Society में छपेगा। इससे यह भी समझने में मदद मिलेगी कि ब्रह्मांड कैसे बना है और कैसे विकसित हुआ।

ब्रह्मांड का 27% हिस्सा डार्क मैटर से बना है। यह हमें दिखता नहीं और आज तक इसे समझा भी नहीं जा सका है। फिर भी इसकी मौजूदगी साबित करने के लिए इसका असर ही काफी है। यह इतना शक्तिशाली होता है कि गैलेक्सीज तक को मोड़ सकता है। अब वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर का सबसे बड़ा मैप तैयार किया है। दिलचस्प बात यह है कि इस मैप से ऐल्बर्ट आइंस्टाइन की सबसे मशहूर थिअरी ऑफ रिलेटिविटी (Theory of Relativity) पर कुछ हद तक सवाल खड़ा होता दिखा है।
कैसे डिटेक्ट होता है डार्क मैटर?

वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष की ऐसी खाली जगहों को मैप पर दिखाया है जहां फिजिक्स के सिद्धांत लागू नहीं होते। धरती पर दूसरी गैलेक्सीज से आने वाली रोशनी के आधार पर ऐस्ट्रोनॉमर डार्क मैटर को डिटेक्ट करते हैं। अगर रोशनी में डिस्टॉर्शन हो तो इसका मतलब है कि पीछे कुछ ऐसा है जो रोशनी रास्ते में मोड़ रहा है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से 10 करोड़ गैलेक्सीज की तस्वीरों का अनैलेसिस किया गया। इंटरनैशनल डार्क एनर्जी सर्वे की टीम ने धरती से रात के वक्त में देखे जाने वाले आसमान के आठवें हिस्से का मैप तैयार किया है।
पहले कभी नहीं देखे गए ये हिस्से

गुलाबी, बैंगनी और काले पैच के साथ तैयार मैप में सबसे चकीले हिस्सों में डार्क मैटर सबसे घना है क्योंकि यहां गैलेक्सीज सुपरक्लस्टर में हैं। खाली जगहें ऐसी हैं जहां कुछ नहीं है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और École Normale Supérieure, पेरिस के डॉ. नियाल जेफ्री ने बताया है, 'इसमें हमें ब्रह्मांड के ऐसे हिस्से दिखते हैं, जो कभी नहीं देखे गए। हमें कॉस्मिक वेब (cosmic web) दिखते हैं जिसमें कॉस्मिक वॉइड्स (cosmic void) हैं। ये ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां बहुत कम गैलेक्सी और मैटर होता है।'
आइंस्टाइन की थिअरी पर सवाल?

वैज्ञानिकों को इन्हें लेकर उत्सुकता होती है क्योंकि यहां ग्रैविटी अलग तरह से होती है। मैप में इनका आकार और लोकेशन होने से आगे की स्टडीज के लिए मदद मिल सकती है। यह मैप मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल ऐस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी में छपेगा। इससे यह भी समझने में मदद मिलेगी कि ब्रह्मांड कैसे बना है और कैसे विकसित हुआ। आइंस्टाइन की थिअरी ऑफ रिलेटिविटी में ब्रह्मांड के विस्तार में ग्रैविटी की भूमिका समझाई गई है। इसी वजह से कॉस्मिक वेब बनता है लेकिन मैप में दखने से पता चलता है कि आइंस्टाइन का मॉडल पूरी तरह फिट नहीं होता। मैटर काफी सपाट भी नजर आता है।
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