Friday, 28 May 2021

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इंसानों में जंग आज के समय में ही नहीं हो रही हैं। सहारा रेगिस्तान के प्राचीन इतिहास में हिंसा की कई कहानियां छिपी हैं। माना जाता है कि दो नस्लों के बीच सबसे पहला युद्ध यहीं हुआ था। अब 13 हजार साल पुराने कंकालों की स्टडी से संकेत मिले हैं कि यह जंग कोई एक घटना नहीं थी बल्कि कई छोटी-छोटी लड़ाइयां हो रही थीं। सूडान के जेबेल सहाबा कब्रिस्तान के अवशेषों में ठीक हो चुके चोट के निशानों से संकेत मिले हैं कि इन लोगों ने कई हिंसात्मक घटनाएं झेलीं, न कि एक बार युद्ध में लड़कर मारे गए।

वैज्ञानिकों का कहना है कि नील घाटी में समुदायों के बीच हुईं घटनाओं की संख्या से भर चुके घावों की संख्या मिलती-जुलती है। ये घटनाएं लेट प्लीस्टोसीन काल में 1.26 लाख से 11,700 साल पहले की हैं।


First Race War: एक घटना नहीं थी 13 हजार साल पहले हुआ दुनिया का पहला सांप्रदायिक युद्ध, नई खोज में मिले पुराने घाव

इंसानों में जंग आज के समय में ही नहीं हो रही हैं। सहारा रेगिस्तान के प्राचीन इतिहास में हिंसा की कई कहानियां छिपी हैं। माना जाता है कि दो नस्लों के बीच सबसे पहला युद्ध यहीं हुआ था। अब 13 हजार साल पुराने कंकालों की स्टडी से संकेत मिले हैं कि यह जंग कोई एक घटना नहीं थी बल्कि कई छोटी-छोटी लड़ाइयां हो रही थीं। सूडान के जेबेल सहाबा कब्रिस्तान के अवशेषों में ठीक हो चुके चोट के निशानों से संकेत मिले हैं कि इन लोगों ने कई हिंसात्मक घटनाएं झेलीं, न कि एक बार युद्ध में लड़कर मारे गए।



दुनिया की पहली सांप्रदायिक हिंसा
दुनिया की पहली सांप्रदायिक हिंसा

इस कब्रिस्तान की खोज 1956 में नील नदी के पूर्वी तट पर की गई थी। इसमें 11 हजार बीसी के 61 लोग दफन थे। इनमें से आधों की मौत घावों से हुई थी। वैज्ञानिकों को पहले लगा था कि शिकार करने वाले और मछली पकड़ने वाले इन लोगों की मौत किसी युद्ध में हुई थी और इसे दुनिया की पहली सांप्रदायिक हिंसा माना गया था। नई माइक्रोस्कोपी तकनीकों की मदद से इनकी हड्डियों को फिर से स्टडी करने पर पता चला है कि ये कई हिंसात्मक घटनाओं में घायल हुए। हो सकता है कि इसके पीछे जलवायु परिवर्तन एक कारण रहा हो।



नई खोज में मिले नए निशान
नई खोज में मिले नए निशान

ये कंकाल लंदन के ब्रिटिश म्यूजिय में रखे हैं। इन्हें फ्रेंच नैशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च और यूनिवर्सिटी ऑफ टूलूज के वैज्ञानिकों ने स्टडी किया है। इस स्टडी में पहले नहीं देखे गए 106 ऐसे निशान मिले जिससे हथियारों से लगीं चोटों, एकल युद्ध और प्राकृतिक कारणों से मौत की अलग-अलग पहचान मिली। रिसर्चर्स को 41 ऐसे लोग मिले हैं जिनके सर पर मौत के वक्त कम से कम एक भरा हुआ या भर रहा घाव मिला है।



घावों के आधार पर खोज
घावों के आधार पर खोज

वैज्ञानिकों का कहना है कि नील घाटी में समुदायों के बीच हुईं घटनाओं की संख्या से भर चुके घावों की संख्या मिलती-जुलती है। ये घटनाएं लेट प्लीस्टोसीन काल में 1.26 लाख से 11,700 साल पहले की हैं। रिसर्च में कहा गया है कि ये झगड़े अलग-अलग समुदायों के बीच हुए होंगे। साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपे रिसर्च पेपर में कहा गया है कि इन झगड़ों के पीछे प्रभुत्व की लड़ाई और जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई स्थिति हो सकती है।



क्यों हुए इतने झगड़े?
क्यों हुए इतने झगड़े?

दरअसल, हिमयुग में पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं के कारण ये लोग एक पास रहने के लिए मजबूर हुए होंगे। इस दौरान यूरोप और उत्तरी अमेरिका के हिमखंडों ने मिस्र और सूडान का तापमान ऐसा कर दिया था कि लोग नील नदी के पास रहने को मजबूर थे लेकिन नदी से उन्हें ज्यादा मदद नहीं मिलती थी। वे थोड़ी से जमीन पर सुरक्षा तलाश रहे थे और संसाधन भी कम थे। खाने की कमी के कारण मछली पकड़ने को लेकर इन समूहों में झगड़े हुए होंगे।





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