Wednesday 30 June 2021

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पेइचिंग दुनिया पर कब्जे का ख्वाब देख रहा चीन इन दिनों तेजी से अपनी मिसाइल क्षमता बढ़ा रहा है। हाल में ली गई सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि चीन उत्तर-पश्चिमी शहर युमेन के पास एक रेगिस्तान में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए 100 से अधिक नए साइलो का निर्माण कर रहा है। साइलो स्टोरेज कंटेनर होते हैं, जिनके अंदर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें रखी जाती हैं। क्या होती हैं इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों की रेंज काफी ज्यादा होती हैं। ये एक महाद्वीप से उड़कर दूसरे महाद्वीप तक हमला करने में सक्षम होती हैं। इनमें बैलिस्टिक मिसाइलें अपनी लॉन्च साइट से उड़कर अंतरिक्ष के रास्ते सफर करते हुए लक्ष्य को सफलतापूर्वक भेद सकती हैं। ये मिसाइलें परंपरागत और परमाणु हथियार के साथ मार कर सकती हैं। चीन के पास डीएफ-5 और डीएफ-41 जैसी घातक मिसाइलें है, जो अमेरिका तक मार करने में सक्षम हैं। अमेरिका तक मार करने में सक्षम हैं मिसाइलें चीन की इन तैयारियों से यह अंदेशा जताया जा रहा है कि वह आने वाले दिनों में अपनी मारक क्षमता को बढ़ाने और दुश्मनों पर हावी होने के लिए मिसाइलों को मुख्य हथियार बनाएगा। चीन के पास कई ऐसी घातक मिसाइलें हैं जिनका तोड़ अमेरिका के पास भी नहीं है। अमेरिका के एक शीर्ष जनरल ने खुद कबूला है कि उनके पास अभी भी पर्याप्त संख्या में एयर डिफेंस मौजूद नहीं हैं जो चीनी मिसाइलों को हवा में मार गिराएं। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चीन की खोली पोल द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया में जेम्स मार्टिन सेंटर फॉर नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज के शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर बताया है कि चीन के गांसु प्रांत में सैकड़ों वर्ग मील में फैले रेगिस्तान में कई साइट पर इन साइलोज को बनाने का काम चल रहा है। शोधकर्ताओं को 119 ऐसे निर्माण स्थलों का पता चला है, जहां चीन अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों को लॉन्च करने के लिए नई सुविधाओं को बना रहा है। परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा चीन अगर 100 से अधिक का निर्माण पूरा हो जाता है तो इससे चीन की परमाणु क्षमता में भी काफी वृद्धि होगी। माना जाता है कि चीन के पास 250 से लेकर 350 की संख्या में परमाणु हथियारों का जखीरा है। ऐसे में चीन इन साइलोज में रखने के लिए और मिसाइलों का निर्माण जरूर करेगा। चीन पहले भी डिकॉय साइलो को तैनात कर चुका है। अमेरिका ने शुरू किया था साइलो का निर्माण शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका ने रूस के रणनीतिकारों से अपनी मिसाइलों को छिपाने के लिए साइलो का निर्माण शुरू किया था। इससे रूसी सैन्य रणनीतिकारों को यह पता नहीं चल पाता था कि अमेरिका के कौन से मिसाइल बेस पर कितनी परमाणु मिसाइलें तैनात हैं। ऐसे में वह हमला करने का जोखिम नहीं उठाते थे। जवाबी कार्रवाई के लिए साइलो बना रहा चीन चीन के परमाणु शस्त्रागार के विशेषज्ञ और इस टीम के शोधकर्ता जेफरी लुईस ने कहा कि चीन भी अमेरिका की ही राह पर चलता दिखाई दे रहा है। इसका निर्माण चीन की परमाणु हमले की जवाबी का कार्रवाई को मजबूत करने के लिए भी की गई है। दरअसल, हर देश परमाणु डेटरेंस के लिए अपने हथियारों को अलग-अलग तैनात रखता है। अगर कोई देश परमाणु हमला करता है तो इन ठिकानों पर तैनात मिसाइलें जवाबी कार्रवाई के लिए फायर की जा सकती हैं। चीन के पास 145 से ज्यादा मिसाइल साइलो मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज के सेंटर फॉर नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज में ईस्ट एशिया नॉनप्रोलिफरेशन प्रोग्राम के निदेशक लुईस ने कहा कि अगर चीन भर में अन्य साइटों पर निर्माणाधीन साइलो को गिनती में जोड़ा जाए, तो इनकी कुल संख्या 145 तक पहुंच जाती है। हम मानते हैं कि चीन अपने परमाणु बलों का विस्तार एक निवारक क्षमता बनाए रखने के लिए कर रहा है जो अमेरिकी मिसाइल डिफेंस को मात देने के लिए पर्याप्त संख्या में मौजूद है।


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