Thursday, 1 July 2021

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पेइचिंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को आज स्थापना के 100 साल पूरे हो गए हैं। इस अवसर पर चीन में बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पार्टी महासचिव ने भी हिस्सा लिया। पार्टी के इस कार्यक्रम में चीनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया गया। इतना ही नहीं, जिनपिंग ने तो आंख दिखाने वाले देशों को अंजाम भुगतने की धमकी भी दे डाली। पिछले 100 सालों में कम्युनिस्ट पार्टी को कई उतार-चढ़ाव झेलने पड़े। जानिए सीपीसी का कैसा रहा 100 साल का सफर गुरिल्ला लड़ाके के तौर पर हुआ जन्म साल 1917 में सोवियत संघ में लेनिन के नेतृत्व में अक्टूबर समाजवादी क्रांति की जीत के बाद कम्युनिस्ट विचारधारा पूरे चीन में फैल गई। जिसके बाद चीन के विचारकों को यह लगने लगा की देश को एकीकृत करने के लिए मार्क्सवाद ही सबसे ताकतवर हथियार है। 1919 में चीन में साम्राज्यवाद और सामंतवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इसी दौरान वहां मजदूर वर्ग एक बड़ी ताकत बनकर उभरा। 1921 में सीपीसी की पहली कांग्रेस का आयोजन पूरे चीन में मजदूर आंदोलनों को व्यवस्थि ढंग से चलाने और मार्क्सवाद को फैलाने के लिए ने चेन डक्सिउ औक ली डजाओ के साथ मिलकर 1921 में कम्युनिस्ट समूहों की स्थापना की। इसी कारण से चीन में श्रमिक आंदोलन और प्रभावी ढंग से चलने लगा और आगे चलकर यही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नाम से जाना जाने लगा। जुलाई 1921 में सीपीसी की पहली कांग्रेस का आयोजन भी किया गया। जिसे आधिकारिक रूप से पार्टी का स्थापना वर्ष माना जाता है। 1934 का लॉन्ग मार्च चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास में 1934 के लॉन्ग मार्च का भी खास स्थान है। 16 अक्टूबर 1934 से शुरु होकर 20 अक्टूबर 1935 तक चला था। इसमें चांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ठ्रवादी कुमिंगतांग पार्टी की सेना ने कम्युनिस्टों की लाल सेना को 9000 किलोमीटर पीछे ढकेल दिया था। वास्तव में यह एक मार्च नहीं ,बल्कि कई मार्च की एक श्रृंखला थी। जिसमें से जिआंगशी प्रान्त से अक्टूबर 1934 को शुरू हुआ कूच सबसे प्रसिद्ध है। यह मार्च माओत्से तुंग और चाऊ एनलाई के नेतृत्व में किये गए। जिसमें लाल सेना पश्चिमी चीन के दुर्गम क्षेत्रों से गुजरकर पहले पश्चिम की ओर और फिर उत्तर मुड़कर शान्शी प्रान्त पहुंची। यह यात्रा इतनी खतरनाक रही कि जब इसे शुरू किया गया तो कम्युनिस्ट सेना में 1,00,000 साम्यवादी सैनिक थे लेकिन इसके अंत कर इनमें से 20 फीसदी ही जीवित बचे। 1949 में चीन पर एकछत्र कब्जा साल 1937 में चीन पर जब जापान ने आक्रमण कर दिया तब कम्युनिस्ट और राष्ट्रवादी सेना आपस मे मिल गई। लेकिन जापान के हारने के बाद इन दोनों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इस दौरान राष्ट्रवादी सेना पर कम्युनिस्ट सेना भारी पड़ी और 1949 में पूरे चीन पर माओत्से तुंग का शासन हो गया। इस हार के बाद चांग काई शेक के नेतृत्व वाली सरकार मुख्य भूमि को छोड़कर एक द्वीप में शरण ली। इसी को आज ताइवान के नाम से जाना जाता है। ताइवान खुद को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ ताइवान भी बताता है। 1966 की सांस्कृतिक क्रांति माओत्से तुंग ने 1966 में चीन में राजनीतिक आंदोलन के रूप में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत की। 16 मई 1966 को शुरू हुई यह क्रांति 10 वर्षों तक चली और इसने चीन के सामाजिक ढांचे में कई बड़े परिवर्तन किए। माओ और उनके समर्थकों ने पुराने रिवाज, तौर-तरीके, संस्कृति और पुरानी सोच को खत्म करना शुरू किया। इस क्रांति ने चीन के सामाजिक ढाचे को काफी नुकसान पहुंचाया। इस दौरान रेड गार्ड ने इतने अत्याचार किए कि दो साल के अंदर कई लाख लोगों की मौत हो गई। नए माओ बने शी जिनपिंग 68 साल के शी जिनपिंग पिछले नौ साल से कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और चीन के राष्ट्रपति बने हुए हैं। तीन साल पहले उन्होंने राष्ट्रपति पद पर बने रहने की सीमा को खत्म कर दिया था। ऐसे में साल 2028 या 2033 तक उनके पार्टी महासचिव का पद छोड़ने की उम्मीद नहीं है। चीन में शी जिनपिंग को माओ और देंग शियाओपिंग के बाद तीसरा सबसे बड़ा नेता माना जाता है। वहीं, उनके आलोचकों का कहना है कि शी जिनपिंग को यह पद उनके करिश्माई व्यक्तित्व और काम के बदले नहीं बल्कि खानदानी पहुंच के जरिए मिला है। शी जिनपिंग के पिता माओ और देंग शियाओपिंग के कार्यकाल में पार्टी में काफी ऊंचे पद पर कार्यरत थे। चीन को आर्थिक महाशक्ति के रूप में बदलने के लिए जरूरी सभी नीतियों को उनके पिता ने ही बनाया था। जिसके कारण उनके पिता को चीनी आर्थिक कार्यक्रम का वास्तुकार माना जाता है।


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