अंटार्कटिका में बर्फीली परत के नीचे NASA के वैज्ञानिकों को दो नई झीलें मिली हैं। ये झीलें बर्फ के 1.2 से 2.5 मील नीचे एक नेटवर्क का हिस्सा हैं। कहा जाता है कि ये झीलें लगातार भरती और खाली होती हैं। इसकी वजह से परतों के मूवमेंट पर भी असर पड़ता है और इस बात पर भी कि दक्षिणी महासागर में पानी कैसे आता है। दुनियाभर के महासागरों में सर्कुलेशन की यह एक अहम प्रक्रिया है। बर्फ की परत के नीचे पानी कोलराडो स्कूल ऑफ माइन्स में जियोफिजिसिस्ट और स्टडी के लेखक प्रफेसर मैथ्यू सीफ्रीड के मुताबिक यहां सिर्फ बर्फ की परत की बात नहीं है बल्कि पानी के सिस्टम की बात है जो धरती के सिस्टम से जुड़ा है। बर्फ के नीचे यह सिस्टम सबसे पहले 2003 में NASA के ICESat मिशन से खोजा गया था। डेटा अनैलेसिस से पाया गया कि पश्चिम अंटार्कटिका में बर्फ में बढ़त से बर्फीली परत के नीचे पानी का द्रव्यमान पता चलता है। पानी का नेटवर्क पहले माना जाता था कि ऐसी झीलें अलग-अलग बहती हैं दूसरों से जुड़ी नहीं होतीं। बाद में साल 2007 में रिसर्चर्स ने पाया कि अंटार्कटिका की सतह पर बर्फ की ऊंचाई में बदलाव से नीचे की झीलों के पानी का पता चलता है। ये दक्षिणी महासागर में बहने से पहले कई बार खाली होती हैं और फिर भरती हैं। ICESat मिशन के बाद ICESat-2 से इस नेटवर्क को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है। पिघल रही है बर्फ इससे पहले दूसरी स्टडी में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हर साल धरती पर से 53 हजार वर्ग किमी बर्फ पिघल रही है। इससे आने वाले समय में इंसानों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 1979 से लेकर वर्ष 2016 के बीच इतनी बर्फ पिघली है कि उससे विशाल सुप्रीयर झील को भरा जा सकता है।
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