Saturday 28 August 2021

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काबुल काबुल एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमले के बाद अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट के गढ़ पर हमला बोल दिया। हमले में इस सबसे कट्टरपंथी संगठन के आतंकी को मार गिराया गया। इस हमलो को अंजाम दिया गया रीपर ड्रोन से जिसे अमेरिका का ब्रह्मास्त्र कहा जाता है। ऐसा पहली बार नहीं है जब इस्लामिक स्टेट के अड्डे पर ड्रोन से हमला किया गया है। करीब 20 साल से अमेरिका ने इस अचूक हथियार का इस्तेमाल किया है। वक्त के साथ यह और सटीक होता गया है। आने वाले 10 साल में बढ़ेगी खरीद द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक 80 हजार से ज्यादा सर्विलांस ड्रोन और करीब 2000 अटैक ड्रोन अगले 10 साल में दुनियाभर में खरीदे जाएंगे। भारत ने भी इसकी खरीद में दिलचस्पी दिखाई है और हाल ही में अमेरिका से इसकी कीमत, रखरखाव और टेक्नॉलजी ट्रांसफर को लेकर 3 अरब डॉलर की डील पर रुख साफ करने को कहा है। 'हंटर-किलर' कहे जाने वाले इन ड्रोन्स का इंतजार भारतीय सेना को भी है जो 40 घंटे तक उड़ान भर सकते हैं और बम भी ले जा सकते हैं। यह ड्रोन पहले लक्ष्य की खुफिया जानकारी जुटाता है और फिर उसे खत्म करने के लिए हमला करता है। हेलफायर मिसाइल से लैस इस ड्रोन में कई बेहद घातक हथियार लगे होते हैं। इनमें लेजर से निर्देशित होने वाले हवा से जमीन पर मार करने वाले 8 हेलफायर मिसाइल भी शामिल हैं। ये मिसाइल बिल्कुल लक्ष्य पर निशाना साधते हैं जिससे कि आसपास कम-से-कम नुकसान हो। साथ ही, इसमें टारगेटिंग सिस्टम लगा है जिसमें विजुअल सेंसर्स लगे हैं। इसमें 1,701 किलो वजन तक का बम गिराने की क्षमता है। युद्ध में किया गया इस्तेमाल अमेरिका ने इससे पहले ईरानी सेना के कमांडर को भी निशाना बनाया था। अफगानिस्तान में ही अल-कायदा के खिलाफ भी ड्रोन विमानों का इस्तेमाल किया जाता रहा। अल-कायदा के सैन्य चीफ मोहम्मद आतिफ को इसी के सहारे ढेर किया गया था। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट यहां लंबे वक्त तक युद्ध चलने के कारण ड्रोन टेक्नॉलजी में विकास होता चला गया वरना वियतनाम की जंग में इन्हें जल्दी ही किनारे कर दिया गया था। उठे हैं कई विवाद हालांकि, रिपोर्ट का मानना है कि ड्रोन युद्ध काफी विवादास्पद रहा है क्योंकि कई बार मासूम लोगों और आम नागरिकों की जान चली जाती है। वहीं, ग्राउंड पर पूरी सच्चाई का पता करने के लिए किसी का ना होना और ड्रोन को दूर से कंट्रोल किया जाना भी एक बड़ा मुद्दा है। अफगानिस्तान जैसे युद्धक्षेत्र में इनके इस्तेमाल ने इन्हें बड़े हथियार के तौर पर स्थापित जरुर किया है लेकिन मानवाधिकारों को लेकर इन्हें गंभीर माना जाता रहा है।


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