Tuesday, 16 November 2021

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लंदन दुनिया दो विश्व युद्धों की विभीषिका को आज भी नहीं भूल पा रही है। 1945 में खत्म हुआ और तब से अब तक 75 वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच पुरातात्विक खोजों में मिल रहे युद्ध के नमूनों से पुराने जख्म हरे हो जा रहे हैं। हाल ही में यूके की राजधानी लंदन में जर्मन शासक अडोल्फ हिटलर की सेना का एक रॉकेट मिला है। दावा किया जा रहा है कि यही वी2 रॉकेट दुनिया की पहली बैलिस्टिक मिसाइल थी। लंदन में मिला विश्व युद्ध का रॉकेट दरअसल, दो भाई, कॉलिन और स्यां वेल्च पुरातात्विक खोजों के लिए एक संस्था चला रहे हैं। उनकी रिसर्च रिसॉर्स आर्कियॉलजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के कई स्थलों की खुदाई की है। इसी क्रम में लंदन के केंट इलाके में जर्मन वी2 रॉकेट का अवशेष मिला। जर्मन सेना ने 76 साल पहले वह रॉकेट लंदन पर दागा था, हालांकि वह लक्ष्य से 30 किमी पहले ही गिर गया। नाजी आर्मी ने दागे थे हजारों रॉकेट ब्रिटिश अखबार द सन का दावा है कि जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूके पर ऐसे हजारों रॉकेट दागे जिनसे वहां करीब नौ हजार लोग मारे गए थे। ये सभी रॉकेट यूरोप के नाजी नियंत्रित इलाकों में बने मोबाइल साइट्स से दागे गए थे। इनमें विस्फोटक भरे होते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके। उस रॉकेट का एक हिस्सा सितंबर महीने में मिला था। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें तरल ऑक्सिजन और अल्कोहल का घोल रखा गया होगा। इसी तकनीक से अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजा गया था। आवाज की गति से लक्ष्य को भेदता था रॉकेट अनुमान के मुताबिक, उस जर्मन वी2 रॉकेट की गति 3,300 मील प्रति घंटा रही होगी जो वर्ष 1944 के वैलंटाइंस डे की मध्य रात्रि को दागा गया था। वह लंदन में केंट इलाके के सेंट मेरीज प्लैट में गिरा था। सौभाग्य से इसकी चपेट में एक भी व्यक्ति नहीं आया था, लेकिन इसने मौके पर 14 फीट गहरा और 38 फीट चौड़ा गड्ढा खोद दिया। खोजकर्ता स्यां वेल्च ने कहा कि रॉकेट शायद रात में दागा गया था। यही वजह रही होगी कि लक्ष्य का सही निर्धारण नहीं किया जा सका होगा जिससे वह लंदन से 30 किमी पहले ही गिर गया। उन्होंने कहा कि इस रॉकेट के रात में दागे जाने का अनुमान इसलिए भी सही है क्योंकि केंट इलाके में ज्यादार रॉकेट रात में ही दागे गए थे। तब रॉकेट को रोकने की नहीं थी तकनीक रॉयल इंजीनियर्स म्यूजियम की रेबेका ब्लैकबर्न का कहना है कि उस वक्त मिसाइलों को रास्ते में ही मार गिराने की तकनीक विकसित नहीं हुई थी, इसलिए रॉकेट लॉन्च हो जाने पर उसे रोका नहीं जा सकता था। चूंकि रॉकेट की गति 3,000 मील प्रति घंटा थी, इसलिए आवाज से भी उसके आने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता था। उन्होंने कहा, 'वह आवाज की गति से आती थी। इसलिए जब तक आपके कान में आवाज आती तब तक वह लक्ष्य को भेद चुका होता।' ऑनलाइन म्यूजियम में रखे जाने की उम्मीद खोजकर्ताओं का कहना है कि इस रॉकेट के अवशेष को खुदाई के स्थल से उठाकर साफ-सुथरा करने में डेढ़ साल का वक्त लग सकता है। उम्मीद है कि तब नाजियों से संबंधित कुछ रहस्यों का उद्घाटन हो। रॉकेट के अलग-अलग हिस्सों पर कुछ-कुछ लिखे हैं जिनके बारे में अनुमान है कि उनसे शायद फैक्ट्रियों का अंदाजा लग जाए जहां वो तैयार किए गए होंगे। वेल्च ब्रदर्स की चाहत है कि वो इस जर्मन रॉकेट को ऑनलाइन म्यूजियम में भी प्रदर्शित करें।


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