
इस्लामाबाद सरकारी जमीन का इस्तेमाल व्यवसायिक हितों को पूरा करने के लिए कर रही है। सेना ने सरकारी जमीन पर शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल और मैरिज हॉल बनवाए हैं। इससे हो रही कमाई का बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी सेना के जनरलों के जेब में भी जा रहा है। अब पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख तेवर अपनाते हुए अटॉर्नी जनरल से पूछा है कि फौज को कानून कौन सिखाएगा। सरकारी जमीन का कॉमर्शियल इस्तेमाल कर रही फौज बता दें कि पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने कराची में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण के मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि कैंटोनमेंट (सेना की जमीन) की जमीनों का हाउसिंग प्रॉजेक्ट और कॉमर्शियल इस्तेमाल कैंटोनमेंट एक्ट 1924 और लैंड एक्विजिशन एक्ट 1937 का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून रक्षा उद्देश्यों के लिए भूमि को व्यावसायिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देता है और आदेश दिया कि इसे सरकार को वापस करना चाहिए। सिनेमा हॉल, पेट्रोल पंप, सोसाइटी, शॉपिंग मॉल और मैरिज हॉल बनाया उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश गुलजार अहमद, न्यायमूर्ति काजी मोहम्मद अमीन अहमद और न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन की एक पीठ ने वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए छावनी और सैन्य भूमि के उपयोग के एक मामले की सुनवाई फिर से शुरू की है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को इस तथ्य पर नाराजगी जताई कि रक्षा उद्देश्यों के लिए दी गई जमीन का उपयोग सिनेमा, पेट्रोल पंप, आवासीय सोसाइटी, शॉपिंग मॉल और मैरिज हॉल बनाने के लिए किया जा रहा है। कोर्ट ने पूछा- फौज को कानून कौन सिखाएगा? चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि अटॉर्नी जनरल साहब फौज को कानून कौन समझाएगा? सिनेमा, शादी हॉल और घर बनाना अगर रक्षा गतिविधियां हैं तो फिर रक्षा क्या होगी? यह सिर्फ कराची का मामला नहीं है बल्कि पूरे देश का यही हाल है। क्वेटा, लाहौर में भी डिफेंस की जमीनों पर शॉपिंग मॉल बने हुए हैं। मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने पूछा कि क्या सिनेमा, शादी हॉल, स्कूल और घर बनाना रक्षात्मक उद्देश्यों में है? सरकार को जमीन वापस करे फौज चीफ जस्टिस ने कहा कि कानून की मंशा यह नहीं है कि रक्षा भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया जाए...यदि इसका इस्तेमाल रक्षा उद्देश्य के लिए नहीं किया जा रहा है तो इसे सरकार को सौंप देनी चाहिए। प्रधान न्यायाधीश ने सेना की जमीन पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के लिए मकानों के निर्माण को लेकर भी नाराजगी जताई और कहा कि यह रक्षा उद्देश्यों के अंतर्गत नहीं आता है। उन्होंने पूछा कि सेना सरकारी जमीन पर व्यावसायिक गतिविधियों को कैसे अंजाम दे सकती है? रक्षा सचिव ने बनाई कमेटी रक्षा सचिव ने कहा कि भूमि के उपयोग में कानून के उल्लंघन की जांच के लिए तीनों सशस्त्र बलों की एक संयुक्त समिति का गठन किया गया। रक्षा सचिव के बयान से अदालत के संतुष्ट नहीं होने पर अटॉर्नी जनरल खालिद जावेद ने अदालत से रिपोर्ट वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया। प्रधान न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि उन्हें रक्षा सचिव को सूचित करना चाहिए कि अदालत में जो रिपोर्ट पेश की गई वह गलत है। प्रधान न्यायाधीश ने रक्षा सचिव को विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
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