Monday 25 January 2021

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काठमांडू कार्ल मार्क्‍स के पदचिन्‍हों चलते हुए धर्म को 'अफीम' मानकर जिंदगीभर नेपाल के हिंदू राजतंत्र का विरोध करने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अब पहली बार सोमवार को पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचे। पीएम ओली ने विश्‍व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष पूजा की और सवा लाख दीप जलाए। यही नहीं नेपाली पीएम ने पशुपतिनाथ मंदिर को सनातन धर्मावलंबियों के पवित्र स्‍थल के रूप में विकसित करने का निर्देश दिया। ओली नेपाल के पहले ऐसे कम्‍युनिस्‍ट प्रधानमंत्री हैं जो इस मंदिर में गए हैं। आइए जानते हैं ओली के अचानक से हृदय परिवर्तन के पीछे क्‍या वजह है... कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू देश रहे नेपाल के पीएम ओली का यह अचानक ह्दय परिवर्तन ऐसे समय पर हुआ है जब नेपाल में राजतंत्र को फिर से बहाल करने और देश को हिंदू राष्‍ट्र बनाने की मांग चरम पर है। नेपाली पीएम मंदिर गए और करीब सवा घंटे तक वहां पर रहे। नेपाली अखबार काठमांडू पोस्‍ट की रिपोर्ट के मुताबिक कार्ल मार्क्‍स को मानने वाले पीएम ओली अब तक कभी किसी मंदिर में नहीं गए थे। ओली के अचानक इस दांव से विशेषज्ञ हतप्रभ हैं। 'ओली पशुपतिनाथ मंदिर जाने वाले पहले कम्‍युनिस्‍ट प्रधानमंत्री' नेपाली पीएम का यह दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब देशभर में राजतंत्र को बहाल करने और नेपाल को हिंदू राष्‍ट्र बनाने के लिए जोरदार प्रदर्शन हो रहा है। माना यह भी जा रहा है कि ओली ने इस यात्रा के जरिए संसद को भंग करने से उपजे असंतोष को कम करने के लिए की है। ओली के इस कदम को संविधान पर हमला बताया जा रहा है। वही संविधान जो नेपाल को एक सेकुलर राष्‍ट्र बनाता है। केपी ओली पहले ऐसे कम्‍युनिस्‍ट प्रधानमंत्री हैं जिन्‍होंने पशुपतिनाथ मंदिर की यात्रा की है। यही नहीं अन्‍य वामपंथी नेता जैसे पुष्‍प कमल दहल प्रचंड, माधव कुमार नेपाल, बाबूराम भट्टाराई और झालानाथ खनल कभी भी पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गए हैं। यही नहीं इन नेताओं में से कई ने तो ईश्‍वर के नाम पर शपथ लेने से भी इनकार कर दिया था। विश्‍लेषकों का मानना है कि ओली की इस मंदिर यात्रा के पीछे उनका राजनीतिक अजेंडा छिपा हुआ है। 'ओली अब धर्मनिरपेक्षता से छुटकारा पाना चाहते हैं' नेपाल के वामपंथी आंदोलन पर लंबे समय से नजर रखने वाले श्‍याम श्रेष्‍ठ कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि ओली अब धर्मनिरपेक्षता से छुटकारा पाना चाहते हैं। वह राजतंत्र समर्थक और हिंदू समर्थक मतदाताओं को अपने पाले में लाना चाहते हैं। नेपाल में राजतंत्र समर्थक ताकतें और हिंदू समर्थक दल बिखरे हुए हैं और वे अलग-अलग नामों से काम करते हैं। इनमें राष्‍ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ही एक दल है जो संगठित होकर हिंदू राष्‍ट्र बनाने के लिए प्रयास कर रही है। संसद को भंग करने से पहले इस पार्टी के सांसद नेपाल में थे। यही नहीं ओली की अक्‍टूबर 2015 से अगस्‍त 2016 के बीच बनी पहली सरकार में राष्‍ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता कमल थापा उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री थे। कमल थापा ने ओली के संसद को भंग करने के फैसले का भी समर्थन किया है। ओली पहली बार मंदिर अब भले ही गए हैं लेकिन उनका हिंदुत्‍व की ओर झुकाव पिछले कई दिनों से काफी बढ़ गया है। कुछ महीने पहले ही ओली ने दावा किया था कि भगवान राम का जन्‍म भारत के अयोध्‍या में नहीं बल्कि नेपाल में हुआ था। उन्‍होंने नेपाल के चितवन में अयोध्‍यापुरी बसाने का निर्देश भी दिया था। केपी ओली के पूजा की पीएम मोदी से हो रही है तुलना नेपाली कांग्रेस के नेता शेखर कोईराला कहते हैं कि जिस तरह के बयान ओली दे रहे हैं और राजनीतिक घटनाक्रम जिस तरह से बदल रहा है, उससे लोगों को यह लगता है कि वह नेपाल को एक हिंदू राष्‍ट्र में बदल सकते हैं। उन्‍होंने कहा क‍ि अगर ओली चुनाव कराने में असफल रहते हैं तो देश में और प्रदर्शन हो सकते हैं और लोग सड़क पर उतर सकते हैं। इससे पहले पिछले चुनाव में ओली राष्‍ट्रवाद की भावनाएं भड़काकर और भारत के खिलाफ जहर उगलकर सत्‍ता में आए थे। पूरे कार्यकाल के दौरान वह चीन के इशारे पर नाचते रहे। हालांकि अब ओली के रुख में बड़ा बदलाव आया है और वह अब भारत और चीन में संतुलन बना रहे हैं और नई दिल्‍ली को यह संकेत दे रहे हैं कि वह उसके साथ चलने को तैयार हैं। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि वर्ष 2014 में जिस तरह से पीएम मोदी ने पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा की थी, उसी तरह से केपी ओली ने पूजा की है। ओली के इस दांव से नेपाली राजनीति गरम हो गई है।


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