काबुल तालिबान के आतंक से जूझ रहे अफगानिस्तान में भारत की परेशानियां अचानक बढ़ गई हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने तालिबान की मदद के लिए भेजे गए अपने लड़ाकों को भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर्स और संपत्तियों को निशाना बनाने का आदेश दिया है। खुद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इमरान खान के सामने कहा था कि पाकिस्तान से तालिबान की सहायता के लिए 10 हजार लड़ाके उनके देश में घुसे हैं। कुछ दिन पहेल ही भारत के बनाए सलमा डैम पर तालिबान आतंकियों ने रॉकेट से हमला किया था। पाकिस्तानी लड़ाकों को दिए गए विशेष निर्देश समाचार एजेंसी एएनआई ने अफगानिस्तान की निगरानी करने वाले सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि पाकिस्तानी और तालिबान लड़ाकों को विशेष निर्देश के साथ भारत में निर्मित संपत्तियों को निशाना बनाने के लिए भेजा गया है। उन्हें यह भी कहा गया है कि वे भारत के किसी भी सद्भावना वाले काम में बाधा डालें। भारत ने अफगानिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उनके शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने में भी भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान में भारत विरोधी कई आतंकी संगठन सक्रिय हक्कानी नेटवर्क सहित पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में भारत के खिलाफ कई साल से सक्रिय हैं। भारतीय एजेंसियां काबुल हवाईअड्डे पर भी स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए हैं। इतना ही नहीं, अफगानिस्तान में सिविल वर्क में लगे भारतीय कामगारों को भी बाहर जाने को कहा गया है। भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी WAPCOS शाहतूत बांध परियोजना के लिए अपने कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को अफगानिस्तान में तैनात किया हुआ था। भारत की कई परियोजनाओं को खतरा अफगानिस्तान को विकसित करने के लिए भारत ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अफगानिस्तान को अबतक 3 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है। जिससे वहां की संसद भवन, सड़कों और बांधों का निर्माण किया गया है। भारत अब भी 116 सामुदायिक विकास की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, रिन्यूएबल एनर्जी, खेल और प्रशासनिक ढांचे का निर्माण भी शामिल हैं। भारत काबुल के लिये शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर भी काम कर रहा है। अफगानिस्तान में भारत की लोकप्रियता बढ़ी अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण का काम भी शुरू करने जा रहा है। इसके अलावा बमयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क का निर्माण, परवान प्रांत में चारिकार शहर के लिये पीने के पानी के नेटवर्क को भी बनाने में भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में भारत अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) को भी बना रहा है। इन सभी विकास कार्यों के कारण भारत की लोकप्रियता अफगानिस्तान में बढ़ी है। चाबहार परियोजना को हो सकता है खतरा भारत ईरान के चाबहार परियोजना के जरिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप में व्यापार को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए भारत कई सड़कों का निर्माण भी कर रहा है जो अफगानिस्तान से होते हुए भारत के माल ढुलाई नेटवर्क को बढ़ाएगा। अगर तालिबान ज्यादा मजबूत होता है तो वह पाकिस्तान के इशारे पर भारत को परेशान भी कर सकता है। इससे चाबहार से भारत जितना फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है, उसे नुकसान पहुंच सकता है। कैसे हुआ तालिबान का जन्म तालिबान का जन्म 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ। इस समय अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) की सेना हारकर अपने देश वापस जा रही थी। पश्तूनों के नेतृत्व में उभरा तालिबान अफगानिस्तान में 1994 में पहली बार सामने आया। माना जाता है कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसमें इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था। 80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के अफगानिस्तान से जाने के बाद वहां कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था जिसके बाद तालिबान का जन्म हुआ।
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