Thursday, 26 August 2021

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काबुल आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट की शाखा ISIS-K दुनिया के सबसे घातक आतंकवादी खतरों में से एक के रूप में विकसित हो रहा है। गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए आत्मघाती हमलों के लिए अमेरिका इसी संगठन को जिम्मेदार ठहरा रहा है। करीब 20 सालों तक अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चलती रही। इसके बावजूद इस्लामिक स्टेट-खुरासान अपना अस्तित्व बचाने में न सिर्फ कामयाब हुआ बल्कि अभी भी खतरनाक हमले करने में सक्षम है। अमेरिकी और अन्य विदेशी सैनिकों के अफगानिस्तान से वापस जाने और तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद इस संगठन को फलने-फूलने के लिए उचित माहौल मिल सकता है। हालांकि दोनों संगठन एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। अमेरिका को पहले इसके खतरे का अंदाजा था और अनुमान था कि आईएसआईए-के काबुल एयरपोर्ट को निशाना बनाएगा। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने सैनिकों को 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से निकाल लेना चाहते हैं। बाइडन ने गुरुवार के हमलों के लिए समूह को दोषी ठहराया है, जहां एक आत्मघाती हमलावर ने काबुल एयरपोर्ट के बाहर अफगानों की भीड़ पर हमला किया। इस खतरनाक समूह इसी तरह के घातक हमलों के लिए जाना जाता है। एक नजर पर- वह आतंकवादी संगठन, जो अमेरिका के सैनिक वापसी अभियान को प्रभावित कर सकता है। इस्लामिक स्टेट खुरासान क्या है?आईएसआईस-के मध्य एशिया में इस्लामिक स्टेट का सहयोगी है। 2014 में लड़ाके पूरे सीरिया और इराक में फैल गए जिसके कुछ महीने बाद 2015 में आईएसआईएस-के की स्थापना हुई। इस संगठन में 'खुरासान' दरअसल अफगानिस्तान का एक प्रांत है जो अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के ज्यादातर हिस्से कवर करता है। इसे ISK या ISIS-K के नाम से भी जाना जाता है। आईएसआईएस-के के लड़ाके कौन हैं?आतंकवादी संगठन की शुरुआत कई सौ पाकिस्तानी तालिबान लड़ाकों के साथ हुई थी। लगातार चलाए गए सैन्य अभियानों के बाद उन्हें पाकिस्तान से निकाल दिया गया और उन्होंने अफगानिस्तान सीमा पर शरण ले ली। संगठन की ताकत चरमपंथी विचारधारा वाले लोगों ने बढ़ाई। इसमें तालिबान के वे असंतुष्ट लड़ाके भी शामिल हो गए जो पश्चिम के खिलाफ तालिबान के उदार और शांतिपूर्ण रवैये से नाखुश थे। बीते कुछ सालों में जैसे-जैसे तालिबान ने पश्चिम के साथ बातचीत के रास्ते खोले असंतुष्ट लड़ाके खुरासान समूह में शामिल हो गए और इसके लड़ाकों की संख्या बढ़ती गई। इसके अलावा ईरान के एकमात्र सुन्नी प्रांत से, उज्बेकिस्तान के इस्लामी आंदोलन से, तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी से, जिसमें चीन के उत्तर-पूर्व के उइगर शामिल हैं, को भी आकर्षित किया। क्यों खतरनाक है आईएसआईएस-के?जब तालिबान ने अपने संघर्ष को अफगानिस्तान तक सीमित कर दिया तो दुनियाभर में गैर-मुस्लिमों के खिलाफ जिहाद को फैलाने और इस्लामिक स्टेट के प्रभाव को विस्तृत रूप देने की जिम्मेदारी आईएसआईएस-के ने उठाई। सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रेटेजिक स्टडीज के पास ऐसे दर्जनों हमले दर्ज हैं जिसमें इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कई लोगों को निशाना बनाया, इसमें अल्पसंख्यक शिया मुस्लिम भी शामिल हैं। जनवरी 2017 से अफगान, पाकिस्तानी और अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के साथ इस समूह की कई झड़प भी हो चुकी हैं। अमेरिका का मानना है कि यह समूह दक्षिण और मध्य एशिया में अमेरिकी हितों के लिए एक पुराना खतरा है। अब क्या खतरा है?यह संगठन कितना खतरनाक है इसका अंदाजा West Point के Combating Terrorism Center की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें बताया गया है कि जब अफगानिस्तान अमेरिका के सैनिक तैनात थे, विमान और सशस्त्र ड्रोन मौजूद थे और सेना किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए तैयार थी, तब भी इस्लामिक स्टेट अपने हमले जारी रखने में सक्षम था। सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका जमीनी हमले की क्षमता खत्म हो जाएगी। साथ ही उसका इंटेलिजेंस भी कमजोर हो जाएगा जिससे इस्लामिक स्टेट की क्षमता और हमले की योजना के बारे में पता लगाया जा सकता था। बाइडन के अधिकारियों का कहना है कि इस्लामिक स्टेट समूह उन कई आतंकी खतरों में से एक है, जिनसे वह विश्व स्तर पर निपट रहा है। अमेरिका को डर सता रहा है कि 20 सालों बाद तालिबान की वापसी अफगानिस्तान को ऐसे चरमपंथी संगठनों का घर बना सकती है जो पश्चिम पर हमले कर सकते हैं। अमेरिका को अपने 'सबसे बड़े दुश्मन' अल-कायदा के भी वापस सिर उठाने का डर सता रहा है।


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