Thursday, 26 August 2021

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काबुल अफगानिस्तान के लगभग हर हिस्से पर तालिबान ने भले ही कब्जा कर लिया हो, पंजशीर उसके सामने घुटने टेकता नहीं दिख रहा है। यहां खड़े हो रहे विरोध आंदोलन के नेता ने एक बार फिर साफ किया है कि तालिबान के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया जाएगा। हालांकि, उन्होंने बातचीत का रास्ता खुला रखा है। पैरिस मैच को दिए इंटरव्यू में अहमद ने यह बात कही है। अहमद पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के साथ पंजशीर में आंदोलन खड़ा कर रहे हैं। 'मर जाऊंगा पर आत्मसमर्पण नहीं' मसूद ने फ्रांस के फिलॉसफर बर्नार्ड हेनरी लेवी को दिए इंटरव्यू में कहा है, ‘मैं आत्मसमर्पण की जगह मरना पसंद करूंगा। मैं अहमद शाह मसूद का बेटा हूं। आत्मसमर्पण शब्द मैं नहीं जानता। मसूद ने दावा किया है कि में उनके नैशनल रेजिस्टेंस फ्रंट में हजारों लड़ाके हैं। इस घाटी को 1979 में सोवियत सुरक्षाबल या 1996-2001 के बीच तालिबान भी जीत नहीं सका था। विदेशी ताकतों से मांगी मदद उन्होंने एक बार फिर विदेशी ताकतों से मदद मांगी है। उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैन्युअल मैक्रों से भी मदद मांगी है और काबुल पर तालिबान के कब्जे से पहले हथियार न देने पर नाराजगी भी जताई है। उन्होंने कहा, ‘मैं आठ दिन पहले काबुल को हथियार न देने की ऐतिहासिक गलती को भूल नहीं सकता। उन्होंने मना करा दिया और आज ये हथियार हेलिकॉप्टर और अमेरिकी टैंक तालिबान के हाथ में हैं।’ हर जंग में होती है बातचीत मसूद ने कहा कि वह तालिबान से बात करके समझौते के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि हर जंग में बातचीत होती है और उनके पिता ने हमेशा अपने दुश्मनों से बातचीत की। उन्होंने कहा, ‘सोचिए कि तालिबान महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करे, लोकतंत्र और समावेशी समाज के आदर्शों का सम्मान करे। उन्होंने समझना चाहिए कि इनसे अफगान के लोगों का और उनका खुद का फायदा होगा।’


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