
संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा संयुक्त राष्ट्र के एक शीर्ष मानवाधिकार विशेषज्ञ ने विवादित तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने आशा जताई कि कृषि सुधारों के संबंध में भविष्य में लिए जाने वाले फैसले देश की मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होंगे और किसानों, समुदायों और संघों के साथ सकारात्मक बातचीत के बाद लिए जाएंगे। भारत सरकार ने सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही कृषि कानून वापसी विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा से पारित करवा लिया है। पीएम मोदी ने 19 नवंबर को किया था ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती, 19 नवंबर, के अवसर पर देश को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि उनकी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि किसान इन कानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने घोषणा करने के साथ ही किसानों से अपने-अपने घर लौटने का भी आह्वान किया था। आंदोलन खत्म कर लोगों से घर वापस जाने की अपील पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि ये कानून किसानों के हित में थे और सरकार साफ दिल और साफ नियत होने के बावजूद यह बात किसानों के एक धड़े को नहीं समझा सकी। जिसके बाद उन्होंने किसानों से आंदोलन खत्म कर घर जाने की अपील भी की। यूएन के विशेष दूत ने जताई खुशी भोजन के अधिकार मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत माइकल फाखरी ने कहा कि इन कानूनों के कारण भारत की पूरी खाद्य व्यवस्था दांव पर लगी थी। आशा करते हैं कि कृषि सुधारों के संबंध में भविष्य में लिए जाने वाले फैसले देश की मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होंगे और किसानों, समुदायों तथा संघों के साथ सकारात्मक बातचीत के बाद लिए जाएंगे। यूएन के दूत ने 'शांतिपूर्ण' विरोध प्रदर्शन की तारीफ की उन्होंने शुक्रवार को कहा कि मैं कानून बनाने के लिए पूरी की गई लंबी प्रक्रिया की इज्जत करता हूं, लेकिन पिछले एक साल में जो भी हुआ है वह सैकड़ों हजारों लोगों के भीतर के गहरे असंतोष को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोगों को प्रदर्शन और शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से नीतिगत बदलाव को प्रभावित करने के लिए सशक्त बनाने का महत्वपूर्ण हथियार है।
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