Tuesday, 21 December 2021

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वॉशिंगटन अमेरिका ने चीन को जलाने के लिए तिब्बत मुद्दे को एक बार फिर हवा दे दी है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तिब्बत मामलों के लिए भारतीय मूल की राजनयिक अजरा जिया को अपना स्पेशल को-ऑर्डिनेटर नियुक्त किया है। एक तो मामला चीन का दूसरा उसमें अमेरिकी हस्तक्षेप और तीसरा भारतीय मूल के राजनयिक की नियुक्ति से ड्रैगन को मिर्ची लगना तय है। अमेरिका के रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक सांसदों का एक प्रभावशाली समूह पहले से ही तिब्बत मुद्दे में हस्तक्षेप करने और दलाई लामा से बात करने के लिए बाइडेन प्रशासन पर दबाव बना रहा था। अजरा जिया क्या काम करेंगी? जो बाइडेन ने भारतीय मूल के राजनयिक अजरा जिया को तिब्बत पर एक समझौते के लिए चीन और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच ठोस बातचीत को आगे बढ़ाने का काम सौंपा गया है। इसकी मांग अमेरिकी सांसदों के दो पार्टियों वाले एक प्रभावशाली समूह ने कुछ दिनों पहले की थी। सांसदों ने मांग की थी कि अमेरिका को ऐसी नीति बनाने की आवश्यकता है जो तिब्बत की विशिष्ट राजनीतिक, जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मान्यता दे। अमेरिकी संसद तिब्बत को लेकर पहले से ही 2002 के तिब्बती नीति कानून और 2020 के तिब्बत पर अमेरिकी नीति और समर्थन कानून (टीपीएसए) बना चुकी है। भारत में स्वतंत्रता सेनानी थे अजरा के दादा जिया ने इस पद पर उनके नाम की पुष्टि से संबंधित सुनवाई के दौरान सांसदों को बताया था कि उनके दादा भारत में स्वतंत्रता सेनानी थे। जिया ने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस से स्नातक किया है। अपने राजनयिक करियर में नई दिल्ली में भी तैनात रह चुकीं जिया ने 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ विदेश सेवा से इस्तीफा दे दिया था। वह नागरिक सुरक्षा, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की अवर सचिव भी हैं। तिब्बत की सांस्कृतिक तथा धार्मिक आजादी दबा रहा चीन चीन पर तिब्बत में सांस्कृतिक तथा धार्मिक आजादी को दबाने का आरोप है। हालांकि, चीन इन आरोपों से इनकार करता है। चीन और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच तिब्बत मुद्दे पर हाल के वर्षों में बातचीत नहीं हुई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में पदभार संभालने के बाद से तिब्बत पर सुरक्षा नियंत्रण बढ़ाने के लिए एक सख्त नीति अपनायी है। बीजिंग बौद्ध भिक्षुओं और दलाई लामा के अनुयायियों पर कार्रवाई करता रहा है। दलाई लामा तिब्बत से निर्वासित होने के बावजूद वहां के एक बड़े आध्यात्मिक नेता हैं। चीन 86 वर्षीय दलाई लामा को अलगाववादी मानता है। दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर आमने-सामने दोनों देश अमेरिका और चीन 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर पहले से ही आमने-सामने हैं। चीन अपने किसी खास को 15वां दलाई लामा बनाना चाहता है, जिससे तिब्बत पर उसकी पकड़ मजबूत हो सके। इतना ही नहीं, तिब्बती संस्कृति के दमन को लेकर भी अमेरिका लगातार आवाज उठाता रहा है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन ने तिब्बती लोगों को बंधुआ मजदूर बनाकर देश के अलग-अलग हिस्सों में काम करने के लिए भेजा हुआ है। ऐसे में अमेरिका के इस ताजा नियुक्ति से भी विवाद गहराने के आसार हैं। चीन खुद चुनना चाहता है अगला दलाई लाम चीन ने ऐसे संकेत दिए हैं कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन चीन ही करेगा। चीन की इन चालाकियों को देखते हुए दलाई लामा नजदीकियों ने पहले ही बताया है कि परंपरा को तोड़ते हुए वे खुद अपने उत्तराधिकारी का चयन कर सकते हैं। अमेरिका पहले ही इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सामने रखने की मांग कर चुका है। इस पूरे मामले पर अमेरिका और भारत की पहले से नजर है। पिछले साल US दूत सैम ब्राउनबैक ने धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात की थी। 84 वर्षीय दलाई लामा से मीटिंग के बाद ब्राउनबैक ने कहा था कि दोनों के बीच उत्तराधिकारी के मामले पर लंबी चर्चा हुई थी। दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनना क्यों जरूरी? तेनजिन ग्यात्सो, जिन्हें हम 14वें दलाई लामा के नाम से जानते हैं, वे इस साल जुलाई में 86 साल के हो गए हैं। उनकी बढ़ती उम्र और खराब होती सेहत के बीच अगले दलाई लामा के चुनाव को लेकर भी घमासान मचा हुआ है। तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को एक जीवित बुद्ध माना जाता है जो उनकी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेते हैं। परंपरागत रूप से जब किसी बच्चे को दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में चुन लिया जाता है, तब वह अपनी भूमिका को निभाने के लिए धर्म का विधिवत अध्ययन करता है। वर्तमान दलाई लामा की पहचान उनके दो साल के उम्र में की गई थी।


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