Tuesday, 21 December 2021

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काबुल अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद पाई-पाई को तरस रहे तालिबान ने गलती से अपने दुश्मन देश को बड़ी रकम ट्रांसफर कर दी है। जिसके बाद अब वह देश इन पैसों को तालिबान को लौटाने से इनकार कर रहा है। ऐसे में पहले से ही कंगाली से जूझ रहे तालिबान के सामने और बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। तालिबान लगातार अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों से अपने सीज किए गए बैंक खातों को बहाल करने की मांग कर रहा है। खुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तालिबान के लिए ब्रांड एंबेसडर बनकर विदेशी देशों से चंदा मांग रहे हैं। ताजिकिस्तान में अफगान दूतावास को 800000 डॉलर भेजे तालिबान का यह दुश्मन देश और कोई नहीं, बल्कि उसका पड़ोसी ताजिकिस्तान है। तालिबान शासन ने गलती से लगभग 800000 डॉलर ताजिकिस्तान में अफगान दूतावास के बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिया था। गलती का आभास होने पर तालिबान ने अपने दूतावास और ताजिक सरकार से पैसों को वापस करने की मांग की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया है। अफगान दूतावास के राजदूत शुरू से ही अपदस्थ अशरफ गनी सरकार के प्रति अपनी निष्ठा जताते रहे हैं और तालिबान का कड़ा विरोध भी किया है। अशरफ गनी सरकार ने स्वीकृत किया था यह पैसा दुशांबे की न्यूज वेबसाइट अवेस्ता ने पिछले हफ्ते दूतावास के सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि यह पैसा पूर्व अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार ने ताजिकिस्तान में शरणार्थी बच्चों के लिए एक स्कूल के लिए फंडिंग के तौर पर स्वीकृत किया था। हालांकि, बीच में तालिबान के हमलों के बढ़ने से अफगान सरकार यह पैसा ट्रांसफर नहीं कर पाई और 15 अगस्त से तालिबान ने काबुल को कब्जे में कर लिया। तालिबान को पैसे के गंतव्य के बारे में नहीं थी जानकारी अवेस्ता की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस पैसे का ट्रांसफर पहले से शेड्यूल तारीख पर की गई। इसका कोई स्पष्ट संकेत नहीं है कि तालिबान के वित्त मंत्रालय को इन पैसों के ताजिकिस्तान जाने के बारे में पहले से पता था। वहीं न्यूज वेबसाइट यूरेशियानेट ने दावा किया है कि तालिबान शासन से वास्तव में फंड का ट्रांसफर किया गया है, लेकिन यह 400000 डॉलर ही है। यह ट्रांजेक्शन इसी साल सितंबर महीने में किया गया था। तालिबान ने चिट्ठी लिखकर पैसा लौटाने को कहा दूतावास के सूत्र ने कहा कि तालिबान सरकार ने नवंबर में उन्हें पत्र लिखकर पैसे वापस करने के लिए कहा था। इस अनुरोध को खारिज कर दिया गया है। सूत्र ने कहा कि हमने स्कूल नहीं बनाया है, लेकिन अब चार महीने से शिक्षक और दूतावास के कर्मचारी इन फंडों से अपनी सैलरी पा रहे हैं। सारा पैसा दूतावास और अफगानिस्तान के नागरिकों की जरूरतों पर खर्च किया जा रहा है। तालिबान से गुस्सा क्यों है ताजिकिस्तान? दरअसल, अफगानिस्तान में ताजिक समुदाय के लोगों की काफी बड़ी आबादी रहती है। इनकी सबसे बड़ी बसावट तालिबान के सबसे बड़े विरोधी गढ़ पंजशीर में है। तालिबान ने पंजशीर में जमकर जुल्म ढाहे हैं। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान लड़ाकों ने अपने धुर विरोधी अहमद मसूद को उनके घर से खदेड़ दिया। उपराष्ट्रपति और ताजिक मूल के अमरुल्लाह सालेह को भी भगा दिया गया। तालिबान ने ही अलकायदा के आतंकियों के जरिए पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद की हत्या भी करवाई थी। ऐसे में ताजिकिस्तान अपने जातीय समूहों की सुरक्षा को लेकर तालिबान पर चिढ़ा हुआ है।


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